राजपथ - जनपथ
मंत्रियों के सहायकों की बारी
सरकार के मंत्री स्थापना के अफसर-कर्मियों को बदलने का सिलसिला जारी है। ताजा घटनाक्रम में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा के विशेष सहायक दुर्गेश वर्मा को भारमुक्त कर दिया गया है। वो राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर हैं, और उनकी सेवाएं सामान्य प्रशासन विभाग को लौटा दी गई है। ये सब यूं ही नहीं हो रहा है। मंत्रियों के निजी स्थापना के अफसर-कर्मियों के खिलाफ शिकायतें आती रही हैं, और कुछ जगह शिकायत पुष्ट पाए जाने पर अफसर-कर्मियों को हटाया गया है।
साय सरकार दो साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। मंत्रियों के शपथ लेने के बाद निजी स्थापना में जगह पाने के लिए अफसर-कर्मियों में होड़ मची रही। संघ परिवार से भी सिफारिशें आई थीं। हाल यह है कि डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और वित्त मंत्री ओपी चौधरी को छोड़ दें, तो बाकी सारे मंत्रियों की निजी स्थापना के अफसर-कर्मियों को बदला जा चुका है। कुछ मंत्रियों को तो अपनी स्थापना के अफसर-कर्मियों का काम पसंद नहीं आया। कुछ अफसर-कर्मी जरूरत से ज्यादा तेज निकले। इन सभी को एक-एक कर हटाया गया।
और तो और तीन माह पहले शपथ लेने वाले तीनों मंत्रियों की निजी स्थापना के अफसर-कर्मी भी बदले जा चुके हैं। दरअसल, मंत्री स्थापना पर संगठन, और सरकार की पैनी नजर है। गंभीर शिकायत मिलने पर तुरंत मंत्री जी को इत्तला कर दी जा रही है। कुछ ऐसे भी हैं जिनके खिलाफ गंभीर शिकायतें हैं, लेकिन मंत्री जी के पसंदीदा होने की वजह से उन्हें बदला नहीं जा रहा है। लेकिन दो साल में ही जिस तरह मंत्री स्थापना के अफसर-कर्मी बदले गए हैं, वैसी नौबत पहले कभी नहीं आई।
आईआरएस अफसर और छत्तीसगढ़ की सेवा
कुछ दिनों पहले हमने इसी कालम में बताया था कि 2014-24 तक 853 आईआरएस अफसरों ने वीआरएस लेकर नौकरी छोड़ी है या कोई और सर्विस ज्वाइन किया है। इसके पीछे मुख्य कारण इस नौकरी का पहले की तरह अब हाईप्रोफाइल न रह जाना, और उच्च स्तरीय दबाव। छत्तीसगढ़ में दो अफसरों ने वीआरएस तो नहीं लिया लेकिन यह राष्ट्रीय महकमा छोड़ राज्य सेवा को ज्वाइन किया है। दोनों ही महिला अफसर हैं। एक ने पांच वर्ष पहले आयकर से डेपुटेशन लेकर छत्तीसगढ़ वित्त विभाग ज्वाइन किया था और अब वह राज्य कैडर में ही समायोजन (एब्जार्ब) के करीब हैं। संयुक्त कमिश्नर स्तर की दूसरी अफसर ने इसी सप्ताह ज्वाइनिंग दी है। उनको अभी विभागीय नियुक्ति नहीं दी गई है। चूंकि वह भी रेवेन्यू सर्विस की हैं इसलिए समझा जा रहा है कि उन्हें वित्त विभाग में ही संचालक स्तर का पद दिया जा सकता है। 05 बैच की अफसर भी यदि 5 वर्ष पूरा कर लेती हैं तो वह भी समायोजन के दायरे में आ जाएंगी। इनके पति यहां आईएएस और संचालक स्तर के अफसर हैं। वैसे इनसे पहले दो और आईआरएस अफसर अमन सिंह, अजय पांडेय छत्तीसगढ़ शासन में काम कर चुके हैं। इनमें से एक ने डेपुटेशन के बाद नौकरी से इस्तीफा दिया था और अभी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हैं। दूसरे ने आयकर छोड़ सेंट्रल जीएसटी की ओर रुख कर लिया।
विकास के लडख़ड़ा जाने की रिपोर्ट
भारत के महालेखाकार की एक रिपोर्ट जारी हुई है। इसके अनुसार जो राज्य बुनियादी ढांचे पर निवेश बढ़ा रहे हैं, उनमें छत्तीसगढ़ कतार में बहुत पीछे दिख रहा है। अप्रैल से अक्टूबर 2025 के बीच पूंजीगत व्यय पर पूरे देश के 19 राज्यों का औसत खर्च 33.5 प्रतिशत था, जबकि छत्तीसगढ़ सिर्फ 13.5 प्रतिशत पर सिमट गया। यानी राज्य में सडक़, पुल, स्कूल, अस्पताल और उद्योग जैसे विकास कार्यों पर बहुत कम खर्च किया जा रहा है। सौ रुपये में सिर्फ साढ़े तेरह रुपये।
पूंजीगत व्यय किसी राज्य की अर्थव्यवस्था की असली रफ्तार मानी जाती है। हरियाणा जैसे राज्य बजट का 85 प्रतिशत तक खर्च कर रहे हैं। तेलंगाना 80 प्रतिशत खर्च के साथ निवेश आकर्षित कर रहा है। केरल और मध्य प्रदेश भी 70 प्रतिशत से ऊपर चल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार अधिक खर्च करने वाले राज्य स्वास्थ्य-शिक्षा और रोजगार जैसे क्षेत्रों में भी सुधार कर रहे हैं। जहां दूसरे राज्य गति पकड़ रहे हैं, वहीं कैग की रिपोर्ट बता रही है कि हमारा राज्य पिछड़ता जा रहा है।
अर्थशास्त्री बेहतर तरीके से बता सकते हैं कि छत्तीसगढ़ पूंजीगत खर्च करने में इतना पीछे क्यों है, पर आम तौर पर फाइलें महीनों तक दफ्तरों में घूमती रहती हैं। बिलासपुर में सेंट्रल जेल के निर्माण का टेंडर 9वीं बार जारी किया जा चुका है। सालों से अटका है और ऐसे मामले पूरे प्रदेश में अनेक मिल जाएंगे। हाईकोर्ट को हाल ही में सडक़ों की हालत पर सुनवाई के दौरान जब बताया गया कि एनआईटी में प्रोजेक्ट का परीक्षण हो रहा है, तो कोर्ट ने कहा- एक दो साल में तो ही जाएगा न! यही हाल नक्सल प्रभावित इलाकों में टेंडर प्रक्रिया और पूर्णता का है। इधर वेतन, पेंशन और सब्सिडी में ही राज्य के बजट का बड़ा हिस्सा, करीब 78 प्रतिशत जा रहा है। केंद्र की सभी योजनाओं, चाहे सतत शिक्षा अभियान हो, पीएम सूर्य घर हो, जल जीवन मिशन हो या आवास योजना- राज्य को अपना हिस्सा देना पड़ता है। पिछली सरकार ने पीएम आवास योजना से हाथ ही खींच लिया था। कई ऐसी योजनाओं में राज्य, केंद्र के अनुकूल हिस्सेदारी नहीं दे पाता तो उसे लक्ष्य भी हासिल नहीं होता।
इसलिये छत्तीसगढ़ जैसे खनिज, जल, वन संसाधन-संपन्न राज्य यदि ग्रामीण सडक़ें जर्जर पड़ी हैं, स्कूल में अतिरिक्त कमरे नहीं बन रहे हैं, स्वास्थ्य केंद्रों की इमारतें अधूरी हैं, स्टाफ की कमी है, उद्योगों के लिए ढांचा मजबूत नहीं हो रहा है तो इसका कारण समझने के लिए कैग की तरह रिपोर्ट को समय-समय पर पढ़ते रहना चाहिए।
तकनीक से ज्यादा जरूरी समझदारी
यूपी के हरदोई में गूगल मैप की गलती से तंग गलियों में एक कारण बार-बार रिवर्स करने, टर्न लेने के कारण फंस गई। इंजन गर्म हुआ और कार धू-धू कर जल जल उठी। सवार लोग बाल-बाल बचे। हम आजकल गूगल मैप पर ज्यादा ही भरोसा करने लगे हैं। आसपास की दुनिया, स्थानीय अनुभव और अपनी समझ को जैसे भूल जाते हैं।
यह भी भूल जाते हैं कि तकनीक मदद के लिए है, आप पर नियंत्रण करने के लिए नहीं। रास्ते के मामले में तो कई बार ऐसा धोखा पहले भी हुआ है। यूपी में ही गूगल मैप ने एक कार को अधूरे नए पुल पर चढ़ा दिया और अंधेरे में सब के सब कार सहित नीचे गिर गए। किसी की जान नहीं बच पाई थी। सडक़ पर खड़े किसी राहगीर से जानकारी ले लेना, किसी चाय दुकान पर पांच मिनट रुककर दो मीठी बात कर पता पूछ लेना अब भी कारगर है।


