हिंदुस्तान में चारों तरफ फैल रही सांप्रदायिकता से परे, और पांच राज्यों की चुनावी गंदगी से परे भी, दुनिया और जिंदगी हैं, और उसके कुछ अच्छे पहलुओं पर भी चर्चा हो जानी चाहिए। अभी पाकिस्तान में मौजूद सिखों के एक सबसे प्रमुख तीर्थ करतारपुर गुरुद्वारे में दो भाइयों की 75 साल बाद मुलाकात हुई। यह पूरी कहानी बीबीसी की एक रिपोर्ट की शक्ल में सामने आयी है, लेकिन उसके कुछ पहलुओं पर आगे लिखने की जरूरत भी है। जब हिंदुस्तान का विभाजन हुआ और एक देश से दो मुल्क बन गए, बड़ी हिंसा के बीच लोगों की आवाजाही हुई, और दसियों हजार या शायद लाखों परिवार बिछुड़ गए। किसी परिवार के कुछ लोग सरहद के इस तरफ छूट गए, और किसी परिवार के उस तरफ। दोनों तरफ के पंजाब के इलाके में दो मुस्लिम भाइयों का ऐसा ही बंटवारा हो गया जो कि 75 बरस से अलग रहते आ रहे थे। लेकिन फिर 2 बरस पहले की बात है कि ऐसे बिछड़े हुए परिवारों को मिलाने वाले एक यूट्यूब चैनल ‘पंजाबी लहर’ ने इनकी कहानी डाली इंटरनेट पर डाली और जानकारियां देख-सुनकर सरहद के दोनों तरफ के लोगों ने अंदाज लगाया कि ये दोनों भाई यही दो लोग हो सकते हैं, उसके बाद दोनों तरफ के भले लोगों ने टेलीफोन पर इनकी बात करवाई, वीडियो कॉल से बात करवाई। एक भाई विभाजन के वक्त 10 बरस का था दूसरा डेढ़-दो बरस का, और किसी तरह एक-एक जानकारी जोड़ते-जोड़ते यह समझ आया कि यही दोनों भाई हैं। फिर कुछ और भले लोगों ने दोनों के लिए करतारपुर पहुंचने की इजाजत ली, और वहां पर इनकी मुलाकात करवाई। पाकिस्तान की तरफ बसा हुआ भाई पूरे कुनबे के साथ है, और बहुत से नाती पोते भी हैं, और हिंदुस्तान की तरफ रह गया मुस्लिम भाई एक सिख बस्ती में बसा हुआ है और बचपन से ही सिख लोग ही उसे पाल रहे हैं, उन्हीं के बीच बड़ा हुआ अब बुजुर्ग होकर मरने की कगार पर है, अब आखरी दिन अपने भाई और उसके परिवार के साथ गुजारने के लिए पाकिस्तान जाना चाहता है, और दोनों भाइयों ने वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान से इस हिंदुस्तानी भाई के लिए वीजा मांगा है।
यह कहानी हिला कर रख देती है कि विभाजन ने ऐसे कितने जख्म दिए थे और जो लोग उस दौरान दंगों और हिंसा में मारे गए वे तो फिर भी जिंदगी भर की तकलीफ से फारिग हो लिए, लेकिन जो लोग जिंदा रह गए और जिनके ऐसे रिसते हुए जख्म आज भी हैं, जो अपने किसी के साथ वक्त गुजारने के लिए तरस रहे हैं, और उनमें से अधिकतर तो ऐसे होंगे जिन्हें कोई खबर भी नहीं होगी कि सरहद पार उनके कौन बचे हैं, कौन नहीं बचे हैं। ऐसे में यह कहानी दिल को हिलाती तो है, लेकिन दिल को एक राहत भी देती है कि किसी ने ऐसा एक यूट्यूब चैनल शुरू किया जो लोगों को मिलाने का काम कर रहा है। अब आज हिंदुस्तान में हजारों ऐसे यूट्यूब चैनल और सैकड़ों ऐसे टीवी चैनल चल रहे हैं जो कि नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं, जो कि हिंसा के लिए लोगों को उकसा रहे हैं. इस बीच पंजाबी लहर नाम का यह एक चैनल बिछड़े हुए लोगों को इस तरह मिला रहा है। यह भी समझने की जरूरत है कि किस तरह हिंदुस्तान में रह चुका एक मुस्लिम बच्चा सिखों के बीच बड़ा हुआ, और बिना मां-बाप का यह बच्चा आज कहता है कि मैंने पूरी जिंदगी उस गांव में बिता दी जहां मेरी मां मुझे छोडक़र मरी थी, और मेरे सरदार दोस्त और इस गांव फूलवाला के लोग ही मेरे सब कुछ हैं, उन्होंने ही मुझे मेरे भाई से मिलवाया है। इतिहास गवाह है कि विभाजन के दौर में सिखों और मुस्लिमों के बीच ही सबसे बड़ी हिंसा हुई थी, और हिंदुस्तान वाले पंजाब के हिस्से के बारे में लापरवाही से यह कह दिया जाता है कि वहां गांवों में किसी मुसलमान को बसने नहीं दिया जाता, लेकिन हिंदुस्तानी पंजाब के फूलवाला गांव का यह मोहम्मद हबीब इस बात की मिसाल है कि किस तरह सिखों के इस गांव ने ही इस अनाथ मुस्लिम बच्चे को पालकर उसके बुढ़ापे तक उसका साथ दिया और आज भी जब पाकिस्तान के उसके भाई का पता लगने पर बात करने की नौबत आई तो इन्हीं लोगों ने बात करवाई, और यही लोग उसे लेकर, सहारा देकर, करतारपुर गुरुद्वारे गए और वहां पर इन दोनों को गले मिलवाया।
नफरत की बात तो चारों तरफ है, बीच-बीच में कभी मोहब्बत की बात भी हो जानी चाहिए, किस तरह अनाथ रह गए बच्चों को दुनिया ने परवरिश दी, दूसरे मजहब के बच्चे को पूरी जिंदगी साथ दिया, और अब उसकी जिंदगी की इतनी बड़ी खुशी उसे दिलाने के लिए एक पूरा जत्था उसे लेकर करतारपुर पहुंचा था जहां दोनों भाइयों को रोते देख कर सभी की आंखें भीग गई थीं। ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस बुजुर्गों के गुजर जाने के पहले इसे अपने भाई और उसके परिवार के साथ रहने का कुछ मौका देंगे, इस अखबार ने भी ट्विटर पर सार्वजनिक रूप से इमरान खान से इस बात की अपील की है और पाकिस्तान में बसे अपने दोस्तों से भी अपील की है कि वे इस मुद्दे को उठाएं।
इस मामले देखकर याद पड़ता है कि ठीक इसी तरह कुछ बरस पहले उत्तर और दक्षिणी कोरिया में बंट गए परिवारों के बुजुर्ग दोनों सरकारों की इजाजत से एक साथ मिले थे और कुछ वक्त साथ गुजारने के बाद जब बसों से सरहद पार से आए लोगों को वापस ले जाया जा रहा था तो वे बुजुर्ग इतनी बड़ी संख्या में एक साथ, और अलग-अलग, रो रहे थे कि उसे देखते नहीं बन रहा था। इन लोगों को मालूम था कि इतनी उम्र में अब अपने भाई बहन से बिछडऩे के बाद शायद ही उन्हें दोबारा मिलना नसीब होगा।
दुनिया में बहुत किस्म के मुद्दों पर लोगों की भलाई का काम करने वाले लोग हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कुछ बरस पहले एक सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं ने फुटपाथी बच्चों और रेलवे प्लेटफार्म पर जीने वाले बच्चों कोई इक_ा किया था, इन बच्चों से नशा छुड़वाने का काम किया था, उनके परिवारों का पक्का पता लगाया था, और परिवार के लोगों के साथ उन्हें मिलाने के पहले परिवार को दिल-दिमाग से तैयार किया था कि राह से भटके हुए और बाहर आकर बिगड़ चुके इन बच्चों को परिवार के भीतर किस तरह मंजूर करना चाहिए। यह एक बड़ा मुश्किल काम था क्योंकि इन बच्चों के मां-बाप इस बात को लेकर दहशत में थे कि उनके बाकी बच्चे भी इस लौटे हुए बच्चे की वजह से बिगड़ ना जाएं, जो कि गलत काम सीखकर लौटेगा, जिसे नशे की आदत पड़ गई है, और जो एक अलग किस्म की आजाद जिंदगी जीने का आदी हो चुका है, पढ़ाई लिखाई छोड़ चुका है, उसका असर घर पर रह गए बच्चों पर कैसा होगा? फिर भी यह सामाजिक संगठन इन बच्चों और परिवारों का अच्छे से अच्छा करने की कोशिश करते रहा।
ऐसा ही एक मामला एक बच्ची को देह के धंधे में धकेल देने का था। छोटी सी नाबालिग लडक़ी को रायपुर से उसकी मां की एक सहेली और मुंहबोली मौसी मुंबई घुमाने के नाम पर ले गई और वहां ले जाकर उसे चकलाघर पर बेच दिया। वहां उससे जबरदस्ती सेक्स का धंधा करवाया जाने लगा लेकिन कुछ समय बाद एक सामाजिक संगठन की पहल पर नाबालिग बच्चों को वहां से निकालने के लिए पुलिस के साथ मिलकर छापा मारा गया तो यह बच्ची मिली। उसके बाद सामाजिक संगठन के लोग इस बच्ची को लेकर रायपुर आए और उसके घर का पता लगाकर पहुंचाने गए। बहुत तकलीफ की बात यह रही कि उसकी मां ने ही उसे घर पर मंजूर करने से मना कर दिया, जिसने उसे घूमने के लिए बाहर भेजा था या कि जिसकी सहमति से ही यह बिक्री हुई थी। ऐसे तरह-तरह के बिछड़े हुए लोगों की कहानियां चारों तरफ हैं। और छत्तीसगढ़ तो लड़कियों की महानगरों में ले जाकर बिक्री के लिए बदनाम राज्य है। यहां के कुछ इलाकों से बड़ी संख्या में आदिवासी लड़कियों को ले जाकर दिल्ली-मुंबई में बेच दिया जाता है।
अब जिस तरह पंजाब में एक सामाजिक सरोकार के साथ पंजाबी लहर नाम का चैनल शुरू किया गया है जो कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बंट गए परिवारों को मिलाने का काम कर रहा है, उसी तरह का काम इन दोनों मुल्कों में कई तरह के लोगों को मिलाने के लिए किया जाना चाहिए। जरूरी नहीं है कि हर किसी तबके के लिए ऐसे चैनल ठीक हों, हो सकता है कि घर से निकलकर आवारा जिंदगी जी रहे बच्चों के लिए कोई और तरीका ठीक हो, लेकिन सरकार और समाज दोनों को चाहिए कि बहुत ही कम संख्या के ऐसे लोगों की बहुत ही बड़ी जरूरत को पूरा करने के लिए एक तरकीब निकालें, राह से भटके बच्चों से नशा छुड़वाने के लिए, उन्हें कोई हुनर सिखाने के लिए, और फिर उन्हें परिवारों से मिलवाने के लिए भी कुछ किया जाना चाहिए। जिन गरीब लड़कियों को नौकरी या रोजगार दिलवाने के नाम पर बाहर ले जाकर बेच दिया गया है, उनमें से भी एक-एक का पता लगाकर उनका पुनर्वास करना चाहिए, और अगर वे खराब हालत में हैं तो उनकी सरकारी और सामाजिक मदद करनी चाहिए। ये बात शुरू तो हुई थी हिंदुस्तान के विभाजन से बंटे हुए दो भाइयों के 75 बरस बाद मिलने को लेकर, लेकिन समाज ने इनमें से एक भाई का जिस तरह साथ देकर उसकी इतनी लंबी जिंदगी को मुमकिन बनाया है, उससे लग रहा है कि अगर पहल करने वाले लोग हैं, तो हो सकता है कि समाज बाकी भटके हुए बच्चों और लड़कियों को भी एक बेहतर जिंदगी देने की कोशिश कर सकता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)