राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : हथियार छोडऩे वाले विचारधारा भी त्याग देंगे?
19-Oct-2025 6:15 PM
राजपथ-जनपथ : हथियार छोडऩे वाले विचारधारा भी त्याग देंगे?

हथियार छोडऩे वाले विचारधारा भी त्याग देंगे?

पिछले कुछ दिनों में बस्तर में 210 से अधिक नक्सलियों ने हथियार डाल दिए। इनमें दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रमुख रुपेश और अन्य वरिष्ठ कमांडर शामिल हैं। इन सामूहिक आत्मसमर्पणों ने सुरक्षा बलों को तो उत्साहित किया ही है, केंद्र और राज्य सरकार के लिए भी यह एक राजनीतिक, रणनीतिक जीत का मौका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी है कि अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर पूरी तरह नक्सल-मुक्त हो चुके हैं। यह भी कहा कि मार्च 2026 के लक्ष्य से पहले ही बस्तर में नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा। 

कहा जा रहा है कि यह आत्मसमर्पण सुरक्षाबलों या सरकार की पहल का नतीजा कम,नक्सली संगठन के आंतरिक कलह का परिणाम ज्यादा है। जानकारों के मुताबिक,सीपीआई (माओवादी) के नेतृत्व में फूट पड़ चुकी है। कई कमांडरों ने संगठन के केंद्रीय कमेटी के फैसलों पर सवाल उठाए हैं, खासकर यह कि, हिंसा के बावजूद विकास परियोजनाएं बस्तर तक पहुंच रही हैं। यह हैरानी की बात है कि इन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के लिए कठोर शर्त नहीं रखीं। न तो पुनर्वास पैकेज पर कोई विशेष मांग, न ही डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती का विरोध किया है। राज्य सरकार की नक्सली सरेंडर एंड रिहैबिलिटेशन पॉलिसी 2025 और नियाद नेल्ला नार योजना में इन्हें रोजगार, आवास और कौशल प्रशिक्षण का वादा किया गया है, लेकिन यह प्रोत्साहन तो सरेंडर करने वाले सभी के साथ होता है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे घर वापसी कहा। नक्सलियों ने हथियारों के बदले संविधान की प्रति के साथ फोटो खिंचवाई। एक आंकड़े के अनुसार पिछले 22 महीनों में 2,110 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं,477 मारे गए और 1,785 गिरफ्तार किए गए है। 

ये आंकड़े सरकार की दोहरी रणनीति- समर्पण को प्रोत्साहन और हिंसा के खिलाफ अभियान को दर्शाते हैं। मगर पूरा मामला कुछ बड़े सवालों से भी घिराहै। अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि माओवादी यदि हिंसक न हों,तो संविधान के दायरे में आंदोलन करने में कोई ऐतराज क्यों होगा?यह बयान सरेंडर के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है। क्या ये पूर्व नक्सली अब हथियारों का त्याग कर एक अहिंसक दबाव समूह में तब्दील हो जाएंगे? बस्तर के संसाधन-जल, जंगल, जमीन पर कॉर्पोरेट की निगाहें गड़ी हैं। खनन, स्टील प्लांट और अन्य परियोजनाएं आदिवासी जीवन उजाड़े बिना पूरी नहीं हो रही हैं। कांग्रेस हो या भाजपा 2 ही दल यहां हैं। जंगल बचाने के मामले में दोनों के ऊपर आदिवासियों का बहुत भरोसा नहीं है- भले ही चुनावी राजनीति में इनके बीच ही जीत-हार होती है। सीपीआई जैसे वामपंथी संगठनों पर भी विरोध ठंडा पड़ गया है। ऐसे में, यदि ये समर्पित माओवादी आदिवासियों के साथ मिलकर एक नया अहिंसक संगठन खड़ा करें, जैसे मूलवासी बचाओ मंच का विस्तार, तो क्या होगा? मतलब- हथियार त्यागने के साथ समर्पित नक्सली क्या विचारधारा भी त्याग देंगे?आदिवासी अधिकार और पूंजीवादी शोषण के खिलाफ बोलना भी बंद कर देंगे? या बस्तर में आंदोलनकारियों का एक नया समूह उभरेगा? जो बस्तर की राजनीति पर गहराई तक असर डालेगी?

फेरबदल के बाद

सरकार ने छत्तीसगढ़ी कलाकार सुश्री मोना सेन को छह माह पहले ही छत्तीसगढ़ केश शिल्पी कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था, और अब उन्हें वहां से हटाकर छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनाया है। केश शिल्पी कल्याण बोर्ड में मोना सेन के साथ गौरीशंकर श्रीवास की उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति की गई थी। गौरीशंकर श्रीवास ने उपाध्यक्ष का पद संभालने के बजाए संगठन में काम करने की इच्छा जता दी थी। उन्होंने पदभार ही नहीं लिया।

केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष का पद रिक्त हो गया है, और चर्चा  है कि गौरीशंकर श्रीवास की वरिष्ठता को ध्यान में रखकर अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हो सकती है। सरकार ने पहले भी कुछ बदलाव किए थे। मसलन, वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर श्रीनिवास मद्दी की नियुक्ति की गई थी। बाद में उन्हें ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता को पहले दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष का पद दिया गया था। बाद में उन्हें अपेक्स बैंक का अध्यक्ष बनाया गया।

चर्चा है कि निगम-मंडल के उपाध्यक्ष और सदस्य पद पर नियुक्तियां होनी है। करीब 50 नेताओं को निगम-मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि ये सारी नियुक्तियां राज्योत्सव निपटने के बाद होंगी। देखना है कि पार्टी क्या कुछ बदलाव करती है।

हमनाम को तोहफा

दीपावली आते ही सरकारी मुलाजिम और पार्टी कार्यकर्ता अपने नेता मंत्रियों से सौजन्य भेंट गिफ्ट की उम्मीद लगाए रहते हैं। यह सिलसिला वर्षों से कायम है। जिन्हें मिल जाता है वे खुश होते हैं और जिन्हें नहीं मिलता स्वाभाविक रूप से नाराज होते हैं। इसका इंतजार करते वे यह भी पता करते रहते हैं कि किस किस कार्यकर्ता को मिला और किसे नहीं।

इसी इंतजार में इस बार पहली बार के एक मंत्री की सूची में से कार्यकर्ताओं के एक बड़े ग्रुप के कई लोगों के नाम छूट गए। और सभी ने पड़ताल शुरू कर दी। यह खुलासा कल ही हो गया। इस दौरान पता चला कि मंत्री जी ने सभी के नाम अपने डिलीवरी ब्वॉय को गिफ्ट पैक के साथ दिए थे, ऐसा बताया गया। अब भला डिलीवरी ब्वाय इनकार भी नहीं कर सकता क्योंकि बात मंत्री के बचाव का है। कह दिया आपका गिफ्ट, आपके हम-नाम को दे दिया आप ही समझ कर। जबकि उसने दिया किसी को नहीं। कुछ तो ऐसे भी डिलीवरी ब्वाय हैं जो बांटते ही नहीं। जिसे गिफ्ट घोटाला कहा जा  सकता है। इन्हीं दिक्कतों और दीपावली गिफ्ट को कदाचरण मानते हुए ही केंद्र सरकार ने पहले ही रोक लगाने के आदेश दे दिए थे।

खुशियों में साझेदारी दिवाली का तोहफा

यह दृश्य उत्तर प्रदेशका हो या हमारे ही मोहल्ले का। ऐसी भावना हर जगह देखने को मिल सकती है। दीपावली पर जहां कुछ लोग अपने घरों के लिए आभूषण, सिक्के, कपड़े खरीदते हैं, आतिशबाजी करते हैं और मिठाइयां लाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी खुशियों का विस्तार दूसरों की मुस्कान में ढूंढते हैं। दूसरे के घरों में उजाला लाने की छोटी-बड़ी पहल करते हैं। छत्तीसगढ़ के कई जिलोंमें प्रशासन ने दीये बेचने वाले कुम्हारों से टैक्स न लेने के निर्देश दिए हैं। साथही कई लोग सडक़ किनारे बैठे मेहनती विक्रेताओं से सीधे खरीदारी करके त्योहार की असली रौनक बढ़ा रहे हैं। त्योहार की खुशी तभी पूरी होती है, जब रोशनी वहां तक पहुंचे जहां इसकी कमी है।


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