‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गरियाबंद, 19 सितंबर। उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र के 17 गांवों को विस्थापन करने हेतु राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण दिल्ली द्वारा राज्य सरकार को 2024 विस्थापन नीति के तहत उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र के 17 गांवो को विस्थापन विरोध में सैकड़ों आदिवासी महिला पुरुष गांधी मैदान में आम सभा, रैली के माध्यम विरोध प्रदर्शन, नारेबाजी करते उपनिदेशक सीतानदी उदंती टाईगर रिजर्व कार्यालय घेराव कर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौंपा।
बुधवार को उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के कर क्षेत्र के 51 गांव से सैकड़ों की संख्या में महिला-पुरुष स्थनीय गांधी मैदान में एकत्रित हो आम सभा का आयोजन कर अपनी बातों को रखा। दोपहर बाद शांति पूर्वक रैली निकालकर उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व कार्यलय का घेराव कर जम कर नारे बाजी कर एसडीएम राकेश गोलछा को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के नाम ज्ञापन सौंपे।
सौपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि उपनिदेशक उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व गरियाबंद (छ0ग0) एनटीसीए का 19 जून 2024 का आदेश, जिसमें 591 गांवों से 64801 परिवारों के विस्थापन का प्रस्ताव है, कानून और संरक्षण की भावना का उल्लंघन है और इसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाना चाहिए।
अत्यंत गंभीर और चिंताजनक मुद्दे कि ओर लाना चाहते है जो प्राथमिकता रूप से हस्तक्षेप कि मांग करता है। हाल ही में, दिनांक 19 जून 2024 को एनटीसीए (एनटीसीए यानी राष्ट्रीय बाघ संरक्षक प्राधिकरण) द्वारा एक पत्र डी ओ नंबर 15-3/2008, जारी किया गया जिसमें 19 राज्यों (जहां बाघ कि उपस्थिति दर्ज है) के चीफ वाइल्डलीफ वार्डेन को बाघ अभ्यारणों के कोर क्षेत्रों में निवासित लोंगो व समुदायों को प्राथमिकता के आधार पर विस्थापन करने, विस्थापन को लेकर समयबद्ध कार्य योजना बनाने और इन विस्थापन की प्रगति की नियमित समीक्षा करते रहने का निर्देश दिया गया है।
एनटीसीए के पत्र के अनुसार, 54 अभ्यारणों के कोर क्षेत्रों या किटिकल टाइगर हैबिटेट्स के अंदर 848 गांवों के लगभग 89,808 परिवार रहते है।
ज्ञात हो कि यह 89808 परिवार जो कि आदिवासी और अन्य वन आश्रित समुदायों से है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2006 के अनुसार एवं वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वन अधिकारों के हकदार है। इसमें से, प्रोजेक्ट टाइगर की शुरूआत के बाद से 257 गांवों में रह रहे 25,007 परिवारों को अभी तक विस्थापित कर दिया गया है और 64801 परिवारों वाले 591 गांव अभी भी अधिसुचित कोर के अंदर निवासित है।
एनटीसीए द्वारा जारी आदेश में 54 बाघ अभ्यारणों के कोर क्षेत्रों से इन 591 गांवों के 64801 परिवारों के शीघ्र विस्थापन और पुनर्वास का निर्देश दिया गया है।
एनटीसीए द्वारा वनों पर निर्भर समुदायों के विस्थापन के निर्देश को लेकर उठाए गए कदम अत्यंत भयावह है और चिंताजनक है। आदिवासी, वन आश्रित समुदायों और अन्य स्थानीय समुदायों के अधिकार और भूमिका, किसी भी प्रकार कि टिकाऊ और न्यायपूर्ण संरक्षण मॉडल का अभिन्न अंग है, और इन्हे भारत व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कानूनों में इन समुदायों के अधिकारों और संरक्षण में इनकी भूमिका की विधिवत मान्यता भी दी गई है।
एनटीसीए द्वारा उठाए गए कदम और विस्थापन के लिए दिये आदेश वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (2006) वन अधिकार अधिनियम 2006, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनस्र्थापन 2013 (एलएआरआर) में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण), 1989 कानूनों का पूर्ण उल्लंघन है और कानूनी ढांचों के अनुपालन में और अनुसूचित - जनजाति (अत्याचार निवारण), 1989 कानूनों का पूर्ण उल्लंघन है और कानूनी ढांचों अनुपालन में अभाव के संरक्षण की भावना के निरादर को प्रदर्शित करता है।
एनटीसीए की गाइड लाइन है उसमें स्वेच्छा से जो ग्रामीण जन चाहे जो कोर एरिया में बसे हैं अगर वे चाहे उनको किया जा सकता है, उनको समझाई गई है। मुख्य उद्देश्य उनको विस्थापित करना नहीं बल्कि जो मानव द्वंद वन्य प्राणियों के साथ निर्मित होती हैं उसे कम करना मेजर उद्देश्य हैं,ताकि ईको पर्यटन अभ्यारण्य क्षेत्रो में धीरे-धीरे बढ़े ताकि स्थानीय ग्रामीणों को उसका सीधा फायदा रोजगार के माध्यम से मिले।