कर्मचारियों के वेतन के लाले मो. इमरान खान
भोपालपटनम, 27 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। बीजापुर जिले में डीएमएफ फंड रुक गया है, जिसके चलते कई कामकाज में रोड़ा आ गहा है। निर्माण सहित कई कार्यों की रफ्तार थम गई है। राज्य ने डीएमएफ फंड में घोटालों की खबरे सामने आने के बाद इस वक्त वर्तमान सरकार इस पर सख्ती से काम कर रही है।
छत्तीसगढ़ के कई जिलों में फंड देना बंद कर दिया है। बीजापुर जिले की हालत बुरी है। डीएमएफ से चलने वाले कार्य थम गए हैं। सैकड़ों कर्मचारी शासकीय विभागों में कार्यरत हैं, उनके वेतन के लाले पड़े हुए हैं। पिछले कुछ महीनों से राज्य में चल रही खींचतान के बाद फंड का रोड़ा बना हुआ है।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने 2015 में प्रधानमंत्री खदान क्षेत्र कल्याण योजना के कानूनी प्रावधानों के तहत जिला खनिज न्यास (डीएमएफ) का कानून बनाया था। इसके तहत प्रदेश से निकलने वाले गौण खनिज की रॉयल्टी के अनुपात में एक निश्चित रकम डीएमएफ में जमा होती है। इसका ख़र्च जिले में जरुरत के हिसाब से किया जाता हैं। कलेक्टरों की अध्यक्षता में कमेटियों का गठन किया था।
साल 2018 में कांग्रेस सरकार आने के बाद इस व्यवस्था को बदल दिया गया था कुछ महीनों से खबरे यहाँ आ रही थी कि डीएमएफ फंड में बड़ा घोटाला हुआ है। इस मद का दुरूपयोग करते हुए कई करोड़ अन्दर किए हैं, इसकी उच्च स्तरीय जाँच चल रही हैं।
स्वास्थ्य विभाग को महीना 48 लाख का भुगतान
डीएमएफ मद से स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को हर महीने मोटी रकम देनी पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग के 155 कर्मचारियों का 48 लाख रुपए का भुगतान हर माह किया जाता है।
बीजापुर में 90, भोपालपटनम में 17, भैरमगढ़ में 25, उसूर में 23 कर्मचारी कार्यरत हैं। आलम यह है कि नक्सल प्रभावित जिले में डीएमएफ मद से नियुक्त कर्मचारियों को चार माह से वेतन नहीं मिल रहा है। क्योंकि जिले में फंड की कमी है। इसमें सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी हैं, डॉक्टर सहित स्टॉफ नर्स तृतीय, चतुर्थ वर्ग कर कर्मचारी शामिल हैं, इसके साथ ही अन्य विभागों में कार्य कर रहे कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया जा रहा हैं।
निर्माण सहित कई कार्यों की थमी रफ्तार
सत्ता परिवर्तन के बाद जिले में डीएमएफ फंड नहीं होने से सम्पूर्ण जिले में चल रहे निर्माण सहित अन्य कार्य थम गए हैं। विकास की गति थम सी गई हैं। ऐसा ही रहा तो जिले की आर्थिक स्थिति खऱाब होगी, इससे जुड़े कई लोगों पर इसका प्रभाव पड़ेगा।
बारह हजार की सैलरी वाले शिक्षादूतों की मुश्किलें बढ़ी
जिले के धूर नक्सल प्रभावित इलाकों में आज भी कई स्कूल झोपडिय़ों में संचालित हो रही है, तो कई स्कूलों में झोपड़ी भी नहीं है। आधे से अधिक स्कूलों में नियमित शिक्षकों की पोस्टिंग तक नहीं की गई है। गांव के बारहवीं पास युवाओं को शिक्षा दूत बनाया गया है, जिनके भरोसे कई कक्षाएं संचालित की जा रही है। लेकिन उन्हें समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा है। कई महीनों से इनकी सैलरी लटकी हुई है। डीएमएफ फंड की कमी के चलाते शिक्षादूत भी परेशान हैं।
दो डॉक्टरों ने छोड़ी नौकरी
वेतन नहीं मिलने से परेशान जिला अस्पताल के अब तक दो डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ दी है, इसमें डॉ. सचिन पापड़े स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. आरुषि शर्मा जनरल मेडिसिन शामिल हैं। महीने में बराबर सैलरी नहीं मिलने से अपना रिजाइन लेटर थमाकार चले गए हैं।
इस संबंध में सीएमएचओ डॉ. बीआर पुजारी का कहना है कि डीएमएफ में बदलाव होने से फंड में दिक्कत हो रही है। हम प्रयास कर रहे हैं कि जल्द से जल्द फंड आवंटित हो और हम वेतन का भुगतान करवा पाए।
इस संबंध में प्रेम कुमार आइल जिलाध्यक्ष डीएमएफ फंड का कहना है कि पिछले कई महीनों से वेतन बराबर नहीं मिल रहा है। इसकी शिकायत हमने स्वास्थ्य मंत्री से की है। शिकायत के बाद एक महीने का वेतन डाला था, लेकिन चार महीने से वेतन नहीं मिल रहा है। कलेक्टर और सीएमएचओ को लेटर दिया, लेकिन फंड नहीं होने की बात कह रहे हैं।