राजपथ - जनपथ
बेकाबू कारोबार, और बेबस म्युनिसिपल
राजधानी रहने के बावजूद रायपुर शहर में बड़े कारोबारियों की मनमानी पर कोई सरकारी रोक नहीं दिखती है। राजकुमार कॉलेज की जमीन पर बने एक कमर्शियल कॉम्पलेक्स में कारों की साज-सज्जा की दुकानें हैं, और वहां हर दिन एक गाड़ी कचरा निकलता है जो कि जीई रोड पर चारों तरफ बिखरते भी रहता है। पूरे कॉम्पलेक्स के सामने की सडक़ पर यह कचरा उड़ते रहता है जो कि कार-एक्सेसरीज की पैकिंग का है। कुछ ऐसा ही हाल शहर के बीच शहीद स्मारक के पीछे इसी तरह के बाजार का है, और सडक़ों पर चलते ऐसे वर्कशॉप पर कोई रोक भी नहीं है। म्युनिसिपल शहर की अपनी सबसे बड़ी प्रॉपर्टी के ही नाजायज इस्तेमाल को नहीं रोक पा रहा है।

छोटा पद, बड़ी पूछ-परख
प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे हैं। कई ऐसे नेता, जो कि विधायक बनने से रह गए, वो पंचायत चुनाव मैदान में उतरे हैं। कुछ को तो सफलता भी मिली है। सामरी के दो बार के विधायक, और पूर्व संसदीय सचिव रह चुके सिद्धनाथ पैकरा के अलावा खैरागढ़ के विक्रांत सिंह भी जिला पंचायत चुनाव मैदान में उतरे थे, और उन्हें सफलता भी मिल गई।
विक्रांत सिंह खैरागढ़ सीट से भाजपा की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। विक्रांत ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा, और रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की है। इसी तरह पूर्व संसदीय सचिव पैकरा की पत्नी उद्देश्वरी पैकरा सामरी सीट से भाजपा की विधायक हैं। सिद्धनाथ पहले विधानसभा का चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पत्नी तो विधायक बन गई। और वो खुद पंचायत चुनाव मैदान में उतर गए। और जिला पंचायत सदस्य बनने में कामयाब रहे। जिला पंचायत सदस्य का पद भले ही छोटा है, लेकिन निर्वाचित होने पर पूछ परख रहती है।
दिल्ली जा कर बजट दिलाइए

वरिष्ठ सचिव स्तर के एक और अफसर केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। 2004 बैच के आईएएस प्रसन्ना आर ने भी अपना अभ्यावेदन दिया है। जिस पर राज्य सरकार ने अपनी अनापत्ति दे दी है। वे बजट सत्र के बाद जा सकते हैं। प्रसन्ना पहली बार प्रति नियुक्ति पर जा रहे। रिजल्ट ओरियेंटेड अफसरों में गिने जाने वाले प्रसन्ना पूर्व में स्वास्थ्य, पीएचई, परिवहन ये बाद एक वर्ष से उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। राज्य सरकार ने भी खुशी-खुशी सहमति दी है।
विभाग की बजट बैठक में जब अफसरों ने उनसे कहा कि सर अब आप हमसे क्या बजट मांग रहे हैं, दिल्ली जाने के बाद हमें बजट दिलवाइएगा तो सीएम भी हंस पड़े। उनसे पहले दो कलेक्टर नम्रता गांधी, और ऋचा प्रकाश चौधरी की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग भी हो चुकी है। ये दोनों भी आज कल में रिलीव हो जाएंगी। इन सबके बीच सचिव स्तर के दूसरे अफसर सौरभ कुमार ने भी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया है। वे 2009 बैच के अफसर हैं।
हाल ही में जमीन से जुड़े एक प्रकरण में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने उन्हें फटकार भी लगाई थी। हालांकि इसका, उनके दिल्ली जाने के आवेदन से लेना देना नहीं है। वैसे छत्तीसगढ़ के नजरिए से एक असहज बात यह है कि डीओपीटी ने 2009 बैच के अफसरों केन्द्र में संयुक्त सचिव के लिए सूचीबद्ध हुए हैं। मगर छत्तीसगढ़ के इस बैच का कोई भी अफसर सूचीबद्ध नहीं हो पाया है। ऐसे में भविष्य के लिए केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति का रास्ता खुला रहे, इसके लिए सौरभ कुमार प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन दिया है। केन्द्र सरकार प्रतिनियुक्ति आवेदन को मंजूर करती है या नहीं, यह देखना है।
धर्मगुरु का दो टूक वैज्ञानिक दृष्टिकोण
प्रयागराज महाकुंभ में भारी भीड़ जुटाने के लिए भ्रामक प्रचार किया गया, जिसके चलते अव्यवस्था फैल गई और कई लोगों की जान चली गई। जब संसाधनों की कमी थी, तो बड़ी संख्या में लोगों को आमंत्रित करने का औचित्य क्या था? आयोजकों को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए था कि सीमित संख्या में ही लोगों की व्यवस्था संभव है, बाकी न आएं। यह दावा कि महाकुंभ 144 वर्षों बाद आया है, भी मात्र एक राजनीतिक भाषा है।
इस धार्मिक आयोजन के दौरान अव्यवस्था का आलम यह रहा कि 300 किलोमीटर लंबा जाम लग गया, जिससे लोगों को 25-25 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा। जिस गंगा जल में श्रद्धालु आस्था के साथ स्नान कर रहे हैं, उसमें नालों का पानी और मल-जल मिश्रित हो रहा है। वैज्ञानिक परीक्षणों के अनुसार, यह जल स्नान के योग्य नहीं है, इसके बावजूद लाखों-करोड़ों लोगों को उसी में स्नान करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
यह बयान किसी नास्तिक या सनातन धर्म विरोधी का नहीं, बल्कि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का है, जो उन्होंने बेमेतरा के सारधा में आयोजित प्रवचन के दौरान दिया। वे न तो हिंदू धर्म का विरोध कर रहे हैं और न ही सनातन पर आघात कर रहे हैं, बल्कि महाकुंभ की अव्यवस्था और गंगा जल की शुद्धता को लेकर वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर अपनी चिंता जता रहे हैं। धार्मिक प्रवचनों में इस प्रकार की आलोचनात्मक बातें कम ही सुनने को मिलती हैं।
शंकराचार्य जैसे प्रतिष्ठित धर्मगुरु के मुख से आई इन कठोर सच्चाइयों को सुनकर भी कोई उन्हें धर्मविरोधी कहने या उनके खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा। हालांकि, सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ नकारात्मक प्रचार किया जा रहा है। उनके पद और प्रतिष्ठा की महिमा इतनी प्रबल है कि खुलेआम निंदा करना भी आसान नहीं।
सरगुजा को कब मिलेगी राहत?

सरगुजा में स्वास्थ्य सुविधाओं की दयनीय स्थिति को दर्शाने वाली यह तस्वीर कोई नई नहीं है, बल्कि बार-बार सामने आने वाली सच्चाई है। हाल ही में एक गर्भवती महिला को एंबुलेंस न मिलने के कारण कांवड़ के सहारे 7 किलोमीटर तक पैदल ले जाना पड़ा। यह विडंबना ही है कि प्रदेश में लगातार दूसरी बार स्वास्थ्य मंत्री सरगुजा संभाग से ही हैं, फिर भी यहां के आदिवासी बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं से वंचित हैं। सरगुजा के सैकड़ों गांव अब भी सडक़ संपर्क से कटे हुए हैं। इसका कारण वन विभाग की भूमि में मंजूरी न मिलने की दलील दी जाती है। लेकिन यही वन क्षेत्र यदि खनिज संसाधनों, विशेषकर कोयले के भंडार से समृद्ध होता, तो यहां चौड़ी-चौड़ी सडक़ें बिना किसी बाधा के बन चुकी होतीं।
सोशल मीडिया पर यह तस्वीर सरगुजा के लखनपुर ब्लॉक की बताई जा रही है।


