‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बचेली, 2 जून। लौह नगरी बचेली में इन दिनों गौ सेवा एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। एइसीओ एनजीओ के बैनर तले गीतांजलि सरकार, फिरोज नवाब, प्रदीप गुप्ता, अरुणा टंडन और रोहित पटेल जैसे समर्पित समाजसेवी सडक़ किनारे ही मूक प्राणियों का इलाज करने को मजबूर हैं। स्थिति यह है कि गायों की मरहम-पट्टी से लेकर छोटे ऑपरेशन तक खुले आसमान के नीचे किए जा रहे हैं।
इस एनजीओ की स्थापना वर्ष 2013 में गीतांजलि सरकार ने की थी, जिन्होंने मूक प्राणियों के प्रति सेवा भावना को आत्मसात करते हुए गौ सेवा का बीड़ा उठाया। समय के साथ यह कार्य संगठित रूप से आगे बढ़ा और संस्था ने कई पशुओं के लिए जीवनदायिनी सेवा का कार्य किया। कोरोना महामारी के दौरान भी, जब पूरा देश लॉकडाउन में था, तब भी संस्था ने जान जोखिम में डालकर पशुओं को चारा और इलाज उपलब्ध कराया।
हालांकि, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज भी गौवंश के इलाज के लिए कोई स्थायी स्थान उपलब्ध नहीं है। वेटनरी विभाग के पास भी पर्याप्त स्थान नहीं है। समाजसेवी व संस्था के लोग सेवा देने को तत्पर हैं, लेकिन पशुओं को रखने की जगह न होने से उपचार कार्य सडक़ पर ही करना पड़ता है।
प्रशासन से आग्रह कर रहे हैं कि कम से कम कुछ गायों के इलाज और देखभाल के लिए एक स्थायी, सुरक्षित और सुविधायुक्त स्थान प्रदान किया जाए।
एक समय गौठान का निर्माण कार्य भी हुआ था, लेकिन वह भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सका। वह स्थान अब ग्राम पंचायत के अधीन है और नगर पालिका के हाथ से निकल चुका है। नतीजतन, आज तक उस निर्माण का कोई वास्तविक लाभ मूक प्राणियों को नहीं मिल सका।
नगर पालिका चुनावी घोषणा पत्र में इस बार गौ शाला के निर्माण का वादा किया गया है। लोगो को उम्मीद है कि यह वादा सिर्फ कागजों तक सीमित न रहे, बल्कि जमीनी हकीकत में तब्दील हो।
एनजीओ की प्रमुख गीतांजलि सरकार और फिरोज नवाब का कहना है कि यदि प्रशासन थोड़ा सा भी सहयोग करे और एक छोटा स्थान इलाज के लिए मुहैया कराए, तो मूक प्राणियों की सेवा और संरक्षण का कार्य और भी प्रभावशाली रूप से किया जा सकेगा। यह सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि मूक प्राणियों की जान बचाने की ज़रूरत है।