कश्मीर के पहलगाम में सैलानियों पर हुए हमले, और खासकर एक धर्म के मर्दों को छांटकर मारने की खबरों से लोग बहुत विचलित हैं। ऐसे में सोशल मीडिया तरह-तरह की बातों को लिखने के लिए एक बहुत उपजाऊ जमीन बन जाना तय ही था। लोगों के मन की जितनी नाजायज भड़ास थी, और उनका आज का जो जायज दर्द है, इन दोनों ने मिलकर कई तरह के सच-झूठ फैलाने का बीड़ा उठा लिया है। और यह बात सिर्फ पहलगाम के आतंकी हमले की नहीं है, कुंभ हो, या कि किसी और तरह का हादसा, हिन्दुस्तान में लोग ढूंढ-ढूंढकर पुराने वीडियो निकालते हैं, उनमें ताजा घटना की जानकारी जोड़ते हैं, और उन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में जुट जाते हैं। फिर जिन लोगों को वॉट्सऐप पर इस किस्म का गढ़ा हुआ जहरीला कचरा मिलता है, उन्हें यह अपना नैतिक दायित्व लगता है कि वे इसे कम से कम 21 और ग्रुप्स में आगे बढ़ाएं, ताकि एक वक्त की एक लोकप्रिय देवी के साथ जुड़ा हुआ टोटका पूरा हो सके।
इस वक्त गूगल की खबरों का पेज हमारे सामने खुला हुआ है जिसके आखिर में तथ्यों की जांच का एक हिस्सा है। इसमें चार अलग-अलग फैक्ट चेकर्स ने एक लाश के ऊपर बैठे एक बच्चे का वीडियो परखा है, जो कि पहलगाम का बताकर चारों तरफ फैलाया जा रहा था, और अमर उजाला, आजतक, नवभारत टाईम्स, और विश्वास न्यूज, इन सभी ने अपनी जांच में यह पाया है कि यह कश्मीर के सोपोर में 2020 में हुए आतंकी हमले का है, और इसका पहलगाम हमले से कुछ भी लेना-देना नहीं है। आज जब देश भर में अलग-अलग दर्जनों शहरों में पहलगाम में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार चल रहे हैं, और आंखें भीगी हुई हैं, तब भी कई लोग मोबाइल फोन और लैपटॉप की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए हुए झूठ फैलाने में लगे हुए हैं। उनका समर्पण अगर समाज की एकता के लिए रहता तो हिन्दुस्तान आज दुनिया में सद्भावना का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया रहता। छोटी सी दिक्कत यह है कि समर्पित भाव से इतनी मेहनत करने वाले लोग आमतौर पर नफरतजीवी हैं, और आज इस राष्ट्रीय दुख-तकलीफ के बीच भी वे अपने समर्पण को कुछ देर के लिए किनारे नहीं रख पा रहे हैं।
हमने कश्मीर के पहलगाम से निकले हुए ऐसे दर्जनों वीडियो दो दिनों में देखे हैं जिनमें अलग-अलग सैलानी उन्हें बचाने वाले कश्मीरी मजदूरों, गाईड, और खच्चरवालों, और दूसरे लोगों की तारीफ कर रहे हैं कि उन्होंने किस तरह उनकी जान बचाई। एक वीडियो में तो एक कश्मीर मजदूर एक घायल, और लहूलुहान बच्चे को पीठ पर लादे हुए पहाड़ी पर दौड़ रहा है। पहलगाम हमले में मारा गया अकेला मुस्लिम वह खच्चरवाला मजदूर था जिसने सैलानियों को मारने का विरोध किया था, और शायद किसी आतंकी की बंदूक थाम ली थी। उसे वहीं पर मार डाला गया, और वह घर का अकेला कमाऊ पूत था। उसके जनाजे में कल कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी पहुंचे, क्योंकि उनके पास वक्त ही वक्त था। केन्द्र सरकार राजधानी श्रीनगर में सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की जितनी बैठकें ले रही है, उनसे उमर अब्दुल्ला को बाहर ही रखा गया है क्योंकि कश्मीर में सुरक्षा केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। यह बात हैरान करती है कि ऐसी असाधारण नौबत में भी प्रदेश के निर्वाचित मुख्यमंत्री को सुरक्षा बैठक में नहीं रखा गया, लेकिन खैर, यह केन्द्र सरकार का अपना फैसला है, और कश्मीर की हिफाजत अकेले उसी की जिम्मेदारी भी थी, और है, इसलिए वह तय करे कि सुरक्षा बैठकों में कौन रहे, और कौन न रहे।
हम फिर से इन बातों पर लौट रहे हैं जो कि सोशल मीडिया पर चारों तरफ फैलाई जा रही हैं। लोग अगर चाहें तो कश्मीर के स्थानीय गरीब मुस्लिम मजदूरों, ऑटोरिक्शा वालों, और खच्चर-टैक्सी वालों की दरियादिली के भी दर्जनों वीडियो मौजूद हैं, जिनमें देश के बाकी हिस्सों से गए हुए, मोटेतौर पर, हिन्दू पर्यटक उनकी तारीफ कर रहे हैं कि उन्होंने कैसे सैलानियों की जान बचाई, मदद की, और अपनी जान को खतरा में डाला क्योंकि सैलानी तो लौट आएंगे, और चारों तरफ फैल चुके अपने वीडियो के साथ कश्मीर के गरीब मुस्लिम पर्यटन-मजदूर अपने चेहरों और नाम के साथ उसी कश्मीर में रहेंगे, आतंकी खतरों के बीच। लेकिन कुछ लोगों को ऐसा भाईचारा भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लायक लग रहा है, और कुछ लोगों को किसी और हादसे के दर्दनाक वीडियो पहलगाम के बताकर नफरत फैलाने की जरूरत भी लग रही है। फिर बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि इन दोनों किस्म के पोस्ट करने वाले लोगों की पोस्ट पर कमेंट करते हैं, और वहां कुछ लोग सद्भावना की बातें लिख रहे हैं, और उनसे कई गुना अधिक लोग नफरत की बातें लिख रहे हैं।