राजपथ - जनपथ
फौजी पर दांव
खबर है कि सीतापुर में खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के खिलाफ भाजपा पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो को चुनाव लडऩे के लिए तैयार करने में जुटी है। टोप्पो ने भारतीय थल सेना से कुछ दिन पहले ही वीआरएस लिया था, और चुनाव लडऩे की घोषणा की है। इसके बाद भाजपा के प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय उनसे मिले, और चर्चा है कि टोप्पो को भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है।
टोप्पो जब भी छुट्टियों में आते थे, तो स्कूल-कॉलेज में जाकर युवाओं को देशप्रेम, और भारतीय सेना के लिए भावनाएं जगाने का काम करते थे। उनकी सीतापुर इलाके के युवाओं में अच्छी खासी पैठ भी है।
पिछले दिनों सीतापुर में रामकुमार टोप्पो के समर्थन में रैली भी निकली थी। जिसमें सैकड़ों युवाओं ने शिरकत की थी। टोप्पो ने तो निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा की है। मगर भाजपा के नेता चाहते हैं कि उनके प्रत्याशी बने। जिसके लिए टोप्पो फिलहाल तैयार नहीं दिख रहे हैं।
चर्चा है कि भाजपा के कई शीर्ष नेता टोप्पो को तैयार करने में जुटे हुए हैं। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि टोप्पो पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ते हैं, तो सीतापुर में पार्टी की संभावना काफी मजबूत हो जाएगी। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से सीतापुर सीट अब तक भाजपा नहीं जीत पाई है। देखना है कि सीतापुर के लिए पार्टी आगे क्या कुछ रणनीति बनाती है।
छापा किसलिए?
रायपुर के नामी चिकित्सक डॉ. एआर दल्ला के यहां पिछले दिनों ईडी ने रेड की। ईडी ने डॉ. दल्ला के अलावा उनके पुत्र रियाज से भी घंटों पूछताछ की। पहले खबर उड़ी कि डॉ. दल्ला के यहां महादेव एप से जुड़ी कडिय़ों की वजह से रेड हुई है।
चर्चा यह भी है कि ईडी ने डॉ. दल्ला के यहां से करीब 3 करोड़ की राशि बरामद की है। यह रकम किसी जमीन के सौदे की बताई जा रही है। ईडी की टीम घर से डायरी, और उनके मोबाइल भी लेकर गए हैं। अब डायरी, और मोबाइल से क्या कुछ मिला है, यह जानकारी ईडी ने अब तक सार्वजनिक नहीं की है। कई बार ऐसा होता है कि जब ईडी रेड तो करती है, लेकिन कार्रवाई को सार्वजनिक नहीं करती है। इससे अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है। अब चुनाव के महीने में कार्रवाई और अफवाह दोनों के तेज होने के आशंका जताई जा रही है।
इतनी बुरी भी नहीं अंग्रेजी
देश में इन दिनों चल रहे ‘इंडिया’ बनाम ‘भारत’ विवाद के बीच किसी ने ध्यान नहीं दिया कि अब बिजली उपभोक्ताओं को उनका बिल हिंदी में मिलने लग गया है। कांग्रेस और उनकी सरकारों को हिंदी नामों और भाषा से लगाव है, यह साबित करने की जरूरत हो तो छत्तीसगढ़ के बिजली विभाग के इस फैसले को भी सामने रखा जा सकता है। पर उपभोक्ताओं के लिए यह हिंदी बिल मुसीबत लेकर आई है। बिल साफ प्रिंट में नहीं मिल रहा है। अक्षर समझ नहीं आते हैं। जब उपभोक्ताओं ने इसकी शिकायत मीटर रीडर से की तो उन्होंने यह नई जानकारी दी कि विभाग ने हिंदी सॉफ्टवेयर तो मशीनों पर लोड कर दिया है, पर इस छोटी सी मशीन के भीतर जो प्रिंटर लगा है, वह अंग्रेजी के लिए फ्रैंडली है, हिंदी अक्षरों को ठीक तरह वह प्रिंट कर ही नहीं पा रहा है। ठेकेदार के नीचे काम करने वाले मीटर रीडर से जब अंग्रेजी में ही बिल देने कहा गया तो उसने दिक्कत बताई, कहा कि हमारी मजदूरी का भुगतान हिंदी में बिल देने पर ही होगा।
पता नहीं हिंदी में बिल देने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या बिजली विभाग को किसी ने सुझाव दिया था? आम उपभोक्ता तो बिल की राशि और आखिरी तारीख ही देखता है। तरह-तरह के अधिभार को तो वे न अंग्रेजी में बताने पर समझ पाते, न हिंदी में।
उपहार की कीमत नहीं पूछी जाती
इन दिनों जब जी-20 देशों का सम्मेलन भारत में हो रहा है और विदेशी मेहमानों के भव्य स्वागत की तैयारी हुई है, आप इस सवाल में मत उलझिये कि इस तरह के ताम-झाम पर हमारे-आपके टैक्स के पैसे किस तरह से खर्च किए जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने अमेरिका प्रवास के दौरान वहां के राष्ट्रपति की पत्नी को हरे रंग का हीरा उपहार में दिया था। रायपुर के आरटीआई कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने विदेश मंत्रालय से जानकारी मांगी कि इसकी कीमत कितनी थी, बिल की कॉपी देकर बताइये? मंत्रालय ने यह कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि इससे भारत-अमेरिका के आपसी संबंध प्रभावित होंगे।
इधर जी-20 सम्मेलन देश के अलग-अलग राज्यों में हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने इसके लिए घोषित रूप से 990 करोड़ रुपये का बजट रखा है। उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में बताया था कि उसने 100 करोड़ रुपये का बजट रखा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी 18 और 19 सितंबर को एक कार्यसमूह की बैठक होने जा रही है। जून महीने से इसकी तैयारी चल रही है। विदेशी मेहमानों के स्वागत के लिए साज-सज्जा, होटल व्यवस्था, अधोसंरचना, यातायात, प्रचार प्रसार,सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्यटन, नागरिक भागीदारी और उपहार की व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है। पुरखौती मुक्तांगन, सिरपुर, चंपारण, कौशल्या माता मंदिर जैसे दर्शनीय स्थलों को भी नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है।
सबसे बड़ा आयोजन दिल्ली में 8 और 9 सितंबर को होने जा रहा है। दिल्ली सरकार ने इसके लिए 1000 करोड़ का बजट रखा है। एक खबर तीन दिन पहले ही आई थी कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए बुक होटल के कमरे 8-8 लाख रुपये प्रतिदिन के किराए वाले हैं।
ठीक है, विदेशी मेहमानों का अच्छी तरह सत्कार होना चाहिए, पर यदि आप संबंधित विभागों से खर्चों का अलग-अलग हिसाब बिल सहित मागेंगे तो उन्हें कैसे मना करना है, यह विदेश मंत्रालय के जवाब ने बता दिया है- रिश्ते बिगड़ेंगे।
दिग्गजों के भी पाँव उखड़ गए
भाजपा में पिछले चुनावों में टिकट बंटवारे में कुछ नेताओं की खूब चलती थी। इन नेताओं की पसंद पर आसपास की टिकटें तय होती थीं। मगर इस बार ऐसे नेताओं की खुद की टिकट खतरे में पड़ गई है।
एक दिग्गज नेता ने तो टिकट कटने की आशंका के चलते अपने समर्थकों को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में भेजकर शक्ति प्रदर्शन तक कराया। एक अन्य नेता को पता चला कि उनका नाम पैनल में नहीं है, तो उन्होंने बड़े नेताओं को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश की कोर कमेटी के सदस्य भी किसी को आश्वस्त करने की स्थिति में नहीं है।
भाजपा प्रत्याशियों के चयन में इस दफा पार्टी हाईकमान सीधी दखल दिखा रही है। कम से कम पहली सूची से तो यही अंदाजा लगाया जा रहा है। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि अभी तक तो ज्यादा कुछ हुुआ नहीं है, लेकिन मैदानी इलाकों की सीटों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद कई प्रमुख नेता सार्वजनिक तौर पर अपना गुबार निकाल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सोनवानी का तूफानी कार्यकाल
पीएससी के चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल 9 तारीख को खत्म हो रहा है। सोनवानी के रहते पीएससी की साख पर जो असर पड़ा है, उसकी भरपाई करना सरकार के लिए आसान नहीं है। सोनवानी के चेयरमैनशिप के आखिरी दिनों में जिस तरह हड़बड़ी में राज्य सेवा परीक्षा के नतीजे घोषित हुए, और इंटरव्यू के तत्काल बाद रिजल्ट घोषित हुए, उसकी देश में दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है।
आम तौर पर मेन्स की परीक्षा के नतीजे घोषित होने के पखवाड़े भर बाद इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू होती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, और हफ्तेभर के भीतर ही इंटरव्यू शुरू हो गए, और चेयरमैन के रिटायरमेंट के पहले ही नतीजे भी घोषित हो गए। सोशल मीडिया पर पीएससी की कार्यप्रणाली को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है।
सोनवानी के रहते पीएससी पर आरोप लगे हैं, उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि संवैधानिक पद पर आने से पहले मनरेगा घोटाले में उनके खिलाफ आरोप सिद्ध पाए गए थे। अब जब पीएससी परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो आरोपों को खारिज करना आसान नहीं हो जाता है।
नोटा बना बसपा का वोट बैंक
छत्तीसगढ़ सहित जिन राज्यों में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग की तैयारी भी तेज हो गई है। मतदाता जागरूकता अभियान भी वह चला रहा है। स्कूल-कॉलेजों में कार्यक्रम हो रहे हैं, लोगों से वोट देने और मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की अपील की जा रही है। इस अभियान में बिना भय या प्रलोभन के, अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देने का आग्रह होता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग वोट देने नहीं जाते। इसकी एक वजह होती है कि चुनाव में खड़ा होने वाला कोई भी प्रत्याशी उसे पसंद नहीं होता। ऐसी स्थिति को देखते हुए नोटा ( इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुनाव आयोग ने शुरू किया। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश था, जिसका पालन किया गया। देश में पहली बार छत्तीसगढ़ के ही स्थानीय चुनावों में सन् 2009 में नोटा का विकल्प दिया गया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने सन् 2014 के राज्यसभा चुनाव से इसकी शुरूआत की। अब लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा- विधान परिषद् और स्थानीय चुनाव, सभी में नोटा विकल्प मिलता है।
चुनाव आयोग का प्रयास सिर्फ इतना होता है कि ज्यादा से ज्यादा पात्र लोग मतदाता सूची में नाम जुड़वा लें और सब मतदान केंद्र पहुंचें। कोई नोटा में भी वोट डाल रहा तो तब भी वह मतदान प्रणाली की सफलता है। मगर, उत्तरप्रदेश के घोसी विधानसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल एक अलग मकसद से किया गया। पांच सितंबर को यहां वोट डाले गए। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दिया था। यहां मुकाबला सीधे भाजपा और सपा के बीच रह गया। यह ऐसी सीट है जहां से बहुजन समाज पार्टी दो बार चुनाव जीत चुकी है, पर इस बार उसने अपना उम्मीदवार किसी कारण से खड़ा नहीं किया। इस स्थिति में बसपा सुप्रीमो ने अपने समर्थक मतदाताओं से अपील की कि वे नोटा में वोट डालें।
नतीजा आने पर पता चलेगा कि उनके मतदाताओं ने ऐसा किया या नहीं, पर यह अपील उन्होंने अपने वोटों को समाजवादी पार्टी या भाजपा में शिफ्ट होने से बचाने के लिए की। भविष्य में जब उनकी पार्टी मैदान में उतरे तो उनके वोट उनके ही पास नोटा के बैंक में जमा रहे।
इसी साल अप्रैल में चुनाव आयोग ने तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया था। बसपा का अभी बरकरार है। राजनीतिक दल कई सीटों पर उम्मीदवार इसीलिए उतारते हैं ताकि उन्हें मिला राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दर्जा बरकरार रहे। बसपा ने एक नया प्रयोग किया, जिसमें वह मैदान में न होने पर अपने वोटों को नोटा के जरिये सुरक्षित रखने की कोशिश की। अभी तक नोटा किसी मतदाता की निजी पसंद का मामला रहा है।
तंदरुस्त रेलवे में बदहाल यात्री
इस साल अप्रैल में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, जिसका मुख्यालय बिलासपुर है, ने एक प्रेस नोट जारी कर बताया था कि उसने रेलवे बोर्ड की ओर से दिए गए 202.24 मिलियन टन लदान के लक्ष्य से आगे जाकर 202.64 मिलियन टन लदान किया। यह अब तक का सर्वाधिक लदान है। इससे रेलवे ने 18 हजार 225.47 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया, जो 2021-22 यानि एक साल पहले के 16 हजार 350.56 करोड़ से 11.46 प्रतिशत अधिक है। पूरे भारतीय रेल का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही है। माल ढुलाई से 2022-23 में उसे 2.44 लाख करोड़ की आमदनी हुई है। यह 2021-22 के मुकाबले 27.75 प्रतिशत अधिक है जब 1.91 लाख करोड़ कमाई दर्ज की गई थी।
इतना फलते फूलते रेलवे ने यात्री ट्रेनों की दुर्दशा बना रखी है। ट्रेनों के अचानक रद्द होने से लोग हलकान हैं। चाहे त्यौहार हो या छुट्टियों का मौसम इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोविड महामारी के बाद से स्थिति चरमराई हुई है। पैसेंजर, लोकल ट्रेन ही नहीं, एक्सप्रेस ट्रेनों का भी कोई भरोसा नहीं। लोग रिजर्वेशन कराते समय सशंकित रहते हैं कि कहीं अचानक ट्रेन कैंसिल न हो जाए। एक जानकारी आई है कि एसईसीआर से शुरू होने या गुजरने वाली 3800 ट्रेनों के फेरे एक साल में कैंसिल किए हैं। करीब 40 लाख यात्रियों को अपनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी। रेलवे को कैंसिल टिकट के 59 करोड़ रुपये लौटाने पड़े। यात्री टिकटों को तो रेलवे आमदनी में गिनती ही नहीं, वह तो बार-बार बताती है कि यात्री परिवहन में उसे 49 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसलिये एक साल में 40 लाख यात्रियों का बोझ उठाने से वह बच गई।
अंग्रेजों के जमाने में जब देश में रेल पांत बिछाये गए तो उसका मुख्य उद्देश्य यही था कि बंदरगाहों तक भारत के उत्पादों का परिवहन हो और विदेश भेजा जा सके। पर, यात्री सुविधा का भी तब से ही ख्याल रखा जा रहा है। यात्रियों को ढोने से रेलवे को भले ही नुकसान होता हो, पर इस आवाजाही से देश की अर्थव्यवस्था में, रोजगार, उद्योग में सहायक ही है। सबसे ज्यादा कमाई वाले बिलासपुर जोन में तो रेलवे को टिकटों की बिक्री से होने वाली मुनाफे या नुकसान के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। छत्तीसगढ़ के सांसदों को इसकी फिक्र ही नहीं है। वे तो उन स्टेशनों पर हरी झंडी दिखाकर खुश हैं, जहां कोविड काल के बाद से बंद स्टापेज फिर शुरू किए जा रहे हैं।
आंगनवाड़ी में बस का आनंद
आंगनवाड़ी, मिनी आंगनवाड़ी केंद्र ग्रामीण व शहर के पिछड़े इलाकों के छोटे बच्चों के शारीरिक, बौद्धिक विकास में बहुत महत्व रखते हैं। छत्तीसगढ़ में भी 43 हजार से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र और 6500 मिनी आँगनवाड़ी केंद्र हैं। बच्चे यहां प्रारंभिक शिक्षा लेने पौष्टिक आहार लेने पहुंचे, इसके लिए जरूरी है कि यहां का माहौल उन्हें आकर्षक लगे। यह तेलगांना राज्य का एक मिनी आंगनबाड़ी केंद्र है, जिसकी दीवार को इस खूबसूरती के साथ रंगा गया है कि यह केंद्र एक यात्री बस की तरह दिखाई दे रहा है।
राज्यों में ऐसा टकराव!
भाजपा से जुड़े एक राष्ट्रवादी संगठन के एक बड़े नेता अभी रायपुर बैठक लेने आए, तो उन्होंने बंद कमरे में कार्यकर्ताओं को बताया कि किस तरह सोशल मीडिया मैनेज करने वाली एक कंपनी के खिलाफ छत्तीसगढ़ में जुर्म दर्ज करके जब पुलिस कंपनी के लोगों को पकडऩे दिल्ली के करीब नोएडा पहुंची, तो यूपी पुलिस ने उनकी अकल ठिकाने लगा दी। यह बात पहले से भी चर्चा में थी कि छत्तीसगढ़ पुलिस की वहां गई टीम को थर्ड डिग्री का बर्ताव झेलना पड़ा था, और कई तरह की अशोभनीय बातें चर्चा में थीं, लेकिन दोनों राज्यों की पुलिस ने इसकी चर्चा नहीं की थी।
पता लगा है कि बाहर से आए इस बड़े नेता ने छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं के बीच यह बताया कि अगर छत्तीसगढ़ की पुलिस मनमानी करेगी, तो उसकी अकल भी दूसरे प्रदेशों में ठिकाने लगाई जाएगी।
सब इंतजार में
खबर है कि भाजपा की दूसरी सूची जी-20 शिखर सम्मेलन की वजह से अटक गई है। दिल्ली में शिखर सम्मेलन की वजह से 7 तारीख से 12 तारीख तक बंद जैसा माहौल है। स्कूल-कॉलेज भी बंद है। स्वाभाविक है कि इन सबके चलते केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक भी टल गई है।
प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर दिल्ली में हैं। प्रदेश के प्रमुख नेता, उनके बुलावे का इंतजार कर रहे हैं। माथुर प्रदेश के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर करीब 35 सीटों के लिए सिंगल नाम का पैनल तैयार कर चुके हैं। पहले 12 नाम घोषित करने की तैयारी थी। अब दूसरी लिस्ट में 35 सीटों के लिए नाम घोषित किए जा सकते हैं। यह सूची 15 सितंबर के आसपास आ सकती है।
प्रवचन के आयोजक बने दावेदार !
प्रदेश में सालभर में कई बड़े धार्मिक आयोजन हुए हैं। इसमें लाखों की भीड़ जुटी। इससे आयोजकों को भी प्रतिष्ठा मिली है। कुछ आयोजक तो अब चुनाव मैदान में उतरने की सोच रहे हैं। इन्हीं में से एक गुढिय़ारी में शिवपुराण के मुख्य आयोजनकर्ता बसंत अग्रवाल, रायपुर पश्चिम सीट से भाजपा से टिकट की दावेदारी कर दी है।
पिछले दिनों बसंत अग्रवाल के साथ सैकड़ों लोग, कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर से मिले। और रायपुर पश्चिम से टिकट के लिए अपना बायोडाटा सौंपा। अब टिकट मिलेगी या नहीं, यह तय नहीं है। मगर बसंत की दावेदारी से बाकी दावेदारों में
हलचल है।
हाथियों से बचने रेड अलर्ट
हाथियों से हो रही जान माल की क्षति को रोकने के लिए जशपुर में वन विभाग ने नया प्रयोग किया है। उसने हाथियों के आने-जाने के रास्ते की पहचान की है और उनमें बैरियर के साथ लाल कपड़ा बांध दिया है। ऐसा करीब 100 स्थानों पर अब तक किया जा चुका है। आगे और भी गांवों में ऐसे बैरियर लगेंगे। दरअसल, हाथियों का झुंड साल दर साल अपने तय रास्ते पर चलता है। मार्ग में थोड़ा बहुत बदलाव तभी जब ग्रामीणों के घर से उन्हें अनाज, महुआ की महक आती है। मगर इसके बाद वह फिर अपने निर्धारित रास्ते को पकड़ लेता है। घरों, फसलों को होने वाले नुकसान से इसमें थोड़ा बचाव तो होगा, लेकिन वन विभाग का दूसरा दावा यह है कि वनोपज बटोरने के लिए जो ग्रामीण जंगल में हाथियों के रास्ते में आ जाते हैं, उस पर नियंत्रण होगा। हाथियों की आवाजाही के दौरान ग्रामीणों को मुनादी कर जंगल नहीं जाने के लिए आगाह किया जाता है लेकिन वे कई बार पहचान नहीं पाते कि किस रास्ते पर आगे नहीं जाना है। इस तरीके से लाल कपड़ों वाला बैरियर लगाकर जनहानि रोकने में मदद मिल सकती है। छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या और उससे होने वाली जनहानि लगातार बढ़ रही है। इस समय राज्य में करीब 450 हाथी हैं और सन् 2022-23 में होने वाली जनहानि 74 दर्ज की गई है। देखा जाए जशपुर में हो रहे नए प्रयोग से मानव-हाथी संघर्ष में वहां कोई कमी आती है या नहीं।
पी ले, पी ले ओ मेरे राजा
रायपुर में पिछले दिनों राहुल गांधी की सभा जबरदस्त रही। इसे युवाओं ने एन्जॉय किया। प्रदेश के हर छोर से युवा बस, ट्रेन और निजी वाहनों में पहुंचे थे। इनमें से कुछ युवाओं का ऐसा वीडियो वायरल हुआ है जो पार्टी के लिए फजीहत का कारण बन सकती है। चलती बस पर ये युवा शराब की बोतल हाथ में लेकर नाचते हुए फिल्मी गीत गा रहे हैं- पी ले, पी ले ओ मेरे राजा..। इन्होंने जो टी शर्ट पहनी है उसके पीछे राजीव मितान क्लब लिखा हुआ है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर भी शर्ट में दिखाई दे रही है। बताया जा रहा है कि बस में सवार युवक भरतपुर-सोनहत विधानसभा क्षेत्र से हैं, जो रायपुर से वापस लौट रहे हैं।
गौर करने की बात है कि युवाओं का राजीव मितान क्लब का गठन छत्तीसगढ़ सरकार ने समाज सेवा और विभिन्न योजनाओं का लाभ आम लोगों को दिलाने के लिए किया है। इन्हें सरकारी फंड भी आवंटित होता है। राहुल गांधी के हाथों कुछ अच्छा काम करने वाले युवा पुरस्कृत भी किये गए थे। मालूम नहीं ये युवा उनमें शामिल थे या नहीं।
भ्रष्टाचारी कब उल्टा लटकेंगे?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2 सितंबर को रायपुर आकर कांग्रेस के खिलाफ घोटालों और भ्रष्टाचार की किताब का विमोचन किया। पहले से ही ईडी और आईटी के छापे छत्तीसगढ़ में पड़ रहे हैं। यह साफ है कि भाजपा का नेतृत्व चाहता है कि भूपेश सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बने। शाह ऐलान करके गए हैं, सजा दिलाएंगे, उल्टा लटकाएंगे। अब यही बात सरगुजा में रामानुजगंज से घोषित प्रत्याशी रामविचार नेताम ने दोहरा दी है।
जवाब में कांग्रेस ने नेताम को याद दिलाया है कि प्रियदर्शिनी इंदिरा बैंक घोटाले में उनका भी नाम है। नार्को टेस्ट में मैनेजर ने कई भाजपा नेताओं को रकम पहुंचाने की बात कही है। भाजपा में शाह जैसे शीर्ष नेता ने उल्टा लटकाने की बात कह दी है तो प्रदेश के नेताओं को भी यह कहने में हर्ज नहीं। आगे दो चार लोग इसे और दोहरा सकते हैं। दिक्कत यह है कि भाजपा का अपने कार्यकाल से पीछा छूट नहीं रहा है। मतदाताओं के साथ दिक्कत यह है कि उन्हें कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा है। दस-पंद्रह साल पुराने मामले हों, या दस-पंद्रह महीने। सब में केवल जांच हो रही है, कई में सुनवाई नहीं हुई है। फैसला किसी में नहीं आया है, तब तक किसको दूध का धुला मानें, किसे नहीं-असमंजस है।
कांग्रेस की लिस्ट का इंतजार
कांग्रेस में विधानसभा प्रत्याशी चयन के लिए सीएम हाउस में सोमवार को घंटों माथापच्ची हुई। चुनाव समिति के प्रमुख सीएम भूपेश बघेल, और डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत जिलों के पैनल से नाखुश थे। रायपुर सहित कई जिलों में तो अध्यक्षों ने अपना नाम सबसे ऊपर रख दिया था। यही नहीं, आधा दर्जन से अधिक विधायकों के नाम पैनल में तक नहीं थे।
बैठक में सर्वसम्मति से फैसला कर सभी विधायकों के नाम संबंधित विधानसभा क्षेत्रों से पैनल में डाले गए। कितने विधायकों की टिकट कटेगी, यह फैसला छानबीन समिति करेगी। चर्चा है कि इसमें सर्वे रिपोर्ट को भी आधार बनाया जाएगा। कहा जा रहा है कि कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची 9 अथवा 10 सितंबर को आ सकती है।
सिंहदेव को बड़ा महत्व
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को पार्टी ने केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया है। सिंहदेव छत्तीसगढ़ से अकेले नेता हैं, जिन्हें समिति में जगह दी गई है। इससे सिंहदेव की न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों की विधानसभा सीटों, और लोकसभा-राज्यसभा चुनाव के प्रत्याशी चयन में भी दखल रहेगी।
गौर करने लायक बात यह है कि सिंहदेव, दिवंगत मोतीलाल वोरा के बाद प्रदेश के दूसरे नेता हैं, जिन्हें पार्टी हाईकमान ने केंद्रीय चुनाव समिति में रखा है। सोमवार की देर शाम हाईकमान ने 16 सदस्यीय चुनाव समिति के नाम का ऐलान किया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, और राहुल गांधी समेत पार्टी के प्रमुख नेता इस समिति में हैं। खास बात यह है कि सिंहदेव के केंद्रीय चुनाव समिति में सदस्य बनने की खबर आने के बाद उनके बंगले में टिकटार्थियों की भीड़ बढ़ गई है। देखना है कि सिंहदेव अपने समर्थकों के लिए क्या कुछ करते हैं।
नियम-कायदे धरे रहे
राजीव भवन में घंटों के मंथन के बाद भले ही लिस्ट फाइनल नहीं हुई हो, लेकिन एक बात जरूर फाइनल हुई कि प्रत्याशी चयन को लेकर हाईकमान के मापदंड को लॉकर में बंद कर दिया गया और चुनाव समिति के सदस्यों को मापदंड ही सर्वोपरि हो गए। हाईकमान के क्राइटेरिया को दावेदार शंकर नगर रोड से अकबर रोड तक तलाश रहे हैं। पहले यह कहा गया था कि कांग्रेस के प्रत्याशी तीन महीने पहले घोषित किए जाएंगे। अभी तक मंथन ही चल रहा है।
चुनाव लडऩे के इच्छुक जिला अध्यक्ष या निगम मंडल पदाधिकारियों को इस्तीफा देना होगा, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। प्रत्याशी चयन में ऐसे सरपंच, पार्षदों के नाम पर विचार किया जाएगा, जिन्होंने पूर्व में भाजपा के दिग्गजों को चुनाव में हराया था मगर उनका नाम जिला व ब्लॉक के पैनल में नहीं था। अब आगे क्या कुछ होता है, यह छानबीन समिति की बैठक में तय होगा।
कांग्रेस पर्यवेक्षक का कड़ा मिजाज
भाजपा में टिकट के दावेदारों से सीधे साक्षात्कार नहीं हो रहा है लेकिन कांग्रेस की स्थिति दूसरी है। दिल्ली से पहुंचने वाला हर नेता उन्हें अपना भाग्य विधाता लगता है। पर कोई नहीं जानता कि इनकी रिपोर्ट का वजन कितना होगा। अभी महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष नेटा डिसूजा पहुंची थीं। उन्होंने बिलासपुर और सरगुजा संभाग में टिकट के दावेदारों से वन-टू-वन चर्चा की। बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर सभी जगह उन्होंने देर शाम तक लंबे-लंबे साक्षात्कार लिए। उनके कडक़ व्यवहार से कई दावेदार सहमे-सहमे भी दिखे। एक दावेदार रंगीन चश्मा उतारे बिना उनसे मिलने चला आया। उसे उन्होंने तुरंत बाहर कर दिया। ज्यादातर लोगों से डिसूजा का सवाल यही था कि यदि आपको टिकट मिली तो आपने जीतने के लिए कौन सी रणनीति बनाई है। सामने वाला जो भी जवाब दे उनके पास प्रतिप्रश्न होते थे और दावेदारों के पास जवाब नहीं होता था। जीतने की रणनीति में समर्थक, संसाधन, सामाजिक समीकरण आदि पर बात सवाल किए जाते थे। अधिकांश के पास कोई आंकड़ा ही नहीं था, जबकि डिसूजा खुद सारा ब्यौरा अपने साथ लेकर आई थीं। एक सवाल और असहज करने वाला था- यदि आपको टिकट नहीं मिली तो सबसे मजबूत उम्मीदवार कौन हो सकता है? अब कोई दावेदार अपने प्रतिद्वन्द्वी का नाम क्यों आगे करेगा? दावेदारों ने विकल्प में ऐसे नाम दिए, जिनको टिकट मिलने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं हो।
डिसूजा ने आखिरी में एक गारंटी सभी से ली कि पार्टी चाहे किसी को भी टिकट दे, जीत के लिए उनको काम करना है। एक पदाधिकारी का कहना है कि असल में डिसूजा यही टटोलने आई थी कि कहीं कोई बगावत तो नहीं करने की सोच रहा। ब्लॉक और जिला स्तर से तो पैनल के साथ सूची तो पहले ही प्रदेश संगठन को भेजी जा चुकी है। अब सबसे बात करना जरूरी नहीं। मगर डिसूजा छत्तीसगढ़ के लिए अजय माकन की अध्यक्षता में बनाई गई स्क्रीनिंग कमेटी में सदस्य भी हैं, इसीलिए उन्हें कोई भी दावेदार हल्के में लेने की गलती नहीं कर रहा था।
एक और आदिवासी आंदोलन की आहट
राज्य सरकार ने हाल ही में दावा किया है कि वन अधिकार मान्यता अधिनियम प्रदेश में असरदार ढंग से लागू किया गया है। इससे आदिवासी, वनवासी, गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को राहत मिली उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी। इस दावे के एक सप्ताह पहले ही कोरबा जिले के मोरगा में जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविर रखने का कार्यक्रम तय किया था। इसका इस इलाके की 16 पंचायतों ने विरोध किया। यहां के जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा कि उनके व्यक्तिगत और सामुदायिक वन पट्टे के आवेदन विधिवत ब्लॉक स्तरीय समिति में जमा किए जा चुके हैं, लेकिन अब तक उनका अनुमोदन नहीं हुआ है। विरोध का असर यह हुआ कि जिला प्रशासन ने जनसमस्या निवारण शिविर को ही स्थगित कर दिया। अब आगे कोई तारीख तय करने की बात कही गई है। इधर शिविर स्थगित होने से समस्या का समाधान तो हुआ ही नहीं। अब इन ग्रामीणों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल करने का ऐलान किया है। इसकी तारीख अभी तय नहीं की गई है। गौर करने की बात यह भी है कि इन गांवों में प्राय: सभी हसदेव इलाके के कोयला खदानों से प्रभावित हैं। अभी उनका हसदेव अरण्य में खदान आवंटन के खिलाफ आंदोलन चल ही रहा है।
कर्नाटक का बदला लेता पोस्टर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस के खिलाफ आरोप पत्र जारी करने के लिए राजधानी रायपुर पहुंचे थे। जिस दिन वे यहां थे उसी दिन राहुल गांधी भी यहीं थे। शाह ने अपने उद्बोधन में एक बार फिर कहा कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार दिल्ली में अपनी पार्टी के नेताओं के लिए एटीएम है।
दोनों नेता जिस दिन राजधानी में थे, जगह-जगह पोस्टर चिपकाए गए थे, जिसमें वही बात लिखी थी, जो शाह और भाजपा का आरोप है। कुछ लोगों को ये पोस्टर कर्नाटक विधानसभा चुनाव की याद दिला रहे थे। वहां भी चुनाव के पहले तत्कालीन सीएम के खिलाफ पे सीएम के पोस्टर लगाए गए थे। वहां भाजपा सरकार में हिस्सेदार थी, यहां विपक्ष में है। जो कर्नाटक में भाजपा विरोधियों ने किया, यहां भाजपा कर रही है। यह ध्यान जरूर रखा गया है कि पोस्टर्स में किसी वालेट का लोगो नहीं है। पेटीएम ने अपने लोगो के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस को कानूनी नोटिस भेज दिया था।
रायपुर से महिला टिकटार्थी
रायपुर की चारों सीटों के लिए कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। दोनों ही दलों में महिला दावेदारों के नाम पर चर्चा भी हो रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस से परे भाजपा में कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से मंथन हो रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि परिसीमन से पहले रायपुर की दो सीटें होती थी, रायपुर शहर और ग्रामीण। अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष-77 में जनता पार्टी ने रजनी ताई उपासने को प्रत्याशी बनाया, और वो विधायक भी बनीं। बाद में जनता पार्टी टूट गई। और जनसंघ, भाजपा के रूप में अस्तित्व में आ गई। मगर बाद के चुनावों में दोनों ही प्रमुख दल भाजपा, और कांग्रेस ने चुनाव में रायपुर की सीट से महिला उम्मीदवार नहीं उतारे।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद, और फिर वर्ष-2008 में परिसीमन के चलते रायपुर की चार सीट हो गई है। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव तक दोनों ही दलों ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दी। इस बार कांग्रेस में महिला दावेदार तो हैं, लेकिन चर्चा है कि चारों सीटों के लिए अंतिम रूप से जो पैनल तैयार हुआ है उनमें एक भी महिला नहीं है। यानी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी के उतरने की संभावना कम है। अलबत्ता, भाजपा से रायपुर पश्चिम, और रायपुर दक्षिण की सीट पर महिला दावेदारों का नाम मजबूती से उभरा है। पार्टी इसको लेकर गंभीर भी है।
नगर निगम में भाजपा पार्षद दल की नेता मीनल चौबे का नाम रायपुर पश्चिम से चर्चा में है। इसी तरह रायपुर ग्रामीण से ममता साहू का नाम भी उभरा है। पार्टी के रणनीतिकार कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है, तो रायपुर से 40 साल बाद कोई महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में होंगी।
ठाकुर परेशान है
भाजपा के एक युवा ठाकुर नेता अपने दो दिग्गज नेताओं से परेशान हैं। ये दोनो नेता क्षेत्र में जाकर ओबीसी वोटरों के ह्रदय परिवर्तन अभियान में सक्रिय हैं । एक नेता तो उनके अपने ही जिले के हैं, और पार्टी के बड़े पद पर हैं। कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं ने अब तक आधा दर्जन से अधिक दौरे कर लिए हैं। और दबी जुबान में एक बात कह रहे हैं कि कब तक ठाकुरों की जय जयकार करोगे। पकड़ के मामले में ठाकुर भी कम नहीं हैं। उन्होंने दोनों दिग्गजों की शिकायतें मोटा भाई तक पहुंचा दी है। मोटा भाई ने युवा ठाकुर नेता से कहा बताते हैं कि तुम राजधानी छोड़ अपने क्षेत्र को संभालो, बाकी को मैं संभाल लूंगा। देखना है आगे क्या होता है।
बुजुर्ग विधायकों का विकल्प
कांग्रेस अपने तीन सीनियर विधायकों की टिकट को लेकर ऊहापोह में है। ये तीनों विधायक 80 बरस पार कर चुके हैं। इनमें से एक पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने तो चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया है, और उनकी जगह पार्टी उनके बेटे पंकज को चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है। मगर दो अन्य बुजुर्ग आदिवासी विधायक खेलसाय सिंह, और रामपुकार सिंह का विकल्प नहीं मिल रहा है।
खास बात यह है कि खेलसाय सिंह अनारक्षित प्रेमनगर सीट से विधायक हैं। वे कई बार विधायक और सांसद रहे हैं। खेलसाय अपने विधानसभा क्षेत्र में गैर आदिवासी तबकों में भी लोकप्रिय है। लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। हालांकि उन्होंने टिकट के लिए आवेदन दे दिया है। लेकिन चर्चा है कि वो अपनी बहु को चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसके लिए पार्टी तैयार नहीं है। यहां दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की बेटी शशि सिंह का नाम प्रमुखता से उभरा है।
इसी तरह पत्थलगांव से रामपुकार सिंह का कोई मजबूत विकल्प नहीं दिख रहा है। राम पुकार सबसे ज्यादा 8 बार विधायक रहे हैं। वैसे तो रामपुकार सिंह की बेटी आरती सिंह का भी नाम चर्चा में है, लेकिन पार्टी पिता की तुलना में बेटी को कमजोर मान रहे हैं। देखना है कि पार्टी बुजुर्ग हो चुके विधायकों को लेकर क्या फैसला करती है।
सीमेंट की कीमत में आग
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब पहले चुनाव को जब कुछ महीने बचे थे तो सीमेंट के दाम में 10 से 15 रुपए का उछाल आ गया था। तब भाजपा ने इसे जोगी टैक्स का नाम देते हुए सडक़ से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी थी। सीमेंट कंपनियों के साथ सरकार की साठगांठ का आरोप लगाया था। बीच के वर्षों में भी ऐसा हुआ है कि सीमेंट कंपनियों ने सिंडिकेट बनाकर आपूर्ति घटा दी और दाम बढ़ा दिए। भाजपा शासनकाल में दाम 300 रुपये बोरी तक पहुंचा था।
छत्तीसगढ़ में सीमेंट के लिए पर्याप्त कच्चा माल है। रॉयल्टी और बिजली दर भी अनुकूल है। इसीलिए छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है। देश की जरूरत का 20 प्रतिशत सीमेंट का उत्पादन यहीं होता है। नौ बड़ी सीमेंट कंपनियों के 16 प्लांट्स यहां स्थापित हैं। कंपनियां यहां की भूमि, मानव श्रम, खनिज, बिजली, सडक़ और पानी का बेतहाशा इस्तेमाल करती हैं। इसके बावजूद सीमेंट के दामों में यहां पर कोई रियायत नहीं है। देश में सीमेंट फैक्ट्रियों की कुल उत्पादन क्षमता 3.5 लाख टन है और औसत मांग दो से ढाई लाख टन है। इसका मतलब यह है कि दाम में बढ़ोतरी कृत्रिम कमी के कारण होती है। एकाध बार जरूर सुना गया है कि कोयले की आपूर्ति में कमी के कारण उत्पादन धीमा हुआ। पर इस समय ऐसी कोई बात नहीं है।
अभी एकाएक सीमेंट कंपनियों ने प्रतिबोरी करीब 50 रुपए दाम बढ़ा दिए हैं। एक ठीक-ठाक कंपनी का सीमेंट 360 से 370 रुपए तक मिल रहा है। डीलर की दुकान से सीमेंट फैक्ट्री की दूरी ज्यादा है तो अतिरिक्त भाड़ा भी जोड़ा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि सीमेंट कंपनियां बारिश के बाद निर्माण कार्यों में आ रही तेजी का फायदा उठाना चाहती हैं। वैसे अक्टूबर 2020 में भी 50 रुपए प्रति बोरी दाम बढ़ा था। तब उसकी कीमत 210 रुपए से बढक़र 260 हो गई थी। अब आप अंदाजा लगाएं कि वास्तव में सीमेंट कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए ही दाम बढ़ाएं हैं, या फिर इसका आने वाले चुनाव से भी कोई संबंध है।
बगावती सुर पर लगाम
मरवाही विधानसभा चुनाव से कांग्रेस टिकट के दावेदार कुछ कांग्रेसियों ने पिछले दिनों मीडिया से बात की और कहा कि वर्तमान विधायक डॉक्टर के के ध्रुव को छोडक़र किसी को भी टिकट दे दी जाए। वे मिलकर उनके लिए काम करेंगे। मालूम हुआ है कि इन दावेदारों को प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने रायपुर बुलाया था। सभी यह सोचकर गए थे कि उनसे पूछा जाएगा कि डॉ ध्रुव को नहीं तो फिर किसको खड़ा किया जाए। पर यहां दूसरी ही बात हो गई। प्रदेश पदाधिकारियों ने कहा कि मौजूदा विधायक की टिकट तो नहीं कटने वाली है। और आप लोगों को हर हाल में पार्टी के लिए काम करना होगा। यदि ऐसी मंशा नहीं रखते हैं तो अभी से बता दें ताकि आप लोगों पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली जाए। इस घटना के बाद सब सकते में आ गए। अब डॉक्टर ध्रुव के खिलाफ विरोध का स्वर ठंड पड़ गया है।
एक्सप्रेस वे का हाल
जब राजधानी रायपुर के एक्सप्रेस वे की हालत ऐसी हो तो समझा जा सकता है कि प्रदेश में सडक़ों पर गाय-बैल किस तरह से पसरे हुए हैं। और इनकी वजह से कितनी दुर्घटनाएं हो रही हैं।
रायपुर से महिला टिकटार्थी
रायपुर की चारों सीटों के लिए कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। दोनों ही दलों में महिला दावेदारों के नाम पर चर्चा भी हो रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस से परे भाजपा में कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से मंथन हो रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि परिसीमन से पहले रायपुर की दो सीटें होती थी, रायपुर शहर और ग्रामीण। अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष-77 में जनता पार्टी ने रजनी ताई उपासने को प्रत्याशी बनाया, और वो विधायक भी बनीं। बाद में जनता पार्टी टूट गई। और जनसंघ, भाजपा के रूप में अस्तित्व में आ गई। मगर बाद के चुनावों में दोनों ही प्रमुख दल भाजपा, और कांग्रेस ने चुनाव में रायपुर की सीट से महिला उम्मीदवार नहीं उतारे।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद, और फिर वर्ष-2008 में परिसीमन के चलते रायपुर की चार सीट हो गई है। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव तक दोनों ही दलों ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दी। इस बार कांग्रेस में महिला दावेदार तो हैं, लेकिन चर्चा है कि चारों सीटों के लिए अंतिम रूप से जो पैनल तैयार हुआ है उनमें एक भी महिला नहीं है। यानी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी के उतरने की संभावना कम है। अलबत्ता, भाजपा से रायपुर पश्चिम, और रायपुर दक्षिण की सीट पर महिला दावेदारों का नाम मजबूती से उभरा है। पार्टी इसको लेकर गंभीर भी है।
नगर निगम में भाजपा पार्षद दल की नेता मीनल चौबे का नाम रायपुर पश्चिम से चर्चा में है। इसी तरह रायपुर ग्रामीण से ममता साहू का नाम भी उभरा है। पार्टी के रणनीतिकार कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है, तो रायपुर से 40 साल बाद कोई महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में होंगी।
ठाकुर परेशान है
भाजपा के एक युवा ठाकुर नेता अपने दो दिग्गज नेताओं से परेशान हैं। ये दोनो नेता क्षेत्र में जाकर ओबीसी वोटरों के ह्रदय परिवर्तन अभियान में सक्रिय हैं । एक नेता तो उनके अपने ही जिले के हैं, और पार्टी के बड़े पद पर हैं। कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं ने अब तक आधा दर्जन से अधिक दौरे कर लिए हैं। और दबी जुबान में एक बात कह रहे हैं कि कब तक ठाकुरों की जय जयकार करोगे। पकड़ के मामले में ठाकुर भी कम नहीं हैं। उन्होंने दोनों दिग्गजों की शिकायतें मोटा भाई तक पहुंचा दी है। मोटा भाई ने युवा ठाकुर नेता से कहा बताते हैं कि तुम राजधानी छोड़ अपने क्षेत्र को संभालो, बाकी को मैं संभाल लूंगा। देखना है आगे क्या होता है।
बुजुर्ग विधायकों का विकल्प
कांग्रेस अपने तीन सीनियर विधायकों की टिकट को लेकर ऊहापोह में है। ये तीनों विधायक 80 बरस पार कर चुके हैं। इनमें से एक पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने तो चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया है, और उनकी जगह पार्टी उनके बेटे पंकज को चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है। मगर दो अन्य बुजुर्ग आदिवासी विधायक खेलसाय सिंह, और रामपुकार सिंह का विकल्प नहीं मिल रहा है।
खास बात यह है कि खेलसाय सिंह अनारक्षित प्रेमनगर सीट से विधायक हैं। वे कई बार विधायक और सांसद रहे हैं। खेलसाय अपने विधानसभा क्षेत्र में गैर आदिवासी तबकों में भी लोकप्रिय है। लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। हालांकि उन्होंने टिकट के लिए आवेदन दे दिया है। लेकिन चर्चा है कि वो अपनी बहु को चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसके लिए पार्टी तैयार नहीं है। यहां दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की बेटी शशि सिंह का नाम प्रमुखता से उभरा है।
इसी तरह पत्थलगांव से रामपुकार सिंह का कोई मजबूत विकल्प नहीं दिख रहा है। राम पुकार सबसे ज्यादा 8 बार विधायक रहे हैं। वैसे तो रामपुकार सिंह की बेटी आरती सिंह का भी नाम चर्चा में है, लेकिन पार्टी पिता की तुलना में बेटी को कमजोर मान रहे हैं। देखना है कि पार्टी बुजुर्ग हो चुके विधायकों को लेकर क्या फैसला करती है।
सीमेंट की कीमत में आग
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब पहले चुनाव को जब कुछ महीने बचे थे तो सीमेंट के दाम में 10 से 15 रुपए का उछाल आ गया था। तब भाजपा ने इसे जोगी टैक्स का नाम देते हुए सडक़ से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी थी। सीमेंट कंपनियों के साथ सरकार की साठगांठ का आरोप लगाया था। बीच के वर्षों में भी ऐसा हुआ है कि सीमेंट कंपनियों ने सिंडिकेट बनाकर आपूर्ति घटा दी और दाम बढ़ा दिए। भाजपा शासनकाल में दाम 300 रुपये बोरी तक पहुंचा था।
छत्तीसगढ़ में सीमेंट के लिए पर्याप्त कच्चा माल है। रॉयल्टी और बिजली दर भी अनुकूल है। इसीलिए छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है। देश की जरूरत का 20 प्रतिशत सीमेंट का उत्पादन यहीं होता है। नौ बड़ी सीमेंट कंपनियों के 16 प्लांट्स यहां स्थापित हैं। कंपनियां यहां की भूमि, मानव श्रम, खनिज, बिजली, सडक़ और पानी का बेतहाशा इस्तेमाल करती हैं। इसके बावजूद सीमेंट के दामों में यहां पर कोई रियायत नहीं है। देश में सीमेंट फैक्ट्रियों की कुल उत्पादन क्षमता 3.5 लाख टन है और औसत मांग दो से ढाई लाख टन है। इसका मतलब यह है कि दाम में बढ़ोतरी कृत्रिम कमी के कारण होती है। एकाध बार जरूर सुना गया है कि कोयले की आपूर्ति में कमी के कारण उत्पादन धीमा हुआ। पर इस समय ऐसी कोई बात नहीं है।
अभी एकाएक सीमेंट कंपनियों ने प्रतिबोरी करीब 50 रुपए दाम बढ़ा दिए हैं। एक ठीक-ठाक कंपनी का सीमेंट 360 से 370 रुपए तक मिल रहा है। डीलर की दुकान से सीमेंट फैक्ट्री की दूरी ज्यादा है तो अतिरिक्त भाड़ा भी जोड़ा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि सीमेंट कंपनियां बारिश के बाद निर्माण कार्यों में आ रही तेजी का फायदा उठाना चाहती हैं। वैसे अक्टूबर 2020 में भी 50 रुपए प्रति बोरी दाम बढ़ा था। तब उसकी कीमत 210 रुपए से बढक़र 260 हो गई थी। अब आप अंदाजा लगाएं कि वास्तव में सीमेंट कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए ही दाम बढ़ाएं हैं, या फिर इसका आने वाले चुनाव से भी कोई संबंध है।
बगावती सुर पर लगाम
मरवाही विधानसभा चुनाव से कांग्रेस टिकट के दावेदार कुछ कांग्रेसियों ने पिछले दिनों मीडिया से बात की और कहा कि वर्तमान विधायक डॉक्टर के के ध्रुव को छोडक़र किसी को भी टिकट दे दी जाए। वे मिलकर उनके लिए काम करेंगे। मालूम हुआ है कि इन दावेदारों को प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने रायपुर बुलाया था। सभी यह सोचकर गए थे कि उनसे पूछा जाएगा कि डॉ ध्रुव को नहीं तो फिर किसको खड़ा किया जाए। पर यहां दूसरी ही बात हो गई। प्रदेश पदाधिकारियों ने कहा कि मौजूदा विधायक की टिकट तो नहीं कटने वाली है। और आप लोगों को हर हाल में पार्टी के लिए काम करना होगा। यदि ऐसी मंशा नहीं रखते हैं तो अभी से बता दें ताकि आप लोगों पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली जाए। इस घटना के बाद सब सकते में आ गए। अब डॉक्टर ध्रुव के खिलाफ विरोध का स्वर ठंड पड़ गया है।
एक्सप्रेस वे का हाल
जब राजधानी रायपुर के एक्सप्रेस वे की हालत ऐसी हो तो समझा जा सकता है कि प्रदेश में सडक़ों पर गाय-बैल किस तरह से पसरे हुए हैं। और इनकी वजह से कितनी दुर्घटनाएं हो रही हैं।
शाह का हॉल खाली!!
भूपेश सरकार के खिलाफ आरोप पत्र की लांचिंग का कार्यक्रम भीड़ के लिहाज से भाजपा के लिए शर्मिंदगी भरा रहा। विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने से पहले पार्टी ने आरोप पत्र तो तैयार किया, और देश के दूसरे नंबर के नेता केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सरकार के खिलाफ अपने तेवर दिखाकर कार्यक्रम में रंग भरने की कोशिश की।
यह कार्यक्रम साइंस कॉलेज से सटे दीनदयाल उपाध्याय सभागार में शनिवार को हुआ। लांचिंग कार्यक्रम कवरेज के लिए दिल्ली से पत्रकारों का एक दल भी आया था। आरोप पत्र की लांचिंग के लिए सुबह साढ़े 10 बजे का कार्यक्रम निर्धारित किया गया। मगर उस समय तक हाल की कुर्सियां तक नहीं भरी थी। इस वजह से कार्यक्रम घंटेभर विलंब से शुरू हुआ।
बताते हैं कि हाल को खाली देखकर हड़बड़ाए प्रदेश के सहप्रभारी नितिन नबीन ने प्रभारी ओम माथुर को इसकी सूचना दी, और फिर माथुर ने प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव व महामंत्री पवन साय से बात कर नाराजगी जताई। इसके बाद लोगों की आवाजाही शुरू हुई, और फिर एक घंटे विलंब कर अमित शाह, और अन्य प्रमुख नेता कार्यक्रम स्थल पहुंचे, और फिर कार्यक्रम शुरू हो पाया।
दिलचस्प बात यह है कि कार्यक्रम स्थल पूर्व मंत्री राजेश मूूणत का विधानसभा क्षेत्र रहा है, और आसपास दसियों हजार युवा मतदाता, कॉलेज-यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं रहते हैं। खुद मूणत का निवास स्थान कार्यक्रम स्थल से महज डेढ़ किमी की दूरी पर है। ऐसे में लोगों की कम उपस्थिति को देखकर उनकी चुनाव तैयारियों, और जीतने की क्षमता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं, या फिर माना जा रहा है कि उन्होंने खुद को आरोप पत्र के लांचिंग कार्यक्रम की व्यवस्था से अलग-थलग रखा है।
न सिर्फ मूणत बल्कि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर भी उंगलियां उठ रही है। जो कि अपनी नुक्कड़ सभा में इससे ज्यादा भीड़ जुटाने की क्षमता रखते हैं। उनका भी कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर उपेक्षित भाव किसी की समझ में नहीं आया। जबकि इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए सभागार को भरने की क्षमता तो पार्टी के एक-एक मंडल की है।
पार्टी के जानकार लोग बताते हैं कि ओपी चौधरी को आरोप पत्र लांचिग कार्यक्रम का प्रभारी बनाया गया था। वो सभी को साथ लेकर नहीं चल पाए। उनकी कार्यशैली की वजह से स्थानीय प्रमुख नेता खुद कार्यक्रम से दूर हो गए। आमंत्रण कार्ड भी कई विशिष्ट व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पाया, जबकि व्यापारियों, वकीलों, और अन्य बुद्धिजीवियों को भी कार्यक्रम में आमंत्रित कर तामझाम से आरोप पत्र की लांचिंग की योजना बनी थी। कुल मिलाकर आरोप पत्र का लांचिंग कार्यक्रम को लेकर पार्टी नेताओं की काफी किरकिरी हो रही है।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। ओपी चौधरी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पहले पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें संक्षिप्त उद्बोधन देने के लिए कह दिया। रमन सिंह तो मुस्कुराकर रह गए, लेकिन उनके समर्थकों को चौधरी की बात पसंद नहीं आई।
यह मासूम चूक है, या रिश्ते?
भूपेश सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने अहम भूमिका निभाई थी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने उद्बोधन में कई बार उनका नाम भी लिया। मगर आरोप पत्र को लेकर पार्टी के भीतर उनकी आलोचना भी हो रही है।
आरोप पत्र में सीएम से लेकर तमाम अफसरों का जिक्र तो किया है और उनके कार्टून भी कवर पेज पर हैं। लेकिन कोल केस के मुख्य आरोपी सूर्यकांत तिवारी का नाम तक नहीं था। यही नहीं, कोल घोटाला केस के एक अन्य आरोपी रानू साहू का भी नाम नहीं है। यह कहा जा रहा है कि दोनों के अजय से अच्छे संबंध हैं, इसलिए उनके कार्टून और नाम गायब हैं। अब चूक हुई है या फिर जानबूझकर छोड़ा गया है। या फिर इसमें अजय की कोई भूमिका है, यह स्पष्ट नहीं है लेकिन पार्टी के अंदरखाने में इसकी चर्चा खूब हो रही है।
चिट्ठी में क्या था?
नवा रायपुर में राहुल गांधी के कार्यक्रम में भीड़भाड़ तो अच्छी खासी थी। राहुल काफी खुश भी दिख रहे थे। तभी मौका पाकर मंच पर एक महिला विधायक ने उन्हें नमस्कार कर पत्र थमा दिया।
राहुल ने पत्र को आगे-पीछे देखा और फिर उसे सीएम भूपेश बघेल को दे दिया। महिला विधायक इससे असहज दिखीं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि पत्र में सत्ता-संगठन की तारीफ होगी तो ठीक है लेकिन शिकायतें होंगी तो महिला विधायक को समस्या हो सकती है। वजह यह है कि प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है, और इसमें सीएम और प्रदेश अध्यक्ष की राय अहम होगी। देखना है कि महिला विधायक की टिकट का क्या कुछ होता है।
पोस्टिंग रद्द होने से बढ़ी मुसीबत
पदोन्नति के बाद पोस्टिंग में भारी भ्रष्टाचार सामने आने पर स्कूल शिक्षा विभाग ने 4000 संशोधित तबादलों को रद्द करने का आदेश दे दिया है। यह आदेश इसलिए भी निकाला गया क्योंकि रिश्वत नहीं दे पाने वाले शिक्षकों को दूर के स्कूलों में जाना पड़ा। इसके खिलाफ वे सडक़ पर उतर आए थे। इधर, संशोधन रद्द होने से प्रभावित होने वाले शिक्षकों का भारी नुकसान हो गया। उन्होंने मनचाही पोस्टिंग पाने के लिए एक लाख रुपये से दो लाख रुपये तक खर्च किए। रकम डूब गई, क्योंकि इस घोटाले में शामिल ज्यादातर लोग सस्पेंड कर दिए गए हैं। रकम लौटाने को लेकर उनका कहना है कि अकेले थोड़े ही खाई है, राजधानी तक रकम पहुंचानी पड़ी है। मीडिया के भी कुछ लोग मोटी रकम लेकर निकलते बने। जिस दलाल के जरिये रकम दी गई, पैसे उसने भी दबा लिए। कुल मिलाकर बंदरबांट हुई। किसी एक के हाथ में पूरी रकम आई ही नहीं। अब रिश्वत के जरिये संशोधित आदेश हासिल करने वाले शिक्षक अपना घर-बाहर जाकर दूर के किसी स्कूल में ज्वाइनिंग दे रहे हैं। रकम तो डूब ही गई, बाहर जाकर नौकरी करने से खर्च अलग से बढ़ जाएगा।
अरुण साव को उतारने की तैयारी
जिस तरह से प्रत्याशियों की पहली सूची में विजय बघेल का नाम सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ आ गया है, यह स्पष्ट है कि कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के इरादे से अपने कई सांसदों को मैदान में उतार सकती है। इनमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और बिलासपुर के सांसद अरुण साव का नाम भी सामने आ रहा है। चर्चा है कि उन्हें बिलासपुर से ही विधानसभा चुनाव लड़ाने की योजना बनाई जा रही है। दलील यह दी जा रही है कि साव के लडऩे से बिलासपुर, मुंगेली और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के उन ओबीसी मतदाताओं को जोड़ा जा सकेगा, जो इस धान उत्पादक क्षेत्र में कांग्रेस सरकार की नीतियों से लाभ उठा रहे हैं। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल पिछले चुनाव में 11 हजार मतों से परास्त हुए थे। पिछले महीने भाजपा ने 162 नेताओं की 16 विभिन्न समितियां बनाई थी। इनमें से वित्त समिति के संयोजक अमर अग्रवाल बनाए गए हैं। तभी से माना जा रहा है कि उन्हें दोबारा बिलासपुर से टिकट देने की संभावना क्षीण हो चुकी है। बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में अमर अग्रवाल कुछ महीने पहले से सक्रिय हो चुके थे। उन्होंने हर एक वार्ड का भ्रमण किया और आंदोलन भी किए। वित्त समिति का प्रभार मिलने के बाद यहां उनकी व्यस्तता कम हो गई है। हालांकि कोटा विधानसभा में संभावना बनी हुई है, जहां से भाजपा कभी नहीं जीत पाई है।
दूसरी तरफ यह संकेत है कि बिलासपुर के कांग्रेस विधायक शैलेष पांडेय की टिकट नहीं काटी जाएगी। पहली बार बिलासपुर शहर से टिकट के लिए कम आवेदन संगठन को दिए गए हैं। बिलासपुर से लगी सामान्य सीट कोटा, बेलतरा और बिल्हा सीटों से दावेदारी अधिक है। अरुण साव और शैलेष पांडेय आमने-सामने होंगे तो मुकाबला दिलचस्प और कड़ा हो सकता है।
कार को कुचलती साइकिल
संदेश देने का यह एक रचनात्मक ढंग है। तस्वीर सीधी है तो एक शख्स साइकिल चलाते दिखता है, जो बिगड़ते पर्यावरण का समाधान है। उल्टी करेंगे तो यह कार बन जाती है जिसका धुआं प्रदूषण फैलाता है। और व्यक्ति उसके नीचे आ जाता है। (सोशल मीडिया पर मिली एक तस्वीर)
भाजपा को प्रोडक्ट बेचना आता है
कांग्रेस ने भाजपा, रमन सरकार के घोटालों पर शुक्रवार को काला चि_ा पेश किया । इसके बाद शनिवार को भाजपा ने बघेल सरकार के घोटालों पर आरोप पत्र जारी किया । पहले जारी करने के बाद भी कांग्रेस पिछड़ गई है। । कारोबारी भाषा में कहे तो कांग्रेस के अपने प्रोडक्ट को बनाने, पैकिंग और उसे बेचना नहीं आया, इसलिए पिछड़ गई कह रहे। काला चि_ा के रूप में मुद्रित पुस्तिका या लेखन और प्रकाशन पूरी तरह से सरकारी लगता है, भाषाई त्रुटियां भी ढेरों। राष्ट्रीय नेत्री के हाथों अवश्य जारी किया लेकिन उसे वो हाइप नहीं मिला । और इधर भाजपा के तौर तरीके जानने वाले कहते हैं कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के आरोप पत्र को देखना। इसे जारी करने केंद्रीय गृह मंत्री शाह,आए है तो पूरा तामझाम तैयार करने मीडिया के राष्ट्रीय नेता सिध्दार्थ नाथ सिंह, संजय मयूख, केके. शर्मा भी पहुंचे हैं। यही नहीं दिल्ली से नेशनल मीडिया के पत्रकार भी लेकर आए हैं। और आयोजन विशाल डीडीयू सभागार में । इसलिए कहा जाता है भाजपा को अपना प्रोडक्ट बेचना आता है ।
सरगुजा अब पूरे कांग्रेस की चिंता
सामरी विधायक चिंतामणि महाराज और रामानुजगंज विधायक बृहस्पत सिंह से अपनी नाराजगी को सार्वजनिक मंच से जाहिर कर उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव (बाबा) ने ठीक किया या नहीं, इस पर सवाल उठ रहे हैं। रामानुजगंज विधायक बृहस्पत सिंह की प्रतिक्रिया आ ही गई है। इसके बाद चिंतामणि महाराज का बयान भी सामने आया है।
दोनों जानते हैं कि कम से कम सरगुजा के मामले में तो सिंहदेव की राय संगठन के सामने महत्वपूर्ण रहेगी, इसलिए उन्होंने संभले हुए जुबान से प्रतिक्रिया दी है। पर यह भी साफ कर दिया है कि वे टिकट नहीं मिली तो हंगामा मचा देंगे। जैसे बृहस्पत सिंह ने कहा कि बाबा अकेले नहीं है। हाईकमान में और लोग भी हैं। अब एक वीडियो चिंतामणि महाराज का भी वायरल हो गया है। वे कह रहे हैं- अच्छा काम करने के बावजूद यदि मुझे टिकट नहीं दी गई तो लोग चुनाव का बहिष्कार कर देंगे। चुनाव का बहिष्कार का दूसरा मतलब यह लगाया जा सकता है कि लोग कांग्रेस के खिलाफ वोट करेंगे। यह नहीं भूलना चाहिए कि चिंतामणि महाराज पहले भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ चुके हैं।
कुछ लोग यह मान रहे हैं कि सिंहदेव की निजी राय जो भी हो पर ठीक चुनाव से पहले दोनों प्रत्याशियों के खिलाफ नाराजगी सार्वजनिक कर उन्होंने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम किया। यदि इन दोनों विधायकों की टिकट किसी और वजह से भी कट गई तो इसमें सिंहदेव का हाथ माना जाएगा। दोनों विधायकों के कुछ तो समर्थक अपने इलाके में होंगे ही। क्या इनकी टिकट कटने के बाद वे दूसरे उम्मीदवार के लिए काम करेंगे? और यदि इन दोनों को टिकट मिल गई तो क्या सिंहदेव के समर्थक काम करेंगे। सरगुजा कांग्रेस में सिंहदेव के एकमात्र दबदबे पर भी सवाल उठेगा, जो बाकी सीटों पर भी असर डालेगा।
प्रदेश की जितनी सर्वे रिपोर्ट्स आ रही हैं, उनमें पलड़ा कांग्रेस की ओर झुका तो दिखाई दे रहा है पर टक्कर कांटे की भी बताई गई है। कांग्रेस भाजपा के बीच सीटों का अंतर पिछली बार के मुकाबले बहुत कम हो रहा है। ऐसे मौके पर कांग्रेस किसी भी सीट पर अधूरी लड़ाई नहीं लडऩा चाहती, पूरा जोर लगाना चाहती है। सिंहदेव की मंशा नहीं रही हो तब भी उनके बयानों में भाजपा को अवसर दिखाई दे रहा है। उस सरगुजा संभाग में जहां सभी 14 सीटें इस समय कांग्रेस के पास है। एक भाजपा नेता ने चुटकी लेते हुए कहा कि ठीक है बाबा आप हमारे बुलाने से पार्टी में नहीं आए, वहीं रहकर आप जो कर रहे हैं, उससे भी थोड़ी-बहुत मदद मिल ही रही है।
मदिरा के लिए भवन की मांग
देशी-विदेशी शराब बेचने की सरकार ने व्यवस्था तो कर दी है, पर खरीदने के बाद पीने के लिए जगह ढूंढनी पड़ती है। किसी कोने में बैठकर पियें तो पुलिस पकड़ लेती है। बेकसूर से वसूली होती है और रकम नहीं मिलने पर केस बना दिया जाता है। इस समस्या की ओर मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री को पत्र लिखकर एक हाईकोर्ट अधिवक्ता मलय जहानी ने ध्यान दिलाया है। उन्होंने शराब पीने के लिए सरकारी भवन बनाने की मांग की है। पता नहीं, उन्होंने यह शिकायत पूरी गंभीरता से की है, या आबकारी और पुलिस विभाग पर तंज कसा है। क्योंकि शराब पीने के लिए कोई सरकारी अहाता नहीं है। पर कोई ऐसी शराब दुकान शायद ही हो जहां अवैध रूप से अहाता नहीं चल रहे हों। यह बात जरूर है कि अहाता में पानी, चखना सब महंगा मिलता है क्योंकि इसे चलाने वाले हर शाम बंधी हुई रकम आबकारी और पुलिस विभाग के कर्मचारियों को पहुंचाते हैं। पहले उनका हिस्सा होता है, फिर अपनी और अपने मजदूरों की कमाई निकालनी पड़ती है।
बेरोजगारी भत्ता देना उपलब्धि?
ऊंची शिक्षा ले चुके, रोजगार तलाश रहे, प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार किस्मत और क्षमता आजमा रहे युवाओं का एक सोशल मीडिया ग्रुप है। इसमें एक खबर की क्लिपिंग डाली गई। सवा लाख बेरोजगारों के बैंक खाते में सीएम ने डाले 34.56 करोड़ रुपये। अब इस पर प्रतिक्रिया सुनिए- सीएम साहब आपने तो कहा कि बेरोजगारी छत्तीसगढ़ में है ही नहीं, फिर इतनी रकम किन लोगों को मिल रही है। एक और प्रतिक्रिया है- सर, बेरोजगारी भत्ता नहीं, हमको रोजगार चाहिए। (सरकार का दावा है 42 हजार नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है।) और एक ने लिखा है- कड़ी शर्ते डालने के बावजूद सरकार को सवा लाख बेरोजगार मिल गए। तरह तरह की जो पाबंदियां हटा देते तो इससे 10 गुना ज्यादा बेरोजगार भत्ता लेने के पात्र हो जाएंगे।
भाजपा का एक नाम तय
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के चुनाव अभियान समिति के मुखिया के लिए पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का नाम फाइनल हो गया है। कहा जा रहा है कि प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर ने खुद बृजमोहन के नाम की अनुशंसा की है।
हल्ला यह भी है कि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का नाम चुनाव अभियान समिति के मुखिया के लिए आगे बढ़ाया है। यही एक वजह है कि चुनाव अभियान समिति की सूची अटक गई है। कहा जा रहा है कि माथुर ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को जल्द सूची जारी करने के लिए रिमाइंड भी किया है। देखना है कि चुनाव अभियान समिति की घोषणा कब तक होती है।
फ्रेंडली मुकाबले के बाद कांग्रेस में
सराईपाली के पूर्व भाजपा प्रत्याशी श्याम तांडी ने टिकट नहीं मिलने पर भाजपा छोड़ दी है। तांडी जिला पंचायत सदस्य हैं, और वो दोबारा टिकट चाहते थे। मगर भाजपा ने उनकी जगह पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सरला कोसरिया को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस प्रवेश के पीछे कुछ और वजहें बताई जा रही है। एक बड़ी वजह यह है कि सराईपाली के कांग्रेस विधायक किस्मतलाल नंद उनके रिश्तेदार हैं। नंद ने ही उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार किया।
वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में किस्मतलाल नंद, और श्याम के बीच मुकाबला फ्रैंडली हो गया था। कांग्रेस लहर में किस्मतलाल ने श्याम को 50 हजार से अधिक मतों से मात दी थी। मगर इस बार सराईपाली में कांग्रेस की राह आसान नहीं है। पार्टी की अंदरूनी सर्वे रिपोर्ट में भी किस्मतलाल नंद की पोजिशन खराब आंकी गई है। इस वजह से किस्मतलाल की टिकट खतरे में पड़ गई है। और अब जब पूर्व भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस के हो गए हैं, तो संभव है कि किस्मतलाल की किस्मत फिर खुल जाए, और उन्हें फिर प्रत्याशी बना दिया जाए। देखना है आगे क्या होता है।
नाम विधायक के लिए, चर्चा सांसद की
राजधानी रायपुर में चार विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जहां कांग्रेस के तीन और भाजपा के एक विधायक हैं। कांग्रेस के तीनों विधायक टिकट के लिए अकेले ही दावेदार हैं। दो जहां उलझे हुए हैं, वहीं एक निश्चिंत है। नाम तो चल रहा है विधायक के लिए लेकिन हाई कमान को उनमें सांसद दिख रहा है। बंगले की भीड़ में चर्चा तेज है। विधायक ने भी संकेत दिए समर्थकों को। बीते दशक, डेढ़ दशक में इस नेता ने राजनीति में अच्छा राइज किया है। अपने गुरू को पीछे छोड़ दिया है, कांग्रेस की परंपरा के अनुसार। गुरू रायपुर से आगे नहीं बढ़ पाए लेकिन चेला दिल्ली तक की राजनीति कर रहा है।अब देखना है कि पांच वर्ष पहले गुरू को मिले अवसर की तरह विफल होते हैं या सफल।
रमन के मुकाबले कौन?
भारतीय जनता पार्टी की राजनांदगांव जिला इकाई ने एकमात्र डॉ. रमन सिंह का नाम फिर से विधानसभा उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव भेजा है। सन् 2018 में जब भाजपा के खिलाफ लहर चली थी, उन्होंने इस सीट पर 17 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। उनके सामने भाजपा छोडक़र कांग्रेस में आई करूणा शुक्ला थीं। वे बाहरी प्रत्याशी थीं। कहा जा रहा था कि यदि किसी स्थानीय मजबूत उम्मीदवार को टिकट देते तो मुकाबला और कड़ा हो जाता। चुनाव अभियान के दौरान बाजी पलटने के भी दावे किये जा रहे थे।
इसके पहले के चुनाव सन् 2008 में स्व. उदय मुदलियार और उनके निधन के बाद 2013 में उनकी पत्नी अलका मुदलियार की करारी हार हुई। अलका मुदलियार करीब 36 हजार वोटों से तथा उदय मुदलियार करीब 33 हजार वोटों से हारे थे।
सन् 2018 के नतीजों से पता चलता है कि डॉ. रमन सिंह को बड़ी चुनौती मिली थी। करुणा शुक्ला को सिर्फ कांग्रेस पार्टी का साथ था, उनका वहां पहले से कोई जनाधार नहीं था। यह नतीजा राजनांदगांव में उनका जनाधार कम होने का संकेत देता है।
कांग्रेस मान रही है कि बाहर से आईं करुणा शुक्ला (अब दिवंगत) ने उनसे कड़ा मुकाबला किया था। स्थानीय उम्मीदवार होने से नतीजा पलट भी सकता है।
इसलिए पढ़ते समय खाने से बचें
चिकित्सकों की राय होती है कि खाना खाते समय, किताब नहीं पढऩी चाहिए, टीवी मोबाइल फोन नहीं देखना चाहिए। यह सेहत के लिए ठीक नहीं होता। पर दिल्ली की एक लाइब्रेरी में किताब पढ़ते वक्त खाने से रोकने के लिए एक दिलचस्प पर्चा चिपकाया गया है। इसमें लिखा गया है- आप खाएंगे, चीटियां अंदर आ जाएंगीं। वे पढऩा सीखकर होशियार हो जाएंगीं। ज्ञान में ताकत होती है। ताकत भ्रष्ट बनाती है। फिर एक दिन ये दुष्ट चीटियां दुनिया पर कब्जा कर लेंगीं।
पुलिस सुरक्षा में लूट
यह एक दिलचस्प मामला है कि जिस व्यक्ति को नक्सलियों से खतरा होने के कारण पुलिस ने सुरक्षा दी थी, उसी ने लूट की वारदात को अंजाम दिया। राजनांदगांव के एक शख्स विजय गुप्ता ने खुद को नक्सलियों से जान का खतरा बताया था। उसे पुलिस सुरक्षा दी गई। उसके साथ हर वक्त पुलिस होती थी। पर उसे दो दिन पहले महाराष्ट्र में गढ़चिरौली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसे ही नहीं उसके नौ साथियों को पकड़ा गया। आरोप के मुताबिक इन लोगों ने एक सुअर के व्यापारी से राह चलते डेढ़ लाख रुपये लूट लिए।
यह तो सडक़ छाप लूट हुई। कितने ही ऐसे जनता के बीच से चुने हुए प्रतिनिधि हैं जिन्हें हथियारबंद फोर्स की हिफाजत मिली है। लूटते रहते हैं और किसी को भनक भी नहीं लगने देते।
महादेव का तांडव
महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी केस की वजह से पुलिस महकमे में हलचल मची है। ईडी ने जब से एएसआई चन्द्रभूषण वर्मा को रिमांड पर लेकर पूछताछ शुरू किया है, रोज सोशल मीडिया पर पुलिस अफसरों से पूछताछ होने की खबर उड़ रही है।
मीडिया में यह खबर आई कि वर्मा से पूछताछ के आधार पर दो आईपीएस अफसरों को समंस जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया गया है। हालांकि ईडी के वकील डॉ.सौरभ पांडे ने ‘छत्तीसगढ़’ से अनौपचारिक चर्चा में इस तरह की खबरों को बेबुनियाद करार दिया है। डॉ.पांडे ने सिर्फ इतना ही कहा कि चन्द्रभूषण वर्मा से जो भी पूछताछ हो रही है, वह रिकॉर्ड है।
इन सबके बीच चार आईपीएस, दो एएसपी, आधा दर्जन टीआई, और दुर्ग पुलिस के नौजवानों का नाम भी इस केस में आने का हल्ला उड़ा है। जो कि कथित तौर पर ‘महादेव’ के हितग्राही रहे हैं। हालांकि ईडी ने अभी तक सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है, लेकिन देर सबेर नाम सामने आने की बात हो रही है। इन सब चर्चाओं में सच्चाई भले ही न हो, लेकिन चंद्रभूषण वर्मा की गिरफ्तारी से पुलिस और सट्टेबाजों के बीच गहरे रिश्ते की पुष्टि हुई है। राज्य पुलिस पहले भी अपने एक-दो छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई कर चुकी है।
न सिर्फ पुलिस, और राजनेता बल्कि मीडिया जगत के लोगों को भी ‘महादेव’ का प्रसाद मिलता रहा है। बताते हैं कि ‘महादेव’ के संचालकों ने सालभर पहले तो सिर्फ अखबारों के विज्ञापन पर ही करीब दो करोड़ रुपए फूंके थे। नामी-गिरामी पत्रकारों को भी अविश्वसनीय रक़म दी गई थी। और जब भिलाई-दुर्ग के कई युवाओं को सट्टेबाजी के चक्कर में दुबई और अन्य खाड़ी देशों में जाने की खबर सामने आई, तो इसके बाद ही छापेमारी का दौर चला, जो अब तक जारी है।
हार-जीत का दांव लगना शुरू
कुछ कांग्रेस विधायकों की टिकट रिपीट नहीं होने को लेकर कुछ लोग इतने आश्वस्त हैं कि लाखों रुपए की शर्त भी लगा रहे है। मनेंद्रगढ़ को लेकर सोशल मीडिया पर किया गया एक ऐलान कुछ इस तरह से है- मनेंद्रगढ़ में एक उत्साही व्यापारी हैं। उनका दावा है कि डॉ. विनय जायसवाल की टिकट कट चुकी है। सिर्फ औपचारिकताएं शेष हैं। इसके लिए वे 5 लाख रुपये की शर्त लगाने के लिए तैयार हैं शर्त की रकम दोनों पक्ष तटस्थ व्यक्ति के पास पहले से जाम कराएंगे। कुल राशि में दो या तीन या अधिक भागीदार हो सकते हैं। इच्छुक खास समर्थक व्यक्तिगत तौर पर हमसे संपर्क करें। संपर्क स्थल 9 बजे। स्थान बलराम चाय दुकान, राजस्थान भवन के साने, मनेंद्दगढ़।
खफा पूर्व मंत्री
भाजपा के दो पूर्व मंत्री इन दिनों पार्टी संगठन से खफा चल रहे हैं। एक पूर्व मंत्री तो विधायक हैं, लेकिन जिले के संगठन ने उनकी जगह नए चेहरे को टिकट देने की वकालत कर दी है। इससे पूर्व मंत्री गुस्साए हैं। दूसरे का हाल तो और खराब है।
बताते हैं कि दूसरे पूर्व मंत्री तो पिछला चुनाव हार गए थे। उन्हें सीट बदलकर चुनाव लडऩे की सलाह दी गई है, जिसके लिए वो तैयार नहीं है। अपने कुछ करीबी लोगों से कह दिया है कि उनकी सीट बदली गई, तो वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। यही नहीं, वो पार्टी का प्रचार भी नहीं करेंगे। देखना है कि दोनों पूर्व मंत्रियों को लेकर पार्टी क्या कुछ करती है।
बाहर जाकर महत्व
छत्तीसगढ़ कैडर के एक और आईएएस को महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिली है। आईएएस के वर्ष-2006 बैच के अफसर एलेक्स पाल मेनन को चेन्नई में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) का संयुक्त विकास आयुक्त बनाया गया है।
मेनन अपने गृह राज्य तमिलनाडु में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वो सुकमा कलेक्टर रहते नक्सलियों द्वारा बंधक बनाए गए थे। बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं, और सरकार के प्रयासों से उन्हें रिहाई मिली। इसके बदले में कुछ नक्सलियों को भी छोड़ा गया था। बावजूद इसके मेनन को रमन सरकार में अच्छी पोस्टिंग मिलती रही है। कांग्रेस सरकार के आने के बाद एक तरह से किनारे ही थे, लेकिन बाद में वो प्रतिनियुक्ति पर चले गए।
गैरहाजिर रहने से बच गई कुर्सी
यह देखा गया है कि संसद में किसी प्रस्ताव से किसी दल की प्रतिष्ठा जुड़ी हो तो वह अपने सदस्यों से हर हाल में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए व्हिप जारी करता है। नगरीय निकायों में अभी यह बाध्यता नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई नगर पालिकाऔ, नगर पंचायतों में कांग्रेस, भाजपा के बगावती मिलकर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को पद से हटा चुके हैं। इधर जगदलपुर नगर निगम की महापौर सफीरा साहू के खिलाफ लाये गए भाजपा के अविश्वास प्रस्ताव को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस ने अनूठी रणनीति अपनाई। तय समय पर मंगलवार को सभा बुलाई गई, लेकिन उसमें कांग्रेस के पार्षद पहुंचे ही नहीं। यदि कांग्रेस पार्षदों को यह निर्देश दिया जाता कि वे सभा में भाग लें और अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान करें तो दो चार के इधर-उधर होने की आशंका को कौन टाल सकता था? तय यह किया गया कि कोई सभा में पहुंचेगा ही नहीं। इससे हुआ यह कि कांग्रेस एकजुट दिखी, यदि किसी का बगावत करने का ख्याल भी रहा होगा तो वह पूरा नहीं हो सका। इधर कोरम के अभाव में सभा आधे घंटे स्थगित की गई। भाजपा के सभी 19 पार्षद मौजूद थे, पर कोरम पूरा करने के लिए कुल 33 की जरूरत थी। सभा निरस्त कर दी गई। भाजपा पार्षदों ने सभा की नई तिथि तय करने की मांग की, पर कलेक्टर ने नियमों का हवाला देते हुए इससे मना कर दिया। सामान्य सभा के लिए जो समय तय किया था, उस वक्त जगदलपुर से सारे कांग्रेस पार्षद राजधानी रायपुर के लिए निकल चुके थे। यहां उन्होंने सीएम से मुलाकात की।
राष्ट्रपति के लिए नए प्रोटोकॉल
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पहले छत्तीसगढ़ दौरे पर किए गए कुछ इंतजाम अभूतपूर्व हैं। कोविड महामारी का दूर-दूर तक असर नहीं है लेकिन ऐहतियात बरतने के लिए उनके आसपास जो भी पहुंचेगा उनका आरटीपीसीआर टेस्ट जरूरी है। बिलासपुर में वे महामाया रतनपुर का दर्शन करेंगी और गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होंगीं। जैसी की जानकारी मिली है कि जिला और पुलिस प्रशासन के अधिकारी, विश्वविद्यालय में स्वागत करने वाले विजिटर और कुलपति सहित प्राध्यापक का आरटीपीसीआर टेस्ट कराया गया है। इसके अलावा जिन विद्यार्थियों को पदक और डिग्री दी जानी है, उनकी भी आरटीपीसीआर टेस्ट को जरूरी किया गया है। ऐहतियात बरतने में बुराई क्या है, पर ध्यान देने की बात है कि वीवीआईपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास पर प्रोटोकॉल में यह शामिल नहीं था।
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में इसके पहले राष्ट्रपति रहते हुए ज्ञानी जैल सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम और रामनाथ कोविंद आ चुके हैं। मीडिया के लिए जगह निर्धारित थी, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधि आमंत्रित किए जाते थे। इस बार स्थानीय मीडिया को आमंत्रण नहीं है। राष्ट्रपति का करवेज करने के लिए पीआईबी, आकाशवाणी, दूरदर्शन, पीटीआई, यूएनआई और एएनआई को ही बुलाया गया है। इनकी भी संख्या सीमित रखी गई है। कैमरामैन या वीडियो जर्नलिस्ट को प्राथमिकता दी गई है। बाकी के लिए दर्शक दीर्घा में भी जगह नहीं है।
कोविंद के कार्यक्रम में अतिथि के रूप में स्थानीय सांसद, विधायकों का नाम शामिल था। वे मंच पर भी पीछे की ओर बैठे थे लेकिन इस बार राष्ट्रपति के अलावा केवल दो नाम हैं- राज्यपाल और मुख्यमंत्री।
राष्ट्रपति के कार्यक्रम में वैसे भी अखबार और टीवी चैनल के रिपोर्टरों को कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं मिलती। पर स्थानीय मीडिया को पहली बार बाहर रखने की वजह लोग तलाश रहे हैं। लोगों को याद आ रहा है कि बीते 9 मई को ओडिशा के श्रीराम चंद्र भंजदेव विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पूरे 9 मिनट बिजली बंद हो गई थी। सभागार में अंधेरा छा गया। उस वक्त राष्ट्रपति का भाषण चल रहा था। उन्होंने बोलना जारी रखा। जांच कमेटी बैठी और कुछ लोग निलंबित भी किए गए।
ड्रेस कोड का फैसला वापस
अमरकंटक के नर्मदा मंदिर ट्रस्ट ने दर्शन के लिए पहुंचने वाली पुरुषों, महिलाओं और युवतियो के पहनावे को लेकर नोटिस निकाली। इसमें कहा गया कि छोटे वस्त्र, हाफ पेंट, बरमुड़ा, नाइट सूट, मिनी स्कर्ट, कटी-फटी जीन्स आदि अभद्र कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश बंद है। खास तौर पर महिलाओं का जिक्र किया गया कि आदर्श कपड़े, जैसे साड़ी सलवार सूट पहनकर आएं। पर यह नियम सिर्फ 24 घंटे लागू रहा। अगले दिन वापस ले लिया गया। पोस्टर उतार लिए गए। मंदिर ट्रस्ट ने निर्देश वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया है।
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गुरु की न दोस्ती भली, न दुश्मनी
सरकार के एक मंत्री की समाज विशेष के गुरु से अच्छी छन रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव में गुरुजी ने मंत्री जी के लिए प्रचार भी किया था। मगर अब दोनों के रिश्तों में खटास आ गई है। गुरुजी ने रास्ते बदल दिए हैं, और अब मंत्री जी को हराने की मुहिम में जुट गए हैं।
बताते हैं कि दोनों के बीच दूरियां उस वक्त बढ़़ गई, जब गुरुजी ने अपने बेटे के लिए पसंदीदा सीट मांगी। और मंत्री जी को इसके लिए मदद करने कहा। मंत्री जी चुनाव समिति में भी हैं। उन्होंने प्रदेश प्रभारी तक गुरुजी की भावनाओं को पहुंचा दिया। प्रदेश प्रभारी ने वर्तमान एमएलए की टिकट काटकर गुरुजी के बेटे को टिकट देने से मना कर दिया।
चर्चा है कि गुरुजी से कोई दूसरी सीट छांटने के लिए कहा गया, तो वो नाराज हो गए। अब गुरुजी का गुस्सा मंत्री जी पर निकल रहा है। गुरुजी के बेटे ने मंत्री जी के विधानसभा क्षेत्र में अपने समाज के लोगों की बैठक लेना शुरू कर दिया है, और मंत्री जी को हराने की अपील कर रहे हैं। गुरुजी की अपील का क्या असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा। मगर अभी तो उन्होंने मंत्री जी के लिए परेशानी बढ़ा दी है।
एक उम्मीदवार, कई बागी?
भाजपा में डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के खिलाफ अंबिकापुर से टिकट के दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो कि सिंहदेव से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। यही नहीं, दावेदारों के बीच आपस में तनातनी शुरू हो गई। पिछले दिनों टिकट की चर्चा के बीच पार्टी के एक नेता ने तो जिले के प्रभारी का कालर भी पकड़ लिया था।
प्रभारी पर यह आरोप है कि वो व्यक्ति विशेष के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। यह भी कहा गया कि जिला प्रभारी, व्यक्ति विशेष के आतिथ्य सत्कार में ही रहते हैं। वहां मौजूद नेताओं ने किसी तरह दोनों को अलग किया, लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ। चर्चा है कि प्रत्याशी की घोषणा के बाद कई नेता बागी तेवर दिखा सकते हैं।
रेवड़ी तो भई यहां बंट रही है...
भरतपुर-सोनहत के विधायक गुलाब कमरो ने स्वेच्छानुदान मद से अपने ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी के नाम पर 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता स्वीकृत कराई है। अपने ड्राइवर के नाम 50 हजार रुपये और मीडिया प्रभारी के नाम 20 हजार रुपये। यह सब जानकारी एक आरटीआई से मिली है। कमरो वही कांग्रेस नेता हैं जिन्होंने सन् 2018 के चुनाव में स्वेच्छानुदान राशि के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए तत्कालीन विधायक चंपा देवी पावले के खिलाफ पर्चा बंटवाया था।
20-22 महीने पहले मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल ने पत्रकारों को दीपावली मिलन के लिए बुलाया और जाते-जाते सबको लिफाफा थमा दिया। एक पत्रकार रविकांत सिंह ने जब देखा कि लिफाफे में उनके नाम से 5 हजार रुपये का चेक है, तो उन्होंने कलेक्टर को पत्र लिखकर चेक लौटा दिया। उन्होंने लिखा न मुझे अनुदान की जरूरत है और न ही मैंने इसकी मांग की थी। खबर नेशनल मीडिया में भी आई। डॉ. जायसवाल ने अपने एक प्रतिनिधि को पढ़ाई के नाम पर भी 20 हजार रुपये का चेक जारी कर दिया, जबकि वह कहीं कोई पढ़ाई नहीं कर रही थी। एक एल्डरमेन को भी 10 हजार रुपये की आर्थिक मदद की, जिसके पति रेलवे कर्मचारी हैं।
दो साल पहले डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू का मामला चर्चा में था। उन्होंने अपनी ही पत्नी जयश्री साहू को 5 लाख रुपये की सहायता की। दावा यह था कि यह रकम उनकी संस्था के नाम पर है, पर चेक पत्नी के नाम पर जारी हुआ, संस्था के नहीं। इसके अलावा 30-35 एकड़ जमीन के मालिक को भी आर्थिक सहायता दी। भाजपा ने उस सूची में शामिल 18 नामों को देखकर बताया कि इनमें 17 कांग्रेस कार्यकर्ता हैं। भाजपा ने विधायक का पुतला भी फूंका।
भाजपा के शासनकाल में गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने सन् 2014 में 161 लोगों को 17.50 लाख रुपये बांटे। आरोप था कि कोई भी जरूरतमंद नहीं था। सबके आवेदन फर्जी थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से शिकायत की गई। कांग्रेस ने भी पैकरा के इस्तीफे के लिए दबाव बनाया। डॉ. सिंह ने कोई कार्रवाई नहीं की तो जानकारी निकालने वाले आरटीआई कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट ने मामला लोक आयोग को जांच के लिए भेज दिया। लोक आयोग ने क्या किया, अब तक सामने नहीं आया है।
कांग्रेस सरकार बनते ही सन् 2019 में विधायक निधि की राशि एक करोड़ रुपये से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दी गई। पर यह शर्त लगा दी गई कि इसमें से 50 लाख रुपये मंत्री की अनुशंसा पर खर्च होंगे। मुख्यमंत्री के पास 40 करोड़ रुपये होते हैं, जुलाई 2022 में केबिनेट की बैठक में इसे 70 करोड़ रुपये सालाना कर दिया गया। जिस तरह से विधायक अनुशंसा कर इस राशि का अपने लोगों के बीच बंदरबांट कर रहे हैं, यह जाहिर है कि उनके भेजे गए आवेदनों का परीक्षण नहीं होता, या जानबूझकर आंख मूंद कर उनकी सिफारिश स्वीकार कर ली जाती है। विधायक कमरो ने यह कहकर पल्ला झाड़ा है कि हम तो जो आवेदन आते हैं, उसे सीएम या मंत्रियों के पास भेज देते हैं, राशि वहीं से मंजूर होती है। हमारे हाथ में तो सिर्फ जनसंपर्क निधि है, स्वेच्छानुदान नहीं।
हर एक राज्य में सत्ता के साथ यह मजबूरी दिखाई देती है। कैग ने बार-बार पाया है कि सांसद विधायकों के फंड का भारी दुरुपयोग हो रहा है। कुछ सांसदों का स्टिंग ऑपरेशन करके भी दावा किया गया था कि वे सांसद निधि की स्वीकृति में भारी कमीशन लेते हैं। सन् 2009 में प्रशासनिक सुधार आयोग ने अनुशंसा की थी, यह राशि बंद होनी चाहिए। पर संसद ने इस प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया। सांसद विकास निधि की शुरूआत सन् 1993 में पीवी नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में हुई थी। उसके बाद राज्यों ने भी विधायक निधि शुरू कर दिए। इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। हाल ही में मध्यप्रदेश ने विधायक की स्वेच्छानुदान राशि 50 लाख रुपये से बढ़ाकर 75 लाख रुपये कर दी है।
दुभाषिए की जरूरत नहीं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू छत्तीसगढ़ के अपने पहले प्रवास पर कल आ रहीं है। ओडि़शा मूल की महामहिम से निकटता बढ़ाने , प्रदर्शित करने राज्य प्रशासन के कई ओडिशा मूल के अफसर कई यत्न कर रहे हैं। ये अपने साथ साथ पत्नियों के लिए भी अवसर तलाश रहे हैं कि शहर के एक दो कार्यक्रम में से कहीं राष्ट्रपति के सान्निध्य मिल जाए। जानी मानी ओडिसी नृत्यांगना पूर्णाश्री राउत को दुभाषिए के तौर पर राष्ट्रपति के घासीदास संग्रहालय विजिट के लिए नामजद किया गया। श्रीमती राउत का पुरातत्व से कोई संबंध नहीं है वह संस्कृति विभाग की अधिकारी हैं। पुरातत्व विभाग में चर्चा है कि प्रेसिडेंट विजिट के लिए ड्यूटी अफसरों में संग्रहालय के प्रभारी और वरिष्ठ अफसर जे आर भगत को शामिल नहीं किया गया है। ड्यूटी चार्ट बनाने वालों ने ओडिया भाषी होने का तो ख्याल रखा लेकिन प्रेसिडेंट के आदिवासी होने का ख्याल नहीं आया। सो भगत का नाम कट गया। अब राष्ट्रपति भवन ने सूचना भेज दी है कि महामहिम हिंदी न केवल समझती हैं बल्कि अच्छे से बोल लेती हैं ,इसलिए दुभाषिए की जरूरत नहीं । अब म्यूजियम परिसर में चर्चा है कि रायसीना हिल्स को भी तो यहां संस्कृति विभाग में चल रहे खेल की भनक तो नहीं लग गई।
सिलेंडर जब सस्ता हुआ...
घरेलू गैस सिलेंडर के दाम में 200 रुपये की कमी करने की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। एक वायरल वीडियो में गाय काफी देर तक सिलेंडर को लुढक़ाकर सडक़ पर खेल रही है। टिप्पणी की गई है कि गौमाता सिलेंडर सस्ता होने पर खुशी जाहिर कर रही है।
लौट के छाबड़ा घर को आए
पुलिस प्रशासन में सोमवार को अहम फेरबदल हुआ। आईजी डॉ. आनंद छाबड़ा को बिलासपुर रेंज से हटाकर वापस रायपुर लाया गया है, और उन्हें इंटेलिजेंस का प्रभार दिया गया है। उनकी 9 महीने बाद इंटेलिजेंस में वापसी हुई है। उन्हें दुर्ग से बिलासपुर भेजे महीनेभर ही हुए थे कि उनकी जगह अजय यादव की पोस्टिंग कर दी गई, जो कि इंटेलिजेंस का प्रभार संभाल रहे थे।
विधानसभा चुनाव के लिहाज से आनंद छाबड़ा की इंटेलिजेंस में वापसी को अहम मानी जा रही है। वजह यह है कि छाबड़ा को सीएम भूपेश बघेल का बरसों का भरोसा हासिल है। वो तीन साल इंटेलिजेंस के प्रभार पर थे।
बताते हैं कि भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल ने चुनाव आयोग से मिलकर आनंद छाबड़ा की नामजद शिकायत की थी। छाबड़ा पर नगरीय निकाय चुनाव के दौरान पक्षपातपूर्ण कार्यशैली के आरोप लगाए गए थे। इस सिलसिले में कुछ साक्ष्य भी सौंपे गए। इन शिकायतों में कितना दम है, यह तो पता नहीं। लेकिन दावा किया जा रहा है कि आयोग ने इसको संज्ञान में लिया है। अब जब छाबड़ा फील्ड से हट गए हैं, तो उनके खिलाफ शिकायतें भी बेमानी हो गई है।
एक गुजराती, एक सिंधी
भाजपा में टिकट के लिए सामाजिक संगठनों ने दबाव बनाया है। गुजराती समाज के प्रतिनिधि मंडल ने रमेश मोदी की अगुवाई में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया से मुलाकात की। प्रतिनिधि मंडल ने एकमात्र देवजी पटेल के लिए टिकट मांगी है। देवजी को रायपुर उत्तर, अथवा धरसींवा से प्रत्याशी बनाने की मांग की है। मंडाविया ने कह भी दिया कि उनकी प्रत्याशी चयन में कोई भूमिका नहीं है। अलबत्ता, समाज की बात प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर तक पहुंचाने का भरोसा दिया है।
इसी तरह सिंधी समाज के नेता पहले पांच टिकट मांग रहे थे, लेकिन बाद में दो टिकट पर जोर देने लगे। अब हल्ला है कि एकमात्र रायपुर उत्तर से टिकट की दावेदारी रह गई है। रायपुर उत्तर से सिंधी समाज से कई नए दावेदार भी उभरकर सामने आए हैं। पहले एकमात्र श्रीचंद सुंदरानी ही दावेदार थे। लेकिन अब शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल के बेटे उदय शदाणी ने भी दावेदारी ठोक दी है। यही नहीं, पुराने बिल्डर दिवंगत कन्हैया लाल छुगानी के बेटे सतीश छुगानी, और सिंधी काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष ललित जैसिंघ के लिए दिग्गज नेताओं की सिफारिशें पहुंच गई हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों की सोच है कि रायपुर उत्तर में सिंधी समाज के वोट तो काफी हैं, लेकिन पोलिंग कम करते हैं। ऐसे में क्यों न दूसरे समाज के मजबूत दावेदारों के नाम पर विचार किया जाए। इन सबके बीच संजय श्रीवास्तव का नाम मजबूती से उभरा है। चर्चा है पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के अलावा नितिन नबीन भी उनके लिए सहमत हैं। ऐसे में सिंधी समाज के दावेदारों में रस्साकशी को देखकर पार्टी अन्य विकल्पों पर फैसला लेती है, तो आश्चर्य नहीं होगा।
लाठी चार्ज को भूल गई कांग्रेस
सन् 2018 के चुनाव के पहले एक बड़ी घटना हो गई थी, जिसने कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया। बिलासपुर के कांग्रेस भवन में घुसकर पुलिस ने लाठी चार्ज किया था और दर्जनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटा था। इस घटना के पहले कांग्रेसियों ने तत्कालीन मंत्री अमर अग्रवाल के घर के सामने कचरा फेंक दिया था। कथित रूप से उन्होंने कांग्रेस को कचरा कह दिया था। आरोप था कि उनके इशारे पर ही मारपीट की गई। उस समय यहां पुलिस अधीक्षक आरिफ शेख थे, लेकिन कांग्रेसियों पर लाठी चलाने में तत्कालीन डीएसपी नीरज चंद्राकर की मौजूदगी सामने आई थी। बात इतनी गंभीर हो गई तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने हालचाल पूछा। प्रदेश के तमाम नेता कांग्रेसजनों से मिलने आए। कुछ लोग अस्पताल में भर्ती भी हो गए थे। इस मुद्दे ने चुनाव अभियान के पोस्टर में भी जगह पाई। कांग्रेस को सहानुभूति हासिल हुई। कई दावेदार इसी आधार पर टिकट की मांग कर रहे थे कि उन्होंने कांग्रेस के लिए लाठी खाई।
उस दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अंबिकापुर में थे। उन्होंने वहीं से आदेश दिया, कलेक्टर ने दंडाधिकारी जांच तय कर दी जिसे 3 माह के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी। घटना 18 सितंबर 2018 की है। कुछ दिन में इस मामले को पांच साल पूरे हो जाएंगे। कांग्रेस की सरकार बन गई, कार्यकाल लगभग पूरा होने वाला है पर अब तक न जांच पूरी हुई है और न ही किसी पुलिस अधिकारी कर्मचारी पर अब तक कोई कार्रवाई हुई। अलबत्ता चंद्राकर और दूसरे पुलिस अधिकारी समय के साथ प्रमोशन पाते गए। कुछ तो सेवानिवृत्त भी हो गए।
अब कांग्रेस के उपेक्षित तथा सत्ता पक्ष से नाराज चल रहे पूर्व विधायक अरूण तिवारी ने इस मुद्दे को फिर सुलगा दिया है। उन्होंने एक पत्रकार वार्ता लेकर घोषणा की है कि कार्रवाई नहीं होने पर वे इस मुद्दे को दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेताओं तक पहुंचाएंगे। रायपुर में राजीव भवन के सामने 18 सितंबर को अनशन पर भी बैठेंगे।
स्थिति यह है कि कांग्रेस नेता भाजपा शासनकाल में बार-बार किए गए अपने आंदोलनों और जेल जाने की घटनाओं का जिक्र तो करते हैं लेकिन लाठी चार्ज मामले में कार्रवाई की चर्चा से बचते हैं। उल्टे उन पर भाजपा तंज कसती रहती है।
लाठी खाने वाले कुछ नेताओं को निगम, मंडल, प्राधिकरण, आयोग आदि में जगह दी जा चुकी है। इसे मरहम के रूप में देखा जा सकता है। पर अफसरों पर कार्रवाई से बचने को एक प्रशासनिक फैसला कहा जाता है। इस थ्योरी के मुताबिक पुलिस ने जो किया वह अपने मन से नहीं, उस समय की सत्ता के निर्देश पर किया, उनकी मजबूरी थी। हमें भी तो उनसे ऐसे काम कराने पड़ते हैं। इसलिए उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए।
इन दो विधायकों का ऐसा विरोध
कांग्रेस के किन विधायकों को टिकट नहीं मिलेगी यह तो सूची जारी होने लगेगी तभी पता चलेगा, पर जिनकी टिकट संकट में है, उनके नाम जनता के सामने आने लग गए हैं। स्व. अजीत जोगी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी की गैर मौजूदगी में मरवाही सीट के डॉ. के के ध्रुव ने भाजपा को 38 हजार मतों के बड़े फासले से हराया था। पर ढाई तीन साल में ही स्थिति बदल गई है। यहां से टिकट का आवेदन करने वालों की संख्या 26 है। इनमें से कुछ प्रमुख दावेदारों ने जिला कांग्रेस अध्यक्ष उत्तम वासुदेव के माध्यम से प्रदेश संगठन को पत्र दिया है कि हममें से किसी को टिकट दे दी जाए पर मौजूदा विधायक को न दें। इनके चलते मरवाही नेतृत्वविहीन हो गया है, स्थानीय विधायक चाहिए। यह मांग उठाने वाले ये 4-5 दावेदार सभी 26 का प्रतिनिधित्व करते हैं या नहीं यह तो कहा नहीं जा सकता पर इतना तय है कि कांग्रेस के चुनाव अभियान में पिछली बार इनकी सक्रियता थी। इनके समर्थन के बिना विधायक चुनाव अभियान नहीं चला सकते। डॉ. ध्रुव करीब 20 साल तक यहां सरकारी चिकित्सक रहे, पर यह याद दिलाया जा रहा है कि वे मूलत: भाटापारा के रहने वाले हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति सामरी विधानसभा की बन गई है। यहां टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के बाद रखे गए स्वागत के कार्यक्रम में तमाम नेता पहुंचे पर विधायक चिंतामणि महाराज को नहीं बुलाया गया। इन्होंने मंच से मांग की कि यहां हममें से 35 लोगों ने टिकट का दावा किया है, इनमें से किसी को भी दे दो चिंतामणि महराज को मत दीजिए। हमारा एक काम नहीं हुआ, जो हुआ भाजपाईयों का हुआ। सिंहदेव ने अपने भाषण के दौरान तीन चीजें याद दिलाई कि वे ‘दोनों दरवाजों’ में दिखाई देते हैं। गहिरा गुरु के पुत्र होने के कारण उन्हें भाजपा से कांग्रेस में शामिल किया और सन् 2018 में पांच साल लुंड्रा विधायक रहने के दौरान उनका विरोध था, इसलिए सामरी से टिकट दिलाई।
अभी टिकट वितरण का सिलसिला शुरू नहीं हुआ है। स्थिति आगे साफ होगी कि इस तरह के ऐलान के साथ विरोध का इन विधायकों की दावेदारी पर क्या असर पड़ेगा।
6वीं शताब्दी की बौद्ध प्रतिमा
कोंडागांव जिले में भोंगापाल पंचायत से दो किलोमीटर दूरी पर लतुरा नदी के पास इस बौद्ध प्रतिमा के अलावा एक चैत्य गृह भी है। एक प्राचीन हिंदू मंदिर भी मिला है। अनुमान लगाया जाता है कि यह 6वीं शताब्दी में नल वंश के नरेशों ने बनवाया। इसे बस्तर संभाग का एकमात्र चैत्य गृह भी बताया जाता है। और भी कई टीले तथा दर्शनीय स्थल आसपास हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे संरक्षित तो किया है लेकिन देखभाल का अभाव है। यहां पहुंचने वाले सैलानियों का कहना है कि यहां सुलभ रास्ते सहित पर्यटन की सुविधाएं बढ़ाई जाएं तो यह बस्तर के सिरपुर में गिना जाएगा।
अब माताएं भी राज करेंगी !
प्रदेश की दो महिला आईएएस अफसर की मां भी विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छुक हैं। उन्होंने बकायदा टिकट के लिए आवेदन भी दे दिया है। खास बात यह है कि दोनों महिला अफसरों की मां कांग्रेस से ही टिकट चाहती हैं।
बताते हैं कि जेल में बंद आईएएस रानू साहू की मां लक्ष्मी साहू राजिम सीट से चुनाव लडऩा चाहती हैं। लक्ष्मी अभी जिला पंचायत की सदस्य हैं। ये सीट अभी कांग्रेस के पास है, और मौजूदा दिग्गज विधायक अमितेश शुक्ला पिछला चुनाव 57 हजार वोटों के अंतर से जीते थे। ऐसे में उनकी टिकट काटकर किसी दूसरे के नाम पर विचार होगा, इसकी उम्मीद बेहद कम है, लेकिन लक्ष्मी ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, और उन्होंने ब्लॉक कांग्रेस कमेटी को टिकट के आवेदन दे दिया है।
इसी तरह आईएएस की वर्ष-2016 बैच की अफसर तूलिका प्रजापति की मां हेमवंती प्रजापति भी सरगुजा की एक सीट से विधानसभा टिकट की दावेदारी कर रही हैं। हेमवंती के पति दिवंगत प्रवीण प्रजापति 90 के दशक में राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। प्रवीण दिवंगत केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के करीबी रहे हैं। वो सरगुजा में रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए काफी मुखर भी थे। टिकट मिलेगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन दोनों महिला अफसरों की माताओं की सक्रियता की खूब चर्चा हो रही है।
किसकी कटेगी टिकटें
भाजपा में टिकट के लिए स्थानीय प्रमुख नेताओं ने जो फार्मूला बनाया है, उसके मुताबिक टिकट बंटती है, तो कई दिग्गज नेताओं को चुनाव लडऩेे से वंचित रहना पड़ सकता है। चर्चा है कि प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर, और दोनों महामंत्री अजय जामवाल व पवन साय ने मिलकर तय किया है कि पिछले चुनाव में 20 हजार से अधिक वोटों से हारने वालों को टिकट न दी जाए। उनकी जगह नए प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा।
कहा जा रहा है कि फार्मूला मान्य हुआ, तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, पूर्व संसदीय सचिव लाभचंद बाफना समेत कई की टिकट कट सकती है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा इसी फार्मूले के चलते प्रतापपुर सीट से प्रत्याशी बनने से रह गए। उनकी जगह महिला मोर्चे की पदाधिकारी को प्रत्याशी बनाया गया है।
हालांकि पार्टी कई बार छूट भी देती रही है। मसलन, सक्ती से वर्ष-2013 के चुनाव में खिलावन साहू को प्रत्याशी बनाया था, जो कि सरपंच का भी चुनाव हारे थे। लेकिन खिलावन विधानसभा का चुनाव जीत गए। मगर इस बार माथुर के फार्मूले को केंद्रीय चुनाव समिति कितना महत्व देती है, यह देखना है।
एक बड़े बागी की तैयारी
चर्चा है कि भाजपा में रायपुर लोकसभा क्षेत्र की एक विधानसभा सीट से टिकट के प्रमुख दावेदार को प्रत्याशी नहीं बनाया जा रहा है। दावेदार ने पिछले तीन सालों में पार्टी कार्यक्रमों के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। मगर उनका नाम संबंधित सीट से दावेदारों के पैनल में नहीं रखा गया है। इस बात की भनक लगते ही दावेदार ने पार्टी छोडऩे का मन बना लिया है। टिकट की घोषणा के साथ ही वो पार्टी छोडक़र किसी अन्य पार्टी अथवा निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर देंगे।
शिकायत हुई तो चावल पास
नागरिक आपूर्ति निगम में 36 हजार करोड रुपए के करीब कथित चावल घोटाले की जांच अब तक मुकाम पर नहीं पहुंची है लेकिन गड़बड़ झाला कभी खत्म नहीं हुआ। हाल ही में सरगुजा जिले में दिलचस्प मामला देखा गया। नान के अफसरों ने कुछ मिलरों का 2300 क्विंटल चावल घटिया बताया और लेने से मना कर दिया। नाराज राइस मिल संचालकों ने मुख्यमंत्री और प्रबंध संचालक को शिकायत की। इसमें कहा गया कि नान के डीएमओ अच्छी क्वालिटी के चावल को भी घटिया बताकर लेने से मना करते हैं। एक लॉट जिसमें 290 क्विंटल चावल होता है, के पीछे नान के अधिकारी कर्मचारी पांच पांच हजार रुपए रिश्वत मांगते हैं। शिकायत का पता चलने पर नान के अधिकारी कर्मचारियों ने भी प्रबंध संचालक से जवाबी शिकायत की। उन्होंने एक मिलर के बारे में कहा कि वह डरा धमका कर घटिया चावल जमा करने के लिए दबाव डालते हैं और एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत करने की धमकी देते हैं। ऐसे में वे मानसिक रूप से परेशान हैं। एक दूसरे के खिलाफ हुई शिकायत किसी अंजाम तक पहुंचती इसके पहले ही दोनों पक्षों में सुलह हो गई। अब चावल बिना किसी शिकायत के जमा किया जा रहा है। मिलर तथा नान के अधिकारी कर्मचारियों ने अपनी-अपनी शिकायत वापस ले ली है। भीतर की खबर यह बताई जा रही है कि दोनों ही पक्षों को लग रहा था की जांच होने से बेकार की एक दूसरे के सामने मुसीबत खड़ी हो जाएगी, इसलिए समझौता कर लेने में ही समझदारी है।
गाड़ी घुमाकर बजाया बैंड
कार कंपनी हुंडई के शो रूम के सामने का नजारा देखकर अंबिकापुर के लोग बीते दिनों हैरान हो गए। कार के मालिक ने गाड़ी को जूते की माला पहनाई। कार पर लिखा, नगर निगम की कचरा ढोने वाली गाड़ी। फिर बैंड बाजे के साथ गाड़ी को शहर में घुमाया भी गया। कार मलिक का कहना है कि वह अपनी कार सर्विसिंग के लिए लेकर आए थे लेकिन उसे एक लाख रुपए का खर्च बताया जा रहा है। दूसरी तरफ शोरूम के मैनेजर का कहना है कि कार हमारे यहां से नहीं खरीदी गई थी पर कंपनी के रूल के अनुसार हमने सर्विसिंग करके दे दी थी। अब वारंटी खत्म हो जाने के बाद फ्री रिपेयरिंग या सर्विसिंग कैसे की जा सकती है?
स्टंट करने वालों को पहचानें
बाइक पर स्टंट करने वालों की पहचान का सीधा तरीका यह निकलता है कि सीसीटीवी कैमरे खंगाल कर गाड़ी का नंबर लें और आरोपी को पकड़ लें। नया रायपुर की चौड़ी, दुरुस्त सडक़ पर ट्रैफिक दबाव कुछ कम है। तेज रफ्तार गाडिय़ों से कई बार यहां भीषण दुर्घटना हो चुकी है। यह तस्वीर इसी सडक़ से ली गई है। दो बाइक चालक स्पीड के साथ बाकी राहगीरों को दहशत में डालते हुए गाड़ी लहराते हुए ओवरटेक कर रहे हैं। अपनी पहचान छुपाने के लिए इंतजाम भी इन लोगों ने कर रखा है। नंबर प्लेट गायब है और हेलमेट भी पहनी। हेलमेट को सुरक्षा के इरादे से पहना होता तो वे शायद स्पीड लिमिट का ध्यान रखते।
बृजमोहन के निशाने पर IAS-IPS
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में भाजपा की एक टीम चुनाव आयोग से मिली, तो सरकार के करीबी आईएएस-आईपीएस अफसर निशाने पर रहे। इस मौके पर कई दस्तावेज भी सौंपे गए, जिसे देखकर सीईसी राजीव कुमार गंभीर नजर आए।
भाजपा के चुनाव आयोग संपर्क का संयोजक सांसद सुनील सोनी को बनाया गया है, लेकिन ज्यादातर समय वो खामोश रहे। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने बृजमोहन को साथ जाने के लिए कहा था। भाजपा नेताओं को अपनी बात रखने के लिए पौन घंटे का समय दिया गया था। इसमें भाजपा के कार्यालय मंत्री नरेश चंद्र गुप्ता करीब 30 मिनट अकेले अपनी बातें रखी।
गुप्ता राज्य गठन से पहले से ही चुनाव आयोग संपर्क सेल संभालते रहे हैं। स्वाभाविक है कि गुप्ता के पास तथ्यात्मक जानकारी थी, और उन्होंने आयोग को दस्तावेज दिए हैं। खास बात यह है कि जिन बिंदुओं को चुनाव आयोग के समक्ष उठाया गया था। उनकी ज्यादा जानकारी प्रेस रिलीज में मीडिया को नहीं दी गई। बताते हैं कि नरेश गुप्ता ने आयोग को चुनाव फंड जुटाने के लिए अफसरों के इस्तेमाल का ब्यौरा भी दिया।
उन्होंने प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का जिक्र करते हुए आयोग को बताया कि डॉ. शुक्ला के खिलाफ नान घोटाले में चार्ज फ्रेम होने के बाद पहले तीन साल, और फिर दोबारा एक साल के लिए संविदा नियुक्ति दी गई। उन्होंने आशंका जताई कि स्कूल शिक्षा विभाग, और अन्य जगहों से फंड जुटाने के लिए शुक्ला जैसों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गुप्ता ने बताया कि डीएमएफ से सबसे ज्यादा खरीदी स्कूल शिक्षा विभाग में हुई है। ईडी, डीएमएफ की जांच कर रही है।
नरेश गुप्ता ने उन आईएएस-आईपीएस अफसरों की सूची भी सौंपी। जिनके खिलाफ ईडी जांच कर रही है, और चार्जशीट में उनका जिक्र आया है। बावजूद इसके वो प्रभावी बने हुए हैं। दावा किया जा रहा है कि आयोग ने तमाम शिकायतों को गंभीरता से लिया है। देखना है आयोग आगे क्या कुछ करती है।
अकेले नाम आए, फिर जोड़े गए
भाजपा में शनिवार को विधानसभा प्रत्याशी चयन के लिए काफी माथापच्ची हुई। बाकी 69 सीटों के लिए पैनल तैयार करने सभी जगहों पर पर्यवेक्षक भेजे गए। पर्यवेक्षकों ने जिले की कोर कमेटी के सदस्यों से चर्चा कर पैनल भी तैयार कर लिए, और प्रदेश कार्यालय को सौंप दिए।
ये सब एक ही दिन में हुआ। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, नारायण चंदेल, धरमलाल कौशिक, और अजय चंद्राकर की सीट से यहां कोई दूसरा नाम लेने के लिए तैयार नहीं था। पर्यवेक्षकों को हिदायत दी गई थी कि कम से कम तीन नाम लेकर आए। ऐसे में कुछ जगहों पर दिग्गजों से पूछकर उनकी पसंद पर दो और नाम जोड़े गए।
यह सब इसलिए हुआ कि पहली लिस्ट जारी होने के बाद से पार्टी के अंदरखाने में काफी विवाद हो रहा है। स्थानीय नेताओं की शिकायत है कि कार्यकर्ताओं की रायशुमारी के बिना ही प्रत्याशी थोप दिए गए। अब इस तरह की आलोचनाओं से बचने के लिए कोर कमेटी के सदस्यों से राय लेकर पैनल बनाने की औपचारिकता पूरी की गई। अब पैनल में से प्रत्याशी तय किए जाएंगे, यह जरूरी नहीं है। प्रदेश भाजपा संगठन के एक बड़े नेता ने साफ तौर पर कह दिया कि सर्वे रिपोर्ट में उपयुक्त पाए जाने पर ही टिकट मिलेगी। दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी कांग्रेस में थे तब वो कहा करते थे कि जिनके भाग्य में होगा, उसे ही टिकट मिलेगी। यह बात अब भाजपा में भी लागू होते दिख रही है।
इसकी सजा किसे मिलनी चाहिए?
सरगुजा जिले के भैयाथान के सरकारी पं. रविशंकर त्रिपाठी महाविद्यालय के बीए प्रथम वर्ष में कुल 77 छात्र थे। इनमें से 70 फेल हो गए। एक पास हो पाया, बाकी 6 को पूरक मिला है। ऐसे नतीजे की वजह यह मालूम हुई कि यहां के प्राचार्य कॉलेज आते ही नहीं। उनको दो और कॉलेजों का प्रभारी प्राचार्य बनाया गया है। उनके गायब होने चलते शिक्षक भी अपनी मर्जी के अनुसार आते-जाते हैं। किसी भी विषय में कोर्स पूरा ही नहीं हुआ। कुछ विषयों में तो पढ़ाई शुरू ही नहीं हुई। इन शिक्षकों में अधिकांश अतिथि शिक्षक हैं, जिनको हर दिन के हिसाब से वेतन मिलता है। वे आते भी हैं तो क्लास रूम में नहीं जाते। अनुशासन का पाठ विद्यार्थियों को सिखाया जाता है, पर यहां तो इसकी जरूरत शिक्षकों में महसूस हो रही है।
67 की उम्र में स्नातक पास
फिल्मी दुनिया के मशहूर कपूर खानदान के बारे में कहा जाता है कि उनके परिवार से किसी ने ग्रेजुएट पास नहीं किया। स्व. राजकपूर के रहते तक तो यही बात प्रचलित थी। अब उनके नाती-परपोते ग्रेजुएट हो गए हों तो अलग बात है। इधर, बीते दिनों शम्मी कपूर के बेटे आदित्य कपूर ने सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय से मिली ग्रेजुएट डिग्री के साथ अपनी फोटो शेयर की है। वे अपने पढऩे के दिनों में पढ़ाई कर नहीं पाए लेकिन कसक बाकी रही। 67 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल कर ली। यह मुक्त विश्वविद्यालय की डिग्री है, जहां पहले से ही अधिक उम्र के लोगों को परीक्षा दे सकने की सहूलियत है, पर छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में नियमित छात्र के रूप में दाखिला लेने का अवसर दिया जा चुका है। मुख्यमंत्री ने बीते साल इसकी घोषणा की थी।
धान पर किसकी घोषणा बड़ी होगी?
सन् 2018 में कांग्रेस की सत्ता में लौटने की एक बड़ी वजह किसानों से किया गया वायदा था। उनकी कर्ज माफी की गई और धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपये तय किया गया। अधिक दाम देने पर केंद्र ने ऐतराज किया तो इसकी भरपाई राजीव गांधी न्याय योजना से की गई। अब एक क्विंटल के पीछे 2250 रुपये तक मिल रहा है। धान खरीदी की सीमा भी बढ़ाकर प्रति एकड़ 20 क्विंटल कर दी गई है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही घोषणा पत्र तैयार करने की प्रक्रिया तेज कर चुके हैं। सुनाई यह दे रहा है कि भाजपा किसानों का पूरा धान असीमित मात्रा में खरीदने और 3000 रुपये प्रति क्विंटल भुगतान करने की घोषणा कर सकती है। ,संयोगवश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न की मांग बढ़ी है। देश ने हाल के दिनों में गेहूं, चावल दोनों का निर्यात बढ़ाया है। केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण छत्तीसगढ़ से खरीदे जाने वाले चावल को खपाने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन मुमकिन है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो उसे अवरोध का सामना करना पड़े। कांग्रेस सरकार का आरोप रहा है कि खरीद के मुकाबले केंद्र सरकार कम चावल उठाती है। पर पिछली बार लक्ष्य का पूरा चावल लिया गया। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार अन्न भाग्य योजना लागू नहीं कर पा रही है। इसके तहत गरीबों को 5 किलो चावल मुफ्त दिया जाना है। केंद्र ने अनाज देने से मना कर दिया तो राज्य सरकार ने 34 रुपये प्रति किलो के हिसाब से अब नगद राशि देने का निर्णय लिया है। इन दोनों बातों का संबंध चावल की मांग बढऩे से है। कांग्रेस-भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी की घोषणा पर भी लोगों की निगाह है। पिछली रायपुर यात्रा में पार्टी प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 9 गारंटी दी थी, जिसमें किसानों और आदिवासियों के लिए कुछ नहीं था। उन्होंने इस पर बाद में घोषणा करने की बात कही थी। 16 सितंबर को वे जगदलपुर आ रहे हैं। बहुत संभव है कि धान पर उनकी कोई लुभावनी घोषणा हो। देखना यह है कि कांग्रेस भाजपा इसके पहले कोई ऐलान करती है या नहीं, पर मौजूदा स्थिति यही दिखाई दे रही है कि किसान और धान को लेकर घोषणाओं की बारिश होगी।
सोशल मीडिया से
रमन सिंह के सहयोगी
विधानसभा चुनाव नजदीक हैं तो पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के विश्वासपात्र अफसर, और कर्मचारी भी सक्रिय दिख रहे हैं। इनमें पूर्व संयुक्त सचिव विक्रम सिसोदिया, अरूण बिसेन, और ओपी गुप्ता प्रमुख हैं। रमन सरकार में तीनों की तूती बोलती थी।
विक्रम, रमन सिंह के सीएम बनते ही साथ आए थे। वे कस्टम्स विभाग में पदस्थ थे और प्रतिनियुक्ति पर रमन सिंह के ओएसडी बनाए गए। बाद में उन्होंने केंद्र सरकार की नौकरी छोड़़ दी, और फिर सीएम ऑफिस में संविदा पर संयुक्त सचिव के पद पर रहे।
विक्रम सिसोदिया, सीएम ऑफिस में नौकरशाह-कारोबारियों और खिलाडिय़ों के लिए पुल का काम करते रहे हैं। वो मिलनसार हैं। रमन सिंह के पद से हटने के बाद भी साथ नहीं छोड़ा। और मौलश्री विहार में पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय का बंगला किराए पर लेकर रहते हैं। यह बंगला, रमन सिंह बंगले के ठीक पीछे है।
पिछले दिनों एक टीवी चैनल में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के ओपिनियन पोल में भाजपा की स्थिति में काफी सुधार बतायी गई, तो चर्चा है कि विक्रम ने शहर के प्रतिष्ठित लोगों को ओपिनियन पोल का लिंक भेजकर यह बताने की कोशिश की, कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की वापिसी हो सकती है। इससे परे रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में सीएम ऑफिस में आए अरुण बिसेन, उनके पुत्र अभिषेक सिंह के सहपाठी हैं।
हालांकि अरुण के व्यवहार और काम को लेकर कई तरह की शिकायतें भी आई लेकिन वो रमन सिंह के विश्वासपात्र बने रहे। अरुण बिसेन शहर की पॉश कॉलोनी स्वर्णभूमि के आलीशान बंगले में रहते हैं। वो वर्तमान में पूर्व सीएम का ऑफिस संभाल रहे हैं। जबकि रमन सिंह के एक अन्य ओपी गुप्ता को गहरी राजनीतिक समझ वाला माना जाता है। विक्रम और अरुण बिसेन से परे ओपी गुप्ता स्थानीय हैं, लेकिन सेक्स स्कैंडल में फंसने के बाद उन्होंने रमन बंगले से थोड़ी दूरी बना ली है, लेकिन जरूरी पडऩे पर उनकी सेवाएं ली जाती हैं।
चर्चा तो यह भी है कि नंदकुमार साय के भाजपा छोडऩे की खबर मिलने के बाद पार्टी के बड़े नेताओं ने सबसे पहले ओपी गुप्ता से संपर्क किया था और उन्हें ही साय को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। ओपी गुप्ता, नंदकुमार साय के भी निज सचिव रह चुके हैं। ओपी गुप्ता ने अपनी तरफ से थोड़ी बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। अब ये तीनों अपनी पुरानी भूमिका में आने के लिए भरसक कोशिश भी करते दिख रहे हैं। देखना है कि वो सफल रहते हैं या नहीं।
ढेबर पैनल में है या नहीं?
कांग्रेस में विधानसभा टिकट के दावेदारों के पैनल पर विवाद खड़ा हो गया है। रायपुर की सीटों को लेकर यह खबर उड़ी कि मेयर एजाज ढेबर का नाम दक्षिण और उत्तर सीट के पैनल में नहीं रखा गया है, तो उनके समर्थक गुस्से में आ गए। एजाज ने दोनों सीटों से टिकट के लिए आवेदन किया है। गुस्से की एक और बड़ी वजह यह थी कि रायपुर दक्षिण के पैनल में सभापति प्रमोद दुबे का नाम रखा गया है, जो कि लोकसभा चुनाव में न सिर्फ बुरी तरह हारे थे बल्कि अपने मोहल्ले के बूथों से पीछे रह गए थे।
प्रमोद दुबे का नाम पैनल में पहले नंबर पर रखे जाने की खबर आई, तो बाकी दावेदारों का भड?ना स्वाभाविक था। एजाज मेयर कांफ्रेंस के सिलसिले में विदेश प्रवास पर हैं। और रायपुर शहर जिला अध्यक्ष गिरीश दुबे को सभापति प्रमोद दुबे का करीबी माना जाता है। खैर, बाद में गिरीश दुबे की तरफ से यह कहा गया कि अभी ब्लॉकों से नाम नहीं आए हैं। इसलिए पैनल तैयार नहीं किया गया। एक दो दिनों में प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। न सिर्फ रायपुर बल्कि कई और जगहों पर जिला अध्यक्ष निशाने पर हैं। दो-तीन जगहों पर तो जिला अध्यक्ष अपना ही नाम पैनल में डाल दे रहे हैं। हालांकि चुनाव समिति के सदस्यों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पैनल से परे नामों पर भी विचार किया जाएगा। इसके लिए पार्टी ने सर्वे भी कराया है। बावजूद इसके कई जिलों में विवाद थमता नहीं दिख रहा है।
विजय बघेल ने कब कांग्रेस छोड़ी?
भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं में शामिल हो चुके विजय बघेल कभी कांग्रेस में थे। वे दुर्ग जिले में युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। किस्सा यह है कि बात बिगड़ी सन् 2000 में, जब उन्होंने चरौदा नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस से टिकट मांगी। उनको भरोसा था कि तब के दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री चाचा भूपेश बघेल उनके नाम को आगे करेंगे। मगर, विजय बघेल को टिकट नहीं मिली। चाचा ने अपने चाचा (स्व.) श्यामाचरण बघेल को टिकट दिला दी। विजय बघेल मैदान पर निर्दलीय उतरे और कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशियों को हराकर बड़े अंतर से जीत गए। उन्होंने पाटन में भूपेश बघेल के खिलाफ एक बार जीत हासिल की है, सन् 2008 में। जीत का अंतर 7200 वोटों का था। सन् 2019 में उन्होंने कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को 3 लाख 90 हजार मतों के विशाल अंतर से हराया। जब यह तय माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बदलेंगे और पाटन में उनका ही सामना करना पड़ेगा, विजय बघेल निश्चिंत दिखाई दे रहे हैं। घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उनके पास है। इस सिलसिले में वे प्रदेशभर के दौरे पर हैं। आज भी वे अकलतरा में हैं।
जशपुर, गुमला में फिर नक्सली
उत्तर छत्तीसगढ़ इलाके में माओवादी हिंसा की गतिविधियों पर लगभग लगाम लग चुकी है। पीएलएफआई और पीडब्ल्यूजी ग्रुप यहां लंबे समय तक सक्रिय रहे हैं। कभी इनकी संख्या 5 हजार पहुंच चुकी थी। एक बार इनके हमले में तत्कालीन सरगुजा आईजी बीएस मरावी घायल भी हो गए थे। बाद में इसमें शामिल पांच नक्सली गिरफ्तार भी किये गए थे। ये नक्सली जशपुर, वाड्रफनगर, बलरामपुर और उससे लगे झारखंड के गुमला में आवाजाही करते थे। लंबे समय से यहां शांति बनी हुई है। पर, अब पुलिस को जानकारी मिली है कि विधानसभा चुनाव के पहले इनकी सक्रियता फिर से बढ़ रही है। सीमावर्ती गांवों में इनकी आमद रफ्त हो रही है। इसी को देखते हुए कुछ दिन पहले जशपुर कलेक्टर के कार्यालय में झारखंड के गुमला और जशपुर जिले के पुलिस अधिकारियों की बैठक भी हुई। दोनों जिलों के अधिकारियों ने संयुक्त अभियान चलाकर नक्सल गतिविधियों पर लगाम लगाने की रणनीति बनाई है।
प्रमोशन के बाद टीचर नहीं
यह पदोन्नति के बाद पदस्थापना में हुए भ्रष्टाचार की खबरों से अलग है। लोरमी ब्लॉक के साल्हेघोरी के बच्चे सडक़ पर हैं। रोजाना वे स्कूल आते हैं, मगर टीचर ही नहीं हैं। जो थे उनका पदोन्नति के बाद तबादला कर दिया गया। बदले में किसी को भेजा नहीं। एक प्रभारी प्राचार्य हैं, जो प्राचार्य होने के नाते पढ़ाने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं। पर बच्चों का कहना है कि यदि वे पढ़ाने भी लग जाएं तो कितने विषयों को पढ़ाएंगे। दो सौ बच्चे हैं। गणित, विज्ञान, हिंदी, सबके लिए अलग-अलग शिक्षक चाहिए। एसडीएम और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा। कोई नतीजा नहीं निकला तो सडक़ पर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
भाजपा में नाम बदलने की आशंका
भाजपा के सारे 21 विधानसभा प्रत्याशी दो दिन पहले पार्टी दफ्तर पहुंचे, तो कई प्रमुख नेताओं ने उन्हें प्रत्याशी बनने पर बधाई दी। बावजूद इसके प्रत्याशी सशंकित थे।
एक-दो प्रत्याशियों ने प्रदेश चुनाव प्रभारी ओम माथुर से पूछ लिया कि बाद में प्रत्याशी तो नहीं बदल दिए जाएंगे? इसकी वजह भी थी कि कई जगहों पर प्रत्याशी बदलने की मांग उठ रही है। प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सरायपाली जैसे एक-दो जगहों पर तो कई लोगों ने इस्तीफे भी दे दिए हैं। मगर माथुर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि घोषित प्रत्याशियों को किसी भी दशा में नहीं बदले जाएंगे। माथुर और नेताओं ने उन्हें प्रचार को लेकर टिप्स दिए।
आम लोगों से व्यक्तिगत मुलाकात पर जोर दिया। प्रत्याशियों ने खर्च को लेकर भी रोना रोया। उन्हें आश्वस्त किया गया कि पार्टी पूरी मदद करेगी, साथ ही बैनर-पोस्टर भी उपलब्ध कराएगी। पार्टी नेताओं ने चुनाव आचार संहिता तक सादगी से प्रचार करने की हिदायत दी है।
टेकाम के आने से अधिक सक्रिय नेताम
आखिरकार विशेष सचिव स्तर के अफसर नीलकंठ टेकाम भाजपा में शामिल हो गए। उनका केशकाल सीट से प्रत्याशी बनना भी तकरीबन तय है। टेकाम की उम्मीदवारी को भांपते हुए केशकाल के मौजूदा कांगे्रस विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष संतराम नेताम ने इस बार पहले के चुनाव के मुकाबले ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। नेताम तीसरी बार विधायकी के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखे हैं। वो हर गांव में रात गुजार रहे हैं।
बताते हैं कि कोण्डागांव कलेक्टर रहते टेकाम ने केशकाल में खूब मेहनत की थी। उन्होंने लोगों से व्यक्तिगत संपर्क बना लिया था। कुछ इलाकों में जहां टेकाम की पकड़ दिखती है, वहां संतराम नेताम ज्यादा समय गुजार रहे हैं। कुल मिलाकर संतराम नेताम अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखे हैं। ऐसे में यहां मुकाबला पिछले चुनावों से ज्यादा रोचक होने की उम्मीद है।
छत्तीसगढ़ मीडिया पर ख़ास ध्यान
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के अनुभवी राष्ट्रीय नेताओं को छत्तीसगढ़ में मीडिया प्रबंधन में लगाया है। यूपी सरकार के पूर्व मंत्री और दिवंगत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थनाथ सिंह तो मीडिया का कामकाज देखेंगे, साथ ही मीडिया विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष केके शर्मा भी चुनाव तक यहां रहेंगे।
शर्मा को बिलासपुर संभाग की जिम्मेदारी दी जा रही है। सिद्धार्थनाथ सिंह वर्ष-2003 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। दिल्ली से एक टीम पहले से यहां काम कर रही है। कुल मिलाकर पिछले चुनावों के मुकाबले भाजपा इस बार मीडिया पर ज्यादा ध्यान दे रही है।
प्रबोध मिंज फांस तो नहीं बन जाएंगे?
लुंड्रा विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रबोध मिंज ने सरपंच से लेकर महापौर तक की सीढ़ी तय की है। जनपद अध्यक्ष रहते तक करीब दो दशक उन्होंने कांग्रेस में बिताया। विधानसभा टिकट की मांग की, नहीं मिली तो एनसीपी में, फिर भाजपा में आ गए। भाजपा से ही वे अंबिकापुर नगर-निगम में दो बार महापौर चुने गए, तब जबकि यहां से कांग्रेस हमेशा विधानसभा जीतती आई और सिंहदेव परिवार का असर भी है। इस समय भी अंबिकापुर नगर निगम में वे नेता प्रतिपक्ष हैं। उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा बताती है कि वे ठीक-ठाक जनाधार रखते हैं। उन्हें जिस लुंड्रा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है वह भाजपा के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। 2003 में जब कांग्रेस की सत्ता छीनी थी तो भाजपा के विजय नाथ सिंह केवल 43 वोट से जीतकर विधायक बने थे। उसके बाद लगातार तीन चुनावों में यह सीट कांग्रेस के पास रही। इस समय डॉ. प्रीतम राम विधायक हैं। पहले पिता चमरू राम विधायक थे, फिर एक बेटे रामदेव राम, अब दूसरे बेटे डॉ. प्रीतम। वे उरांव समाज से आते हैं। गोंड समाज के बाद सर्वाधिक वोट इसी समाज के हैं। इसके बाद कंवर वोट हैं। भाजपा ने पहले के चुनावों में गोंड प्रत्याशियों को खड़ा किया लेकिन वह उन्हें एकजुट नहीं कर पाई। पिछले चुनावों में विजय प्रताप सिंह सर्वाधिक वोट वाले गोंड समाज से होने के बावजूद नहीं जीत पाए। अब इस बार भाजपा की रणनीति कांग्रेस में एकजुट होते रहे उरांव वोटों को विभाजित करने की है। सोच यह है कि गोंड और कंवर समाज के पारंपरिक भाजपा वोटों को तो हासिल कर लिया जाए और कांग्रेस के उरांव वोट टूटे और जीत का मुकाम हासिल कर लिया जाए। पर, इस दांव पर अब ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है। गोंड और कंवर समाज से जुड़े भाजपा कार्यकर्ता विरोध पर उतर आए हैं। वे अंबिकापुर में पत्रकार वार्ता करना चाहते थे, पर वरिष्ठ नेताओं के समझाने पर मान गए। भाजपा जिला अध्यक्ष को ज्ञापन देकर उन्होंने प्रत्याशी बदलने की मांग की है। उनका कहना है कि 90 प्रतिशत ‘हिंदू आदिवासी’ क्षेत्र में मत परिवर्तन करने वाले यानि ईसाई धर्म अपनाने वाले उरांव को टिकट दी गई है। भाजपा से पूर्व सांसद कमलभान सिंह और पूर्व जिला पंचायत सदस्य फुलेश्वरी देवी, उपेंद्र गोंड सहित कई दावेदार यहां से हैं।
यह दिलचस्प है कि उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर, जशपुर में भाजपा से जुड़े लोग घर वापसी अभियान चलाते हैं। दक्षिण में बस्तर के लगभग हर जिले में भाजपा ने धर्मांतरण, मतांतरण को मुद्दा बना रखा है। इतना बड़ा मुद्दा कि कुछ भाजपा नेताओं को जेल भी जाना पड़ा। उनसे जुड़े लोगों ने ईसाईयों के बहिष्कार की शपथ दिलाई। राजधानी रायपुर में धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने की मांग पर बड़ा प्रदर्शन किया गया।
यह गौर करना चाहिए कि सरगुजा, जशपुर, बलरामपुर में एक बड़ी आबादी ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों की है। इसलिए प्रबोध मिंज को टिकट देने से परंपरागत रूप से खिलाफ जाने वाले इन मतदाताओं का दूसरे इलाकों से भी समर्थन मिलने की उम्मीद भाजपा को है। हो सकता है कि लुंड्रा के कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर शांत कर लिया जाए, पर घर वापसी और धर्मांतरण के मुद्दे पर उसके रुख का क्या होगा? टिकट वितरण के बाद कांग्रेस की राजधानी में पत्रकार वार्ता हुई थी, जिसमें यही सवाल उठाया गया था। जाहिर है चुनाव आते तक कांग्रेस इसे और जोर-शोर से उठाएगी।
जिन्होंने चांद पर जमीन खरीदी
चांद पर जमीन खरीदने को लेकर कानून रोक-टोक नहीं लगाता, क्योंकि यह कोई भी देश उसका मालिक नहीं है। दुनिया में कई कंपनियां चांद पर जमीन बेचती हैं। लोग चर्चा में आने के लिए खरीदते हैं। वहीं इनमें से कुछ लोगों को यकीन है कि एक न एक दिन चांद में इंसानों की बस्ती बसा ली जाएगी। जमीन खरीदने वालों में कई नामी-गिरामी लोग शामिल हैं। दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने एक प्लाट चांद में खरीदा था। शाहरूख खान के आस्ट्रेलिया के फैन ने चांद पर जमीन खरीदकर उन्हें गिफ्ट किया था। बहुत से आम लोगों ने भी जमीन खरीद रखी है, भले ही आज तक न वे अपनी जमीन देख पाए हैं, और न ही नाप-जोख करा पाए हैं। इन लोगों में छत्तीसगढ़ के तखतपुर के दो युवा व्यवसायी परवेज भारमल और वितेंद्र पाठक भी हैं। 17 साल पहले उन्होंने अखबारों में विज्ञापन देखा जो इंटरनेशनल लूनर लैंड रजिस्ट्री कंपनी की ओर से था। इंटरनेट के जरिये कंपनी से उन्होंने संपर्क किया और शौक के चलते 10-10 हजार रुपये में एक-एक एकड़ जमीन खरीद ली। उनके एकाउंट पर रुपये ट्रांसफर किए। सरकारी रजिस्ट्री तो हो नहीं सकती थी, इसलिये कंपनी ने बकायदा अक्षांश देशांश और प्लाट नंबर सहित एक सेल डीड भेजी। इस पर 17 दिसंबर 2006 की तारीख लगी है। चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने की खबर पर इन दोनों प्लाट मालिकों ने भी जश्न मनाया और मिठाईयां बांटी, कहा-हमारी जमीन का सही इस्तेमाल हुआ।
ईडी से धक्कामुक्की?
सीएम के ओएसडी आशीष वर्मा, और मनीष बंछोर के भिलाई रहवास पर छापेमारी के दौरान ईडी को कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा। छापे का विरोध करने पहुंचे युवक कांग्रेसियों ने ईडी अफसरों की कार पर गुस्सा निकाला। और आशीष वर्मा के घर से बाहर निकलते वक्त ईडी के अफसरों के साथ धक्का-मुक्की भी हुई।
चर्चा है कि दोनों के कथित तौर पर महादेव ऑनलाईन सट्टेबाजों से संपर्क होने का आरोप है। दोनों से एक ही तरह के सवाल घुमा फिरा कर पूछे गए, कि आपके एएसआई चंद्रभूषण वर्मा से कैसे रिश्ते हैं? कब से जानते हैं, वगैरह-वगैरह। दोनों के यहां करीब 12 घंटे की पूछताछ, और तलाशी के बाद ईडी अफसर निकल गए। वो प्रॉपर्टी दस्तावेज और मोबाइल भी साथ ले गए।
आपस में भिड़ गए
ईडी की जांच के दौरान ओएसडी मनीष बंछोर के निवास के बाहर नारेबाजी कर रहे विधायक देवेन्द्र यादव और एक स्थानीय नेता, आपस में भिड़ गए। विवाद इस बात को लेकर था कि देवेन्द्र यादव, मनीष बंछोर को बाहर निकालने की मांग कर रहे थे। इस पर स्थानीय कांग्रेस नेता बिफर गए। उनका कहना था कि घर मनीष का है। ऐसे में ईडी अफसरों को बाहर निकलने की मांग करनी चाहिए। दोनों के बीच गाली-गलौज की नौबत आ गई। फिर देवेन्द्र को वहां से जाना पड़ा। कुल मिलाकर ईडी अफसरों के जाने तक ड्रामेबाजी चलती रही।
महादेव की मेहरबानी से
ईडी ने तीन दिन पहले महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी केस में जिन कारोबारियों, और राजनीतिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है, उनमें से एक दुर्ग के एक कारोबारी तडक़ भडक़ लाइफ स्टाइल काफी चर्चा में रही है।
सुनते हैं कि कारोबारी ने एक ही दिन में दो बीएमडब्ल्यू कार खरीदे थे। यही नहीं, रायपुर के एक पाश कॉलोनी में महंगा मकान भी खरीदा था। पहले रहन-सहन और काम धाम सामान्य ही था, लेकिन चर्चा है कि 'महादेव' का सानिध्य पाकर काफी कुछ बनाया, और जब कारोबारी के यहां छापेमारी हुई, तो जानकार लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। ईडी कारोबारी को रिमांड में लेकर पूछताछ कर रही है। देखना है कि क्या कुछ सामने आता है।
चंद्रयान-3 मिशन में छत्तीसगढ़ का भरत
चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के साथ ही छत्तीसगढ़ के लोगों को इस खबर ने भी गौरवान्वित किया कि इस अभियान के लिए बनाई गई टीम में अपने राज्य के कई युवा शामिल थे। इनमें एक हैं चरौदा के भरत कुमार। भरत के पिता बैंक में सुरक्षा गार्ड हैं और बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते थे। इसके लिए आर्थिक समस्या आड़े आती थी सो भरत की मां ने चरौदा में एक टपरी पर इडली चाय बेचने का काम शुरू किया। चरौदा में रेलवे का कोयला उतरता चढ़ता है। कोयले की इसी काली गर्द के बीच भरत मां के साथ यहां चाय देकर, प्लेट्स धोकर परिवार की जीविका और अपनी पढ़ाई के लिए मेहनत कर रहा था। भरत की स्कूली पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय चरोदा में होने लगी। जब भरत नौवीं में था, फीस की दिक्कत से टीसी कटवाने की नौबत आ गयी थी पर स्कूल ने फीस माफ की और शिक्षकों ने कॉपी किताब का खर्च उठाया। भरत ने 12 वीं मेरिट के साथ पास की और उसका आईआईटी धनबाद के लिए चयन हुआ। फिर आर्थिक समस्या आड़े आई तो रायपुर के उद्यमी अरुण बाग और जिंदल ग्रुप ने भरत का सहयोग किया। यहां भी भरत ने अपनी प्रखर मेधा का परिचय दिया और 98 प्रतिशत के साथ आईआईटी धनबाद में गोल्ड मेडल हासिल किया। जब भरत इंजीनियरिंग के 7वें सेमेस्टर में था तब इसरो ने वहां अकेले भरत का प्लेसमेंट में चयन किया और फिर चंद्रयान 3 मिशन का हिस्सा बने। मात्र 23 साल का हमारा यह युवा चंद्रयान 3 की टीम के सदस्य के रूप में च्गुदड़ी के लालज् कहावत को सही साबित कर रहा है।
इसके अलावा तखतपुर के विकास श्रीवास सन् 2007 से इसरो में साइंटिस्ट हैं। रॉकेट की डिजाइन तैयार करने वाली टीम में वे शामिल रहे। इसरो में डिप्टी डायरेक्टर अनिता भट्टाचार्य का ससुराल बिलासपुर में हैं। उनके पति अमिताभ भट्टाचार्य भी साइंटिस्ट हैं। बिलासपुर की स्वाति स्वर्णकार भी इसरो में वैज्ञानिक हैं और वे भी चंद्रयान-3 मिशन में शामिल रहीं।
सेठजी से फ्राड की कोशिश
ऑनलाइन फ्रॉड जिस तेजी से बढ़ा है उसका मतलब यही है कि ये ठग तकनीकी तौर पर दक्ष होते हैं, खुद को अपडेट करते रहते हैं। फेसबुक और वाट्सएप पर पब्लिक फिगर की फर्जी प्रोफाइल बनाकर रुपये वसूल करने का तरीका पुराना है, पर यहां तो ओरिजिनल एकाउंट को ही हैक कर लिया गया। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के साथ ऐसा हुआ, तो वे चौंक गए। उनके नाम पर उनके फ्रैंड्स को मेसैज कर रुपयों की मांग की जा रही थी। जैसे ही पता चला उन्होंने अपने एकाउंट को पहले तो दुरुस्त किया और फिर अपने आईटी सेल वालों से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस नेताओं ने अग्रवाल के खिलाफ एक नारा गढ़ा था- सेठ तो ग्यो। वह इसलिये कि पूर्व मंत्री के परिवार में सब बड़े-बड़े कारोबार से जुड़े हैं। पुलिस तो जांच कर रही है मगर फ्रॉड करने वाले ने रिसर्च नहीं किया कि क्या इन्हें पैसों की जरूरत पड़ सकती है? कोई ऐसी नौबत आ भी गई तो फेसबुक के दोस्तों से मांगेंगे?
बहरहाल, अग्रवाल ने पोस्ट डाली है कि मेरे नाम की फेसबुक आईडी हैक हो गई है और लोगों से उस आईडी द्वारा पैसों की मांग की जा रही है। सभी से निवेदन है इस प्रकार से किसी भी पैसे मांगने वालों से सतर्क रहें।
मवेशी सडक़ पर ही नजर आ रहे..
हाईकोर्ट के आदेश के बाद हाईवे पर घूमने वाले मवेशियों पर टैग लगाने, मवेशी मालिक का पता लगाकर उन पर जुर्माना करने का अभियान प्रशासन चला रहा है। इस बार कुछ गंभीरता इसलिये भी दिखाई दे रही है क्योंकि मुख्य सचिव, कलेक्टर से लेकर स्थानीय निकायों के अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय की गई है। पर प्रशासन की कोशिश कितना सफल हो रही है, यह रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर हाईकोर्ट से कुछ आगे की फोरलेन सडक़ पर देखा जा सकता है।
भाजपा स्कोर कर गई
सतनामी समाज के गुरु बालदास साहेब कांग्रेस का साथ छोडक़र भाजपा में शामिल हुए, तो राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। बालदास अपने बेटों के साथ मंगलवार को भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। सतनामी वोट बैंक पर बालदास साहेब की पकड़ किसी से छिपी नहीं है। उनके समर्थित निर्दलीय प्रत्याशियों ने वर्ष-2013 के चुनाव में आधा दर्जन कांग्रेस प्रत्याशियों के हार सुनिश्चित कर दी थी।
बालदास को भाजपा में लाने की कोशिश हो रही थी। चर्चा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की बालदास से बात भी हुई थी। कहा जा रहा है कि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, बालदास साहेब के संपर्क में थे। मगर ऐन वक्त में पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक सक्रिय हो गए, और तमाम प्रमुख नेताओं से बात कर बालदास को भाजपा में ले आए।
बालदास की अहमियत का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें, अथवा परिवार के सदस्य को किसी भी आरक्षित सीट से उतारने के लिए तैयार है। यही नहीं, कांग्रेस ने भी उनके पुत्र को मौजूदा कांग्रेस विधायक की टिकट काटकर बिलाईगढ़ सीट से प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव दिया था। मगर भाजपा बाजी मार ले गई, अब चुनाव में इसका कितना फायदा मिलता है यह देखना है।
साय की तीन सीटों से दावेदारी
रायगढ़-जशपुर जिलों में खासा प्रभाव रखने वाले भाजपा से कांग्रेस में आए वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने तीन सीटों से टिकट का आवेदन किया है। पत्थलगांव, कुनकुरी और लैलूंगा। इनमें से कुनकुरी सीट ही ऐसी है जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत का अंतर कम रहा। विधायक यूडी मिंज को भाजपा के भरत साईं के 65 हजार 603 वोटों के मुकाबले 69 हजार 896 वोट मिले। जीत का अंतर 4 हजार 293 वोटों का रहा। पर पत्थलगांव देखें तो वहां से कांग्रेस के रामपुकार सिंह ने 96 हजार 599 वोट हासिल किए और भाजपा के शिवशंकर पैकरा को 59 हजार 913 वोट मिले। अंतर 36 हजार 686 वोटों का था। इसी तरह से लैलूंगा सीट भी कांग्रेस के पास है। यहां भी हार जीत का फासला 24 हजार 483 वोटों का था। कांग्रेस के चक्रधर प्रसाद सिदार को 81 हजार 770 वोट तो भाजपा के सत्यानंद राठिया को 57 हजार 287 वोट हासिल हुए थे। यह सवाल राजनीतिक हलकों में उठ रहा है कि क्या 25 से 35 हजार वोटों के अंतर से भाजपा को हराने वाले विधायकों में से किसी एक को कोई कारण बताकर कांग्रेस ड्रॉप करेगी? या फिर क्या कुनकुरी सीट में उम्मीदवार बदला जाएगा, जहां जीत का अंतर बाकी दो के मुकाबले काफी कम है? निर्भर करता है कि कांग्रेस की अंदरूनी सर्वे रिपोर्ट क्या कहती है जिसके आधार पर कई मौजूदा विधायकों की टिकट कटने का अनुमान है।
दूसरी ओर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का बयान आया है जिसमें उन्होंने साफ किया है कि दूसरे दलों से आने वालों को टिकट नहीं दी जाएगी। साय ने जब तीन-तीन स्थानों से आवेदन लगाया है तो उन्हें कुछ न कुछ आश्वासन तो मिला ही होगा। वैसे कई विधानसभा सीटों से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से आए नेताओं ने टिकट की अर्जी लगाई है। इनमें से कई लोगों ने तो पिछली बार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था। इनमें से एक ह्रदयराम राठिया भी हैं, जिन्होंने लैलूंगा सीट से पिछले चुनाव में जेसीसी के निशान पर लडक़र 12 हजार से ज्यादा मत हासिल किए थे।
चुनावी साल में खाद संकट से बचे
बीते साल की याद करें तो पूरे खरीफ सीजन में उर्वरकों को लेकर राज्य सरकार और केंद्र के बीच टकराव का बना था। कांग्रेस के मंत्री और भाजपा के नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे। किसानों का प्रदर्शन हो रहा था। पिछले साल सरकारी आंकड़ों के ही अनुसार जुलाई महीने तक यूरिया, पोटाश, डीएपी, एनपीके और सुपर फास्फेट मिलाकर कुल 13.70 मीट्रिक टन की मांग केंद्र से की गई थी लेकिन छत्तीसगढ़ को केवल 6.30 मीट्रिक टन की आपूर्ति की गई। अब सरकार की ओर से ही बताया गया है कि इसके विपरीत इस साल जून माह के अंत में ही 12 लाख 21 हजार मीट्रिक टन का भंडारण छत्तीसगढ़ में हो गया था। और अब भंडारण और का लक्ष्य पूरा हो चुका है और वितरण भी जरूरत के मुताबिक किया जा रहा है। ज्यादातर जिलों में खाद के लिए कोई मारामारी नहीं है। कहा जा रहा है कि चुनावी साल में यदि आपूर्ति ठीक है तो इसका श्रेय भाजपा को लेना चाहिए और मोदी सरकार को धन्यवाद देना चाहिए। पता नहीं, इस किसान वोटरों वाले राज्य में इस तरफ उनका ध्यान अब तक गया क्यों नहीं?
एआई से प्रेरित चाय दुकान
पूरी दुनिया में इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का डंका बज रहा है। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय वेबसाइट है चैटजीपीटी। ऐसे में एक युवक ने अपनी चाय दुकान का नाम रखा है- चाय जीपीटी। जीपीटी का उसने एक फुल फार्म भी बनाया है- जेनूएली प्योर टी। एआई का अर्थ बताया है-अदरक और इलायची। यह किस शहर या मोहल्ले की तस्वीर है, यह तो पता नहीं चल रहा है लेकिन सोशल मीडिया पर यह तेजी से वायरल हो रहा है। इसकी देखा-देखी कुछ दूसरी चाय दुकानें भी इसी नाम से खुल चुकी हैं।
बृजमोहन की फरमाईश
कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार बनने की हसरत रखने वालों के लिए ब्लॉक कांग्रेस को अर्जी देने का नियम बना दिया, तो पार्टी की ब्लॉक ईकाई की इज्जत बढ़ गई। अब राजधानी रायपुर के मेयर एजाज ढेबर को भी जाकर टिकट की अर्जी लगानी पड़ी, और उन्होंने दो सीटों के लिए अर्जी लगाई है। इन दो में से एक विधायक बृजमोहन अग्रवाल वाली सीट भी है। कांग्रेस के विधायकों के तय होने में बृजमोहन अग्रवाल की जितनी चर्चा रहती है, उसके मुताबिक कहा जा रहा है कि बृजमोहन ने एजाज ढेबर के नाम की फरमाईश विविध भारती को भेजी थी। वैसे ढेबर ने रायपुर की एक और सीट पर भी अर्जी लगाई है जहां से अभी कांग्रेस के ही कुलदीप जुनेजा विधायक हैं। यह चर्चा पहले से चली आ रही थी कि सीएम ने ढेबर को रायपुर उत्तर से तैयारी करने कह दिया है। अब बंद कमरे में यह बात कही गई, या नहीं, यह तो इन दोनों को ही पता होगी। फिलहाल न सिर्फ बृजमोहन के लोग खुश बताए जा रहे हैं, बल्कि रायपुर की बाकी तीन सीटों को लेकर भी भाजपा खुश हो गई है। आज सुबह-सुबह भाजपा के एक नेता ने आकर कहा कि एजाज ढेबर बहुत बड़े नेता हैं, उनका परिवार भी बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए उन्हें उत्तर और दक्षिण दोनों सीटों से लड़वाना चाहिए। पता नहीं कांग्रेस पार्टी भाजपा की फरमाईश को पूरा करेगी या नहीं।
कूदा-फांदी एकदम से तेज
छत्तीसगढ़ में हलचल का अंधड़ आ गया है। राजनीतिक दल पूरी ताकत से लोगों के बीच कूद पड़े हैं, ईडी के छापामार दस्ते लोगों के घरों में कूद रहे हैं, और करोड़ों रूपए फीस देने की ताकत रखने वाले लोग देश के कुछ सबसे महंगे वकीलों के साथ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कूद रहे हैं। यह कूदा-फांदी इतनी अधिक हो रही है कि अखबारों को यह समझ नहीं पड़ रहा है कि किस खबर का पीछा किया जाए। और दिनोंदिन यह राजनीति बढ़ती चली जानी है, ईडी की कार्रवाई भी बढ़ती जानी है, और भगवान महादेव के नाम पर सट्टेबाजी का धंधा करने वाले लोगों पर अब लगता है कि महादेव की तीसरी आंख खुली है, और काफी लोग भस्म होने जा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि चुनाव के दिन लडऩे को कौन बचेंगे, और प्रचार करने को कौन रहेंगे, यह अंदाज लगाना भी मुश्किल है। देश के जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें छत्तीसगढ़ जितनी दिलचस्पी देश के मीडिया की और किसी राज्य में नहीं है। मीडिया में अब बहुत औसत दर्जे के, और कमसमझ वाले लोगों को भी विशेषज्ञ की तरह पेश करने का वक्त आ चुका है।
स्कॉलरशिप में सौ परसेंट फर्जीवाड़ा
यहां दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय में हुए करोड़ों की छात्रवृत्ति घोटाले में छत्तीसगढ़ का नाम सबसे ऊपर आया है। अनुदान पाने वाले देशभर के 100 जिलों के 1572 अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं की मंत्रालय ने जांच कराई तो 53 प्रतिशत फर्जी मिले। इनमें से कई संस्थाएं या तो कागज में चल रही हैं, या फिर लंबे समय से बंद हैं। अभी तक 144 करोड़ की फर्जी भुगतान पाया गया है। यदि देशभर की अल्पसंख्यक संस्थाओं की जांच कराई जाए तो फर्जी भुगतान हजारों करोड़ का हो सकता है, क्योंकि बीते 5 साल में करीब 22 हजार करोड़ रुपये अनुदान दिया गया। अभी की जांच में राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों में कहीं कम तो कहीं अधिक संख्या में फर्जी संस्थान पाये गए लेकिन सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा छत्तीसगढ़ का है। यहां अनुदान पाने वाली 62 संस्थाओं की जांच की गई और सबके सब फर्जी पाए गए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से शैक्षणिक संस्थानों को जारी कुछ सर्कुलर बताते हैं कि योजना का लाभ दिलाने के लिए राज्य सरकारों से मदद ली जाती है। राज्य सरकार का अल्पसंख्यक विभाग इस योजना को प्रचारित करता है और शैक्षणिक संस्थानों से आवेदन भी मंगाता है। इस फर्जीवाड़े पर रोक और निगरानी करने की जिम्मेदारी कितनी राज्य सरकार की थी और कितनी केंद्र की यह देखना होगा। किसकी जेब में रकम गई, यह सब जांच से मालूम होगा- जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
दावेदारी ने माहौल बना दिया
पूरे प्रदेश में कांग्रेस की टिकट के दावेदार समर्थकों के साथ सडक़ों पर हैं। जोश से भरी भीड़, गाडिय़ों का काफिला, गाजा-बाजा और नारेबाजी। कांग्रेस ने बीते चुनावों में भी ब्लॉक कमेटियों के माध्यम से आवेदन मंगाये थे, पर आवेदन करते समय ऐसा जोश पिछली बार नहीं दिखाई दे रहा था। तब बात और थी, सत्ता 15 साल से नहीं थी। जोश-खरोश के साथ-साथ संसाधनों की कमी थी। अब पांच साल की सरकार ने कितना कुछ बदल दिया है यह आवेदन के लिए निकाली जा रही रैलियों से पता चल रहा है। कई बार निर्वाचन कार्यालय में नामांकन दाखिल करने वाले भी इतनी भीड़ नहीं जुटा पाते। कांग्रेस संगठन के शीर्ष नेताओं की ब्लॉक कमेटियों में आवेदन जमा कराने की रणनीति इस मायने में कामयाब रही कि इसके जरिये कांग्रेस का झंडा और नारा लिए सडक़ों पर निकल रहे लोग पूरे प्रदेश में पार्टी के पक्ष में ही माहौल बना रहे हैं। बिना खर्च पार्टी का प्रचार हो रहा है। इन्हीं में से यह एक तस्वीर बागबाहरा के एक दावेदार तेनुराम साहू की रैली की है।
गोबर पर एक और प्रयोग
इस रक्षाबंधन में दुकानों, खासकर सी मार्ट में गोबर और अन्य ईको फ्रैंडली सामानों से तैयार राखी बिकने के लिए तैयार हैं। गरियाबंद जिले में महिलाओं ने गोबर के अलावा चावल, धान, दाल आदि से राखियां बनाई हैं। अब तक 7000 राखियां बन चुकी हैं, जिनमें करीब 2500 बिक भी गईं। राखियों की कीमत 30 रुपये से लेकर 250 रुपये तक है।
मार्गदर्शक मण्डल
प्रदेश भाजपा के 70 बरस की उम्र पार कर चुके कई दिग्गज नेताओं की चुनावी पारी खत्म हो गई है। इनमें पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू, और अशोक बजाज का नाम प्रमुख है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा जब पार्टी ने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की, और उसमें दोनों का नाम नहीं था।
चंद्रशेखर साहू कांग्रेस की 85 में लहर के बाद भी अभनपुर सीट से विधानसभा का चुनाव जीते थे। वो महासमुंद लोकसभा सीट से सांसद भी रहे। रमन सरकार में वर्ष-2008 से 2013 तक मंत्री रहे। कुल मिलाकर 3 बार विधानसभा सदस्य रहे। पार्टी ने उन्हें पीएससी सदस्य भी बनाया था। पार्टी के भीतर उनकी पहचान किसान नेता के रूप में रही, लेकिन जमीनी पकड़ कमजोर होती चली गई, और उन्हें लगातार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
चंद्रशेखर साहू 2013, और 2018 में विधानसभा चुनाव हार गए। बावजूद इसके वो अभनपुर अथवा राजिम से चुनाव लडऩे के इच्छुक थे। मगर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। अब उनकी उम्र भी 70 वर्ष पार कर चुकी है। पार्टी ने साहू समाज से कई युवा नेताओं को आगे लाया है। ऐसे में अब माना जा रहा है कि चंद्रशेखर साहू की चुनावी राजनीति तकरीबन खत्म हो गई है। कुछ इसी तरह अशोक बजाज की स्थिति है। बजाज को पार्टी ने अभनपुर, और राजिम सीट से चुनाव लड़ाया था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार वो अभनपुर सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।
बजाज लंबे समय तक रायपुर जिला ग्रामीण के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे जिला पंचायत के अध्यक्ष थे। इसके अलावा रमन सरकार में राज्य भंडार गृह निगम के अध्यक्ष रहे हैं। अब जब उनकी भी टिकट कट गई, तो पार्टी के भीतर माना जा रहा है कि चंद्रशेखर साहू के साथ ही अशोक बजाज के युग का समापन हो गया।
पीएमओ से खोजखबर
खबर है कि विधानसभा चुनाव के चलते पीएमओ, प्रदेश भाजपा मुख्यालय से रोजाना अपडेट ले रहा है। पीएमओ का पॉलिटिकल सेल, टिकट वितरण के बाद की स्थिति को लेकर जानकारी ली है।
पार्टी नेताओं के मुताबिक छत्तीसगढ़ को लेकर हाईकमान राजस्थान, और मध्यप्रदेश के मुकाबले ज्यादा गंभीर है। प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने से पहले प्रदेश प्रभारी ने कुछ नेताओं से सीधे बात की थी। मसलन, रामविचार नेताम से पूछा गया था कि वो प्रतापपुर सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं, अथवा रामानुजगंज से ।
पहले यह चर्चा थी कि रामविचार, प्रतापपुर सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। वो वहां की चुनावी संभावनाएं तलाश रहे थे, लेकिन बाद में रामविचार के खुद के आग्रह पर पार्टी ने उन्हें रामानुजगंज से प्रत्याशी बनाया। कई को तो भरोसा भी नहीं था कि पार्टी उन्हें प्रत्याशी बना देगी।
खुद विक्रांत सिंह खैरागढ़ सीट से प्रत्याशी बनने पर चौंक गए। हालांकि वो टिकट के दावेदार रहे हैं, और पिछले तीन चुनाव से लगातार खैरागढ़ से टिकट मांग रहे थे। और जब प्रत्याशियों की सूची जारी हुई, तो वो गुजरात में थे। इसके बाद अगले फ्लाइट पकडक़र रायपुर आए, और फिर अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए निकल गए।
चुनाव पर एक भोंपू फाड़ मुनादी
सरकारी महकमे में कामचोरी देखकर हम सब विचलित जरूर होते हैं लेकिन व्यवस्था उन लोगों की वजह से कायम है जो अपनी जिम्मेदारी लगन के साथ पूरी करते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची अपडेट करने के लिए प्रदेश में अभियान चल रहा है। हर एक मतदाता तक यह जानकारी पहुंचे इसके लिए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने गांवों में कोटवार को मुनादी का निर्देश दे रखा है। जिला निर्वाचन अधिकारियों के जरिये यह निर्देश पंचायतों तक पहुंच चुका है। इसी कड़ी में देवभोग, गरियाबंद के करचिया ग्राम में भी मुनादी करने के लिए यह कोटवार निकला है। वह इस मिजाज से मुनादी कर रहा है कि मशीनी लाउडस्पीकर भी ठप पड़ जाए। शरीर की सारी ताकत निकालकर इसने अपने गले में झोंक दी। इस गांव में रहने वाले अधिकांश उडिय़ाभाषी लोग हैं। स्थानीय बोली में ही वह लोगों से अपील कर रहा है कि वोटर लिस्ट में जिसको नाम जुड़वाना है, कटवाना है कान और ध्यान लगाकर सुन लें। स्कूल में साहब लोग बैठे हैं। देखकर तसल्ली कर लें कि आपका नाम वोटर लिस्ट में सही-सही दर्ज है। चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर ने भी कोटवार का नाम डाले बगैर इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
एक छोटा सर्वे भाजपा के लिए..
भाजपा ने जिन 21 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें नि:संदेह पाटन सबसे हाईप्रोफाइल सीट है, जहां से अभी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधायक हैं। मंत्री अमरजीत भगत का कहना है कि सांड के आगे बछड़े को छोड़ दिया। विजय बघेल ने भी कह दिया कि इस सांड पर मैं ही काबू में लाने वाला हूं, सबका हिस्सा खा रहा है। इसी बीच छत्तीसगढ़ के एक न्यूज चैनल की रिपोर्टर ने एक सर्वे सोशल मीडिया पर पोल के जरिये किया। पूछा गया है कि कौन जीतेगा? जवाब विजय बघेल के पक्ष में है। करीब 43 प्रतिशत लोग मान रहे हैं कि सीएम भूपेश बघेल जीतेंगे, 57 प्रतिशत कह रहे हैं विजय बघेल। यह सर्वे इस अनुमान के साथ है कि पाटन से ही सीएम फिर लडऩे वाले हैं। इस सर्वे में राय सिर्फ 184 लोगों की शामिल है, मगर भाजपा नेताओं को इसने प्रसन्न कर दिया है। अनुज शर्मा सहित कई भाजपा नेताओं ने इसे अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर किया है और दावा किया है कि नतीजा उनके पक्ष में आएगा।
कांग्रेस जीतेगी पर कम सीटों पर !
चुनाव नजदीक आते ही ओपिनियन पोल का दौर भी शुरू हो गया है। एबीपी न्यूज़ चैनल ने छत्तीसगढ़ को लेकर सी वोटर के जरिये एक सर्वेक्षण किया है। इसके मुताबिक 2018 जितनी सीटों पर कांग्रेस दोबारा नहीं आ रही है, जबकि पार्टी के तमाम नेता इस बार 75 से अधिक सीटों की बात कर रहे हैं। इस ओपिनियन पोल के मुताबिक 90 सीटों में से कांग्रेस को 48 से 54 के बीच सीट मिल सकती है। वहीं बीजेपी की झोली में 35 से 41 सीटें आ सकती हैं। अन्य दलों को शून्य से लेकर तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ेगा। इस आकलन के मुताबिक मध्य छत्तीसगढ़ की 64 सीटों में भाजपा को 25 से 29 सीट मिल सकती है, कांग्रेस को 34 से 38 सीट हासिल हो सकती हैं। अन्य दलों को अधिकतम दो सीटें मिल सकती हैं। दक्षिण छत्तीसगढ़ की 12 सीटों में भाजपा की स्थिति नाजुक बताई गई है। इसमें उसे 2 से 6 के बीच संतोष करना पड़ेगा और कांग्रेस के पास 6 से लेकर 10 तक सीट आ सकती है। अन्य दलों की स्थिति शून्य से एक सीट हो सकती है। उत्तर छत्तीसगढ़ की 14 सीटों में भाजपा और कांग्रेस को 5 से 9 के बीच बराबर की संख्या में सीटें मिल सकती है। मालूम हो कि दक्षिण छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग, उत्तर छत्तीसगढ़ में सरगुजा संभाग और मध्य छत्तीसगढ़ में रायपुर, दुर्ग तथा बिलासपुर संभाग को गिना जाता है।
कांग्रेस सरकार के दोबारा वापस लौटने की वजह एक वरिष्ठ पत्रकार के नजरिये से यह है कि भूपेश बघेल सरकार ने 3 मास्टर स्ट्रोक खेले हैं। पहला राम वन गमन पथ पर काम, दूसरा 76 फीसदी आरक्षण पर जोर और तीसरा छत्तीसगढिय़ावाद।
खुद ही बना ली सडक़
स्थानीय विधायक, अफसरों और पंचायत के प्रतिनिधियों से बार-बार मांग करने के बावजूद सडक़ नहीं बनाई गई। बारिश में चलना दूभर हो रहा था। तब गरियाबंद जिले के ताड़ीपारा के ग्रामीणों ने फैसला किया कि वे खुद ही सडक़ बनाएंगे। जनसहयोग से मटेरियल मंगा ली गई। डेढ़ किलोमीटर रास्ते में पूरे गांव के लोगों ने श्रमदान किया और अब सडक़ बन गई। कुछ दिन पहले ऐसी ही एक तस्वीर राजनांदगांव जिले से भी आई थी। ([email protected])
दुश्मन पार्टी में दोस्त
विधानसभा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होते ही भाजपा में गदर मच गया है। बताते हैं कि सरगुजा के एक ताकतवर नेता तो अपनी टिकट कटने से इतने गुस्से में आ गए, कि उन्होंने अपने परंपरागत प्रतिद्वंदी रहे कांग्रेस विधायक को यह संदेश भिजवा दिया, कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। वो भरपूर मदद करेंगे। ये अलग बात है कि कांग्रेस की सर्वे रिपोर्ट में सीनियर विधायक की स्थिति को कमजोर माना जा रहा है।
कहा जा रहा है कि ऐसे ही संदेश कई और क्षेत्रों से कांग्रेस नेताओं को मिल रहे हैं। इन सबसे संबंधित क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ा दिख रहा है। कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची सितंबर के पहले हफ्ते में आ सकती है। चर्चा है कि कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया कांग्रेस में भी देखने को मिल सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
सेलजा को नहीं, ब्लॉक में आवेदन करें
कांग्रेस में विधायकों को आसानी से टिकट मिल जाती थी। वर्ष 2008, 2013, और 2018 के चुनाव में इक्का-दुक्का विधायकों की ही टिकट कटी थी। मगर इस बार थोक मेें टिकट कटने के आसार दिख रहे हैं। कई पूर्व विधायक भी अपनी टिकट के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं।
राजनांदगांव के तीन पूर्व विधायक भोलाराम साहू, तेजकुंवर नेताम और गिरवर जंघेल तो शनिवार को अपना बायोडाटा लेकर प्रदेश प्रभारी सैलजा से मिलने पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा। भोलाराम दो बार खुज्जी से विधायक रहे हैं। उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वो खुज्जी से फिर टिकट दावेदारी कर रहे हैं। तेजकुंवर नेताम भी मानपुर मोहला से विधायक रहीं हैं।
पार्टी ने उनकी जगह इंदरशाह मंडावी को टिकट दे दी थी और वो विधायक बन गए। तेजकुंवर अपनी दावेदारी नहीं छोडऩा चाहती हैं। इसी तरह गिरवर जंघेल भी अपनी सीट खैरागढ़ से टिकट चाहते हैं। खैर, ये तीनों राजीव भवन पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार के बाद साफतौर पर बता दिया गया कि मैडम बायोडाटा नहीं लेंगी और उन्हें ब्लॉक में आवेदन करना पड़ेगा। निराश तीनों पूर्व विधायक, सैलजा से बिना मिले लौट गए।
यहां कदर नहीं हुई
मुंबई के बड़े बिल्डर बाबा सिद्दीकी को कांग्रेस ने रायपुर लोकसभा का पर्यवेक्षक बनाया है। बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी काफी चर्चा में रहती है और इसमें तमाम बड़े फिल्म स्टार दिखते हैं। मगर पार्टी मीटिंग के लिए शनिवार को बाबा यहां पहुंचे तो ज्यादा कुछ महत्व नहीं मिला। उनकी मीटिंग भी मात्र 20 मिनट में निपट गई। जबकि उन्हें रायपुर आने के लिए फ्लाइट पकडऩे सुबह 4 बजे से तैयार होना पड़ा।
बाबा सिद्दीकी को तेलंगाना की विधानसभा टिकटों की छानबीन समिति का सदस्य भी बनाया गया है। चर्चा है कि बाबा को छत्तीसगढ़ मीटिंग इतनी बोझिल लगी कि वो चाहते हैं कि उनकी जगह किसी और को रायपुर लोकसभा का पर्यवेक्षक बनाया जाए। हालांकि उन्होंने यह बात निजी चर्चा में एक-दो लोगों से कही है। देखते हैं आगे क्या होता है।
बिना नक्शा, कैलेंडर समय पर पहुंचे प्रवासी
पेस्फिक गोल्डन प्लोवर हजारों किलोमीटर की उड़ान भर कर विश्व फोटोग्रॉफी के दिन 19 अगस्त को मोहनभाठा पहुंच गए। इस झुंड में चार पक्षी हैं। इससे इस बात की पुष्टि हो गई कि हर साल भी तय तारीख के आसपास ही प्रवास करते हैं। 'स्टेशन' मोहनभाठा में उनका अगस्त के तीसरे सप्ताह के आसपास आगमन होता है।
वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने इनकी तस्वीरें साझा सोशल मीडिया पर साझा करते हुए कहा है कि इन परिंदों के पास कोई कैलेंडर नहीं, नक्शा नहीं लेकिन लम्बी दूरी कब तय करनी है और प्रतिकूल मौसम के बावजूद राह कैसे सुरक्षित तय करनी है, यह सब जानकारी उनके दिमाग में रहती है।आकार में यह पक्षी जंगली कबूतर के करीब है।
छतीसगढ़ में बिलासपुर से 23 किमी दूर मोहनभाठा में कुछ दिन पेटभर खुराक और थकान दूर कर आगे की उड़ान भरते हैं। ये आगे कहां जाते हैं यह पता नहीं। पर इन दिनों यहां खूब बारिश हो रही है। यहां की गौचर भूमि पर अर्थवर्म यानि केंचुये खूब पनपते हैं जो जमीन भींगने की वजह बाहर निकलते हैं। यही केंचुये इन पक्षियों का प्रमुख आहार हैं। गोर्ब के इन कीड़ों की भी यहां यहां कमी नहीं।
कांग्रेस की ही नहीं सुन रहा प्रशासन
अंबिकापुर में कांग्रेस कार्यकर्ता कई दिनों से मांग कर रहे हैं कि यहां के एक मोहल्ले बोरीपारा में स्थित शराब दुकान को हटाकर कहीं और शिफ्ट किया जाए। यह दुकान मोहल्ले के बीचों-बीच है, जिससे महिलाओं को भारी परेशानी हो रही है और बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है। जैसा कि प्राय: सभी शराब दुकानों में हो रहा है, यहां भी अवैध चखना सेंटर और अहाता भी चल रहा है। इसलिये शराबियों का मजमा देर रात तक लगा रहा है। हटाने की मांग करने वालों में आम कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि औषधि पादप बोर्ड के चेयरमैन बालकृष्ण पाठक भी हैं। शराब दुकान के मामले में ऐसा देखा जाता है कि प्रशासन दुकान हटाने के लिए जल्दी तैयार नहीं होता, जबकि दुकान कहीं भी खुले, जिन्हें जरूरत होती है- ठिकाने को ढूंढ ही लेते हैं। फिलहाल उन्होंने कलेक्टर के नाम एसडीएम को फिर एक बार और ज्ञापन दिया है और अपील की है कि आंदोलन की नौबत आने से पहले कार्रवाई कर दें।
नेशनल हाईवे की यह हालत
देशभर में नेशनल हाईवे के निर्माण कार्य को गति देने के लिए भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की तारीफ की जाती है लेकिन जशपुर से पत्थलगांव और सरगुजा को जोडऩे वाली सडक़ की हालत 15 सालों में नहीं सुधरी। इसमें क्या-क्या हो चुका है? काम में देरी करने पर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट किया गया। लोगों ने बार-बार प्रदर्शन किया। हर बार प्रशासन नेशनल हाईवे से कहकर मरम्मत कर कामचलाऊ सडक़ तैयार करा दी, जो बारिश में फिर उखड़ जाती है। हाईकोर्ट में प्रदेशभर की खराब सडक़ों पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई तो इस सडक़ का नाम भी प्रमुखता से आया। वहां भी एनएचएआई ने वचन दिया कि जल्द निर्माण कार्य पूरा कराएंगे। आज बारिश के बाद सडक़ अब दलदल में तब्दील हो चुकी है।
जीपीएम जिले के भवन कहां बनें?
10 फरवरी 2020 को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला बनने के बाद से इसका संचालन यहां की पुरानी इमारतों में हो रहा है। कुछ ऐतिहासिक महत्व के हैं, जहां रवींद्रनाथ टैगोर ठहरे थे। कुछ वृक्ष हैं जहां गुरुदेव बैठा करते थे। यहीं पर अब नये कलेक्ट्रेट परिसर की तैयारी चल रही है। यह कहां बने इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच विवाद काफी बढ़ चुका है। खासकर मरवाही इलाके की मांग है कि मुख्यालय पेंड्रा और मरवाही के बीच में बनाया जाए ताकि जिला बनाने की मंशा पूरी हो और अधिकारियों, दफ्तरों तक आम लोगों की आसान पहुंच हो सके। प्रशासन तो चाहता है कि यहां के गुरुकल और सेनेटोरियम की जमीन पर ही नई बिल्डिंग तैयार की जाए। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इसके लिए सौ दो सौ साल पुराने और टैगोर की स्मृतियों से जुड़े कई पेड़ भी काट दिये गए, तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया, श्रद्धांजलि सभा रखी। बीते 11 अगस्त को मरवाही इलाके में बंद का भी आयोजन किया गया था।
जब यहां शिखा राजपूत कलेक्टर थीं तो उन्होंने मरवाही और पेंड्रा के बीच स्थित कोदवाही ग्राम में 50 एकड़ जमीन का चयन किया था। वर्तमान विधायक डॉ. केके ध्रुव सहित अधिकांश जनप्रतिनिधि इस बात से सहमत हैं कि इसी तय जगह पर जिला मुख्यालय बने। इससे सबके लिए मुख्यालय तक पहुंच आसान होगी। दूरी सबके लिए बराबर होगी। अभी पेंड्रा से मरवाही की दूरी 38 किलोमीटर है। नई जगह पर विकास होने से पूरे क्षेत्र का संतुलित विकास होगा और दूर दूर बसे गांवों वाले आदिवासी क्षेत्र में जिला बनाने की मंशा पूरी होगी।
इन सबके बावजूद पेंड्रा में ही जिला मुख्यालय बनाने के लिए प्रशासन क्यों जिद कर रहा है इसके दो कारण सामने आए। एक तो जिला बनाने के लिए चले आंदोलन का केंद्र पेंड्रा-गौरेला ही रहा। यहां के निवासियों के लिए सुविधाजनक होगा कि नई बिल्डिंग भी यहीं बने। यह पहले से विकसित इलाका है, तमाम सुविधायें हैं। दूसरी बात और यह सामने आ रही है कि ज्यादातर बाबू और अफसर अभी यहां नहीं रुकते, वे शाम को बिलासपुर निकल जाते हैं। यदि मरवाही और पेंड्रा के बीच की जगह कोदवाही को मुख्यालय बनाया गया तो ट्रेन पकडऩे के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी, जो अभी सिर्फ 6 किलोमीटर है।
टिकट न मिली तो प्रमोद थम गए
खबर है कि जोगी पार्टी छोडऩे के बाद बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा असमंजस में हैं। पहले उनके धर्मजीत सिंह के साथ भाजपा में शामिल होने की चर्चा थी लेकिन टिकट पर कोई आश्वासन नहीं मिलने से ठिठक गए।
बताते हैं कि जिस दिन धर्मजीत सिंह का भाजपा प्रवेश हुआ था उसके एक दिन पहले आधी रात तक प्रमोद की भाजपा के सहप्रभारी नितिन नबीन के साथ बैठक भी हुई थी।
नबीन ने उनसे कहा बताते हैं कि बलौदाबाजार की पड़ोस की सीट से शिवरतन शर्मा विधायक हैं, जो कि ब्राम्हण समाज से आते हैं। दोनों को एक साथ चुनाव मैदान में उतारने से जाति समीकरण गड़बड़ा सकता है। चर्चा है कि नितिन ने उन्हें सर्वे होने के बाद ही टिकट को लेकर निर्णय लेने की बात कही।
नितिन नबीन ने कहा कि पहले पार्टी ज्वाइन कर लें फिर सरकार बनने के बाद उनका ध्यान रखा जाएगा। इसके लिए प्रमोद तैयार नहीं हुए।
प्रमोद के कांग्रेस में जाने की भी चर्चा रही है। मगर कांग्रेस में टिकट की गुंजाइश नहीं दिख रही है। वजह यह है कि कांग्रेस में पूर्व राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा और शैलेष नितिन त्रिवेदी, पूर्व विधायक जनकराम वर्मा टिकट पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में प्रमोद अन्य विकल्पों की खोज में हैं। मगर हर बार दोनों पार्टियों से परे चुनाव लड?र जीतना आसान नहीं है।
बृजमोहन के खिलाफ फौज
बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ रायपुर दक्षिण से चुनाव लडऩे के लिए कांग्रेस में दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। मेयर एजाज ढेबर, सभापति प्रमोद दुबे से लेकर कन्हैया अग्रवाल और विकास तिवारी तक टिकट मांग रहे हैं।
बृजमोहन को लेकर यह प्रचारित है कि जो उनके खिलाफ भी होता है वो चुनाव जीतने के बाद उन्हें भूलते नहीं हैं। उनका पूरा ख्याल रखते हैं। चर्चा है कि एक-दो पुराने प्रत्याशियों और दावेदारों को भरपूर मदद भी की थी।
इन चर्चाओं के बीच जानकार लोग पामगढ़ के पूर्व विधायक दूजराम बौद्ध को याद कर रहे हैं। जो वर्ष 2013 से 18 तक पामगढ़ से विधायक रहे हैं। उन्होंने पिछला चुनाव सिर्फ इसलिए नहीं लड़ा कि वो चुनाव लडऩे के दौरान लिए गए कर्ज को नहीं चुका पाए थे।
उनकी ईमानदारी और लोकप्रियता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि न सिर्फ दलित बल्कि कई ब्राम्हण समाज के प्रभावशाली लोग उन्हें चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित कर रहे थे। एक तो ब्राम्हण नेता तो उन्हें वित्तीय मदद के लिए तैयार भी थे। मगर ईमानदारी का आलम यह रहा कि उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। कहा जाता है कि बाद में उन्होंने विधायक के रूप में मिले रियायती दर पर खरीदे गए प्लाट को बेचकर कर्जा चुकाया है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दूजराम जैसे नेता तो जीतकर भी नुकसान में चले जाते हैं और कई तो हार में भी फायदा होता है।
नाम घोषित, मीटर घूमना शुरू
भाजपा प्रत्याशियों की एक सूची जारी हो गई है, लेकिन कई सामान्य परिस्थिति के प्रत्याशी चिंतित भी हैं। उन्हें चिंता हार-जीत की नहीं बल्कि चुनाव खर्च की है। क्योंकि नाम की घोषणा के बाद खर्चों का मीटर घुमना शुरू हो गया है।
गणेशोत्सव नजदीक है। इसके बाद दुर्गोत्सव और दशहरा तक विशेषकर जनप्रतिनिधियों को काफी कुछ सहयोग करना पड़ता है। अब प्रत्याशी घोषित हो गए हैं तो अपेक्षा ज्यादा रहती है। हालांकि पार्टी ने अभी सादगी से रहने की सलाह दी है। मगर ज्यादा सादगी से लोगों की नाराजगी होने का खतरा भी है। देखना है कि ये प्रत्याशी किस तरह चुनाव निपटाते हैं।
चुनाव बहिष्कार का ऐलान
बस्तर के कई इलाकों में अलग-अलग आंदोलन चल रहे हैं। सुरक्षा बलों की कथित ज्यादती के खिलाफ, संविधान में दिए गए अधिकारों को शिथिल करने के विरोध में, और भी कई मुद्दों पर। एक ऐसा ही आंदोलन बीते 10 माह से अबूझमाड़ में चल रहा है। इरकभ_ी, तोयामेटा, बेहबेड़ा आदि गांवों के लोग लगातार धरने पर बैठे हुए हैं। याद होगा कि इन लोगों ने मई माह में नारायणपुर आकर, बेरिकेड्स तोडक़र बड़ा प्रदर्शन किया था। अब इन्होंने अगले विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। शिकायत है कि प्रशासन ने उनसे आज तक बातचीत करने की जरूरत नहीं समझी। इस ऐलान के बाद कलेक्टर अजीत वसंत का एक बयान जरूर आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि चुनाव लोकतंत्र का त्यौहार है, मतदान में भाग लें।
शराबियों की बड़ी चिंता दूर
शराब दुकानों में बोतल तो मिल जाती है, पर उसके बाद चखना, गिलास और पानी पाउच का इंतजाम करना मुश्किल होता है। गरीब पीने वालों की इस तकलीफ को दूर करने के लिए एक महिला स्व-सहायता समूह आगे आया है। सोशल मीडिया में वायरल वीडियो के मुताबिक यह समूह कुंडा, पाटन जिला दुर्ग का है। उसने एक कॉम्बो पैक तैयार किया है, जिसमें एक डिस्पोजेबल गिलास, नमकीन और पानी पाउच एक साथ है। दुर्ग जिले की शराब दुकानों के आसपास यह सारा सामान एक साथ किफायती दाम पर मिल जाएगा।
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले तक स्व-सहायता समूहों के हाथ में रेडी-टू-ईट बनाने का काम था। आंगनबाड़ी केंद्रों और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण आहार की खरीदी इनसे की जाती थी। पर सरकार ने इसे छीन लिया। यह काम अब ठेके पर दे दिया गया है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ महिलाएं हाईकोर्ट भी पहुंची थीं, लेकिन वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में जो काम सामने दिखता है वे वही तो करेंगीं?
कोरबा के कांग्रेसियों की मांग
कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए सुरक्षित नहीं हैं इसके बावजूद सामान्य वर्ग से टिकट देने, न देने के बारे में सोचा जाता है। सूरजपुर जिले की प्रेमनगर और कोरबा जिले की कटघोरा ऐसी ही सीटें हैं। दोनों में इस समय कांग्रेस के विधायक हैं जो आदिवासी वर्ग से हैं- खेलसाय सिंह और पुरुषोत्तम कंवर। कोरबा जिले में कुल चार सीटें हैं, जिनमें से दो पाली-तानाखार और रामपुर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। कटघोरा और कोरबा सामान्य सीटें हैं। कुमारी सैलजा के कल कोरबा प्रवास के दौरान टिकट के दावेदार तो उनके इर्द-गिर्द मंडरा ही रहे थे, पर एक ज्ञापन कई कांग्रेस नेताओं ने मिलकर सौंपा। मांग थी कि कटघोरा सामान्य सीट से किसी सामान्य वर्ग के कार्यकर्ता को ही टिकट दी जाए। अब देखना है कि ऐसी मांग क्या प्रेमनगर से भी उठती है? कुमारी सैलजा ने हाईकमान तक बात पहुंचाने की बात तो कही है।
समाज सर्वोपरि
भाजपा के एक युवा नेता ने अपने समाज को दल से उपर ही रखा। 21 प्रत्याशियों की सूची में उनका नाम न होने के बाद समाज यही कह रहा है। दरअसल नेताजी अपने समाज बहुल विधानसभा क्षेत्र से ही चुनाव लडऩा चाहते थे। उन्होंने जून तक इलाके में खूब मेहनत की। उनका दावा भी था कि वे, इस सीट से प्रदेश में कांग्रेस के परिवारवाद को खत्म करना चाहते हैं । यहां से पहले पिता और अब पुत्र विधायक हैं। एक ही समाज के दो युवकों के द्वंद्व में समाज प्रमुख भी उलझ गए। जैसे तैसे भाजपा नेता को सीट बदलने मना लिया गया । कहा कि समाज से दो विधायक हो जाएं तो राजनीति में समाज की पैठ बढ़ेगी। उसके बाद ही नेताजी ने सुरक्षित सीट की तलाश शुरू की। पहले रायपुर ग्रामीण पर उंगली रखा। यहां दो दिग्गजों की टेढ़ी भौंहे देखी और फिर इसके बाद गृह जिला मुख्यालय के साथ ही चंद्रपुर में अपनी संभावना देख रहे हैं। लेकिन पार्टी क्या सोचती है यह देखना है।
पीएससी का एक और रिजल्ट जल्द
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा के नतीजे 16 अगस्त को जारी किए और अगले ही दिन यानि 17 अगस्त को साक्षात्कार की तारीख भी घोषित कर दी। इसमें अधिक अंतराल नहीं रखा गया है। 24 अगस्त से साक्षात्कार शुरू हो जाएगा जो 6 सितंबर तक चलेगा। परीक्षार्थियों का कहना है कि मेंस में 22 हजार से अधिक विद्यार्थी होने के बावजूद उत्तर पुस्तिका भी बहुत जल्दी जांच ली गई। बावजूद इसके कि सभी कॉपियों का एक-एक पन्ना स्कैन किया गया, उसके बाद जांच हुई।
इसमें किसी को क्या दिक्कत हो सकती है कि कोई काम बिना समय गंवाये जल्दी-जल्दी पूरा कर दिया जाए। बस इस यह गौर करना जरूरी है कि चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल साक्षात्कार प्रक्रिया पूरी होने के ठीक दो दिन बाद यानि 8 सितंबर को खत्म होने वाला है।
पीएससी 2021 के नतीजों में ज्यादातर टॉपर परीक्षार्थी अफसरों, कारोबारियों और कांग्रेस नेताओं के बेटी-बेटे थे। इसके चलते चयन प्रक्रिया पर सवाल उठा था। इन टॉपर्स से प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले युवा उनसे तैयारी के लिए मार्गदर्शन लेना चाहते हैं, पर वे सामने ही नहीं आ रहे हैं। चयन पर सीजीपीएससी की ओर से कोई जवाब नहीं आया पर सरकार ने क्लीन चिट दे दी। भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बताते हुए आपत्ति जताई थी। विरोध प्रदर्शन भी हुए थे। हुआ कुछ नहीं, अब 2022 के रिजल्ट का इंतजार करिये।
भाजपाइयों का खुश होना वाजिब
भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। उत्साही भाजपा नेता दावा कर रहे है कि पार्टी कम से कम दस सीटें जीत सकती है। एक पूर्व मंत्री का अंदाजा है कि पार्टी 14 सीटें जीत सकती है। मगर कांग्रेस के रणनीतिकार बेफिक्र हैं ।
एक-दो प्रमुख नेताओं का अंदाजा है कि मौजूदा स्थिति में भाजपा अधिकतम 3-4 सीटें ही जीत सकती है, वह भी तब जब विधायकों को रिपीट किया जाए। मगर ऐसा होने की उम्मीद कम है क्योंकि दो दर्जन से अधिक विधायकों के खिलाफ एंटी इनकम बंसी हावी है। ऐसे में कई की टिकट कटने के आसार हैं। चेहरे बदलेंगे, तो संभव है कि सभी 21 सीट फिर से कांग्रेस की झोली में चली जाए।
वैसे एक बात तय है कि भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। ऐसे में जो भी सीटें आएंगी वो पहले की तुलना में बेहतर ही होगा। ऐसे में भाजपाइयों का खुश होना वाजिब भी है।
यहां छात्र नहीं शिक्षक गैरहाजिर
स्कूलों में शिक्षकों की मांग पर तो अनेक आंदोलन होते रहते हैं लेकिन कोंडागांव जिले के संबलपुर स्थित सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र-छात्राओं ने शिक्षकों को हटाने की मांग करते हुए स्कूल की गेट पर ताला जड़ दिया। छात्रों का कहना है कि खेल शिक्षक सहित दो तीन शिक्षक स्कूल से गैरहाजिर रहते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और खेल गतिविधियों का नुकसान हो रहा है। उन्हें स्कूल के एक लिपिक से भी शिकायत है जो छात्रों को अनावश्यक परेशान करते रहते हैं। गेट पर ताला लगाकर स्कूल को बंद करने की सूचना मिलने पर शिक्षा विभाग के अधिकारी पहुंचे। उन्होंने छात्रों को समझाया-बुझाया, कार्रवाई की बात कही, तब जाकर छात्र अपनी क्लास में जाकर बैठे।
प्रकृति के सफाई कर्मी
प्रकृति के यह सफाई कर्मी कम हो चले हैं, लेकिन कुछ वर्षो से अगस्त मध्य में मोहन भाटा से कोटा (बिलासपुर) के बीच जोड़े में मिल जाते हैं।
सफेद गिद्ध याने इजिप्शियन वल्चर, प्रकृति के महत्वपूर्ण सफाई कर्मी हैं। जिस एरिया में इनको देखने की बात लिखी है वहां काफी मवेशी बरसात में मरते हैं जिनके शव पड़त भूमि में फेंक दिया जाता है।
अब यहां से प्रकृति के सफाई कर्मियों का काम शुरू होता है, जिसमें सफेद आवारा कुतों और चील के बाद इन सफेद गिद्ध के काम शुरू होता है। इनको पहुंचने के बाद भी इंतज़ार करना होता है।
इनकी पीली चोंच चील या बाज के समान मजबूत नहीं होती, लेकिन कुदरत ने सबके लिए इंतजाम किया है। यह हड्डियों से लगा मांस चोंच से निकालकर पेट भरते हैं। याने प्रकृति में कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता।
नर और मादा एक जैसे रंग के दिखते हैं जबकि युवा यदि साथ है तो उनका रंग हल्का काला होता है। यह बाद में सफेद हो जाता है। छतीसगढ़ में इनके घोसले की बात सुनी जाती है, जिस पर शोध जरूरी है। यह तस्वीर प्राण चड्ढा ने ली है।
जिलाध्यक्ष कैसे लड़ेंगे
कांग्रेस ने विधानसभा प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दावेदारों से आवेदन बुलाए गए हैं। दावेदार पहले ब्लॉक में आवेदन करेंगे, और फिर जिलों में कमेटी दावेदारों का पैनल तैयार कर प्रदेश को भेजेगी। अब पार्टी के अंदरखाने में प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। वजह यह है कि कई जिलाध्यक्ष खुद टिकट के दावेदार हैं। यह पूछा जा रहा है कि दावेदार जिलाध्यक्षों के रहते पैनल कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं।
बताते हैं कि आधा दर्जन से अधिक जिलाध्यक्ष विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। पहले यह बात उठी थी कि जो जिलाध्यक्ष चुनाव लडऩा चाहते हैं उन्हें पद से इस्तीफा देना होगा। पिछले चुनाव से पहले कई जिलाध्यक्षों ने इस्तीफा भी दिया था। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रदेश की कार्यकारिणी अटकी पड़ी है, और इसी बीच प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
कहा जा रहा है कि रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, धरसींवा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसी तरह राजनांदगांव शहर, और ग्रामीण के जिलाध्यक्ष भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। दुर्ग ग्रामीण, भिलाई शहर, बिलासपुर ग्रामीण, मुंगेली, बलौदाबाजार, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बालोद, और कांकेर के जिलाध्यक्ष भी टिकट के दावेदार हैं। पार्टी के कई लोग मानते हैं कि जिलों से तैयार पैनल में जिलाध्यक्ष का नाम स्वाभाविक रूप से आ जाएगा। ऐसे में पैनल निष्पक्ष नहीं हो सकता है। इसके चलते आने वाले दिनों में विवाद खड़ा हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
बृहस्पति के खिलाफ तिर्की ?
कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू होते ही पार्टी के अंदरखाने में जंग छिड़ गई है। सरगुजा के तेज तर्रार नेता बृहस्पति सिंह की विधानसभा सीट रामानुजगंज से अंबिकापुर के पूर्व मेयर डॉ. अजय तिर्की ने ताल ठोक दी है। डॉ. तिर्की बुधवार को रामानुजगंज पहुंचे, तो सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया।
डॉ. तिर्की के स्वागत का वीडियो भी वायरल हो रहा है। जिसमें उत्साही कांग्रेस कार्यकर्ता डॉ. तिर्की को भावी विधायक बताते हुए नारेबाजी कर रहे हैं। डॉ. तिर्की रामानुुजगंज में सीएमओ रहे हैं। लिहाजा, इलाके में अच्छी खासी पकड़ भी रखते हैं। इससे परे बृहस्पत सिंह, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के धुर विरोधी माने जाते हैं। बृहस्पत सिंह खुले तौर पर सिंहदेव के खिलाफ काफी कुछ कह चुके हैं। इसके कारण सिंहदेव ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन भी छोड़ दिया था। ऐसे में अब बारी सिंहदेव की है।
चर्चा है कि सिंहदेव की शह पर ही डॉ. तिर्की ने रामानुजगंज सीट से दावेदारी की है। सिंहदेव खुद भी प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन कमेटी के सदस्य भी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बृहस्पत सिंह के लिए टिकट हासिल करना आसान नहीं होगा। मगर बृहस्पत सिंह भी खामोश रहने वालों में नहीं है। देखना है कि डॉ. तिर्की की दावेदारी को बृहस्पत सिंह किस रूप में लेते हैं।
शिशुओं की मौत पर राजनीति?
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर 7 दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी है। इसमें पूछा गया है कि प्रदेश में 4 साल के भीतर 39000 से अधिक शिशुओं की किन परिस्थितियों में मौत हुई? दरअसल विधानसभा में उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने ही इसकी जानकारी दी थी। तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने इसे चिताजनक बताते हुए आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो को पत्र लिखा था। आयोग ने इस पत्र को संज्ञान में लिया है।
यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है। शिशु मृत्यु दर पर रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स 2021-22 का आंकड़ा बताता है कि छत्तीसगढ़ में उत्तर प्रदेश के बराबर एक हजार बच्चों के पीछे 38 की मौत हो गई। मध्यप्रदेश पूरे देश में टॉप पर है, जहां 40 बच्चों की मौत हुई। इसके बाद असम और ओडिशा है, जहां प्रति एक हजार में 36 बच्चों की मौत हुई। राजस्थान में 32 और मेघालय में 29 मौत दर्ज की गई। यानी हेल्थ सर्वे के मुताबिक कांग्रेस-भाजपा ही नहीं, दूसरे दलों के शासित राज्यों में एक जैसी स्थिति है। छत्तीसगढ़ में भाजपा विपक्ष में है। उसकी जिम्मेदारी तो है कि वह कांग्रेस को घेरे, मगर समाधान क्या है?
जीपीएम जिले के भवन कहां बनें?
10 फरवरी 2020 को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला बनने के बाद से इसका संचालन यहां की पुरानी इमारतों में हो रहा है। कुछ ऐतिहासिक महत्व के हैं, जहां रवींद्रनाथ टैगोर ठहरे थे। कुछ वृक्ष हैं जहां गुरुदेव बैठा करते थे। यहीं पर अब नये कलेक्ट्रेट परिसर की तैयारी चल रही है। यह कहां बने इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच विवाद काफी बढ़ चुका है। खासकर मरवाही इलाके की मांग है कि मुख्यालय पेंड्रा और मरवाही के बीच में बनाया जाए ताकि जिला बनाने की मंशा पूरी हो और अधिकारियों, दफ्तरों तक आम लोगों की आसान पहुंच हो सके। प्रशासन तो चाहता है कि यहां के गुरुकल और सेनेटोरियम की जमीन पर ही नई बिल्डिंग तैयार की जाए। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इसके लिए सौ दो सौ साल पुराने और टैगोर की स्मृतियों से जुड़े कई पेड़ भी काट दिये गए, तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया, श्रद्धांजलि सभा रखी। बीते 11 अगस्त को मरवाही इलाके में बंद का भी आयोजन किया गया था।
जब यहां शिखा राजपूत कलेक्टर थीं तो उन्होंने मरवाही और पेंड्रा के बीच स्थित कोदवाही ग्राम में 50 एकड़ जमीन का चयन किया था। वर्तमान विधायक डॉ. केके ध्रुव सहित अधिकांश जनप्रतिनिधि इस बात से सहमत हैं कि इसी तय जगह पर जिला मुख्यालय बने। इससे सबके लिए मुख्यालय तक पहुंच आसान होगी। दूरी सबके लिए बराबर होगी। अभी पेंड्रा से मरवाही की दूरी 38 किलोमीटर है। नई जगह पर विकास होने से पूरे क्षेत्र का संतुलित विकास होगा और दूर दूर बसे गांवों वाले आदिवासी क्षेत्र में जिला बनाने की मंशा पूरी होगी।
इन सबके बावजूद पेंड्रा में ही जिला मुख्यालय बनाने के लिए प्रशासन क्यों जिद कर रहा है इसके दो कारण सामने आए। एक तो जिला बनाने के लिए चले आंदोलन का केंद्र पेंड्रा-गौरेला ही रहा। यहां के निवासियों के लिए सुविधाजनक होगा कि नई बिल्डिंग भी यहीं बने। यह पहले से विकसित इलाका है, तमाम सुविधायें हैं। दूसरी बात और यह सामने आ रही है कि ज्यादातर बाबू और अफसर अभी यहां नहीं रुकते, वे शाम को बिलासपुर निकल जाते हैं। यदि मरवाही और पेंड्रा के बीच की जगह कोदवाही को मुख्यालय बनाया गया तो ट्रेन पकडऩे के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी, जो अभी सिर्फ 6 किलोमीटर है।
खुद ही बना ली सडक़
स्थानीय विधायक, अफसरों और पंचायत के प्रतिनिधियों से बार-बार मांग करने के बावजूद सडक़ नहीं बनाई गई। बारिश में चलना दूभर हो रहा था। तब गरियाबंद जिले के ताड़ीपारा के ग्रामीणों ने फैसला किया कि वे खुद ही सडक़ बनाएंगे। जनसहयोग से मटेरियल मंगा ली गई। डेढ़ किलोमीटर रास्ते में पूरे गांव के लोगों ने श्रमदान किया और अब सडक़ बन गई। कुछ दिन पहले ऐसी ही एक तस्वीर राजनांदगांव जिले से भी आई थी।
भाजपा टिकटों की कहानी
भाजपा की चुनाव समिति अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन पार्टी के रणनीतिकार विधानसभा वार बेहतर प्रत्याशी की खोज में लगे हैं। चर्चा तो यह भी है कि कुछ दिग्गज नेताओं को 8-8 विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। एक चर्चा यह है कि कुछ सीटिंग एमएलए की टिकट भी काटी जा सकती है, अथवा उनकी सीट बदली जा सकती है।
इन चर्चाओं को उस वक्त बल मिला, जब पड़ोस के जिले की एक विधानसभा सीट से निकाय के पूर्व पदाधिकारी से चुनाव लडऩे की पेशकश की गई। पूर्व पदाधिकारी की साख अच्छी रही है। मगर उन्होंने चुनाव लडऩे से मना कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि यह सीट भाजपा के पास ही है। संकेत साफ है कि विधायक की टिकट कट सकती है। चर्चा है कि टिकट वितरण में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ईडी डीएमएफ और स्कूल
ईडी डीएमएफ की पड़ताल कर रही है। सभी जिलों से चाही गई जानकारी ईडी दफ्तर तक पहुंच गई है। चर्चा है कि डीएमएफ से सबसे ज्यादा काम स्कूल शिक्षा विभाग में हुआ है। आत्मानंद स्कूलों पर काफी खर्च किए गए हैं। सप्लाई का भी काफी काम हुआ है। ऐसे में चर्चा है कि कुछ फर्नीचर सप्लायरों से पूछताछ हो सकती है।
बताते हैं कि कई जिलों में तो अच्छा काम हुआ है, लेकिन कुछ जगहों पर घटिया फर्नीचरों की सप्लाई हुई है। ऐसे में स्कूल शिक्षा, और आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरों पर भी आंच आ सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
उम्मीदवारों पर चर्चा, पार्टी लिस्ट बाकी
प्रदेश कांग्रेस की चुनाव समिति की एक बैठक तो हो चुकी है, लेकिन प्रदेश पदाधिकारियों की सूची अटकी पड़ी है। प्रदेश सचिव, संयुक्त महासचिव, और कोषाध्यक्ष व महासचिव के रिक्त पदों पर नाम प्रस्तावित किए जा चुके हैं।
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा से इस पर बात भी की गई। सैलजा ने प्रमुख नेताओं को कहा बताते हैं कि नाम हाईकमान को भेज दिए गए हैं, और हाईकमान ही सूची जारी करेगा। कहा जा रहा है कि कुछ प्रमुख नेताओं ने अलग-अलग पदों के लिए अपनी तरफ से नाम भी भेज दिए हैं। इन सब वजहों से सूची जारी होने में विलंब हो रहा है।
आजादी की जगमगाहट
सुकमा जिले के एल्मागुंडा गांव के लोगों के लिए इस बार आजादी का जश्न यादगार बन गया। बरसों के इंतजार के बाद यहां के घर बिजली से रोशन हो गए हैं। स्वतंत्रता के 76 साल पूरे हो जाने के बाद भी यहां बिजली नहीं थी। पहले कई बार बिजली बोर्ड ने पोल लगाने की कोशिश की लेकिन नक्सली हर बार नुकसान पहुंचा कर काम रुकवा देते थे। 6 महीने पहले ही यहां सीआरपीएफ का कैंप खोला गया। पुलिस और प्रशासन ने मिलकर तय किया कि यहां हर हाल में बिजली पहुंचाई जाएगी। बिजली विभाग ने फिर से फोन लगाना शुरू किया और उन्हें सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के जवानों ने दिन रात सुरक्षा दी। अब तक इस गांव में सोलर पैनल भी नहीं लगा था लेकिन स्वतंत्रता दिवस के ठीक पहले 14 अगस्त की शाम यह गांव बिजली की रोशनी से जगमगा उठा।
गरीब राज्य की आर्थिक हालत
राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर एक चौंकाने वाली खबर चल रही है। डायचे बैंक इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक दास ने 17 राज्यों की एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें बताया गया है कि महाराष्ट्र के बाद सबसे अच्छी राजकोषीय स्थिति छत्तीसगढ़ की है। इसके बाद ओडिशा, तेलंगाना का नंबर आता है। पिछले वर्ष गुजरात पांचवें नंबर पर था, जो सरक कर सातवें स्थान पर चला गया है। सबसे खराब वित्तीय हालत वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल हैं। यह आकलन राजकोषीय घाटा, स्वयं का कर राजस्व, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत में राज्य का ऋ ण स्तर आदि के आधार पर किया गया है।
इस रिपोर्ट में राजस्थान का उल्लेख नहीं है अन्यथा यह तुलना करना आसान हो जाता कि फ्री बिजली, गरीबों, किसानों, महिलाओं को नगद राशि देने, कर्ज माफ करने जैसी योजनाओं का किसी राज्य पर कितना असर पड़ता है। इस अध्ययन का विषय यह नहीं था। यह भी नहीं था कि क्या इन राहत योजनाओं के चलते इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट के खर्चों में कोई कटौती की गई या नहीं।
दिलचस्प यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब राज्यों में गिने जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ ने आर्थिक रूप से सुदृढ़ समझे जाने वाले महाराष्ट्र के बाद सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
मगर यह तथ्य बार-बार सामने आ चुका है कि नैसर्गिक संसाधनों के मामले में छत्तीसगढ़ गरीब है ही नहीं। इसके बारे में अमीर धरती के गरीब लोग मुहावरा इस्तेमाल में लाया जाता है। मई 2023 में एक आंकड़ा सामने आया था जिसमें जीडीपी के आधार पर छत्तीसगढ़ को सबसे गरीब राज्य माना गया था, पर यहां रहने वाले लोगों के हिसाब से। इसके अनुसार 39.90 प्रतिशत लोग यहां गरीब हैं। झारखंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की स्थिति भी छत्तीसगढ़ से बेहतर है।
तीन विधायकों की चिंता दूर
कांग्रेस में जबसे उस आंतरिक सर्वे की चर्चा है जिसमें 30 से अधिक मौजूदा विधायकों के प्रदर्शन को खराब बताया गया है और उनके टिकट कटने की आशंका है, हर जगह लोग जानने के लिए उत्सुक है कि किसकी कटेगी, किसकी बचेगी। 15 अगस्त को ध्वजारोहण के लिए मनेंद्रगढ़ पहुंचे स्पीकर डॉ. चरण दास महंत से मीडिया ने यही सवाल कर दिया। पूछा गया कि जिले के तीन विधायकों में से किस-किस की टिकट कटेगी? डॉ. महंत ने कहा कि हमारे तीनों विधायकों का परफॉर्मेंस बढिय़ा है। बढिय़ा है, कह रहा हूं, इसका मतलब यह है कि तीनों फिर चुनाव लड़ेंगे।
डॉ. महंत जब सांसद और केंद्रीय मंत्री थे, तब से पार्टी के मामले में, कोरिया जिले में उनकी खूब चलती है। या कहें कि उनकी सहमति के बिना पुराने कोरिया जिले को लेकर हाईकमान कोई फैसला नहीं करता। ऐसे में मानकर चलना चाहिए कि जो वे कह रहे हैं, ठीक ही कह रहे होंगे।
दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि जिले के तीन में से दो विधायकों का रिपोर्ट कार्ड गड़बड़ हैं। महंत भी जानते होंगे। पर मीडिया के सामने क्या कहना है, यह भी वे जानते हैं।