राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : किस दबाव में थे महाधिवक्ता?
18-Nov-2025 8:07 PM
राजपथ-जनपथ : किस दबाव में थे महाधिवक्ता?

किस दबाव में थे महाधिवक्ता?

महाधिवक्ता के पद से सीनियर एडवोकेट प्रफुल्ल एन. भारत के अचानक इस्तीफे ने कई लोगों को चौंकाया जरूर होगा, लेकिन हाईकोर्ट परिसर में इस बात की चर्चा बीते कई दिनों से हो रही थी सरकार के कुछ प्रभावशाली आईएएस अफसरों के साथ उनका टकराव चल रहा है। सोमवार को दिनभर उन्होंने दफ्तर में काम किया और कई मामलों में सरकार की तरफ से पैरवी भी की। रात करीब 8 बजे अचानक इस्तीफा सामने आ गया। मीडिया ने जब उनसे इस्तीफे का कारण पूछा तो उन्होंने यही कहा कि मैंने अपने इस्तीफे में कारण को नहीं दर्शाया है। यानि उन्होंने दूसरी व्यस्तताओं के कारण पद छोड़ा, स्वास्थ्य के कारण छोड़ा, निजी कारणों से छोड़ दिया- इस तरह के बहाने न बनाकर- वजह को छिपा दिया, जिससे कारणों पर अटकलें और तेज हो गईं। चर्चा तो यह भी है कि इस्तीफे का प्रारूप तैयार कर उनके सामने रखा गया, जिस पर उन्हें केवल हस्ताक्षर ही करना था। आज हाईकोर्ट परिसर में उनका इस्तीफा ही चर्चा का विषय रहा। वे हाईकोर्ट पहुंचे तो साथी अधिवक्ताओं ने उन्हें घेरा और कारण पूछा। उन्होंने एक ही बात कही- जमा नहीं। किससे नेताओं से या अफसरों से इस पर खामोश रहे।

चर्चा यह भी रही कि सरकार के कुछ अफसर मनमाना जवाब दाखिल करना चाहते थे जो वास्तव में कानूनसम्मत नहीं होते थे। कई मामलों का जवाब दाखिल करने में अनावश्यक देरी होती थी, जिसे लेकर बेंच की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही थी। कई मुद्दों पर सरकार का बचाव करने के लिए अचानक नियम बदल दिया जाता था और सुनवाई की तारीख के ठीक पहले महाधिवक्ता कार्यालय की जानकारी में लाया जाता था।

भ्रष्टाचार के जिन चर्चित मामलों में एजेंसियों का पक्ष रखा जा रहा है, उनमें महाधिवक्ता कार्यालय की सलाह के बगैर ही पैरवी की जा रही है। इनमें से कुछ को अनाप-शनाप फीस भी दी जा रही है- खासकर, जिन मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में बहस होनी है। महाधिवक्ता कार्यालय में कुछ अन्य पोस्ट होल्डर्स की ताकत एजी से कहीं अधिक हो गई है। कुछ विवाद बड़े औद्योगिक-कार्पोरेट घरानों के मुकदमों से भी जुड़े हैं, जिन पर भी मंत्रालय के ताकतवर अफसरों के साथ तालमेल नहीं बैठ रहा था। कुल मिलाकर- हाईकोर्ट परिसर में जितने समूहों में आप खड़े हो जाएं- एक नई अटकल- एक नया दावा सामने आ रहा है। यह सब इसलिये हो रहा है कि इस्तीफे में कोई कारण नहीं दर्शाया गया। निजी कारणों से- जैसी कुछ प्रचलित पंक्ति लिख दी गई होती तो शायद गुबार कम उठता।

फ्यूज बल्ब और इतिहास

बिहार चुनाव के नतीजे क्या आए, छत्तीसगढ़ में अरसे बाद फ्यूज बल्ब की याद ताजा हो गई। फ्यूज बल्ब शब्द का उपयोग पहली बार तत्कालीन सांसद रमेश बैस ने 2014 के संसदीय चुनाव में किया था। बैस ने यह शब्द, कांग्रेस की ओर से घोषित अपनी प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी छाया वर्मा के लिए कहा था। इसका इतना असर हुआ कि कांग्रेस ने अगले दो तीन दिन में प्रत्याशी बदलकर सत्यनारायण शर्मा को बी फार्म दिया। फिर भी कांग्रेस हार टाल नहीं पाई, और बैस ने सत्यनारायण शर्मा को करीब पौने 2 लाख वोटों के अंतर से हराया था। बहरहाल राजनीतिक बयानों में अब फिर फ्यूज बल्ब सुना गया।

इस बार सीएम विष्णु देव साय ने तीन दिन पहले ही केवल एक प्रत्याशी के लिए नहीं पूरी कांग्रेस के लिए इस्तेमाल किया है। बिहार में करारी हार का सामना करने के लिए कांग्रेस और समूचे विपक्ष की तुलना फ्यूज बल्ब से की है। दरअसल, सीएम ने विपक्ष द्वारा हार के लिए एफआईआर, केंचुआ और ईवीएम पर विपक्षी लांछन पर पलटवार किया था। फिर क्या था भाजपा के साथ कांग्रेस में भी नेता-कार्यकर्ता फ्यूज बल्ब का इतिहास याद करने लगे।

ये शिक्षक बनेंगे, बच्चों के आंख, कान, नाक?

बलरामपुर जिले के मचांदांड कोगवार प्राथमिक स्कूल में सहायक शिक्षक प्रवीण टोप्पो बच्चों को गलत अंग्रेजी स्पेलिंग पढ़ाते हुए पकड़े गए। वीडियो में उन्हें नाक के लिए एनओजीई, कान के लिए ईएआरई और आंख के लिए आईईवाई  लिखते और पढ़ाते हुए देखा गया। इतना ही नहीं, वह सप्ताह के दिनों और परिवार से जुड़े साधारण शब्दों की सही वर्तनी भी नहीं बता सका।

वीडियो वायरल होने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने शिक्षक को निलंबित कर दिया है। स्कूल में कुल 42 बच्चे पढ़ते हैं और दो शिक्षक हैं। अब एक के निलंबन के बाद बच्चों की पढ़ाई और भी प्रभावित होने की आशंका है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश के कई हिस्सों में ऐसे उदाहरण सामने आते रहे हैं। शिक्षक या तो गलत पढ़ा रहे थे या उन्हें खुद मूलभूत भाषा ज्ञान की कमी थी। हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में भी इसी तरह की गलतियों के लिए शिक्षकों पर कार्रवाई हुई है। यह घटनाएं बताती हैं कि समस्या व्यक्तिगत नहीं, बल्कि प्रशिक्षण और निगरानी की कमी का है।

छत्तीसगढ़ में शराब पीकर स्कूल पहुंचने वाले शिक्षकों पर भी कार्रवाई होती है और गलत पढ़ाने वाले पर भी, क्योंकि दोनों ही बच्चों के भविष्य के लिए समान रूप से खतरा हैं। दोनों ही तरह के शिक्षक बच्चों को ही नहीं समाज को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। मगर, निलंबन एक ऐसा इलाज है जो मर्ज तो खत्म नहीं करता- लोगों का गुस्सा तात्कालिक रूप से कम कर देता है। कठोर कार्रवाई, सख्त मॉनिटरिंग, नियमित मूल्यांकन और प्रशिक्षण की जिम्मेदारी तो व्यवस्था के कंधे पर है।

प्रवचन की मेहरबानी

राजधानी रायपुर के सबसे पुराने गुढिय़ारी बाजार इलाके के रहवासी, और कारोबारी परेशान हैं। दरअसल, पीडब्ल्यूडी ने गुढिय़ारी पहाड़ी चौक से रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म सात तक सडक़ 70 फीट चौड़ी करने की योजना बनाई है। ताकि इस भीड़ भाड वाले इलाके में रोजमर्रा की ट्रैफिक जाम की समस्या से निजात मिल सके। परेशानी चौड़ीकरण से नहीं बल्कि जिस तरीके से नगर निगम ने नोटिस थमाई है, उससे स्थानीय लोगों में नाराजगी है।

नगर निगम ने करीब एक किमी सडक़ चौड़ीकरण के लिए 27 मकान-दुकानों को हटाने के लिए नोटिस जारी किया है। चौड़ीकरण के लिए स्थानीय लोग तैयार भी हैं, और अपना हिस्सा देने के लिए तैयार थे। मगर पीडब्ल्यूडी ने चौड़ीकरण के लिए सिर्फ एक ही हिस्से को चिन्हित किया है। नियमत: चौड़ीकरण दोनों तरफ होता है। दूसरे हिस्से को छोडऩे के पीछे वजह यह बताई जा रही है कि कुछ प्रभावशाली लोगों के मकान-दुकान दायरे में आ रहे थे। इनमें से एक जमीन कारोबारी का भी मकान है, जो कि अपने धार्मिक आयोजनों के लिए काफी चर्चा में रहा है।

नोटिस मिलने के बाद प्रभावितों ने निगम अफसरों से पूछताछ की, तो उन्हें बता दिया गया कि प्रस्ताव पीडब्ल्यूडी का है, और जिन मकानों को हटाने का प्रस्ताव है उसकी सूची भी पीडब्ल्यूडी ने भेजी है। चौड़ीकरण प्रस्ताव से प्रभावित लोगों ने बकायदा एक मोर्चा बना दिया है, और नगर निगम के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी अफसरों पर कानूनी कार्रवाई के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं। बहरहाल, आने वाले दिनों में मामला राजनीतिक रंग भी ले सकता है। देखना है आगे क्या होता है।

 


अन्य पोस्ट