राजपथ - जनपथ
गंगाजल लाकर पवित्र करेंगे
रायपुर नगर निगम के नवनिर्वाचित पार्षद कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज गए हैं। दल की अगुवाई पूर्व मंत्री राजेश मूणत, महापौर मीनल चौबे, और शहर जिला अध्यक्ष रमेश सिंह ठाकुर कर रहे हैं। कुंभ स्नान के बाद ये लोग संगम से जल लेकर रायपुर आएंगे, और फिर निगम मुख्यालय भवन में छिडक़ाव करेंगे। नवनिर्वाचित पार्षदों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि गंगाजल छिडक़ने से भवन पवित्र होगा, और फिर इसके बाद ही महापौर मीनल चौबे पदभार ग्रहण करेंगी। भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले पांच साल में निगम का वातावरण दूषित रहा है। इसको पवित्र करने की जरूरत है। गंगाजल के छिडक़ने से पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली में फर्क पड़ता है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
बगावत से नुकसान

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही दलों से बड़ी संख्या में बागी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे। इनमें से कुछ ने जीत हासिल की, जबकि कई ऐसे भी रहे जिन्होंने अधिकृत प्रत्याशियों के वोट काटकर न केवल अपनी हार सुनिश्चित की, बल्कि पार्टी प्रत्याशी को हराने में भी योगदान दिया। दोनों दलों को नुकसान उठाना पड़ा और बागी उम्मीदवारों को पार्टी से निष्कासित या निलंबित कर दिया गया।
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में टिकट हासिल करना आसान नहीं होता, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता यह आकलन करना चाहते हैं कि जनता में उनकी लोकप्रियता कितनी है और उनके प्रयासों को कितना समर्थन मिल रहा है। राजनीति में कार्यकर्ताओं के लिए सम्मान प्राप्त करने की यह एक स्वाभाविक लालसा होती है। परंतु टिकट तो केवल एक ही उम्मीदवार को मिल सकती है। ऐसे में, कई कार्यकर्ता जिन्हें लगता है कि वे लोकप्रिय हैं लेकिन पार्टी ने उनकी उपेक्षा की, वे निर्दलीय रूप से चुनाव लडऩे का फैसला कर लेते हैं।
यह भी विचारणीय है कि जब पंचायत स्तर के चुनाव राजनीतिक दलों के सिंबल पर नहीं होते, तो फिर नगरीय निकाय चुनावों में ऐसा क्यों होता है, जबकि कई जनपद और जिला पंचायतों के मतदाता वार्डों की तुलना में कहीं अधिक संख्या में होते हैं। संभव है कि भविष्य में राजनीतिक दल इस नुकसान पर गंभीरता से विचार करें, क्योंकि इस स्थिति से सभी को हानि उठानी पड़ रही है।
एक के बाद दूसरा मोर्चा
नगरीय निकाय के चुनाव भी हो गए अब कार्यकर्ताओं की नजर लाल बत्ती पर टिकी हुई है। निकाय चुनाव में अपने रिश्तेदारों टिकट नहीं मिल सकी, अब वे ताक लगाए बैठे हैं कि कहीं तो उनके काम और निष्ठा की कदर होगी। शायद कहीं मंडल आयोग में कुर्सी मिल जाए। इसमें कुछ लोग ऐसे हैं जिनका धैर्य टूट चुका है। वे लोग अब जोर लगाने लगे हैं। दुर्ग जिले के ऐसे ही एक पूर्व विधायक हैं जिन्होंने पहले विधानसभा की दावेदारी की, फिर अब नगरीय निकाय में दावेदारी की। पर कहीं भी दाल नहीं गली। अब चुनावी खर्च के लिए जो पैसा बचाकर रखे थे, उसे ऑफर में देकर लाल बत्ती की जुगाड़ में वे लग गए हैं। वैसे वे आफर से बत्ती लेने में माहिर हैं, पिछली दफे उन्होंने लालबत्ती, फिर अगले कार्यकाल में विधानसभा की टिकट खरीद ली थी। हालांकि इसका कितना प्रभाव पड़ता है, यह तो उन्हें लालबत्ती मिलने और नहीं मिलने पर ही स्पष्ट हो सकेगा।
वंशवाद से परे
भाजपा परिवारवाद के खिलाफ मुखर रही है। मगर म्युनिसिपल, और पंचायत के चुनाव साथ-साथ होने का फायदा पार्टी के कई नेताओं ने उठाया, और विशेषकर पंचायत चुनाव में अपने घर-परिवार के लोगों को चुनाव मैदान में उतार दिया। चूंकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते हैं। इसलिए पार्टी समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी करती रही है। विवाद होने की दशा में पार्टी के जिले की कोर कमेटी जिला व जनपद के पदों पर समर्थित एक से अधिक प्रत्याशी न हो, यह भी सुनिश्चित करती आई है। मगर इस बार विवाद निपटारे के लिए ज्यादा समय नहीं था। इसलिए पार्टी नेताओं के परिजन चुनाव मैदान में कूद गए। बस्तर से सरगुजा तक भाजपा के कई नेताओं के परिजन चुनाव जीतकर भी आए हैं।
सीएम विष्णुदेव साय के समधी पूर्व डीएसपी टीकाराम कंवर धमतरी जिले की सीट से जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए हैं। इसी तरह युवा आयोग के अध्यक्ष विश्व विजय सिंह तोमर की पत्नी पायल सिंह चुनाव जीतने में सफल रही हैं। यही नहीं, अंबिकापुर के विधायक राजेश अग्रवाल के भाई विजय अग्रवाल भी चुनाव जीते हैं। हालांकि कुछ ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने परिवारवाद के आरोप से बचने के लिए अपने परिवार के लोगों को चुनाव नहीं लड़ाया। इन्हीं में से एक चित्रकोट के भाजपा विधायक विनायक गोयल भी हैं। पार्टी गोयल की पत्नी को जिला पंचायत का चुनाव लड़ाना चाहती थी।
गोयल की पत्नी पंचायत पदाधिकारी रह चुकी हैं। इस बार उनकी जीत आसान भी थी, लेकिन विनायक गोयल ने यह कहकर अपनी पत्नी को प्रत्याशी बनाने से मना कर दिया कि इस तरह की प्रवृत्ति से आम कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है।
विनायक गोयल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को चुनाव में हराकर सुर्खियों में आए थे। बैज के परिवार के कई सदस्य चुनाव मैदान में उतरे थे। विनायक गोयल का निशाना बैज पर भी था। ऐसे समय में जब पार्टी के प्रमुख नेता अपने परिवार के लोगों को चुनाव लड़ाकर स्थापित करने में लगे हुए हैं, ऐसे में विनायक गोयल के रूख काफी चर्चा भी हो रही है।
उत्साह इतना !!

प्रदेश में म्युनिसिपल की तुलना में पंचायतों में बंपर पोलिंग हुई है। रायपुर और बिलासपुर में तो 50 फीसदी के आसपास ही पोलिंग हो पाई थी। इस बार म्युनिसिपलों में कुल मिलाकर 68 फीसदी पोलिंग हुई, लेकिन पंचायतों में करीब 82 फीसदी पोलिंग हुई है। बीजापुर से लेकर सरगुजा के गांवों तक वोटिंग के लिए लोगों में उत्साह देखने को मिला।
पोलिंग के लिए दोपहर 3 बजे तक समय निर्धारित था, लेकिन कई जगहों पर तो शाम 7 बजे तक पोलिंग चलती रही। दिलचस्प बात यह है कि दूसरे प्रदेशों में भी काम करने गए लोग भी पंचायत चुनाव में वोटिंग के लिए घर वापस आए थे। पोलिंग के बाद तुरंत मतगणना भी शुरू हुई। तब तक गांवों में लोग उत्साह से नतीजों का इंतजार कर रहे थे।
मनेन्द्रगढ़ के खडग़ंवा जनपद के गांव कटोकोना मतगणना चल रही थी, तभी बिजली अचानक गुल हो गई। थोड़ी देर गणना रूकी रही। फिर बिजली आने पर गणना शुरू हुई, तो हारे हुए सरपंच प्रत्याशी के समर्थकों ने जमकर हंगामा किया। उन्होंने गणना में हेरफेर का आरोप लगाते हुए वहां तैनात पुलिसकर्मियों को दौड़ाया। बाद में पुलिस के आला अफसर वहां पहुंचे, तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ। कुल मिलाकर मतगणना के दौरान तक लोगों में काफी खींचतान चलती रही।
हेलमेट पर जुर्माना बढ़ा, मगर..

किसी को कार चलाते हुए हेलमेट पहने देखना भले ही अटपटा लगे, लेकिन बिहार के कैमूर जिले के राघवेंद्र कुमार के लिए यह सुरक्षा मुहिम का हिस्सा है। ‘हेलमेट मैन’ के नाम से मशहूर राघवेंद्र बिना हेलमेट दोपहिया वाहन चलाने वालों को रोककर न केवल उन्हें हेलमेट पहनने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि खुद अपने खर्च पर उन्हें हेलमेट भी बांटते हैं। 2014 में नोएडा में उनके करीबी दोस्त कृष्ण कुमार की सडक़ हादसे में मौत हो गई थी। कृष्ण बिना हेलमेट बाइक चला रहे थे, जब एक दुर्घटना में उनके सिर पर गंभीर चोट लगी और उन्होंने दम तोड़ दिया। इस घटना ने राघवेंद्र को झकझोर दिया। तभी उन्होंने तय किया कि वे सडक़ सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे, ताकि किसी और परिवार को अपनों को यूं न खोना पड़े। यहां तक कि उन्होंने अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अपना घर तक बेच दिया।
राघवेंद्र का दावा है कि पिछले 10 वर्षों में वे 22 राज्यों में अब तक 60,000 से अधिक हेलमेट बांट चुके हैं और 35 लोगों की जान बचाने में सफल रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में इन दिनों फिर से हेलमेट जागरूकता अभियान तेज हो गया है। जगदलपुर, सक्ती, जांजगीर-चांपा, जीपीएम और कुछ अन्य जिलों में सरकारी दफ्तरों में दोपहिया चालकों को हेलमेट पहनकर आने का निर्देश दिया गया है। कुछ स्थानों पर हेलमेट जोन बनाए गए हैं, जहां बिना हेलमेट बाइक चलाने पर जुर्माने का प्रावधान है।
जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुपालन में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बार फिर बिना हेलमेट बाइक चलाने पर जुर्माना 200 से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया। मगर, बिना हेलमेट दुर्घटनाएं जारी हैं। दरअसल, हेलमेट का मुद्दा अक्सर राजनीति का शिकार बन जाता है। जब भी सख्ती होती है, विपक्ष में कोई भी हो विरोध पर उतर आता है। दूसरी ओर, लोग भी कानून से बचने के लिए पुलिस को देखकर हेलमेट पहन तो लेते हैं, लेकिन बाद में उसे हैंडल पर टांग लेते हैं। राघवेंद्र कुमार जैसे लोग प्रेरणा तो बन सकते हैं, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब हम हेलमेट को बोझ नहीं, सुरक्षा कवच समझें। यह तस्वीर पिछले सप्ताह राघवेंद्र ने सोशल मीडिया पर डाली है, जिसमें उन्होंने बताया कि बिना हेलमेट पहने जा रहे एक पुलिस जवान का उन्होंने पीछा किया और रोककर हेलमेट गिफ्ट किया।


