राजनांदगांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनंादगांव 9 जुलाई। जैन मुनि विनयकुशल मुनि के सुशिष्य मुनि श्री वीरभद्र (विराग) ने बुधवार को चतुर्मास के पहले दिन कहा कि चातुर्मास आत्म कल्याण के लिए आता है। साधु के दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। आपको स्वयं तय करना चाहिए कि आपकी दिशा आराधना या विरागना, किस तरफ हो उन्होंने कहा कि आराधना ऑनलाइन है तो विरागना ऑफलाइन। इस मौसम में जहां एक ओर पाप होते हैं तो दूसरी ओर पुण्य भी होते हैं। हम किस कार्य के प्रभाव में आ रहे हैं, यह हमें
सोचना है।
जैन बगीचे के उपाश्रय भवन में मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य को दान, ब्रह्मचर्य, सामायिक, प्रतिक्रमण स्वाध्याय आदि कार्य करते रहना चाहिए। आप अपने अंदर के व्यक्तित्व को पहचाने और आत्म कल्याण करें। उन्होंने कहा कि साधु के दर्शन, तत्काल लाभ देने वाले हैं, इस अवसर को ना छोड़े। वर्तमान अपने हाथ में है। जबकि भविष्य अपने हाथ में नहीं है और भूतकाल तो निकल चुका है। आप अपने वर्तमान को सुधारे और परिणाम को निर्मल बनाएं तो भविष्य अपने आप ही सुधर जाएगा। उन्होंने कहा कि कल्याण मित्र बनाएं।
मुनिश्री वीरभद्र ने कहा कि जो मोक्ष के मार्ग से संयोग करा दे, वह कल्याण मित्र होता है। हर व्यक्ति कहीं ना कहीं स्वार्थी होता है। यह स्वार्थ ही आत्म कल्याण के मार्ग से दूर ले जाता है। यदि स्वार्थ हट जाए और कल्याण मित्र अपने भव में आ जाए तो हम आत्म कल्याण कर पाएंगे।
राग हमारा शत्रु है, किंतु हम उसे कभी अपना शत्रु नहीं मानते। उन्होंने कहा कि हमारा कर्तव्य ऐसा होना चाहिए कि हम एक-दूसरे को धर्म के प्रति प्रेरित करें। हमारे जीवन की प्राथमिकता धर्म होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को ऐसे मुद्रा में प्रवचन सुनना चाहिए जो वक्ता को बोलने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति के इंटरेस्ट की बात नहीं होती तो उसे झपकी आती है, इससे वक््ता को भी बोलने का मजा नहीं आता। सुनते-सुनते यदि भीतर का कोई तत्व सक्रिय हो जाता है तो उसका लाभ जीवनभर मिलता है। आपने जो कुछ सुना, उसका चिंतन और मनन करें फिर उसका क्रियान्वयन करें। अपना व्यवहार सुधारें, सामने वाले के बारे में यह न सोचे कि सामने वाले ने ऐसा क्यों बोला, बल्कि यह सोचे क्यों ऐसा बोला और उसमें सुधार लाएं तो जीवन धन्य हो जाएगा।