नांदगांव संसदीय क्षेत्र में 5 कांग्रेस और तीन में भाजपा के खाते में जीत दर्ज
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 4 दिसंबर। राजनांदगांव विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तमाम पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते ऐतिहासिक जीत के साथ कई रिकार्ड बनाए हैं। रमन को मिले चौतरफा वोटों से जीत आसानी से हासिल हो गई।
सट्टा बाजार और राजनीतिक हल्कों में पूर्व मुख्यमंत्री के हारने अथवा कम मतों से जीतने को लेकर दांव भी लगा था। रमन ने जिस तरह से कांग्रेस के किले में सेंधमारी की। उससे राजनीतिक पंडित भी चौंक गए। एक तरह से पूर्व सीएम ने अपने ही रिकार्ड को ध्वस्त किया है।
2013 में उन्होंने 36 हजार मतों से कांग्रेस के दिवंगत नेता उदय मुदलियार को शिकस्त दी थी। रविवार देर शाम को रमन ने 45 हजार मतों से कांग्रेस के गिरीश देवांगन को मात दी। अब तक की मिली यह जीत मतों के लिहाज से रमन के लिए सर्वाधिक है।
विधानसभा चुनाव में रमन ने चौथी बार राजनांदगांव से किस्मत आजमाया। विधानसभा के सभी बूथों में मतों की बारिश हुई। रमन के सामने देवांगन टिक नहीं पाए। उन्हें एक भी राउंड में बढ़त नसीब नहीं हुई। रमन को कुल एक लाख 2 हजार 499 मत मिले। जबकि देवांगन को 57 हजार 415 वोट मिला। रमन ने शुरूआत से ही अपनी लीड को बनाए रखा। अंत तक एक भी ऐसा मौका नहीं आया, जब देवांगन को रमन से बढ़त मिलने का मौका मिला हो।
2018 में रमन की लीड काफी नीचे आ गई थी। उन्हें कांग्रेस की दिवंगत नेत्री करूणा शुक्ला से कड़ी टक्कर मिली थी। इस चुनाव में वह 16 हजार मतों से जीतने में कामयाब हो गए थे। पुरानी हार का हिसाब का चुकता करते हुए रमन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 45 हजार के आंकड़ों को छू लिया। अविभाजित राजनांदगांव जिले में किसी भी प्रत्याशी की जीत का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है।
वहीं समूचे राजनांदगांव लोकसभा में भाजपा को उम्मीद के मुताबिक जनमत नहीं मिला। संसदीय क्षेत्र के कवर्धा, पंडरिया और राजनांदगांव में ही भाजपा जीत का खाता खोलने में कामयाब रही। जबकि मोहला-मानपुर, खुज्जी, डोंगरगांव, डोंगरगढ़ व खैरागढ़ में 5 सीटों के साथ कांग्रेस आगे रही। कांग्रेस के सभी पांचों उम्मीदवारों ने भाजपा की जीत की संभावना को हार में बदल दिया।
काफी अच्छे अंतरों से मोहला-मानपुर के मौजूदा विधायक इंद्रशाह मंडावी ने भाजपा के संजीव शाह को शिकस्त दी। इंद्रशाह ने 31 हजार मतों से संजीव शाह को हार के मुहाने में धकेल दिया।
इसी तरह दूसरे सर्वाधिक मतों से कांग्रेस के भोलाराम साहू ने खुज्जी विस में तीसरी बार जीत हासिल की। उन्होंने भाजपा की जिला पंचायत अध्यक्ष गीता साहू को 25 हजार 944 वोटों से शिकस्त दी।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित डोंगरगढ़ विस से कांग्रेस को पहली महिला विधायक मिली। कांग्रेस की हर्षिता गोस्वामी ने पूर्व विधायक विनोद खांडेकर को 14 हजार 367 वोट से पराजित किया।
डोंगरगांव विधानसभा से हैट्रिक लगाते दलेश्वर साहू ने कांग्रेस की जीत को बरकरार रखा। उन्होंने भाजपा के भरत वर्मा को 2789 वोटों से शिकस्त दी। दलेश्वर 2013 से लगातार विधायक निर्वाचित हो रहे हैं।
इसी तरह खैरागढ़ से कांटे की टक्कर में भाजपा के युवा नेता विक्रांत सिंह मौजूदा विधायक कांग्रेस की यशोदा वर्मा से 5 हजार 634 वोट से हार गए। विक्रांत ने शानदार तरीके से चुनाव का मुकाबला किया। कुछ क्षेत्रों में जातिगत समीकरण के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
उधर साम्प्रदायिक तनाव की वजह से चर्चित कवर्धा विधानसभा में मोहम्मद अकबर भी अपनी हार को बचा नहीं पाए। उन्हें भाजपा के विजय शर्मा ने 39 हजार वोटों से परास्त किया।
पंडरिया विधानसभा से भावना बोहरा ने कांग्रेस के नीलकंठ चंद्रवंशी को लगभग 10 हजार वोटों से शिकस्त दी। इस तरह राजनांदगांव लोकसभा की 8 सीटों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन सूबे में भाजपा के सत्तारूढ़ होने से कांग्रेस की जीत फीकी रह गई।
अभिषेक के मैनेजमेंट से रमन की आसान हुई जीत

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की जीत की राह में बिछे कांटों को हटाकर सफलता की ओर ले जाने में पूर्व सांसद अभिषेक सिंह की अहम भूमिका रही। रमन के लिए एक कार्यकर्ता के तौर पर अभिषेक ने हर मोर्चे में पूरी जिम्मेदारी के साथ दायित्व पूरा किया। रमन पूरे चुनाव में राज्यभर के उम्मीदवारों के लिए प्रचार में डटे हुए थे। उनकी गैरमौजूदगी में अभिषेक सिंह ने ही मोर्चाबंदी की।
हर कार्यकर्ता के साथ उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से चुनाव में अपनी ताकत झोंकी। साधन-संसाधन के बगैर अभिषेक ने अपने संपर्कों के जरिये आम लोगों को साधने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। नतीजतन चुनावी परिणाम में जिस तरह से बंपर मत रमन के पक्ष में आए, उससे अभिषेक की सफल रणनीति को श्रेय दिया जा रहा है।
पूर्व सीएम अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। भाजपा ने बेहद शालीनता के साथ चुनाव लड़ा। जबकि कांग्रेस पर पैसा बहाकर चुनाव जीतने का आरोप लगता रहा। आखिरकार स्थानीय मतदाताओं ने कांग्रेस के बिछाए जाल को तोडक़र साफ-सुथरे चुनाव लडऩे वाले रमन को ही चुना। अभिषेक ने सामाजिक स्तर में भी भाजपा के लिए पूरा जोर लगाया। समाजों के अलग-अलग धड़ों से उन्होंने व्यक्तिगत रूप से संपर्क साधा। पूर्व सांसद सिंह ने एक तरह से कांग्रेस के असर को कमजोर कर दिया। उनके इस योजनाबद्ध चुनाव लडऩे की रणनीति को लेकर पार्टी में सकारात्मक चर्चा हो रही है।