राजपथ - जनपथ
रेलवे को केवल मुनाफा चाहिए?
छत्तीसगढ़ भारतीय रेलवे के राजस्व में बड़ी भूमिका निभाता है, विशेष रूप से जोन के कोरबा इलाके से। केंद्र सरकार द्वारा बजट में रेलवे ने छत्तीसगढ़ के लिए 6925 करोड़ रुपये की घोषणा की। इसे रेलवे ने जोर-शोर से प्रचारित किया। मगर इससे अधिक आमदनी करीब 7 हजार करोड़ उसे अकेले कोरबा से कोयला परिवहन के जरिये हो जाती है। कुछ दिन पहले रेलवे की ओर से ही अधिकारिक जानकारी दी गई कि जोन ने केवल 316 दिनों में 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की मालभाड़ा से आमदनी अर्जित की। रेलवे की कुल मालभाड़ा आय में 17.20 प्रतिशत का योगदान है, जो बताता है कि यह क्षेत्र रेलवे के लिए कितना महत्वपूर्ण है। मगर, रेलवे द्वारा दिए जाने वाले संसाधनों और सुविधाओं में भारी असमानता है।
कोरबा तो भारतीय रेलवे के लिए ‘कमाऊ पूत’ है। कोयले के विशाल भंडार और कोयला परिवहन की भारी मात्रा के कारण, 2024 में रेलवे को केवल कोरबा से ही 7,000 करोड़ रुपये की आय हुई। पहले प्रतिदिन 35 रैक कोयले की ढुलाई होती थी, जिसे बढ़ाकर 45 रैक कर दिया गया है।
लेकिन इस भारी राजस्व योगदान के बावजूद, कोरबा की जनता को सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिला। रेलवे क्रॉसिंग की समस्याओं से लोग त्रस्त हैं, अस्पताल पहुंचने से लेकर ट्रेन पकडऩे तक हर जगह यात्रियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कोल डस्ट के कारण लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, और यहां तक कि रेलवे कर्मचारी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। इनकी कॉलोनी में पानी के छिडक़ाव तक की मांग पूरी नहीं की जा रही है।
छत्तीसगढ़ में यात्री सुविधाओं को बढ़ाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। कोरबा से नई ट्रेनों की जरूरत है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के लिए सीधी रेल सेवा की मांग की जा रही है। हसदेव एक्सप्रेस को दुर्ग तक विस्तारित करने, नर्मदा एक्सप्रेस को कोरबा से चलाने, और निर्माणाधीन रेल लाइनों को शीघ्र पूरा करने जैसी आवश्यकताओं को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। रेलवे को छत्तीसगढ़ से राजस्व की जितनी चिंता है, यहां की जनता की सुविधा की नहीं।
भाजपा निर्दलीयों के भरोसे
पंचायत चुनाव के भी नतीजे घोषित हो गए हैं। भाजपा ने सभी जिला पंचायतों में अपने अध्यक्ष बनाने का ऐलान कर दिया है। जिला पंचायत के अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष चुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन माना जा रहा है कि पखवाड़े भर के भीतर सारे जिलों में चुनाव हो जाएंगे।
चुनाव नतीजों का सवाल है, तो अधिकांश जिलों में भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्य ज्यादा संख्या में जीतकर आए हैं। रायपुर समेत कुछ जिलों में निर्दलीयों के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है। सुनते हैं कि जिलेवार प्रमुख नेताओं को निर्दलीयों से बात करने की जिम्मेदारी दी गई है। कुछ जिलों में नवनिर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों को टूर पर भेजने की तैयारी चल रही है। कांग्रेस में तो ऐसी कोई तैयारी नहीं दिख रही है। ऐसे में जिला पंचायतों में भी भाजपा का परचम लहरा जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अस्तित्व की जद्दोजहद

एक ओर तो छत्तीसगढ़ में वन्यजीवों की संख्या लगातार घट रही है, दूसरी ओर जो बचे हैं, वे भी लापरवाही की भेंट चढ़ रहे हैं। गरियाबंद इलाके में सडक़ किनारे घायल पड़े इस तेंदुए की तस्वीर केवल एक घटना नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्था की असंवेदनशीलता का आईना है।
अफसरों को वन्यजीवों की सुरक्षा की खबर दी जाए तो वे देखते हैं. या करते हैं कहकर टाल देते हैं, मगर मौके पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। ऐसे ही ढीले रवैये के चलते हाल ही में अचानकमार टाइगर रिजर्व के दो बाघों की असामयिक मौत हो चुकी है। गरियाबंद में पहले भी तेंदुआ सडक़ दुर्घटनाओं में जान गवां चुके हैं। जब तक यह रवैया नहीं बदलेगा, वन्यजीवों की स्थिति और भयावह होती जाएगी। उनकी संख्या यूं ही घटती रहेगी। जंगलों में कोई दहाड़ नहीं सुनाई देगी, सन्नाटा होगा। ([email protected])


