संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत की तरफ से अब हिसाब चुकता, पाकिस्तान पर नजरें...
सुनील कुमार ने लिखा है
07-May-2025 5:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भारत की तरफ से अब हिसाब चुकता, पाकिस्तान पर नजरें...

दो हफ्ते के इंतजार के बाद भारत ने पाकिस्तान पर एक सीमित हवाई हमला करके पहलगाम आतंकी हमले का जवाब दिया है। और अभी दोपहर दो बजे जब हम इस मुद्दे पर लिख रहे हैं तो एक बड़ा अजीब संयोग है कि पाकिस्तानी सेना के मुताबिक भारत के हमले और सरहदी गोलीबारी में पाकिस्तान में 26 लोगों की मौत हुई है, और यह ठीक वही संख्या है जितने सैलानियों को भारत के कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने मार डाला था। पाकिस्तान का यह भी कहना है कि उसने बीती रात के इस हमले में शामिल भारत के पांच लड़ाकू विमानों को गिराया है और इस बारे में भारत ने अभी कुछ नहीं कहा है। थोड़ी सी जानकारी और दे देना जरूरी है कि भारत सरकार की तरफ से दी गई जानकारी में पाकिस्तान और पाक प्रशासित कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर भारतीय विमानों ने हमला किया था, और इसे पहलगाम का हिसाब चुकता करना बताया गया है। इस ऑपरेशन का नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा गया था जो कि शायद सैलानियों में से छांट-छांटकर मारे गए मर्दों के पीछे बच गईं उनकी पत्नियों के लिए एक प्रतीकात्मक राहत की तरह है। अभी हम प्रतीकों की भाषा में अधिक जाना नहीं चाहते क्योंकि यह सरहद पर बरसों बाद की इतनी तनातनी का एक ऐसा मौका है जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों ही बहुत अलग-अलग किस्म के जटिल अंतरराष्ट्रीय संबंधों से गुजर रहे हैं, और पूरी दुनिया महाशक्तियों के बीच एक नए शक्ति संतुलन से गुजर रही है। ऐसे में रूस, चीन और अमरीका ने भारत और पाकिस्तान को जो सलाह दी थी, उसे भी ध्यान में रखना था, और भारत की सरकार पर यह एक बड़ा दबाव था कि वह कुछ करके दिखाए। भारत के भीतर एक मुखर राष्ट्रवादी तबका इस मौके को पाकिस्तान को टुकड़े-टुकड़े कर देने के लायक मान रहा था, और है। लेकिन दूसरी तरफ हकीकत को बेहतर जानने वाले लोग यह मानते हैं कि आज की अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के बीच बेतहाशा चीनी पूंजी निवेश वाले पाकिस्तान पर कोई बहुत बड़ी जंग थोप देना भारत के लिए भी मुमकिन नहीं था, फिर चाहे भारत की फौजी ताकत पाकिस्तान से कई गुना अधिक ही क्यों न हो। पाकिस्तान की आज जो आर्थिक हालत है उसमें यह बात जाहिर है कि वह किसी जंग में भारत से किसी तरह नहीं निपट सकता, लेकिन पाकिस्तान का चाहे बहुत अधिक बड़ा नुकसान हो जाए, कुछ हद तक नुकसान तो ऐसी किसी जंग में भारत का भी हुआ रहता, या कि होगा।

आज कई लोग इसे जंग मानकर चल रहे हैं। हमारा मानना है कि यह भारत में हुए एक आतंकी हमले के जवाब में भारत की की गई कार्रवाई है, और जैसा कि भारत सरकार ने खुद ही साफ किया है कि यह किसी भी तरह से पाकिस्तान के फौजी ठिकानों पर किया गया हमला नहीं है, भारत ने यह कहा है कि उसने सिर्फ आतंकी ठिकानों पर हमला किया है पाकिस्तान के किसी सैन्य प्रतिष्ठान पर नहीं। इस बात के महत्व को दो तरीके से समझने की जरूरत है, पहली बात तो यह कि भारत ने पाक सरकार या फौज पर हमला न करने की बात कहकर एक किस्म से उस देश को यह क्लीन चिट दी है कि पहलगाम के हमले के पीछे पाक सरकार नहीं थी। दूसरी तरफ उसने बीती आधी रात के बाद के इस हमले को लेकर यह कहा है कि पहलगाम का हिसाब चुकता हो गया। इन दोनों बातों को मिलाकर अगर देखें तो इसका मतलब यह निकलता है कि भारत ने अपनी तरफ से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को आज की तारीख का आखिरी हमला मान लिया है। लेकिन पाकिस्तान की सरकार पर भी यह दबाव तो है ही कि वह इसके जवाब में कुछ करे, और पाकिस्तान के मंत्रियों ने जिस लापरवाह और गैरजिम्मेदार अंदाज में पिछले हफ्ते-दस दिन में लगातार परमाणु हथियारों को बाहों की मसल्स की तरह सार्वजनिक रूप से फडक़ाया है, तो उससे भी पाकिस्तान पर भारत को कोई न कोई जवाब देने का एक दबाव तो है ही। भारत ने अपनी आज की कार्रवाई को केंद्रित और नपी-तुली कहा है, और यह बात कुछ हद तक तथ्यपूर्ण भी लगती है कि सरहद पर चल रही छिटपुट गोलीबारी के बीच भी यह हवाई हमला अंधाधुंध नहीं था, और फौजी ठिकानों पर नहीं था। ऐसा लगता है कि भारत ने चीन, अमरीका, और संयुक्त राष्ट्र सभी की सलाह को कुछ या अधिक हद तक माना है कि पाकिस्तान के खिलाफ उसकी कार्रवाई पहलगाम के अनुपात में रहे, सीमित रहे, और इस क्षेत्र में एक फौजी संघर्ष को पैदा न करे।

लोगों को याद होगा कि कुछ महीने पहले जब इजराइल और ईरान में फौजी तनातनी हुई थी, दोनों तरफ से एक-दूसरे पर कुछ हमले हुए थे, तो एक सीमित नुकसान के बाद दोनों या तो निजी समझदारी से, या अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय दबाव में थम गए थे। उन दोनों के बीच टकराव किसी जंग में तब्दील नहीं हो पाया था, और इजराइल ने भी ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले नहीं किए थे। भारत और पाकिस्तान के बीच भी चीन और अमरीका जैसी दो महाशक्तियां सीधा दखल रखती हैं। और आज अमरीका के टैरिफ-युद्ध के बीच बाकी तमाम देशों के लिए यह मजबूरी भी है कि वे अमरीका से परे आपस में मिलजुलकर रहना सीखें। इसलिए आज जब अमरीका से जख्मी चीन और भारत को साथ बैठकर कारोबारी रिश्ते बढ़ाने हैं, तो पाकिस्तान से भारत का फौजी टकराव उसमें बहुत मदद नहीं करेगा। इसलिए सरहद के दोनों तरफ आम फतवेबाजों के बीच जंग की जितनी भी बातें हों, असल में जंग उतनी अधिक बढ़ते नहीं दिखती है। अच्छा भी यही है, और सीमित कार्रवाई या सीमित जवाब ही आज की समझदारी है। भारत के सामने अपार आर्थिक चुनौतियां हैं, जिनमें एक चुनौती यह भी है कि पहलगाम जैसी चूक दुबारा न हो। हजारों सैलानियों को इस सरहदी राज्य में जिस तरह बिना किसी हिफाजत के छोड़ दिया गया था, उसकी वजह से भी ऐसा हमला मुमकिन हो पाया था। इसलिए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला करके हिसाब चुकता करना तो ठीक है, लेकिन इससे परे देश के भीतर भी ऐसी नौबत दुबारा न आए इसकी जिम्मेदारी भारत को अधिक गंभीरता से उठानी पड़ेगी। साथ-साथ खुद पाकिस्तान के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है कि अगर उसकी निर्वाचित सरकार और फौज पहलगाम हमले के पीछे नहीं थीं, तो उसे अपनी जमीन पर चल रहे आतंकी ठिकानों को बंद करवाना होगा, वरना हिंदुस्तान का बड़ा हमला झेलने की हालत में पाकिस्तान है नहीं। आज पाकिस्तान बहुत बुरी तरह फटेहाल हो चुका है, और कोई जंग सरकार को जिंदा रहने लायक ऑक्सीजन तो दे सकती है, लेकिन वह हर मुंह और पेट से कई कौर छीन भी लेगी।

एक आखिरी बात जो इस सिलसिले में हम करना चाहते हैं वह परमाणु हथियारों की है, लंबी दुश्मनी वाले ये दोनों पड़ोसी राज्य पहले कई बार जंग में उलझ चुके हैं। और पाकिस्तान ने अपने तमाम पिछड़ेपन के बावजूद, गरीबी के बावजूद परमाणु हथियार बनाने में कामयाबी पाई है। इन दोनों देशों में से पाकिस्तान ही अधिक अराजकता का शिकार है, वहां की फौज निर्वाचित सरकार के काबू के बाहर रहती है, और वहां के धर्मांध आतंकी सरकार और फौज दोनों पर कई तरह का दबदबा रखते हैं। ऐसे में, ऐसे कमजोर लोकतंत्र के हाथ परमाणु हथियार रहना न सिर्फ इन दोनों देशों के लिए खतरनाक है बल्कि हिंद महासागर के तमाम इलाके के लिए खतरनाक है। हम पाकिस्तान में किसी बददिमाग फौजी तानाशाह, या किसी धर्मांध आतंकी संगठन के हाथ परमाणु हथियारों तक पहुंच जाने पर हैरान नहीं होंगे। इसलिए भी तमाम अंतरराष्ट्रीय ताकतों को पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत करने में हिस्सेदारी निभानी चाहिए। एक धार्मिक राष्ट्र, धर्मांध आतंकियों का दबदबा, भ्रष्ट और अराजक फौज ये सब मिलकर कब एक परमाणु खतरे का सामान बन जाए इसका ठिकाना नहीं है। इसलिए तनातनी के आज के मौके को गंभीरता से लेते हुए अंतरराष्ट्रीय ताकतों को अपनी वैश्विक जिम्मेदारी निभानी चाहिए, और इस परमाणु खतरे का इलाज करना चाहिए।

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