राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बोधघाट और केदार कश्यप
17-Jun-2025 6:04 PM
राजपथ-जनपथ : बोधघाट और केदार कश्यप

बोधघाट और केदार कश्यप

साय सरकार ने बस्तर की महत्वाकांक्षी बोधघाट परियोजना पर काम शुरू करने का फैसला लिया है। सीएम विष्णुदेव साय ने खुद इस सिलसिले में पीएम नरेंद्र मोदी से बात की है। यह परियोजना पिछले चार दशक से  अटकी पड़ी है, और कहा जा रहा है कि नक्सलियों के खात्मे के बाद परियोजना की उपयोगिता काफी अधिक है। इससे दंतेवाड़ा, सुकमा, और बीजापुर क्षेत्र में सिंचाई का रकबा काफी बढ़ेगा, और किसानों की आय दोगुनी-तिगुनी हो जाएगी। मगर परियोजना पर काफी पेंच भी है।

सुनते हैं कि जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप बोधघाट परियोजना पर खामोश हैं। सीएम के बयान आ चुके हैं, लेकिन बस्तर के इकलौते मंत्री केदार कश्यप की अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस संवाददाता ने भी बोधघाट के मसले पर जल संसाधन मंत्री से मोबाइल पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन उनसे चर्चा नहीं हो पाई। उनके ऑफिस स्टाफ के माध्यम से तीन सवाल भी भेजे गए थे। सवाल उन तक पहुंचा भी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। केदार बोधघाट पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

सुनते हैं कि जल संसाधन मंत्री परियोजना को लेकर असहज हैं। वजह यह है कि बोधघाट से जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप के विधानसभा क्षेत्र नारायणपुर को कोई फायदा नहीं होगा, यानी जो भी फायदा होगा वो दंतेवाड़ा, सुकमा, और बीजापुर को ही मिलेगा। यही नहीं, परियोजना के विस्थापन आदि को लेकर जो भी समस्याएं आएगी, वो काफी हद तक केदार को ही झेलना पड़ेगा। यही वजह है कि केदार, बोधघाट पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।

पिछली सरकार में भी बोधघाट पर काम शुरू हुआ था, तब भी नारायणपुर के कांग्रेस विधायक चंदन कश्यप, और अन्य विधायकों ने सीएम भूपेश बघेल से मिलकर परियोजना पर अपनी असहमति जताई थी। चुनाव नजदीक थे, इसलिए भूपेश सरकार भी पीछे हट गई। मगर अगले तीन साल कोई चुनाव नहीं है, और केन्द्र व राज्य सरकार की सोच है कि बस्तर के सर्वाधिक पिछड़े बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा जिले को बोधघाट के जरिए विकास की मुख्यधारा में लाया जाए, लेकिन सरकार, और पार्टी में अंतर विरोधों के बीच बोधघाट पर काम आगे बढ़ पाता है या नहीं, यह देखना है।

तबादले और अपने अपने अनुभव

मानसून के आगे बढ़ते ही तबादलों का मौसम शुरू होने वाला है। स्वैच्छिक तबादलों के आवेदन का टाइम खत्म हो गया है। अब बस सूचियां बनने और आदेश निकलने की बारी है। इस दौरान दफ्तरों में तबादलों के पुराने अनुभवों की यादें ताजा होने लगीं हैं। ऐसे ही एक आफिस में दो बड़े साहब लोग,पुरानी सरकारों के दो मंत्रियों की साफगोई और ईमानदारी को रेखांकित करते नहीं थक रहे थे। संयोग की बात है कि दोनों ही मंत्री ने अलग अलग कार्यकाल में एक ही विभाग संभाला था। इन्हीं विभाग के पहले वाले साहब ने कहा हमारे माननीय ने लिस्ट तो बड़ी बनाई थीं, लेकिन कटती गई।  और फिर जिनका नहीं हो पाया उनको मायूस नहीं होना पड़ा। क्योंकि अनुबंध वापसी योग्य किया गया था।

दूसरे साहब ने बताया कि उनके माननीय ने कोटा फिक्स कर लिया था। जितने नाम उतनी ही दक्षिणा का चलन रहा है। इसलिए पूरे पांच साल ज्यादा तनाव लिया ही नहीं जाता था। इस बार विभाग में मंत्री नए हैं और कडक़ मैडम हैं। देखना होगा कि सूची कैसी रहती है।

राजधानियों में इंजीनियरिंग के तमाशे

भोपाल के ऐशबाग इलाके में 90 डिग्री मोड़ वाला अनोखा फ्लाईओवर बना है। 18 करोड़ रुपये की लागत और 8 साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ यह फ्लाईओवर, जिंसी इलाके को पुराने भोपाल और भोपाल रेलवे स्टेशन से जोडऩे के लिए बनाया गया, ताकि रेलवे क्रॉसिंग पर लगने वाली भीड़ से निजात मिले। मगर, इसकी तीखी 90 डिग्री की डिजाइन को देखकर लोग हैरान हैं कि आखिर किस अफसर ने इसे मंजूरी दी। सोशल मीडिया पर इसे दुनिया का आठवां अजूबा कहकर मजाक उड़ाया जा रहा है, और मीम्स की बाढ़ आ गई है। लोग इसे मौत का मोड़ कह रहे हैं, क्योंकि ऐसे घुमाव पर बड़े वाहनों का मुडऩा लगभग नामुमकिन है।

वहां के एक कांग्रेस नेता मनोज शुक्ला ने तो इस फ्लाईओवर पर पूजा-पाठ तक करवा दिया, पीडब्ल्यूडी को सद्बुद्धि देने और इससे गुजरने वालों की सुरक्षा के लिए। पीडब्ल्यूडी की सफाई यह है कि शुरुआती योजना 2017 में 425 मीटर लंबे पुल की थी, लेकिन मेट्रो और जमीन विवादों के चलते इसे 648 मीटर तक बढ़ा दिया, और लागत 8.39 करोड़ से 18 से 20 करोड़ तक पहुंच गई। काम शुरू हो चुका था, पर आगे स्टैंडर्ड के अनुसार मोड़ देने के लिए जमीन मिल नहीं पाई, तो 90 डिग्री मोड़ दिया। और फिर जो है वह आपके सामने है।

कहीं आपको भोपाल का यह स्ट्रक्चर देखकर अपनी राजधानी रायपुर का स्काई वॉक तो याद नहीं आ रहा?

बदलते मौसम का पाठ

तय शेड्यूल के मुताबिक 16 जून से स्कूल खुल गए। मगर ठीक इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश आ गया। एक हफ्ते तक स्कूलों में बच्चों को सुबह 11 बजे तक ही छुट्टी दे दी जाए।

एक दौर था जब 16 जून की तारीख बच्चों के लिए रोमांच लेकर आती थी। स्कूल का रास्ता भीगा-भीगा होता था। मिट्टी से उठती सौंधी खुशबू मन मोह लेती थी। छतरियों और रेनकोट के बावजूद लौटते वक्त जूते-मोजे और यूनिफॉर्म कीचड़ में सन जाते थे।

मगर इस बार बारिश इम्तेहान ले रही है। सिर्फ झुलसाती गर्मी और बेहिसाब उमस है। बच्चे बौछारों में नहीं, पसीने में भीग रहे हैं। कई शहरों में अब भी तापमान 35 से 40 डिग्री तक टिका है।

हम आपने ही यह रास्ता तैयार किया है । शायद बच्चे सवाल करें तो हमें जवाब नहीं सूझेगा कि हसदेव जैसे जंगलों की बेतहाशा कटाई क्यों हुई? नदियों, बांधों,तालाबों का बेहिसाब दोहन कर उन्हें बर्बाद क्यों किया, क्यों प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल करने से नहीं बचे। बच्चे देर-सबेर जान ही जाएंगे कि आज छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संतुलन को जिस तरह बिगाड़ा जा रहा है, कल उनकी पीढ़ी इसकी भारी कीमत चुकाने वाली है।

स्कूल की चौखट पर कदम रखते ही बच्चों ने इस बार मौसम से एक पाठ पढ़ लिया है कि धरती संकट में है। और उसे बचाने की जिम्मेदारी अब उनके ही नन्हे कंधों पर ही आने वाली है।


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