संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रेत माफिया ने पुलिस सिपाही को कुचल मारा, अब सरकार क्या करेगी?
सुनील कुमार ने लिखा है
12-May-2025 4:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : रेत माफिया ने पुलिस सिपाही को कुचल मारा, अब सरकार क्या करेगी?

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में रेत की अवैध खुदाई और तस्करी कर रहे लोगों ने जांच के लिए पहुंची पुलिस पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया, और एक सिपाही की मौत हो गई। यह देश में जगह-जगह चल रही रेत तस्करी के दौरान हो रही हिंसा का ही एक और मामला है जिसमें रेत को बड़ी अवैध कमाई का धंधा बना लिया गया है, और सरकार के पास इसमें भागीदार बनने की पूरी आजादी रहती है, या फिर रेत माफिया कई जगहों पर अधिकारियों को कुचलकर मार चुका है। छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार आने के बाद उम्मीद थी कि रेत की अवैध खुदाई रूकेगी, खासकर बिलासपुर में अवैध रेत खुदाई के खिलाफ हाईकोर्ट के एकदम कड़े रूख पर सरकार ठोस कार्रवाई करेगी, लेकिन सरगुजा की यह घटना इस धंधे की अराजक ताकत बताती है। वैसे भी ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब किसी न किसी जिले में नदी में बड़ी-बड़ी दानवाकार मशीनें लगाकर अवैध रेत खुदाई करके ले जाने वाली बड़ी-बड़ी गाडिय़ों की धरपकड़ न होती हो। कार्रवाई भी होते दिखती है, लेकिन ऐसा लगता है कि वह रेत माफिया के पूरे कारोबार के अनुपात में कुछ नहीं है। अगर हजार जगह अवैध खुदाई चल रही है, तो हर दिन दस-बीस जगह कार्रवाई से माफिया की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा।

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हमने पिछले पांच बरस कांग्रेस सरकार के दौरान भी यही हाल देखा था, और इससे भी अधिक बुरा। उस वक्त रेत खदानों की लॉटरी जिन लोगों की निकली थी, उनमें से हर किसी पर यह दबाव डाला गया था कि वे सत्ता के किसी पसंदीदा व्यक्ति को अघोषित भागीदार बनाएं, और आधी कमाई उसे दें। यह पूरी तरह से रंगदारी थी, और इसके बारे में सरकार, और रेत-कारोबार में बच्चे-बच्चे को मालूम था। कुछ जिलों में तो जिन लोगों को रेत खदानें मिली थी, उन्हीं को कलेक्टरों के मार्फत साफ-साफ कहला दिया गया था कि वे खदान को भूल जाएं, और उनकी जगह मनोनीत कोई और रंगदार अवैध खुदाई करके आसपास के प्रदेशों तक रेत बेच रहा था। सरकार ने विधायकों को खुश रखने के लिए, और अपने पाले में रखने के लिए उन्हें रेत खदानों में भागीदारी दिलवा दी थी, और जो लोग सरकार की तरफ से अवैध शराब कारोबार कर रहे थे, वे लोग अवैध रेत कारोबार भी नियंत्रित कर रहे थे। सरकार के कुछ चुनिंदा अफसरों की मेज से ऐसा अघोषित नियंत्रण चल रहा था, और रेत में रंगदारी का एक नया इतिहास उस दौर में लिखा गया था। यह बात बहुत सहज नहीं थी कि प्रदेश में दारू के सरकारीकरण होने के ठीक पहले तक जो लोग दारू के ठेके चलाते थे, वे अब बेरोजगार होने के बजाय रातोंरात रेत ठेकेदार बन गए थे, और सरकार के साथ उनके कारोबारी रिश्ते ज्यों के त्यों जारी थे, दो नंबर की दारू की जगह वे अब दो नंबर की रेत बेच रहे थे, धंधे के तौर-तरीके काम आ रहे थे, बस माल बदल गया था।

आज प्रदेश में सरकार रोज कहीं न कहीं बड़ी-बड़ी मशीनें, और बड़े-बड़े हाईवा कहे जाने वाले मालवाहक जब्त कर रही है कि वे अवैध रेत खुदाई में लगे हैं। लेकिन यह बात हमें समझ नहीं आ रही है कि आधा-एक करोड़ रूपए की गाडिय़ों की ऐसी जब्ती के बाद भी इन मुजरिमों की सेहत पर फर्क क्यों नहीं पड़ रहा है? क्या इन्हें मामूली जुर्माना करके छोड़ दिया जा रहा है? या फिर ये इतना कमा चुके हैं कि गाड़ी की जब्ती भी इन्हें महंगी नहीं लगती? अब सरगुजा में रेत माफिया के हाथों एक सिपाही की मौत के बाद हो सकता है सरकार कोई कड़ी कार्रवाई करे, लेकिन इस मौत के पहले भी अगर बड़ी-बड़ी जब्त गाडिय़ों के मालिक गिरफ्तार हो गए रहते, उन्हें कई तरह के मामलों में जेल हो गई रहती, तो शायद इस सिपाही की हत्या की नौबत नहीं आई रहती।

दूसरी बात इस धंधे को लेकर यह है कि जिला प्रशासन के खनिज विभाग से लेकर नदी के रेतघाट के इलाके के थाने तक, हर किसी की इस संगठित जुर्म में ऐसी मजबूत भागीदारी बन जाती है कि छापे और जब्ती की नौबत भूले-भटके ही कभी आती है। जो लोग कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं, उन्हें मालूम है कि रेत का अधिकतर हिस्सा दो नंबर का आता है, उसके साथ किसी तरह की रायल्टी पर्ची नहीं आती, और सब रेत चोरी या अवैध खुदाई की रहती है। दरअसल एक सरकार में जब भ्रष्टाचार इतना संगठित और इतना फौलादी ढांचे वाला हो जाता है, तो अगली सरकार में भी उसके कमजोर होने की गुंजाइश बड़ी कम रहती है। हमारा यह मानना है कि सरकार अगर चाहे तो उसके जिला प्रशासन दो दिन में रेत का सारा अवैध धंधा खत्म कर सकता है। पता नहीं किस स्तर पर सरकार के फैसले में कमी या कमजोरी है, या ऐसा सोचना तो ज्यादती होगी कि रेत माफिया शासन-प्रशासन से भी अधिक ताकतवर है। सरकार को चाहिए कि रेत के धंधे में जितनी गाडिय़ों की जब्ती होती है, उनका जब्ती के बाद क्या होता है, इसका हिसाब भी जनता के सामने रखे, और इन गाडिय़ों के मालिकों को किन-किन धाराओं में कितनी कैद दिलवाई गई है, यह भी बताए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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