संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वारेन बफे रिटायर हो रहे हैं, उनका दान जारी
06-May-2025 9:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : वारेन बफे रिटायर हो रहे हैं, उनका दान जारी

क्या कोई व्यक्ति अपने कारोबार में इतिहास का सबसे कामयाब इंसान हो जाने के बाद 94 बरस की उम्र में रिटायर होने की घोषणा करे, तो उसे लोगों को चौंकाना चाहिए? अमरीका के वारेन बफे ने शेयर बाजार के इतिहास के सबसे कामयाब कारोबारी बन जाने के बाद अब अपनी कंपनी की लीडरशिप अपने एक दूसरे सहयोगी को देना तय किया है, और लोग यह सोचकर हैरान हैं कि वारेन बफे अब अपना दिन कैसे गुजारेंगे? वे पूरी जिंदगी हर दिन काम करते रहे, 50-60 बरस पहले के एक ही मकान में रहते आए, और सादगी के साथ उन्होंने बड़ी समाजसेवा भी की जिसमें उन्होंने अपनी आधी सम्पत्ति समाज के लिए देने की शुरूआत की, और बाद में उनसे प्रभावित होकर माइक्रोसॉफ्ट के मुखिया बिल गेट्स ने भी यही काम किया। इसके बाद वारेन बफे ने अपनी सम्पत्ति का 99 फीसदी हिस्सा समाजसेवा के कामों के लिए देने की घोषणा कर दी, बड़ा हिस्सा वे दे चुके हैं, और अपनी जिंदगी या मरने के बाद कुल मिलाकर 99 फीसदी सम्पत्ति वे लोगों के लिए दे देंगे। वे दुनिया के 5वें सबसे रईस व्यक्ति हैं, और 99 फीसदी दान देकर वे एक दूसरा इतिहास भी रच रहे हैं।

1930 में पैदा वारेन बफे ने बड़ी दिलचस्प तरीके से 11 बरस की उम्र में ही घर-घर जाकर चुइंगगम और कोकाकोला के साथ पत्रिकाएं बेचना शुरू किया, और 11 बरस की उम्र में पहला शेयर खरीदा। बाद में उम्दा कॉलेजों की पढ़ाई में उन्होंने पूंजीनिवेश के तरीके पढ़े और सीखे, और 1950 में अपनी कंपनी शुरू की। एक खस्ताहाल कपड़ा कंपनी को खरीदकर उन्होंने पूंजीनिवेश का जरिया बनाया, और उसमें पूरी-पूरी कंपनियों की खरीद-बिक्री करने लगे। वे लगातार ईमानदारी से कारोबार करते रहे, दूरदर्शिता दिखाते रहे, और उनकी कामयाबी बड़ी अनोखी रही। वे एक मिसाल हैं कि किस तरह 50 बरस की उम्र के बाद उन्होंने अपनी अधिकतर दौलत कमाई है, और 60 बरस की उम्र के बाद और भी अधिक। ये आंकड़े देखना बड़ा दिलचस्प है, बफे 30 बरस की उम्र में एक मिलियन डॉलर के व्यक्ति थे, 50 बरस की उम्र में तीन सौ मिलियन डॉलर के, 60 बरस की उम्र में वे 3.8 बिलियन डॉलर के मालिक हो गए थे, और 90 बरस की उम्र में पहुंचने पर वे सौ बिलियन डॉलर से अधिक के हो गए हैं।

किसी कामयाब के बारे में लिखना हमारे लिए थोड़ा अटपटा है, लेकिन बुजुर्ग होने के बाद लगातार कामयाबी को आसमान तक पहुंचाना यह दिलचस्पी का इसलिए है कि इससे और लोग भी यह सबक ले सकते हैं कि कामयाबी के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती, कोई रिटायरमेंट उम्र नहीं होती। और इसी तरह यह भी कि कमाए गए पैसों को उड़ाना जरूरी नहीं है, सादगी से भी जिया जा सकता है, दौलत को पेड़ों पर उगाने के अंदाज में बढ़ाया जा सकता है, और उसका 99 फीसदी हिस्सा समाज के भले के लिए दान किया जा सकता है। ये कुछ बातें ऐसी हैं जिनकी वजह से हम इस आदमी के बारे में यहां लिख रहे हैं। बचपन से मेहनत से आगे बढऩा, धीरे-धीरे लेकिन लगातार आगे बढ़ते चले जाना, और अरबपति-खरबपति कारोबारियों पर अधिक टैक्स लगाने की सोच खुलकर सामने रखना, ये कुछ ऐसी बातें हैं जो वारेन बफे को अनोखा बनाती हैं।

कामयाबी तो हर किसी के हाथ में नहीं रहती, लेकिन अपनी जरूरतों से परे समाज के इतने काम आना, यह तो हर किसी के हाथ में रहता है। हिन्दुस्तान में भी रतन टाटा एक मामूली मकान में रहते थे, लेकिन हर बरस सैकड़ों या हजारों करोड़ रूपए उनकी कंपनियां समाजसेवा पर खर्च करती थी। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में कई ऐसे कामयाब कारोबारी हैं, जो कमाई के आसमान पर पहुंचे हुए हैं, लेकिन उन्हें उतनी ऊंचाई से धरती पर चलने वाले जरूरतमंद इंसान चीटियों सरीखे दिखते और लगते हैं। कुछ कंपनियां समाजसेवा के अपने बजट के आंकड़ों को सामने रखती हैं, लेकिन यह नहीं बतातीं कि उनकी कुल दौलत और कमाई के अनुपात में यह दान कितना है। वारेन बफे और बिल गेट्स ने लगातार दुनिया के सामने दान और समाजसेवा की जो मिसालें रखीं, और निजी दिलचस्पी लेकर एक-एक बड़े कारोबारी से संपर्क करके उन्हें भी अपनी आधी दौलत समाज के लिए देने को तैयार किया, वह एक बड़ी मिसाल है।

आज भारत जैसे लोकतंत्र में बड़ी-बड़ी कंपनियों की समाजसेवा की जिम्मेदारी तय करते हुए सरकार उनसे सीएसआर पर कुछ फीसदी खर्च करने की उम्मीद करती है, और इसके लिए शर्तें भी लगाती है। लेकिन नियमित कमाई को समाज पर कुछ हद तक खर्च करना एक बात है, और अपनी दौलत को समाज के लिए देना एक बिल्कुल ही अलग बात है। ऐसे लोग जो कि अपनी बाकी जिंदगी की जरूरतों से अधिक कमा चुके हैं, उन लोगों को इस बारे में गौर करना चाहिए कि वे समाज के लिए क्या कर सकते हैं। हमें कई बरस पहले का गोदरेज परिवार का एक देखा हुआ मामला याद पड़ता है। देश की एक अच्छी साख वाली इस कामयाब कंपनी के परिवार के एक बुजुर्ग लगातार देश भर में दौरा करते थे, और हर दिन किसी न किसी शहर में वहां समाजसेवा के किसी अच्छे काम के लिए 20-25 लाख रूपए दान करके आगे बढ़ते थे। इस परिवार ने अपने इस बुजुर्ग को यही जिम्मा देकर रखा था, बाकी सदस्य कारोबार से कमाते थे, और उसका कुछ हिस्सा यह व्यक्ति बांटते चलता था। हमने अपने ही शहर में एक बिल्कुल ही परंपरागत कारोबारी, मोतीलाल झाबक को देखा है जिन्होंने अस्पतालों के लिए, दूसरे जरूरतमंदों के लिए, और धर्म के लिए ढेर सारा दान दिया। वो देते ही चले गए। उनकी कोई जमीन बड़े मोटे दाम पर बिकी, तो उन्होंने उसका एक हिस्सा भी किसी अस्पताल के लिए, तो किसी और जरूरत के लिए दान दे दिया।

दान की महिमा कमाई और दौलत के अनुपात में ही हो सकती है। फल-सब्जी के ठेले वाले ने अगर सडक़ किनारे प्याऊ शुरू किया है, तो वह करोड़पति कारोबारी के लगाए हुए वॉटरकूलर के मुकाबले अधिक बड़ा दान है। और जब दौलतमंद लोगों की दौलत के आंकड़े सामने आते हैं, तो यह भी उजागर होता है कि उन्हें अपनी जिंदगी, और अपने परिवार के लिए इस पूरी दौलत की जरूरत तो कभी भी नहीं रहेगी, और ऐसे में वे उसका कितना बड़ा हिस्सा दान कर सकते हैं, इसके लिए कोई जबरिया कानून तो नहीं है, लेकिन वारेन बफे, और बिल गेट्स जैसी मिसालें जरूर हैं। देखते हैं कि इन मिसालों से बाकी दुनिया में दौलतमंद क्या नसीहत लेते हैं।

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