राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नीली बत्ती पर बर्थडे, ड्राइवर पर एफआईआर!
20-Jun-2025 6:05 PM
राजपथ-जनपथ : नीली बत्ती पर बर्थडे, ड्राइवर पर एफआईआर!

नीली बत्ती पर बर्थडे, ड्राइवर पर एफआईआर!

बलरामपुर के डीएसपी साहब की पत्नी मैडम जी जब नीली बत्ती वाली एक्सयूवी के बोनट पर बर्थडे केक रखकर सेलिब्रेट कर रही थीं, और सहेलियां कार की छत-डिक्की-खिडक़ी सब पर लटक रही थीं, तब एक महिला स्टेयरिंग पर थीं, संभवत: वह भी उनकी सहेली होंगी, जैसा आदेश मिला, वैसे चला दिया होगा।

वीडियो वायरल हुआ, सोशल मीडिया पर फजीहत हुई तो पुलिस ने भी कड़ी कार्रवाई का ढोल बजा दिया और सीधे केस ड्राइवर पर कर दिया। मैडम, बाकी सहेलियां, नीली बत्ती, साहब की जवाबदेही, सबको क्लीन चिट। कानून तोड़ा गया, लेकिन जिसने सिर्फ गाड़ी चलाई, वही कानूनन अपराधी बन गया। छत्तीसगढ़ के बाकी मामलों को उठाकर देखें तो सिर्फ ड्राइवर ही नहीं, उनके साथ जितने लोग होते हैं, उन पर पुलिस ने कार्रवाई की है। प्राइवेट गाड़ी में नीली बत्ती कैसे लगी, नीली बत्ती का दुरुपयोग किसने किया? पुलिस ने इन सवालों का जवाब नहीं दिया है।

सोशल मीडिया पर पुलिस की ऐसी तत्परता का मजाक उड़ाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पुलिस  ने कार बनाने वाली कंपनी पर ही एफआईआर क्यों नहीं कर दी, जिसने बोनट इतना मजबूत बनाया कि लोग उस पर बैठ सकें। टायर, ट्यूब बनाने वाले पर कर देती। या उस दुकान पर केस कर देती, जिसने नीली बत्ती बेची। 

वैसे टेंशन की बात उसके लिए भी नहीं है, जिस पर केस हुआ। मोटर व्हीकल एक्ट की जिन धाराओं में कार्रवाई की गई है, उसमें केवल एक हजार रुपये का जुर्माना है।

नन्द कुमार साय की कोशिशें

दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज से दो दिन पहले अकेले चर्चा की है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद साय पार्टी छोडक़र भाजपा में आ गए थे। उन्होंने ऑनलाइन सदस्यता ग्रहण की थी। मगर पार्टी ने उन्हें अब तक सक्रिय सदस्यता नहीं दी है।

कभी भाजपा कोर ग्रुप के सदस्य रहे नंदकुमार साय सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। वो सीएम विष्णुदेव साय से भी मिल चुके हैं।  मगर पार्टी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। ऐसे में नंदकुमार साय की चिंतामणि महाराज से मुलाकात के मायने तलाशे जा रहे हैं। चिंतामणि महाराज को सीएम, और पार्टी संगठन के नेता महत्व देते हैं।

कुछ लोगों का अंदाजा है कि चिंतामणि महाराज, नंदकुमार साय के लिए पैरवी कर सकते हैं। मगर नंदकुमार साय के लिए पैरवी को पार्टी गंभीरता से लेगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। इसकी वजह यह है कि महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल रमेश बैस भी बिना किसी पद के हैं। उन्हें तो पार्टी ने बकायदा सदस्यता भी दिलाई थी। कुल मिलाकर 70 पार हो चुके पार्टी के नेता धीरे-धीरे मार्गदर्शक मंडल में जा रहे हैं। ऐसे में एक बार पार्टी छोड़ चुके नंदकुमार साय के लिए तो भाजपा में गुंजाइश नहीं के बराबर दिख रही है।

 

चलो कटहल पार्टी हो जाए...

छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला कृषि विविधता का एक अनूठा उदाहरण है। यहां की मिट्टी और मौसम ने टाउ, टमाटर और आलू जैसी फसलों को वर्षों से संजो रखा है। इन्हीं के बीच कटहल भी अब एक खास उत्पाद है। पूरे प्रदेश में शायद यही एकमात्र जिला है, जहां ‘कटहल उत्सव’ मनाया जाता है। इस बार के उत्सव में पत्थलगांव के किसान त्रिलोचन को 36.63 किलो वजनी कटहल के लिए पहला पुरस्कार मिला। इसके अलावा 29 किलो और 27 किलो के कई बड़े कटहल भी प्रदर्शनी में शामिल रहे।

कटहल एक ऐसी फसल है, जिसे एक बार लगाने के बाद वर्षों तक फल मिलता है और इसकी ज्यादा देखभाल की भी जरूरत नहीं होती। छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में कटहल पाया जाता है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर इसका उत्पादन आज भी बेहद सीमित है।

जशपुर के उत्सव में महिलाओं के सहायता समूहों द्वारा कटहल से बने अचार, जैम, पापड़ आदि उत्पादों की भी आकर्षक प्रदर्शनी लगाई। मगर इनमें अधिकांश को बाजार और विपणन की सीमाओं का सामना करना पड़ता है। बड़े बाजारों तक पहुंच और निर्यात की सुविधा मिलने पर यह क्षेत्र किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है। धान के पारंपरिक ढांचे से बाहर निकलकर वैकल्पिक फसलों की ओर कदम बढ़ाने वाले किसानों को मदद मिलनी चाहिए। 

चुनाव करवा देता है हर काम

1.2 करोड़ से अधिक केंद्रीय सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी अभी भी अंधेरे में हैं क्योंकि बहुप्रतीक्षित 8वां वेतन आयोग लगभग छह महीने बाद भी ठंडे बस्ते में है। मोदी 2.0 में अब वेतन आयोग नहीं का फैसला सुनाने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16 जनवरी, 2025 को आयोग के गठन को हरी झंडी देकर चौंका दिया था।

उसके बाद से अब तक  अध्यक्ष, कोई सदस्य की नियुक्ति न करने और कोई संदर्भ शर्तें (टर्म्स ऑफ रेफरेंस)अधिसूचित नहीं होने के कारण दिल्ली से रायपुर, कन्याकुमारी तक सर्विस सेक्टर में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। सरकार ने आयोग कार्यालय के लिए 35 से  अधिक पदों मंजूर करने के बाद कर्मचारियों की नियुक्ति पर भी चुप्पी कायम है। इनके आयोग में  अध्यक्ष, सदस्य की नियुक्ति के साथ ही फिर आयोग के राज्यवार दौरे लंबा काम होना है। इसे देखते हुए बड़े नौकरशाह और छोटे कर्मचारियों में 1 जनवरी, 2026 से नए वेतनमान लागू होने की उम्मीदें तेजी से धूमिल हो रही हैं। वैसे चिंता की बात नहीं है, जो काम सामान्य सरल तरीके से नहीं होते हैं उन्हें चुनाव करवा देता है। उम्मीद है बिहार चुनाव को देखते हुए जल्द आयोग के अध्यक्ष सदस्य नियुक्त कर सरकार काम आगे बढ़ा देगी।

इसी इंतजार में कर्मचारी संघों ने पहले ही अपनी प्रमुख मांगें प्रस्तुत कर दी हैं, जिनमें पांच सदस्यीय परिवार के आधार पर न्यूनतम वेतन में संशोधन, चुनिंदा वेतन स्तरों का विलय, 15 के बजाय 12 साल बाद परिवर्तित पेंशन की बहाली, पांच साल की पेंशन संशोधन और मुद्रास्फीति की भरपाई के लिए महंगाई भत्ते (डीए) का 50 प्रतिशत मूल वेतन में विलय शामिल है। हालांकि, केंद्र राजनीतिक और वित्तीय कारकों के आधार पर जनवरी 2026 से पूर्वानुसार कार्यान्वयन पर विचार कर सकता है।


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