रायपुर, 6 जून। व्यापारिक संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वाइस चेयरमेन अमर पारवानी, प्रदेश एक्सक्यूटिव चेयरमेन जितेन्द्र दोशी, प्रदेश अध्यक्ष परमानंद जैन, प्रदेश महामंत्री सुरिंदर सिंह एवं प्रदेश कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल ने बताया कि कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वाइस चेयरमेन अमर पारवानी जी के नेतृत्व में कैट का प्रतिनिधी मंडल वित्तमंत्री ओ.पी. चौधरी से मुलाकात कर ऐसे मामलों में अपील दायर करने में माफी प्रदान करने का अनुरोध, जहां अपील समय पर दायर नहीं की जा सकी और आयुक्त अपील द्वारा समय बीत जाने के कारण खारिज कर दी गई हेतु ज्ञापन सौपा।
श्री पारवानी ने बताया कि कैट का प्रतिनिधी मंडल माननीय वित्तमंत्री श्री ओ.पी. चौधरी जी से मुलाकात कर ऐसे मामलों में अपील दायर करने में माफी प्रदान करने का अनुरोध, जहां अपील समय पर दायर नहीं की जा सकी और आयुक्त अपील द्वारा समय बीत जाने के कारण खारिज कर दी गई हेतु ज्ञापन सौपा। उन्होनें बताया कि ज्ञापन के माध्यम से माननीय वित्तमंत्री श्री ओ.पी. चौधरी जी को अवगत कराया गया कि पिछले दो वर्षों में करदाताओं को वर्ष 2017-18 से 2021-22 की अवधि के लिए लगातार जीएसटी पोर्टल पर नोटिस भेजे गए हैं, लेकिन उन्हें करदाताओं के पंजीकृत ई-मेल पर या करदाता के पंजीकृत पते पर भौतिक रूप से नहीं भेजा गया।
श्री पारवानी ने बताया कि इसके कारण, कई नोटिस अप्राप्त रह गए और अधिकारियों द्वारा एकपक्षीय रूप से ऐसे आदेश पारित किए गए, जिनमें विवादित मांगें थीं और उन्हें करदाताओं के पंजीकृत ई-मेल पर या करदाता के पंजीकृत पते पर भौतिक रूप से भेजे बिना ही जीएसटी पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया। करदाताओं को ऐसे आदेशों के बारे में तब तक पता नहीं था, जब तक उन्हें कर की वसूली के लिए कॉल और ईमेल प्राप्त नहीं हुए। वित्तमंत्री ओ.पी. चौधरी ने इस विषय पर कैट टीम को सकारात्मक आस्वासन देते हुए कहा कि इस मुद्दे को जीएसटी कांउसिल के समक्ष रखा जायेगा। और व्यापारियों के हितां का ध्यान रखा जायेगा।
श्री पारवानी ने बताया कि जब करदाताओं को ऐसे आदेशों के बारे में पता चला, तो उन्होंने माफी आवेदनों के साथ देरी से अपील दायर की। हालांकि, अपीलीय प्राधिकारी द्वारा इन्हें खारिज किया जा रहा है, क्योंकि उसके पास अपील दायर करने की नियत तिथि से 30 दिनों से अधिक की देरी को माफ करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में, करदाता के पास कोई अन्य उपाय नहीं बचता है।