-प्रभाकर मणि तिवारी
मंत्री फ़िरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी के अलावा टीएमसी विधायक मदन मित्रा और अब बीजेपी में जा चुके पूर्व टीएमसी नेता शोभन चटर्जी को गिरफ़्तार किया गया
क्या राज्यपाल को सरकार की राय के बिना सीबीआई को चार्जशीट दायर करने की अनुमति देने का अधिकार है?
इसी मामले में बीजेपी नेता मुकुल राय और विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए शुभेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई है?
पश्चिम बंगाल में नारदा स्टिंग मामले की जाँच कर रही सीबीआई के हाथों एक विधायक, दो मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम के पूर्व मेयर और ममता बनर्जी की पिछली सरकार में मंत्री रहे शोभन चटर्जी की गिरफ़्तारी के बाद राजनीतिक और क़ानूनी हलक़ों में यही दोनों सवाल सबसे ज़्यादा पूछे जा रहे हैं.
लेकिन 24 घंटे से ज़्यादा समय बीतने के बाद भी कहीं से इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिला है.
हालाँकि सीबीआई की दलील है कि शुभेंदु और मुकुल समेत पाँच सांसद भी उक्त स्टिंग ऑपरेशन के अभियुक्त हैं और उनके मामले में अब तक लोकसभा अध्यक्ष से हरी झंडी नहीं मिली है. इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है.
लेकिन मुकुल राय उस समय राज्यसभा के सदस्य थे. क्या उनके मामले में राज्यसभा अध्यक्ष से अनुमति माँगी गई है? इस सवाल का भी किसी के पास कोई जवाब नहीं है.
सीबीआई ने जिस तरह टीएमसी के इन चारों नेताओं को उनके घर से उठाया, उस पर भी सवाल उठ रहे हैं.
राजनीतिक हलक़ों में पूछा जा रहा है कि क्या ये लोग ऐसे अपराधी थे, जो गिरफ़्तारी की भनक मिलते ही फ़रार हो सकते थे?
उनको समन भेज कर सीबीआई दफ़्तर भी तो बुलाया जा सकता था. इस सवाल पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बीजेपी भले अलग-अलग दलीलें दे रहे हों, केंद्रीय जाँच एजेंसी ने इसका कोई ठोस जवाब नहीं दिया है.
सीबीआई नारदा मामले के पहले से ही चिटफ़ंड घोटाले समेत कुछ मामलों की जाँच कर रही है. लेकिन ऐसे किसी भी मामले में पहले ऐसी सक्रियता देखने को नहीं मिली है.
कलकत्ता हाई कोर्ट में मामला
सीबीआई की विशेष अदालत ने चारों नेताओं की अंतरिम ज़मानत मंज़ूर कर ली थी.
लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई की याचिका पर स्थगन आदेश दे दिया. उसके बाद इन लोगों को प्रेसीडेंसी जेल ले जाया गया.
देर रात तबीयत ख़राब होने के बाद मदन मित्र और फ़िरहाद हकीम को सरकारी एसएसकेएम अस्पताल में दाख़िल कराया गया है.
हाई कोर्ट बुधवार को इस मामले की सुनवाई करेगा. इस बीच, इन चारों नेताओं ने भी हाई कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार की अपील की है.
इस पर भी बुधवार को ही सुनवाई होगी.
कैसे हुई गिरफ़्तारी
वर्ष 2016 के नारदा स्टिंग मामले की जाँच कर रही सीबीआई की एक टीम सोमवार सुबह केंद्रीय बलों के साथ ममता सरकार में मंत्री फ़िरहाद हाकिम, सुब्रत मुखर्जी और टीएमसी विधायक मदन मित्र के अलावा कोलकाता नगर निगम के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी के घर पहुँची और उनको अपने दफ़्तर ले आई.
वहाँ उन चारों को गिरफ़्तार कर लिया गया. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हाल में इन नेताओं के ख़िलाफ़ सीबीआई को चार्जशीट दायर करने की अनुमति दी थी.
पार्टी के नेताओं की गिरफ़्तारी की ख़बरें आने के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने नेताओं के साथ सीबीआई कार्यालय पहुँच गईं.
ममता की दलील थी कि इन नेताओं की गिरफ़्तारी ग़ैरक़ानूनी है. इसकी वजह यह है कि इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी से अनुमति नहीं ली गई है.
टीएमसी ने भी इन गिरफ़्तारियों को ग़ैरक़ानूनी और राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित बताया था. पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि बिना किसी नोटिस के इनकी गिरफ़्तारी ग़ैरक़ानूनी है.
तृणमूल का आरोप
कुणाल घोष का सवाल था कि इसी मामले में अभियुक्त बीजेपी नेता मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी को आख़िर गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया?
घोष ने दावा किया कि बीजेपी में शामिल होने की वजह से ही इन दोनों नेताओं के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
उधर, विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने भी गिरफ़्तारियों को अवैध बताते हुए कहा था कि उनसे इसकी अनुमति नहीं ली गई है.
विमान बनर्जी का पत्रकारों से कहना था, "एक एडवोकेट के तौर पर मैं कह सकता हूँ कि ये गिरफ़्तारियाँ ग़ैरक़ानूनी हैं. किसी विधायक को गिरफ़्तार करने से पहले विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति ज़रूरी है. लेकिन सीबीआई ने इस मामले में महज़ राज्यपाल से अनुमति ली है."
उनका कहना था कि राज्यपाल को इन नेताओं की गिरफ़्तारी को हरी झंडी देने का अधिकार नहीं है.
क्या है नारदा मामला
पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप सामने आने से राजनीतिक हलक़ों में हलचल मच गई थी.
तब दावा किया गया था कि यह स्टिंग वर्ष 2014 में किया गया था और इसमें टीएमसी के क़रीब एक दर्जन मंत्रियों, सांसदों और नेताओं को एक काल्पनिक कंपनी के प्रतिनिधियों से काम कराने के एवज़ में मोटी रक़म लेते दिखाया गया था.
उक्त स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज़ के मैथ्यू सैमुएल ने किया था. टीएमसी ने इस टेप को फ़र्ज़ी बताया था.
बीजेपी ने इसे उस चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा.
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सत्ता में लौटी ममता बनर्जी सरकार ने 17 जून, 2016 को कोलकाता पुलिस को इस मामले की जाँच का आदेश दिया था.
पुलिस ने मैथ्यू सैमुएल के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में मामले दर्ज कर उनको समन भेजा था.
लेकिन उसके बाद कांग्रेस और बीजेपी ने इस मामले की तटस्थ जाँच के लिए यह मामला किसी केंद्रीय एजंसी को सौंपने की माँग में हाईकोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दायर की थीं. उसके आधार पर ही अदालत ने मार्च, 2017 में इस मामले को सीबीआई को सौंपने का निर्देश दिया.
राज्य सरकार ने इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की थी. लेकिन शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश को ही बहाल रखा था.
इस मामले को हाथ में लेने के एक महीने बाद दर्ज पहली एफ़आईआर में सीबीआई ने 13 लोगों के नाम शामिल किए थे. उनमें टीएमसी उपाध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य मुकुल राय के अलावा, लोकसभा सांसद सौगत राय, सुल्तान अहमद, प्रसून बनर्जी, काकोली घोष दस्तीदार, राज्य के मंत्री सुब्रत मुखर्जी, फ़िरहाद हकीम, कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी, शुभेंदु अधिकारी, इक़बाल अहमद और पूर्व मंत्री मदन मित्र के अलावा आईपीएस अधिकारी एस.एम.एच. मिर्ज़ा शामिल थे.
उसके बाद मुकुल रॉय नवंबर 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए थे.
सीबीआई ने इस मामले में सितंबर, 2019 में पहली बार आईपीएस अधिकारी एस.एम.एच.मिर्ज़ा को गिरफ़्तार किया था.
सितंबर 2019 के बाद मई 2021 में सीबीआई ने यह ताज़ा गिरफ़्तारी की है. इस बीच शुभेंदु अधिकारी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे.
इस बार चुनावों में तो यह मुद्दा ग़ायब ही रहा.
अब ममता बनर्जी के तीसरी बार चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही यह मामला एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया है.
टीएमसी ने सीबीआई के क़दम को 'बदले की राजनीति' के तहत की गई कार्रवाई बताया है.
टीएमसी नेता एडवोकेट कल्याण बनर्जी ने सोमवार को अदालती सुनवाई के दौरान सवाल उठाया था कि आख़िर इस मामले में बाक़ी लोगों के साथ मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया है? टीएमसी के बाक़ी नेता भी सोमवार से यही सवाल उठा रहे हैं.
इस सवाल पर मुकुल राय और शुभेंदु ने अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. वे पत्रकारों से बात नहीं कर रहे हैं.
लेकिन सीबीआई के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "इस मामले में अभियुक्त पाँच सांसदों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए लोकसभा अध्यक्ष से अनुमति मांगी गई है. लेकिन अब तक ऐसी अनुमति नहीं मिली है."
क्या राज्यपाल को टीएमसी के नेताओं और मंत्रियों के ख़िलाफ़ सीबीआई को हरी झंडी देने का अधिकार है? इस सवाल पर क़ानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों की राय बँटी हुई है. कुछ इसे सही मानते हैं तो कुछ ग़लत.
टीएमसी नेता और एडवोकेट कल्याण बनर्जी ने अदालत में कहा, "राज्यपाल ने जब सीबीआई को मंज़ूरी दी तब तक मुख्यमंत्री शपथ ले चुकी थीं. संविधान के मुताबिक़ उनको मुख्यमंत्री की सलाह के आधार पर ही कार्रवाई करनी चाहिए थी."
विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने सोमवार को पत्रकारों से कहा था, "राज्यपाल ने जिस दिन मंज़ूरी दी उस दिन मैं अपने कक्ष में मौजूद था. लेकिन मुझसे न तो सलाह ली गई और न ही इसकी सूचना दी गई."
सीपीएम नेता एडवोकेट विकास रंजन भट्टाचार्य कहते हैं, "ऐसे आपराधिक मामलों में गिरफ़्तारी के लिए पहले से मंज़ूरी लेना अनिवार्य नहीं है."
पूर्व एडवोकेट जनरल विमल चटर्जी की दलील है कि विधानसभा परिसर से विधायकों की गिरफ़्तारी की स्थिति में ही विधानसभा अध्यक्ष की पूर्व अनुमति ज़रूरी है.
बीजेपी ने अब तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने की बजाय कहा है कि क़ानून अपना काम करेगा. पार्टी के किसी भी नेता ने शुभेंदु या मुकुल राय के मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
इसके उलट राज्यपाल जगदीप धनखड़ और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने गिरफ़्तारियों के बाद सड़कों पर टीएमसी समर्थकों के कथित तांडव का ज़िक्र करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. राज्यपाल ने इस मुद्दे पर कई ट्वीट किए थे.
विपक्षी दलों ने भी उठाए सवाल
सीपीएम और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों ने भी इन गिरफ़्तारियों पर सवाल उठाया है.
सीपीएम की प्रदेश समिति की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "कोरोना महामारी की वजह से जब पूरे देश में लोग जीवन और आजीविका के ख़तरे से जूझ रहे हैं, यह कार्रवाई केंद्र सरकार की नाकामी से ध्यान हटाने का एक प्रयास है."
पार्टी ने सीबीआई की कार्रवाई को राजनीतिक भावना से प्रेरित क़रार दिया है.
सीपीएम के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र ने एक बयान में कहा है कि बीजेपी सरकार सात वर्षों से नारदा टेपों पर चुप थी. वह कुछ चुनिंदा लोगों के ख़िलाफ़ तो कार्रवाई कर रही है लेकिन कुछ लोगों को बचा रही है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने भी इन गिरफ़्तारियों की टाइमिंग और तरीक़े पर सवाल उठाया है.
उन्होंने सोमवार शाम को पत्रकारों से बातचीत में कहा था, "सीबीआई ने चार मौजूदा और पूर्व मंत्रियों को गिरफ़्तार किया है. कुछ के ख़िलाफ़ कार्रवाई और कुछ के ख़िलाफ़ चुप्पी की सीबीआई की रणनीति सही नहीं है."
उनका सवाल था कि जब पूरा राज्य कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो क्या यह इन गिरफ़्तारियों के लिए उचित समय था?
राजनीतिक पर्यवेक्षक समीरन पाल कहते हैं, "सीबीआई भले क़ानून के दायरे में ही काम कर रही हो. लेकिन जिस तरीक़े से यह गिरफ़्तारियां की गई हैं उससे संदेह पैदा होना स्वाभाविक है. इसकी टाइमिंग भी कई सवाल खड़े करती है. बंगाल की राजनीति पर इसका दूरगामी असर होने का अंदेशा है." (bbc.com)