संपादकीय

जैसा कि किन्हीं भी दो देशों के बीच चलते फौजी संघर्ष में युद्धविराम के वक्त हो सकता है, भारत और पाकिस्तान के बीच भी कल शाम से लागू युद्धविराम बीच-बीच में टूटते दिख रहा है, और दोनों देश एक-दूसरे पर हमले करने की तोहमतें लगा रहे हैं। इस बीच लोग इस बात पर भी हैरान हो रहे हैं कि एक दिन पहले तक जो अमरीका कह रहा था कि उसका इस लड़ाई से कोई लेना-देना नहीं है, किस तरह उसके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और विदेश मंत्री ने, उन्हीं के शब्दों में, ‘रात भर जागकर’ दोनों देशों को युद्धविराम के लिए तैयार किया है। इस पूरे सिलसिले में कई बातें हैरान करती हैं, और उस हैरानी की यहां चर्चा करने से परे हम युद्धविराम की जरूरत पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं। यह युद्धविराम एकदम ही अटपटे तरीके से सामने आया, और कई सवाल छोड़ गया।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 की शिमला समझौते से यह सहमति चली आ रही थी कि दोनों के आपसी विवाद सिर्फ दोनों मिलकर निपटाएंगे, और किसी तीसरे को इसमें शामिल नहीं करेंगे। हालांकि शिमला समझौते में यह भी है कि दोनों देशों की सहमति से किसी तीसरे पक्ष को शामिल किया जा सकता है, और शायद वैसा ही अभी अचानक हुआ कि दूर बसा हुआ अमरीका फिलीस्तीन और यूक्रेन के बाद, भारत-पाकिस्तान के बीच भी अचानक चौधरी बन बैठा। इन दोनों देशों को छोडक़र अमरीकी राष्ट्रपति ने कल शाम अपने एक ट्वीट से दुनिया को यह जानकारी दी कि दोनों ही देश अमरीका की रात भर की कोशिशों से तुरंत और पूरी तरह से युद्धविराम के लिए तैयार हो गए हैं। यह बात जितनी चौंकाने वाली थी, उससे अधिक ध्यान लोगों का सरहद पर चल रहे हमलों की तरफ था, इसलिए किसी ने पहली नजर में इसे महत्वपूर्ण नहीं माना कि युद्धविराम की पहली खबर अमरीकी राष्ट्रपति कैसे जारी कर रहे हैं, वे तो किसी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मध्यस्थता की चर्चा में भी नहीं थे। लेकिन आज फिर ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से अपनी खुद की सोशल मीडिया, ट्रुथ-सोशल पर यह लिखा है- मुझे भारत और पाकिस्तान के मजबूत और अटल नेतृत्व पर गर्व है जिन्होंने इस समय में समझदारी और हिम्मत दिखाई। लाखों निर्दोष लोगों की जानें जा सकती थीं। अमरीका ने इस ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय तक पहुंचने में मदद की। उन्होंने अपनी अटपटी जुबान में यह भी लिखा कि वे दोनों पक्षों के साथ काम करके देखेंगे कि क्या कश्मीर विवाद में अब हजार बरस बाद कोई समाधान पाया जा सकता है?
बीती रात भारत और पाकिस्तान दोनों ही एक-दूसरे पर हमला जारी रखने की तोहमतें लगा रहे थे, और आज कुछ टीवी समाचार चैनल अपनी पूरी ताकत से कोशिश कर रहे हैं कि ये हमले किसी तरह जारी रहें, लेकिन ऐसा लग रहा है कि फिलहाल तो दुनिया के डॉन के साथ बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान अभी घोषित आपसी बातचीत में लगेंगे, और सरहद को समाचार चैनलों के भरोसे छोड़ेंगे। आज दोपहर पाकिस्तान पर कुछ हमले करने की बात भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कही है, लेकिन हमारा मानना है, या कम से कम हमारी हसरत है कि यह सिलसिला भी अब थमते-थमते थम जाएगा। हमारे नियमित पाठक यह देख ही रहे होंगे कि हम पिछले कई दिनों से लगातार इस बात को उठा रहे थे कि दुनिया के बाकी देशों, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इन दोनों परमाणु हथियार संपन्न देशों पर अपने असर का इस्तेमाल करके इस लड़ाई को रूकवाना चाहिए, और ट्रम्प ने वही किया। हम इस बात को अधिक महत्वपूर्ण नहीं मान रहे कि वो दोनों देशों के बीच मध्यस्थ की जगह सरदार बनने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनकी ऐसी जुबानी जमाखर्ची चलती ही रहती है, और वे खुद अपनी ही बातों का खंडन भी करते ही रहते हैं। हम द्विपक्षीय वार्ता के पुराने फैसले पर अड़े रहकर आपस में ही सिर फोडऩे के बजाय किसी तीसरे के साथ बैठकर शांति कायम करने के हिमायती हैं, और किसी तीसरे का दखिला नाजायज जरा भी नहीं है, 1972 के बाद से अब तक झेलम और चिनाब में बहुत पानी बह चुका है, और अब दुनिया को नई वैश्विक-व्यवस्था के साथ जीना सीखना चाहिए जिसमें पेड़तले चबूतरे पर लाठी लेकर बैठा हुआ ट्रम्प सभी मामलों को मार-मारकर सुलझा रहा है। चाहे उसी की कोशिश से, भारत और पाकिस्तान के बीच गैरजरूरी लड़ाई का थमना जरूरी था। और अब दोनों पक्ष बैठकर कल 12 मई को बातचीत करेंगे जो कि पिछले कई दिनों के हमलों के पहले भी की जा सकती थी, और नहीं की गई थी। उसके लिए पाकिस्तान पर भारत के आतंक-विरोधी हमले की जरूरत पड़ी, उन हमलों का पाकिस्तान की तरफ से जवाब देने की जरूरत पड़ी, और बहुत सी मौतों, बहुत सी बर्बादी के बाद अब बात बातचीत तक आ रही है।
निर्वाचित लोकतंत्र में नेताओं के सामने अपने-अपने देश की जनता को भी संतुष्ट रखना का दबाव रहता है। दूसरी तरफ पाकिस्तान जैसे कमजोर लोकतंत्र में निर्वाचित सरकार पर फौज को भी भरोसे में रखने का, और उसे संतुष्ट रखने का अतिरिक्त दबाव रहता है। ऐसे में सरहद पर दोनों तरफ की फौजों ने गोलीबारी की, जिसमें बहुत से बेकसूर मारे गए, बहुत से सैनिक मारे गए, और साथ-साथ एक-दूसरे के इलाके में घुसकर भी हमले किए गए। इस सिलसिले का थमना जरूरी था जो कि भारत के कश्मीर के पहलगाम में दो दर्जन से अधिक बेकसूर सैलानियों की आतंकी-हत्या से शुरू हुआ था, और कल शाम के युद्धविराम से जिसका कोई हल नहीं निकला है। हम बहुत से रिटायर्ड फौजियों की इस सोच से सहमत नहीं हैं कि अगर भारत को कुछ ठोस हासिल नहीं हुआ था, तो उसे युद्धविराम के लिए तैयार नहीं होना था। इतिहास गवाह है कि दोनों देशों के बीच चली कई लंबी जंग के बाद भी न पुलवामा थमा, न पहलगाम। दुनिया की तमाम दिक्कतों का समाधान बातचीत से निकालने की कोशिश बेहतर होती है, और जंग को आखिरी विकल्प की तरह रखना चाहिए। अमरीका ने आज जिस तरह दोनों देशों की बांह पकडक़र उन्हें टेबिल पर बैठने के लिए तैयार किया है, यह संभावना चीन के पास कुछ अधिक थी, लेकिन वह इस मौके को गंवा बैठा, या फिर भारत के साथ सीधे टकराव की वजह से चीन मध्यस्थ बन नहीं सकता था। जो भी हो, हम हमले लगभग थमने से राहत की साँस ले रहे हैं, और अपने आपको मीडिया कहने वाले एक तबके के लोग अभी तक फूली हुई साँसों से जंग जारी रखने के लिए जो ओवरटाइम कर रहे हैं, हम उनके अपने पापी पेट के प्रति समर्पण को सलाम करते हैं। उनकी कुछ किस्मत ही खोटी थी कि हमले हफ्ते भर के भीतर थम गए हैं, और पूरी जंग की शक्ल ले नहीं पाए हैं। दुनिया के देशों में बातचीत के रिश्ते बरकरार रहने चाहिए, और हथियारों के सौदागरों की साजिशें कामयाब नहीं होने देनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान के अंगने में वैसे तो ट्रम्प का कोई काम नहीं था, लेकिन जंग रोकने में जो काम आ सके, हम सरहद की बेगानी शादी में उस दीवाने अब्दुल्ला का स्वागत करते हैं।