राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : छत्तीसगढ़ विधानसभा और चुनाव आयुक्त
21-Feb-2025 3:34 PM
राजपथ-जनपथ : छत्तीसगढ़ विधानसभा और चुनाव आयुक्त

छत्तीसगढ़ विधानसभा और चुनाव आयुक्त

ज्ञानेश कुमार देश के 26 वें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए हैं। राज्य गठन के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों में छत्तीसगढ़ के साथ एक संयोग जुड़ा हुआ है । वो यह कि छत्तीसगढ़ में अब तक छह  विधानसभाओं का गठन हुआ है और हर विधानसभा के चुनाव नए आयुक्त ने ही कराए हैं। ऐसा संयोग मप्र, राजस्थान, मणिपुर के साथ भी है। इनके चुनाव भी हमारे ही साथ होते हैं । और यह सिलसिला आने वाले वर्षों में भी बना रह सकता है।

वर्ष 2003 के नवंबर में छत्तीसगढ़ की पृथक विधानसभा के पहले चुनाव हुए तब जेएम लिंगदोह चुनाव आयुक्त रहे। उसके बाद 2008 के चुनाव एन गोपालस्वामी ने कराए। वर्ष 2013 में गठित विधानसभा के चुनाव के वक्त बीएस.संपत्त, 2018 में ओपी. रावत ने तीसरी निर्वाचित विधानसभा का गठन किया था। 2023 की पांचवी विधानसभा के चुनाव के वक्त राजीव कुमार मुख्य आयुक्त रहे। और अब ज्ञानेश कुमार। उनका कार्यकाल फरवरी 29 तक रहेगा। यानी कुमार 2028 में सप्तम विधानसभा के चुनाव कराकर ही रिटायर होंगे। इनमें सबसे कडक़रदार आयुक्त रहे गोपाल स्वामी उन्होने ठीक चुनाव के वक्त छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन को हटा दिया था। तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी।

गोपाल स्वामी, पूर्व डिप्टी पीएम आडवाणी के साथ देश के गृह सचिव भी रहे लेकिन निष्पक्षता बरती। और चुनावी इतिहास का बड़ा दृष्टांत गढ़ गए। ऐसा अवसर राजीव कुमार के वक्त भी आया। रायपुर से दिल्ली तक भाजपा की प्रदेश, राष्ट्रीय इकाई ने अशोक जुनेजा को हटाने शिकायत, ज्ञापन सौंपा, लेकिन नहीं हटाया।

रेखा गुप्ता को लेकर गलतफहमी

राजनीति में हमेशा से जाति का जोर रहा है। और राजनीतिक क्षेत्र में किसी की नियुक्ति होती है, तो उसकी जाति पर बात जरूर होती है। ऐसा ही दिल्ली की नई सीएम रेखा गुप्ता को लेकर भी चर्चा हुई।
छत्तीसगढ़ के साहू समाज के कुछ पदाधिकारियों ने रेखा गुप्ता को यह कहकर बधाई दी, वो तेली समाज से ताल्लुक रखती हैं। और अखिल भारतीय तैलिक महासंघ की पदाधिकारी भी हैं।

बाद में तेली समाज के वस्तुस्थिति की पड़ताल की, तो पता चला कि रेखा गुप्ता तेली नहीं, बल्कि वैश्य (बनिया) समाज से आती हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश और बिहार में तेली समाज के लोग गुप्ता सरनेम भी रखते हैं। छत्तीसगढ़ में विशेषकर सरगुजा इलाके में कलार समाज के लोग गुप्ता सरनेम लगाते हैं। बाद में तेली समाज के कुछ पदाधिकारियों ने सोशल मीडिया पर यह लिखकर बधाई दी कि रेखा गुप्ता एक महिला हैं और इससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।

देख लिया मतपत्र से चुनाव?

मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-बैकुंठपुर (एमसीबी) जिले के खडग़वां ब्लॉक के कटकोना में पंचायत चुनाव की मतगणना के दौरान जो हुआ, उसने पुराने दौर के चुनावी दृश्य की याद दिला दी, जब सभी चुनावों में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर का उपयोग होता था।

कटकोना के एक बूथ पर मतगणना के दौरान बिजली गुल होने से नाराज ग्रामीण लाठी-डंडों के साथ दरवाजा तोडक़र भीतर घुस गए और बैलेट बॉक्स लूटने की कोशिश की। जब मतदान दल और सुरक्षाकर्मियों ने रोकने की कोशिश की, तो उनके साथ मारपीट शुरू हो गई। हालात इतने बिगड़ गए कि बचाव के लिए पहुंची पुलिस पेट्रोलिंग टीम पर भी हमला कर दिया गया। पुलिस और चुनाव कर्मियों को जान बचाकर भागना पड़ा। 107 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और कुछ को गिरफ्तार भी किया गया।

चूंकि यह घटना पंचायत चुनाव से जुड़ी है, इसलिए इसे राष्ट्रीय स्तर पर खास तवज्जो नहीं मिली। लेकिन इस घटनाक्रम को ईवीएम समर्थकों द्वारा बैलेट पेपर सिस्टम की कमियों को उजागर करने के उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। वे कह सकते हैं कि बैलेट पेपर आधारित चुनावों में बाहुबल और अराजकता का ज्यादा प्रभाव रहता है।

 पर क्या इस एक घटना से कोई निष्कर्ष निकालना उचित होगा? हाल ही में दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति एलन मस्क ने ईवीएम को हैक किए जाने की आशंका जताकर वैश्विक बहस छेड़ दी है। भारत में ईवीएम समर्थकों ने इसे गलत करार दिया, लेकिन इसके बावजूद संदेह बरकरार हैं। इसी संदर्भ में महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) ने चुनाव आयोग से उन 70 लाख नए मतदाताओं की सूची मांगी है, जिनके नाम कथित रूप से विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जोड़े गए। वे फॉर्म 17सी और फॉर्म 20 के मिलान की मांग कर रहे हैं। पहले फॉर्म में बूथ पर ही कुल मतदान की संख्या दर्ज होती है और दूसरे में मतगणना के दौरान गिने गए वोटों का रिकॉर्ड रहता है।

छोटी इकाइयों वाले पंचायत के चुनावों में अलग-अलग ईवीएम की कमीशनिंग करना अत्यंत कठिन और महंगा होगा, इसलिए मतपत्रों का उपयोग किया जाता है। लेकिन यह पारदर्शिता की एक अलग चुनौती भी पेश करता है। बैलेट पेपर आधारित चुनावों में स्थानीय स्तर पर धांधली पकड़ में आ सकती है, जबकि ईवीएम में छेड़छाड़ की आशंका को सिद्ध कर पाना कठिन होता है। अगर मतदाता सूची में गड़बड़ी की जाए या मतगणना में हेरफेर हो, तो इसका असर कुछ सौ वोटों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह हजारों मतों को प्रभावित कर सकता है, बिना कोई ठोस सबूत छोड़े। फिर इसे साबित करना मुश्किल होगा।

इसका यह मतलब नहीं कि ईवीएम से चुनाव में गड़बड़ी ही हो रही है या बैलेट पेपर ही सबसे अच्छा विकल्प है। लेकिन कटकोना से लेकर महाराष्ट्र तक की घटनाएं यह जरूर दिखाती है कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर संदेह और बहस अभी खत्म नहीं होने वाली है।

मंत्रालय में एक साथ दो-दो पदों पर ...!

मंत्रालय कैडर में पहले अनुभाग अधिकारी से अवर सचिव की पदोन्नति और उसके बाद दो दिन पहले हुई पोस्टिंग ने पूरे सेटअप को छिन्न भिन्न कर दिया है? । अगले एक दो महीने में रिटायर होने वाले दो अनुभाग अधिकारियों को पदोन्नति का लाभ देने पूरे कैडर के साथ खिलवाड़ किया गया है। 20 सांख्येत्तर पद लेकर की गई पदोन्नति का खामियाजा आने वाले वर्षों में कई बैच भुगतेंगे। हालांकि ये पद, पदोन्नतों को रिटायर होने के साथ ही खत्म हो जाते हैं। लेकिन कुछेक लोगों की आड़ में 1999 और 2007 में भर्ती हुए कर्मियों को भी समय से पहले पदोन्नति दे दी गई । खासकर अवर सचिव पदों पर।  

सामान्य तौर पर नियमित पदों के  अवर सचिव रिटायर होने पर नीचे के अनुभाग अधिकारियों को पदोन्नति मिलती है। लेकिन सांख्येत्तर पद पर पदोन्नति का निचले क्रम के कर्मियों को फायदा नहीं मिलता। एक तरह से निचले क्रम के एसओ ने अपने पद गिरवी रख दिए हैं। इन पदोन्नत 21 अवर सचिवों में  1999 बैच के अधिकारी कर्मचारी हैं। इनमें से कुछ ही रिटायरमेंट के करीब हैं शेष सभी कम आयु वर्ग के कोटे वाले हैं जो वर्ष 2030 के बाद रिटायरमेंट तक उच्च पद के वेतन-भत्ते का फायदा उठाएंगे। और तब तक इनके नीचे वाले पदोन्नति से वंचित होते रहेंगे। इसे लेकर मंत्रालय कर्मियों का कहना है कि इस वर्ष जो इक्का-दुक्का वरिष्ठ रिटायर होने वाले हैं उनके लिए ही सांख्येत्तर पद लिए जाने थे। लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ कुछ कोटा पार्टी के एसओ भी महाकुंभ में डुबकी लगाने से नहीं चूके। ऐसे ही लोगों की वजह से निचले क्रम के वंचित होंगे।

वहीं जीएडी के लिए भी कैडर मेनेजमेंट मुश्किल में पड़ जाएगा। जीएडी या तो सेटअप रिव्यू कर अवर सचिव के नए पद मंजूर कराए या हर वर्ष ऐसे ही सांख्येत्तर पद लेते रहे।
 सांख्येत्तर पद लेकर पदोन्नत अवर सचिव तो बना दिए गए लेकिन मंत्रालय में उनके लिए पद यानी पोस्टिंग के लिए विभाग नहीं है। और इनके पदोन्नत होने से नीचे विभागों में अनुभाग अधिकारी नहीं रह जाएंगे। इस समस्या का हल जीएडी ने कुछ इस तरह से निकाला है। पदोन्नत अवर सचिव, नए पद के साथ उसी विभाग के अनुभाग कक्ष यानी अनुभाग अधिकारी का भी काम देखेंगे। यानी, वे एक हाथ से  प्रस्ताव बनाएंगे और दूसरे हाथ से मंजूर भी करेंगे।

70 किमी दूर पोलिंग बूथ

माओवादी हिंसा प्रभावित बीजापुर जिले में भी पंचायत चुनाव हो रहे हैं। इनमें से कई गांव इतने संवेदनशील हैं कि वहां पोलिंग बूथ बनाए ही नहीं जा सके। ऐसे गांवों के मतदाताओं को वोट देने के लिए भोपालपट्टनम पहुंचने के लिए कहा गया। यह सेंड्रा ग्राम का एक परिवार है, जो बाइक पर 70 किलोमीटर की दूरी तय करके मतदान करने के लिए ब्लॉक मुख्यालय पहुंचा।

([email protected])


अन्य पोस्ट