राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : इतना डर, इतनी असुरक्षा?
22-Feb-2025 4:47 PM
राजपथ-जनपथ :  इतना डर, इतनी असुरक्षा?

इतना डर, इतनी असुरक्षा?

टिकिंग टाइम बम-एक अंग्रेजी मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है, घड़ी की सुई के साथ धीरे-धीरे फटने के करीब पहुंचता हुआ खतरा। कोई समस्या अभी दिख तो नहीं रही, लेकिन समय के साथ वह एक बड़े संकट में बदल सकती है।

झारखंड लोक सेवा आयोग की टॉपर महिला, उनके भाई, जो कि जीएसटी में एडिशनल कमिश्नर थे और उनकी मां की आत्महत्या की खबर झकझोर देने वाली है। सीबीआई जांच के दबाव में इस त्रासदी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ा करियर कब तक टिक सकता है? क्या किसी पद की कीमत इतनी बड़ी हो सकती है कि जिंदगी ही दांव पर लग जाए?

छत्तीसगढ़ में भी पीएससी घोटाले की सीबीआई जांच जारी है। यहां भी कभी पीएससी के चेयरमैन रहे टामन सिंह सोनवानी जेल में हैं। वे प्रतियोगी, जिनको टॉपर बनाया गया, और उनमें से एक के कारोबारी पिता भी सलाखों के पीछे हैं।

जब किसी सिस्टम में भ्रष्टाचार पनपता है, तो उसकी मार केवल कानून से बचने की कोशिश कर रहे लोगों पर ही नहीं, बल्कि पूरे समाज पर 
पड़ती है।

कोई भी परीक्षा, कोई भी चयन प्रक्रिया केवल एक ओहदा पाने का माध्यम नहीं है, यह योग्यता और मेहनत की कसौटी होती है। लेकिन जब सिस्टम में भ्रष्टाचार का जहर घुल जाता है, तो यह केवल योग्य उम्मीदवारों का भविष्य ही नहीं छीनता, बल्कि जिन लोगों को गलत तरीके से ऊंचे पद मिलते हैं, वे खुद भी डर और असुरक्षा के बीच जीते हैं। आज नहीं तो कल, कानून का शिकंजा कसता ही है, और तब आप चौतरफा घिर जाते हैं, बचने का कोई रास्ता नहीं दिखता।

आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकती। इन तीनों की खुदकुशी उनकी बेगुनाही का प्रमाण नहीं है।
जब कोई व्यक्ति गलत रास्तों से कामयाब होता है, तो उसके मन में कहीं न कहीं अपराधबोध बना रहता है। जब जांच एजेंसियों की सख्ती बढ़ती है, तो वही अपराधबोध असहनीय हो जाता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता है। सच का सामना कर नए सिरे से जिंदगी जीने की कोशिश की जा सकती है।

ऐसी घटनाएं हमें यह सीख देती हैं कि किसी भी पद को हासिल करने के लिए शॉर्टकट अपनाना, गलत प्रक्रियाओं का हिस्सा बनना या भ्रष्टाचार के सहारे सफलता पाने की कोशिश करना अंतत: विनाश की ओर ले जाता है। ज्यादा जरूरी है कि किसी पद को नैतिकता और ईमानदारी से हासिल किया जाए। एक भ्रष्ट पदस्थ व्यक्ति न केवल खुद को बल्कि अपने परिवार को भी संकट में डाल देता है। इन तीन आत्महत्याओं का संदेश यही है।

हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए कि सफलता किसी भी कीमत पर चाहिए। व्यवस्था में खामियां तो हैं, लेकिन उसका जवाब खुद भ्रष्ट बनकर देना नहीं है। असली उपलब्धि यह नहीं कि हम कितने ऊंचे पद पर पहुंचे, बल्कि यह है कि हम वहां तक किस तरह से पहुंचे। कोई भी सफलता, अगर उसकी बुनियाद फर्जीवाड़े पर टिकी हो, तो वह सफलता नहीं, बल्कि एक टिकिंग टाइम बम है, जो किसी भी दिन फट सकता है।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के लिए लॉबिंग !!

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के हटने की चर्चा जोरों पर है। इन चर्चाओं के बीच पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, डॉ. शिव डहरिया, और जयसिंह अग्रवाल भी दिल्ली पहुंचे थे। ये अलग बात है कि तीनों के दौरे का मकसद अलग-अलग रहा है।

चर्चा है कि भगत, बैज को बदलने के पक्ष में तो हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि किसी आदिवासी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाए। कुछ इसी तरह की लाइन पूर्व सीएम भूपेश बघेल की भी है। एक तरह से पूर्व सीएम की लाइन को ही भगत आगे बढ़ा रहे हैं। इससे परे डॉ. शिव डहरिया की प्रभारी महामंत्री केसी वेणुगोपाल, और अन्य नेताओं से मुलाकात हुई है।  कहा जा रहा है कि डॉ. डहरिया अध्यक्ष की नियुक्ति के मसले पर खामोश हैं, लेकिन वो खुद कार्यकारी अध्यक्ष बनना चाहते हैं।

डॉ. डहरिया पहले भी प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं। पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल भी दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं से मिले हैं। वो प्रदेश कांग्रेस में बदलाव के पक्षधर हैं, और ऐसा अध्यक्ष चाहते हैं जो सबको साथ लेकर चल सके। जयसिंह, ये सारी योग्यता पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव में देखते हैं। पार्टी हाईकमान प्रदेश कांग्रेस में बदलाव  पर क्या कुछ फैसला करता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।

दो नए कलेक्टरों के साथ-साथ 

विधानसभा का बजट सत्र 25 तारीख से शुरू हो रहा है।  इससे पहले नगरीय निकाय, पंचायत चुनाव की आचार संहिता 24 को खत्म हो जाएगी।  आचार संहिता खत्म होने के साथ ही प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है।  इसकी प्रमुख वजह दो कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी, और नम्रता गांधी की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग होना है। दोनों को आचार संहिता खत्म होते ही रिलीव किया जा सकता है। चर्चा है कि दुर्ग, और धमतरी में नए कलेक्टर की पोस्टिंग के साथ ही एक-दो और कलेक्टर बदले जा सकते हैं। सचिव स्तर के दो अफसर आर प्रसन्ना, और सौरभ कुमार भी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। दोनों ने ही प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन दे दिया है। चूंकि विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है, इसलिए फेरबदल की सूची ज्यादा बड़ी नहीं होगी, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि आधा दर्जन अफसर फेरबदल के दायरे में आ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।

किसान को क्या मिलता होगा?

छत्तीसगढ़ के बाजारों में इन दिनों एक विचित्र विरोधाभास देखने को मिल रहा है। टमाटर और कुछ अन्य सब्जियां इतनी सस्ती कि तीन किलो मात्र 20 रुपये में बिक रही हैं, जबकि बोहार भाजी जैसी भाजी इतनी महंगी कि 250 ग्राम के लिए 60 रुपये तक देने पड़ रहे हैं।

टमाटर सस्ता क्यों है या बोहार भाजी महंगी क्यों, सवाल यह नहीं है। चिंता यह होनी चाहिए कि खेती में किसानों को मुनाफे की गारंटी क्यों नहीं मिलती?
टमाटर उगाने, तोडऩे, परिवहन करने और बाजार तक लाने की लागत ही किसान के लिए भारी पड़ रही होगी। बाजार में सप्लाई बढ़ती है, तो कीमतें इतनी गिर जाती हैं कि लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन दूसरी ओर, बोहार भाजी जैसी स्थानीय व कम आपूर्ति वाली भाजी की कीमत ऊंची बनी रहती हैं। हम किसानों को सही फसल चक्र और उन्नत खेती के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप से धान की खेती पर सबसे ज्यादा जोर रहता है। लेकिन अगर किसानों को बेहतर मुनाफे वाली फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो वे ऐसी नकदी फसलें भी उगा सकते हैं जो बाजार में टिक सकें। जलवायु और मांग के हिसाब से सही फसल चयन हो, बिचौलियों की भूमिका कम हो, और किसानों को सीधी बाजार पहुंच मिले। छत्तीसगढ़ के किसान अगर केवल पारंपरिक फसलों से बंधे रहेंगे और मंडी के भरोसे रहेंगे, तो यही हालात बने रहेंगे।

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