राजपथ - जनपथ
अभिमन्यु का शोक या जयद्रथ वध
छत्तीसगढ़ विधानसभा की 25 वर्षों की यात्रा पर आहूत विशेष सत्र में मंगलवार को सदन में पहली विधानसभा से लेकर अब तक के पक्ष विपक्ष की राजनीति के उतार चढ़ाव पर चर्चा हुई। वक्ताओं हूं कहा गया था कि कोई राजनीतिक बातें नहीं होंगी। केवल सदन की अच्छाई और कार्यवाही संचालन में लागू और अपनाए गए नवाचारों पर बात होगी। भला दलीय नेता भाषण दें और राजनीति की बातें न हो असंभव। कई दिग्गज नेताओं ने संसदीय हदों को समझते हुए हल्के फुल्के अंदाज में ही सही आरोपात्मक बातें रखते रहे।
शुरुआत में भाजपा के वरिष्ठ विधायक, पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने और विपक्ष की ओर से पूर्व सीएम कांग्रेस भूपेश बघेल ने जवाब दिया। चंद्राकर ने अपनी बातें 45 मिनट में रखी तो बघेल ने 25 मिनट में। दर्शनशास्त्र में उपाधिधारी चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ शब्द से इसके इतिहास से शुरू कर गठन काल और 25 वर्षों की बात रखी। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के उस बयान को उद्धृत किया जिसमें देश में छोटे राज्यों को गैर जरूरी कहा था । इस पर चुप्पी साधने वाले स्व. चंदूलाल चंद्राकर,वीसी शुक्ल, अजीत जोगी का नाम लिया। फिर राज्य गठन के बाद इन पर नाखून कटाकर शहीद बनने की कोशिश करने जैसे आरोप लगाया।
कांग्रेस की पहली सरकार और (अजीत जोगी का नाम नहीं लिया) मुख्यमंत्री मंत्रियों पर भी हमले किए। लंबे चौड़े संबोधन का समापन चंद्राकर ने यह कहकर किया कि अभिमन्यु के वध का शोक मनाते या जयद्रथ वध की तैयारी करें। उसके बाद से अध्यक्षीय दीर्घा में आए रविन्द्र चौबे, बृजमोहन अग्रवाल समेत अन्य नेता कांग्रेस के अभिमन्यु और जयद्रथ को तलाशते रहे हैं।
दरअसल, अभिमन्यु महाभारत के एक प्रमुख योद्धा थे।जो अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र थे। बहुत वीर और पराक्रमी थे, और कम उम्र में ही चक्रव्यूह में प्रवेश करके कौरवों से अकेले लड़ गए थे। दुर्भाग्यवश, चक्रव्यूह से बाहर निकलने की विधि न जानने के कारण उनका वध हो गया था। जब अर्जुन को यह बात पता चली कि कौरवों के एक मात्र दामाद जयद्रथ ने चक्रव्यूह रचा था तो अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा ली। आज कर्ण और अर्जुन से भी पहले शूरवीर अभिमन्यु का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
महाभारत कथा से खत्म हुए वार पर बघेल भला कैसे चुप रहते उन्होंने ने भी चुटकी ली। बघेल ने कहा पहली विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष चुनाव में भाजपा के भीतर मची हलचल पर चुटकी ली। उन्होंने पर्यवेक्षक के रूप में आए नेता का नाम न लेकर कहा कि वो आज देश के शीर्ष पद पर हैं।
सरकारी खर्च पर बनाओ, लीज पर दो
सरकार ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को पांच वर्ष के लिए छत्तीसगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन को लीज पर दे दिया है। मंगलवार को खेल विभाग, और छत्तीसगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन के बीच औपचारिक रूप से एमओयू भी हो गया। क्रिकेट स्टेडियम तो छत्तीसगढ़ सरकार के लिए एक तरह से सफेद हाथी साबित हो रहा था। रखरखाव पर करीब तीन करोड़ रुपए सालाना खर्च हो रहा था। अब क्रिकेट संघ सरकार को डेढ़ करोड़ रुपए सालाना देगा। साथ ही आईपीएल, और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच होने पर 20 से 30 लाख रुपए सरकार को मिलेंगे।
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य, और बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने स्टेडियम को क्रिकेट एसोसिएशन को देने के लिए सरकार को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई है। शुक्ला की दो माह पहले सीएम विष्णुदेव साय से चर्चा हुई थी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को एसोसिएशन को लीज पर देने के फायदे गिनाए। एसोसिएशन के पास स्टेडियम आने से रखरखाव भी बेहतर ढंग से होगा, और यहां अंतरराष्ट्रीय मैच भी ज्यादा संख्या में हो पाएंगे। सीएम को शुक्ला की बातें जंच गई। इसके बाद विभागीय स्तर पर चर्चा हुई, और फिर स्टेडियम को एसोसिएशन के हवाले कर दिया गया।
क्रिकेट स्टेडियम के अलावा यहां साइंस कॉलेज में सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय स्तर हॉकी स्टेडियम है, अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच काफी समय से नहीं हुए हैं। इसका रखरखाव बेहतर ढंग से नहीं हो पा रहा है। ऐसे में क्रिकेट स्टेडियम को एसोसिएशन के हवाले करने का फैसला उचित प्रतीत हो रहा है।
केरल चुनाव पर छत्तीसगढ़ की छाया

पिछले दिनों केरल के ईसाई समुदायों के सबसे प्रमुख बिशपों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला। मुलाकात कराई वहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने। दिलचस्प यह है कि इस मुलाकात के एक दिन पहले ही इन बिशपों की एक संयुक्त समिति ने छत्तीसगढ़ के कई गांवों में ईसाई धर्म प्रचारकों को प्रवेश करने से रोके जाने पर चर्चा की और प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने इस बैठक में यह भी कहा कि धार्मिक भेदभाव का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं दिखता जहां अल्पसंख्यकों को अपने धर्म का प्रचार करने पर सार्वजनिक घोषणा कर रोक लगा दी जाए। मालूम हो कि प्राय: ये गांव आदिवासी बहुल है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में यह मामला आया था। हाईकोर्ट ने पेसा कानून का हवाला देते हुए, ग्राम सभाओं के पक्ष में फैसला दिया है और चेतावनी बोर्ड को सही बताया है। बिशपों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात भी कही। यह सब तब हुआ जब बिशपों की मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी से अगले दिन होने वाली थी। मुलाकात होने के बाद राजीव चंद्रशेखर ने पूछे जाने पर मीडिया से कहा कि छत्तीसगढ़ के मामले में विशेष तौर पर कोई बात नहीं हुई, लेकिन अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा का मुद्दा जरूर मोदी के सामने बिशपों ने रखा और उन्होंने आश्वस्त भी किया। मोदी ने बिशपों से कहा कि मैं सदैव आपकी सेवाओं में उपस्थित रहूंगा।
छत्तीसगढ़ में इस समय प्रार्थना सभाओं के दौरान हिंदुत्ववादी संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आए दिन विवाद हो रहा है। पुलिस उन लोगों को हिरासत में भी ले रही है, जो सभाएं आयोजित कर रहे हैं। गृह विभाग ने भी ऐसी सभाओं को बिना अनुमति आयोजित करने पर प्रतिबंध लगा रखा है। दुर्ग में दुर्व्यवहार का शिकार हुई ननों को जमानत तो मिल गई है, मगर उनके खिलाफ केस अभी भी चल रहे हैं। बिशप यह मुकदमा वापस लेने की मांग कर रहे हैं। राजीव चंद्रशेखर ने कई चर्चों में जाकर इस घटना पर माफी मांगी और यह आश्वस्त करने की कोशिश की मामला पूरी तरह सुलझा लिया जाएगा। मोदी ने भी एक्स पर लिखा- अद्भुत रही मुलाकात।
केरल में ईसाई समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है। अगले साल वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा इनके बीच लगातार इसका समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। कुछ चर्चों का समर्थन मिल भी चुका है। मगर, छत्तीसगढ़ के घटनाक्रमों पर बिशपों की प्रतिक्रिया उसके लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
सांसद खेल में बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़

छत्तीसगढ़ में मालवाहक वाहनों में सवारियों को ढोने पर प्रतिबंध केवल कागजों में रह गया है। हर बार हादसे के बाद अभियान चलाया जाता है, कुछ दिन कार्रवाई होती है, और फिर सब कुछ सामान्य। अब तो यही तस्वीर सरकारी आयोजनों में भी दिखाई दे रही है।
मंगलवार को बलौदाबाजार में आयोजित सांसद खेल महोत्सव के समापन कार्यक्रम में बच्चों को ले जाने और वापस लाने के लिए खुली मालवाहक पिकअप गाडिय़ों को लगा दिया गया। एक-एक गाड़ी में 30 से ज्यादा बच्चे सामान की तरह ठूंस-ठूंसकर भरे गए। कार्यक्रम समाप्त होने तक अंधेरा गहरा गया। बच्चों को उसी खुली पिकअप में ठिठुरते हुए घर भेज दिया गया। कई बच्चे ठंड से कांपते दिखाई दे रहे हैं। सरकारी और निजी स्कूलों पर ऐसे आयोजनों की भीड़ बढ़ाने का दबाव रहता है। व्यवस्था की जिम्मेदारी टीचर्स पर सौंप दी जाती है। उनकी स्थिति लाचारी ऐसी तस्वीरों से देखी जा सकती है। ऐसे आयोजनों की भव्यता दिखाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन बच्चों की सुरक्षा के लिए हिस्सा इसमें से नहीं निकाला जाता।


