संपादकीय

तस्वीर / सोशल मीडिया
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच जिस तरह कारोबारी बांह मरोडक़र अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने युद्धविराम कराया है, उसे लेकर फेसबुक पर युद्धविराम के तीन दिन पहले ही एक व्यक्ति ने खुलासे से यह लिख दिया था कि किस तरह अमरीका इन दोनों देशों को दो-चार दिन आतिशबाजी करने देगा, इन्हें तरह-तरह के दावे करने देगा, और उसके बाद इन दोनों के बीच युद्धविराम कराकर खुद उसकी घोषणा करेगा। फेसबुक पर कोई साधारण व्यक्ति बीती तारीख में जाकर तो कुछ पोस्ट कर नहीं सकता, इसलिए जाहिर है कि किसी ने काफी पहले से इसका अंदाज लगा लिया था, और बहुत से लोगों को जो रहस्य समझ में नहीं आ रहा है, उस रहस्य के बारे में एक भविष्यवाणी कर दी थी। खैर, हम किसी भी तरह की मध्यस्थता से होने वाले युद्धविराम के खिलाफ नहीं हैं, और इसलिए चाहे जिसने इसे कराया हो, हम इसे जंग से बेहतर समझते हैं। भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पाकिस्तान पर फौजी कार्रवाई के लिए बिना शर्त खुला समर्थन देने वाले विपक्ष ने भी अब यह सवाल शुरू कर दिए हैं कि ट्रम्प ने किस हैसियत से युद्धविराम की घोषणा की, इसका खुलासा करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलवाया जाए। लेकिन हम भारत की घरेलू राजनीति से परे ट्रम्प के बारे में सोचते हैं, तो थोड़ी सी हैरानी होती है कि क्या दुनिया में लोकतंत्र, कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सारे ही परंपरागत तौर-तरीके एकदम से कचरे की टोकरी में डाल दिए गए हैं? इसके साथ-साथ अमरीका के योरप से संबंध देखें, तो अमरीका ने योरप को उसकी औकात दिखा दी है, और दूसरी तरफ कल तक के दुश्मन रूसी राष्ट्रपति पुतिन को गले लगाकर उसके साथ हमबिस्तरी शुरू कर दी है। यह किस किस्म का अंतरराष्ट्रीय ढांचा बन गया है, यह तो एआई की भी कल्पनाओं से बाहर का है।
कुछ लोग यह मानते हैं कि दुनिया में चली आ रही, लीक पर चलती हुई, बंधी-बंधाई व्यवस्था के बीच बिल्कुल नए नजरिए की संभावना नहीं रह जाती है। अमरीका दोस्तों और दुश्मनों की परिभाषाओं के बीच, अंतरराष्ट्रीय समुदायों, और अलग-अलग देशों के प्रति अपने वायदों के बीच बहुत हद तक एक बंधा हुआ देश था। ट्रम्प ने आते ही जिस अंदाज में अमरीकी सरकार की सोच और उसके रिश्तों के ढांचों को मलबे में तब्दील किया, उसके सामने तो गाजा का मलबा भी फीका दिखने लगा है। हम पहले भी लिख चुके हैं कि ट्रम्प ने अमरीका के भीतर संवैधानिक संस्थाओं, लोकतांत्रिक नीतियों, सरकार में नैतिकता के पैमानों, इन सबको जिस तरह तहस-नहस कर दिया है, वह बहुत भयानक है। इसके साथ ही ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतरराष्ट्रीय जलवायु समझौतों को उठाकर जिस तरह कचरे की टोकरी में डाल दिया है, उसे देखना भी दिल दहलाता है। ऐसे में जब ट्रम्प एक सनकी तानाशाह के अंदाज में पूरी दुनिया पर कारोबारी शर्तें लादता है, पल-पल में उन्हें बदलता है, कहीं गाजा पर कब्जा करके सैरगाह बनाने की बात करता है, तो कहीं रूस और यूक्रेन को अपनी शर्तों पर युद्धविराम को कहता है, और यूक्रेन के खनिज भंडारों पर कब्जे की शर्तें लादता है, यह देखना भयानक है। वह अमरीका की अगुवाई वाले पौन सदी पुराने संगठन नेटो को लात मारकर योरप से अपनी शर्तों पर रिश्ता रखने की बात थोपता है, अमरीकी अदालतों के फैसलों को अनसुना करता है, यूएसएड जैसे अमरीकी समाजसेवी संगठन के बजट को खत्म करता है, जिस तरह वह अमरीकी विश्वविद्यालयों का बजट छीनता है, वह सब दुनिया के इतिहास के सबसे बड़े तानाशाहों को भी मासूम दिखाता है।
मनमानी करता हुआ ऐसा ट्रम्प दुनिया को कहां ले जाएगा? वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का स्वाभिमान रखने वाले भारत को भी कारोबार बंद कर देने की धमकी देकर पाकिस्तान से फौजी कार्रवाई के बीच में युद्धविराम करने को कहता है, और हैरतअंगेज तरीके से खुद सोशल मीडिया पर इसकी मुनादी करता है। आखिर यह ट्रम्प है कौन? इतना ताकतवर तो अमरीका कभी नहीं था कि वह अपने अलावा दुनिया के हर देश को यह अहसास करवाता चले कि वे इससे अधिक कमजोर कभी नहीं थे। हम युद्धविराम के हिमायती हैं, और हम इस बात का भी बुरा नहीं मान रहे कि भारत और पाकिस्तान दोनों देश एक तीसरे की मध्यस्थता से किसी सहमति पर पहुंच रहे हैं। शांति किसी भी दरवाजे से आए, उसका स्वागत होना चाहिए, लेकिन ट्रम्प का क्या होना चाहिए? अब इस तानाशाह के सामने यही बचा है कि वह जिराफ को कहे कि वह हाथी जैसी सूंड विकसित कर ले, वरना कटने को तैयार रहे, और वह हाथी को कहे कि वह गर्दन जिराफ जैसी कर ले, वरना भूखे रहने को तैयार रहे।
आज ट्रम्प दुनिया की सबसे बड़ी फौजी और आर्थिक ताकत के सबसे अधिक अश्लील और हिंसक इस्तेमाल से एक नई विश्व-व्यवस्था बनाते चल रहा है। यह किस लागत पर बन रही है, इससे दुनिया का भविष्य कितना नाजुक और खतरनाक हो जाएगा, इसका अभी अंदाज लगाना मुश्किल है। लेकिन यह बात तय है कि तानाशाह खुद को ही जनकल्याणकारी तानाशाह कह या मान सकते हैं, दुनिया में जनकल्याणकारी तानाशाह जैसी कोई चीज हो नहीं सकती। ट्रम्प पूरी दुनिया को अपनी सनक से चलाते हुए इसे कुछ हफ्तों पहले के मुकाबले अधिक सुरक्षित बनाने का दावा कर रहा है, लेकिन वह अनगिनत तरीकों से दुनिया की हिफाजत के लिए बनाई गई विश्व-व्यवस्था को मटियामेट कर चुका है। आज भारत जैसे विशाल देश भी उसके जैसे तानाशाह हुक्म को सुनने को मजबूर हैं, वह देखना भयानक है। अभी कुछ हफ्ते पहले ही ट्रम्प के महज सौ दिन पूरे हुए हैं, और अभी 12 सौ से अधिक दिन उसके कार्यकाल के बचे हुए हैं। और उसके बाद के लिए भी वह यह बात बोल चुका है कि वह तीसरे कार्यकाल के लिए भी अमरीकी संविधान में एक असंभव सी संभावना ढूंढ रहा है, और मतदाता ऐसा चाह रहे हैं। पिछले कई बरसों से दुनिया में सबसे ताकतवर हो चुके अमरीका को देखते हुए यह कहा जा रहा था कि दुनिया में आज एकध्रुवीय व्यवस्था हो गई है, ट्रम्प के आने के बाद बहुत साफ-साफ यह दिखता है कि दुनिया में एक व्यक्ति की व्यवस्था हो गई है। आगे-आगे देखें, होता है क्या। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)