संपादकीय

छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बड़ी मामूली सी समझबूझ से एक निहायत गैरजरूरी इंतजाम को बदला है जिससे कि सरकारी अमले का एक संगठित भ्रष्टाचार खत्म होगा, और आम जनता को बड़ी सहूलियत होगी। अब जमीन, मकान, या किसी भी तरह की सम्पत्ति की खरीद-बिक्री होने पर रजिस्ट्रार ऑफिस से ही सरकारी रिकॉर्ड में नए मालिक का नाम चढ़ जाएगा, अभी इसके लिए रजिस्ट्री के कागजात लेकर लोगों को खुद तहसील दफ्तर में महीनों तक चक्कर लगाने पड़ते थे, और हजारों रूपए की रिश्वत एक बिल्कुल ही संगठित उगाही थी। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि इसी जगह हम पहले कई बार लिख चुके हैं कि किसी सत्तारूढ़ पार्टी की हार में पटवारी-तहसीलदार के दफ्तर, और इलाज का सरकारी इंतजाम, इन दो की बदइंतजामी ही सबसे अधिक जिम्मेदार रहती है। अच्छी-खासी जान-पहचान या ठीक-ठाक असर रखने वाले लोग भी इन जगहों पर जाकर बेबस हो जाते हैं क्योंकि एक जगह बिना रिश्वत कोई काम नहीं होता, और दूसरी जगह इलाज की बदइंतजामी को साक्षात ईश्वर आकर भी नहीं रोक सकते। हम आज के रायपुर के अखबारों को एक नजर देखकर ऐसी दर्जनों खबरें सामने रख सकते हैं जो बताती हैं कि किस तरह पटवारी और तहसीलदार ने भूमाफिया के साथ मिलकर केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं को बड़ी जालसाजी और साजिश से लूटा, और आज ऐसे कई लोग जेल में हैं। राजस्व विभाग के सरकारी रिकॉर्ड में धांधली त्रेता और द्वापर युग से चली आ रही है, और मध्यप्रदेश के एक रिटायर्ड चीफ सेक्रेटरी ने अपने संस्मरणों की एक किताब में यह लिखा था कि पटवारी सबसे ताकतवर व्यक्ति होता है, और वे खुद अपने खेतों की फसल आने पर उसका एक हिस्सा पटवारी को भेजते हैं। छत्तीसगढ़ में इन दिनों जो दूसरा मामला खबरों में छाया हुआ है, वह सरकारी अस्पतालों के लिए दवा और उपकरण खरीदी का है, और ऐसा लगता है कि सरकार के बड़े-बड़े अफसर गब्बर सिंह के गिरोह की तरह सरकारी खजाने पर डकैती डालने को अपना हक मान रहे थे, और उनके साथ कालिया और सांभा जैसे मेडिकल सप्लायर भी थे। कांग्रेस सरकार के पांच बरसों में दवा और बाकी मेडिकल खरीदी की साजिश को देखें तो लगता है कि आज भी सरकार के इस विभाग में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राजा हरिश्चन्द्र के डीएनए से क्लोन बनाकर किसी को तैयार करना चाहिए, और उसे मेडिकल खरीदी का काम देना चाहिए।
हमने बात शुरू की थी खरीदी गई सम्पत्ति के नामांतरण के हक की। सम्पत्ति की रजिस्ट्री करवाने वाले सरकार को बहुत भारी फीस देते हैं, इसके बावजूद रजिस्ट्री ऑफिस का हॉल देखें तो वहां लाखों-करोड़ों की फीस देने वाले लोग भीख मांगने वालों सरीखी धक्का-मुक्की में खड़े रहते हैं। क्योंकि रजिस्ट्री सरकार का एकाधिकार है, इसलिए जनता और कहीं जा नहीं सकती। अगर चार और कंपनियों को ऐसी रजिस्ट्री का काम दे दिया जाए, तो सरकारी रजिस्ट्री ऑफिस में चमगादड़ लटक जाएंगे। यह तो अच्छी बात है कि राज्य बनने के पच्चीसवें बरस तक सरकार को अपने खुद के कामकाज में यह सुधार सूझा, जिसके लागू होने पर अब तहसील ऑफिस में लोग गमी में सिर भी मुंडा सकते हैं, लेकिन जनता को राहत मिलेगी, और सरकार अपनी एक बुनियादी जिम्मेदारी पूरी करेगी जिसके लिए उसने मोटी रजिस्ट्री-फीस वसूल की है। राज्य सरकार को चाहिए कि अपने बाकी सारे विभागों के हर कामकाज को देखे कि किस तरह काम में दुहराव घटाया जा सकता है, जनता से गैरजरूरी कागजात और सूचना मांगना बंद किया जा सकता है, और सरकारी ऑफिसों में काम को समय पर निपटाया जा सकता है। एक दिक्कत यह रहती है कि जब कभी ऐसे सुधार की कोई बात होती है, तो किसी रिटायर्ड मुख्य सचिव को ऐसा जिम्मा दे दिया जाता है, जिन्होंने पूरी जिंदगी इसी प्रदेश में आईएएस अफसर रहते हुए धेले का सुधार नहीं किया, मुख्य सचिव रहते हुए सुधार नहीं किया, और अब रिटायर होने के बाद वृद्धावस्था-पुनर्वास करके उनसे उम्मीद की जाती है कि अब वे सुपरमैन या स्पाइडरमैन के अंदाज में सब सुधार देंगे। ऐसे पुनर्वास से अगले साल-दो साल इन सुविधाभोगियों को और सुविधा मिल जाती है, जनता को कुछ नहीं मिलता। अगर आम जनता के कामकाज में सरकारी गैरजरूरी अड़ंगेबाजी घटानी है, तो इसमें ऐसे दफ्तरों के बाहर स्टॉल लगाकर लोगों की दिक्कतें पूछना चाहिए, और उसके आधार पर सुधार करना चाहिए।
कल ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रदेश के राजस्व विभाग के कामकाज की समीक्षा की है, और उन्होंने इस बात को माना है कि राजस्व विभाग (पटवारी, तहसीलदार, नजूल अधिकारी जैसे लोग) के मैदानी अमले की लापरवाही सरकार की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। उन्होंने कहा कि राजस्व न्यायालय (तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर, और कमिश्नर) हफ्ते में कम से कम दो दिन अनिवार्य रूप से लगें, और दो ही पेशी में मामले निपटाए जाएं। इस बैठक में उनके कहे गए मुद्दे सचमुच ही किसी काबिल और ईमानदार अफसर के लिखे हुए, या मुख्यमंत्री के अपने सीधे तजुर्बे के दिखते हैं जिसमें उन्होंने राजस्व न्यायालयों की आम गड़बडिय़ों का जिक्र भी किया है, और ऐसे मामले जल्द से जल्द निपटाने को कहा है। अगर सरकार के अलग-अलग विभाग सीएम की इस मंशा के मुताबिक कामों को जल्दी निपटाने लगेंगे, और राज्य सरकार खुद सरकारी कामकाज में गैरजरूरी दुहराव को खत्म कर पाएगी, तो उससे सरकार की छवि एकदम बदल सकती है। नीचे के स्तर का ऐसा भ्रष्टाचार किसी बड़े नेता को बहुत बड़ी कमाई नहीं देता, यह जरूर हो सकता है कि पटवारी और तहसीलदार जैसे लोग अपने तबादले रूकवाने या करवाने के लिए मोटी रकम खर्च करते हों, लेकिन सत्ता में राजस्व अमले से ऐसी उगाही का लालच छोडक़र राज्य सरकार को जनता का भला सोचना चाहिए।
आज भी जिन जिलों में कलेक्टर राजस्व विभाग में आने वाले नियमित कामकाज, और शिकायतों का समयबद्ध निपटारा करते हैं, वहां पर सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी कम रहती है। सम्पत्ति नामांतरण में तहसील की भूमिका को खत्म करने का दो-तीन दिन पहले का सरकारी फैसला, और कल मुख्यमंत्री का बैठक में दिया गया निर्देश, सरकार के बाकी कामकाज को भी इन्हीं दो इरादों के मुताबिक सुधारना और बदलना चाहिए। आज अमरीका में किसी भी सरकारी फॉर्म को भरवाते हुए यह देखा जाता है कि एक भी गैरजरूरी जानकारी न मांगी जाए, और हर फॉर्म में लिखा रहता है कि उसे भरने में औसतन कितने मिनट लगेंगे। भारत में इतने किस्म की गैरजरूरी जानकारी मांगने का चलन है कि जनता जब पूरी जानकारी दाखिल नहीं कर पाती, तो वह उसके एवज में रिश्वत देने को मजबूर होती है। अगर जानकारी ही कम से कम मांगी जाएगी, तो रिश्वत के मौके भी कम से कम आएंगे। छत्तीसगढ़ राज्य को सुधार की एक नई मिसाल पेश करना चाहिए, और इसमें किसी परमाणु तकनीक के फॉर्मूले की जरूरत नहीं है, इसके लिए खुले दिमाग और मजबूत इच्छाशक्ति से काम बन जाएगा।