बीजापुर

प्राथमिक शाला वरदली के विद्यार्थी टीन की चादर के नीचे पढऩे मजबूर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भोपालपटनम, 22 जुलाई। बीजापुर जिले के भोपालपटनम विकासखंड के ग्राम पंचायत मुख्यालय वरदली में संचालित प्राथमिक शाला के विद्यार्थी छतविहीन भवन में बैठकर धूप और बारिश से बचने के लिए टीन की चादर से सिर ढंकने के लिए मजबूर हैं। यह कठिन स्थिति इस आदिवासी क्षेत्र के नौनिहालों का पढ़ाई के प्रति सकारात्मक जज़्बे और जुनून को प्रदर्शित करती है।
शाला-भवन की दुर्दशा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व जिला पंचायत सदस्य एवं कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता बसंत राव ताटी ने कहा कि ‘हमने बनाया है हम ही सँवारेंगे’का नारा देने वाली भाजपा सरकार में दिनोंदिन चरमराती शिक्षा-व्यवस्था और संबंधितों की उपेक्षा अत्यंत शर्मनाक है।
ताटी ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद शाला-भवनों की स्थिति अत्यंत जर्जर है,जिस वजह से स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के सिर पर छत तक नसीब नहीं है। शिक्षा की यह कैसी गुणवत्ता है?
पूर्व जिला पंचायत सदस्य ने पढ़ाई के प्रति बच्चों की लगन और उनके अभिभावकों के साहस की सराहना करते हुए इस प्रतिस्पर्धा के समय में भविष्य के प्रति उनकी चिंता को रेखांकित किया है।
ताटी ने कहा कि ‘मुख्यमंत्री शाला जतन योजना’ के अंतर्गत लगभग एक साल पहले ही वरदली के इस शाला-भवन की मरम्मत के नाम पर पाँच लाख रुपये खर्च किये गये हैं,लेकिन इसकी हालत देखकर ऐसा नहीं लगता कि वह राशि इस भवन के मरम्मत कार्य पर खर्च की गई।
उन्होंने यह भी कहा कि विभागीय अधिकारियों की साँठ-गाँठ से मरम्मत के नाम पर प्राप्त राशि का बंदरबांट कर लिया गया है, जिसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
पूर्व जिला पंचायत सदस्य ताटी के अनुसार, एक ओर जहां शिक्षक मलाईदार पद प्राप्त कर वातानुकूलित कमरों में आराम फरमा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बच्चे छतविहीन शाला-भवनों में बैठकर खुले आसमान के नीचे अपना भविष्य गढऩे पर मजबूर हैं।
इस स्थिति पर अफसोस जाहिर करते हुए बसंत ताटी ने कहा कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा समय-समय पर क्षेत्र का दौरा कर स्थितियों का जायजा नहीं लेने के कारण ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित हुई हैं, जो कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
पूर्व जिला पंचायत सदस्य ने साय सरकार पर आरोप लगते हुए कहा कि नवीन शिक्षा सत्र शुरू हुए लगभग एक माह बीत जाने बावजूद स्कूल में बच्चों को अब तक किताबें भी नसीब नहीं हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश की डबल इंजन की सरकार ने इस क्षेत्र के आदिवासी बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का मन बना लिया है।