रायपुर, 6 जून। जमात-ए-इस्लाम हिन्द (विमिंस विंग)की मीडिया इंचार्ज, रायपुर (छत्तीसगढ़) नुजहत सुहैल पाशा ने बताया कि जब लाखों इंसान, अलग-अलग मुल्कों, भाषाओं, रंगों और सामाजिक हैसियतों से निकलकर, एक ही सफ़ेद लिबास में, एक ही मक़सद और एक ही मंजि़ल की ओर बढ़ते हैं- तो वो महज़ एक धार्मिक इबादत नहीं रह जाती, बल्कि एक जि़ंदा तस्वीर बन जाती है उस ख़्वाब की जो हर इंसान देखता है - एक ऐसी दुनिया का ख़्वाब जहाँ न कोई बादशाह हो, न कोई फक़़ीर, न कोई ऊँचा हो न नीचा, न कोई गोरा हो न काला - बस इंसान हो, और उसकी पहचान उसका किरदार और नियत हो।
क़ुरआन की रौशनी में: इंसान की असल पहचान
मीडिया इंचार्ज ने बताया कि क़ुरआन कहता है: ऐ लोगो! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हें क़ौमों और क़बीलों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। अल्लाह के नज़दीक सबसे इज़्ज़त वाला वो है जो सबसे ज़्यादा परहेजग़ार (तक़्वा वाला) है। (सूरह हुजुरात: 13). यह वो बुनियादी हक़ीक़त है जो हज के मंजऱ में नुमायाँ हो जाती है - जहाँ न रंग का फक़ऱ् होता है, न ज़ुबान का, न दौलत का - हर कोई एक जैसे अहराम में, एक ही ख़ुदा के सामने सर झुकाए खड़ा होता है।
सीरत-ए-नबवी में हज का पैग़ाम
मीडिया इंचार्ज ने बताया कि पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) ने अपने आखिरी हज (हज्जतुल विदा) में फऱमाया: न किसी अरबी को अजरबी (ग़ैर-अरबी) पर कोई बड़ाई है, और न किसी गोरे को काले पर - इज़्ज़त का पैमाना सिफऱ् तक़्वा है। ये पैग़ाम उस दौर में दिया गया जब नस्लीय भेदभाव आम था और इंसानों को उनके रंग और नस्ल की बुनियाद पर तौला जाता था। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने बिलाल (रजि़.) को अज़ान का मक़ाम दिया, सलमान फ़ारसी, सुहैब रूमी और अम्मार बिन यासिर जैसे ग़ैर-अरब सहाबा को ऊँचा दर्जा दिया -यही तो हज का असली पैग़ाम है।
हज - बराबरी की रूहानी ट्रेनिंग
मीडिया इंचार्ज ने बताया कि हज एक ऐसी इबादत है जो इंसान को न सिफऱ् अल्लाह से जोड़ती है, बल्कि इंसानों को भी आपस में जोड़ती है: एहराम - ये याद दिलाता है कि सबकी पहचान एक है; तवाफ़ - हमें बताता है कि जि़ंदगी का असली मरकज़ अल्लाह है; अराफ़ात का मैदान - वो दिन जब इंसान रो-रो कर अपनी ग़लतियों से तौबा करता है;
क़ुर्बानी - इब्राहीम और इस्माईल की तरह सब कुछ अल्लाह के लिए छोड़ देने का पैग़ाम देती है। ये सब हमें सिफऱ् इबादत नहीं, इंसानियत का सबक सिखाते हैं।
आज की दुनिया में हज की अहमियत
मीडिया इंचार्ज ने बताया कि आज जबकि नस्ल, धर्म और जात के नाम पर समाज बंटा हुआ है; अमीरी-गऱीबी की खाई गहरी हो रही है; इंसानों के बीच नफऱतें और तास्सुब (भेदभाव) बढ़ रहा है; ऐसे में हज एक रोशनी की किरण है जो बताती है कि हम सब एक ही मूल से आए हैं; इंसान की असली पहचान उसका किरदार है, रंग या जात नहीं;