कई ऐसी वैरायटियां हैं जिनके बीज खेतों में दोबारा उगती नहीं, यदि उग भी गईं तो उनमें बालियां नहीं आतीं
कृषि अधिकारी महासमुंद का मानना है कि देशी बीज ही टिकाऊ खेती की नींव होती हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए हाइब्रिड बीज डिजाइन किए जा रहे हैं
उत्तरा विदानी
महासमुंद,14 अक्टूूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। महासमुंद जिले के बागबाहरा, पिथौरा, बसना, सरायपाली समेत महासमुंद विकासखंड के अलावा प्रदेश भर के खेतों से देसी धान गायब है। इस साल यहां के खेतों में धान की बांझ बीज वाली बालियां लहलहा रही है। गुरमटिया धान तो लिस्ट से ही गायब है। दूबराज, कालीमाई, सफरी, 17 सफरी तो बरसाों से नहीं दिखीं। अब इनके बीज तक गायब हैं और जो बीज उपलब्ध हैं, वे सभी संकर नस्ल की हैं। इन बीजों को दुबारा नहीं बोया जा सकता।
पाठकों को यह जानकर आश्चर्य जरूर होगा, लेकिन यही सही है कि धान की कई ऐसी वैरायटियां हैं जिनके बीज खेतों में दोबारा उगती नहीं हैं। यदि उग भी गईं तो उनमें बालियां नहीं आतीं। इसके बावजूूद जिले के खेतों में देसी धान का फसल ढूंढने से नहीं मिलता है। 99 फीसदी खेतों में किसानों ने संकर धान की ही किस्में ही लगाई हैं, ताकि उन्हें अपनी उपज का अधिक मूल्य मिल सके।
किसान योगेश्वर चंद्राकर, सुरेश कुमार हठीले का कहना है कि बदलाव समय की मांग है। जलवायु परिवर्तन के बीच खेती के समाधान के तौर पर हाईब्रिड को खोजा गया है। इन बदलावों के बीच किसानों को बीजों को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां रहती हैं। ज्यादातर किसान हाइब्रिड बीजों को ज्यादा बेहतर मानते हैं। जबकि पुराने किसान आज भी देशी बीजों के इस्तेमाल को तवज्जो देते हैं।
जबकि कृषि अधिकारी महासमुंद श्री कश्यप का मानना है कि देशी बीज ही टिकाऊ खेती की नींव होती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए हाइब्रिड बीज डिजाइन किए जा रहे हैं। ये पूरी तरह से किसानों के ऊपर निर्भर करता है कि वो किस बीज से बुवाई करते हैं। लेकिन बीजों के बीच का अंतर जानकर किसान आज के समय के हिसाब से खेती कर सकते हैं। हालांकि देशी धानबीज का हाइब्रिड धान बीजों की तुलना में उत्पादन कम होता है लेकिन गुणवत्ता के मामले में काफ ी आगे होते हैं।
कृषि वैज्ञानिक और किसान दोनों मानते हैं कि देसी बीजों का जमाव खेत की जमीन पर बेहतर अच्छे ढंग से होता है, पौधों का विकास और पैदावार भी सुरक्षित ढंग से होती है और देसी बीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। इसके बावजूद ज्यादा फसल उत्पादन की खातिर किसानों ने हाईब्रिड धान को अपने खेतों में बोया है जो किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर कर सकती हैं लेकिन उसका चावल भी गुणवत्ताहीन होता है और अनुवांशिक रूप से अशुद्ध होता है। वर्तमान में जिले के अलावा प्रदेश में दो किस्मों के बीजों का चलन है।
पहला हाईक्वालिटी बीज है जो न्यूक्लियस बीज की संतति है और शत-प्रतिशत अनुवांशिक शुद्धता वाला होता है। दूसरा आधार बीज है प्रजनक बीज की संतति है, जो प्रमाणीकरण संस्था द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप अनुरूप शासकीय एवं पंजीकृत बीज उत्पादक संस्थाओं एवं उपरोक्त संस्थाओं के माध्यम से बीज उत्पादक कृषकों के प्रक्षेत्रों में उगाया जाता है।
किसानों की बात करें तो उगाई जाने वाली फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करना ही उनका प्रमुख लक्ष्य होता है। जिले के खेतों में जो धान की बालियां देखने के लिए मिल रही हैं, वो कहीं पर छोटी, कहीं पर बड़ी और किसी-किसी पौधे में बालियां नहीं हैं। जबकि कई पौधों में संयुक्त बालियां हैं। जबकि देसी धान की प्रजातियां भौतिक रूप से शुद्ध दिखती हैं और उनके बीज का आकार, आकृति व रंग में समानता होती है। यह बीज जनित रोग व कीट प्रकोप से मुक्त होता है।
हाईब्रिड धान के चावल को लेकर आज तक उपभोक्ताओं को न तो कृषि विभाग ने सचेत किया है और न ही किसानों ने। दोनों को अपनी उपज क्षमता बढ़ाने मात्र की चिंता है। दोनों को अनाज के लिए उगाई जाने वाली फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करना ही प्रमुख लक्ष्य होता है। इसमें बोनी हेतु उपयुक्त बीज के गुणों के संबंध में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं की जाती है। जबकि बीज उत्पादन के लिए किसी स्वीकृत या मान्यता प्राप्त फाउंडेशन से प्रमाणित या प्रजनक बीज प्राप्त किया जाता है साथ ही फसल को उगाने और कटाई के बाद संसाधन व भण्डारण आदि क्रियाओं के दौरान मिलावट के सभी संभावित कारणों को यथा संभव दूर रखने का प्रयत्न किया जाता है।
कृषि विज्ञान केंद्र भलेसर के विशेषज्ञों की मानें तो देसी और हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए। खेती के लिए उन बीजों का चयन करना चाहिए,जो जलवायु के अनुकूल पैदावार दे सकें। साथ ही सेहत के लिए बेहतर हो। ये सारी खासियत हाइब्रिड और ओपन पोलीनेटेड देशी दोनों बीजों में होती हैं। लेकिन देसी बीजों की कुछ खासियत होती है, जो इसे बाकी बीजों से अलग बनाती हैं। यहां के विशेषज्ञों का कहना है कि हाईब्रिड नस्ल के बीजों को दुुबारा उगााया या बोया जा सकता है लेकिन उनमें बालियां नहीं आतीं, मतलब इनसे प्राप्त बीज बांझ होती हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्र कांपा के वैज्ञानिकों के अनुसार भी देसी बीजों को वैज्ञानिक भाषा में ओपन पॉलीनेटिड बीज भी कहते हैं। ये बीज किसी लैब या फैक्ट्री में नहीं बनते, बल्कि फसल की पैदावार में से बचाकर रखे जाते हैं। ये बीज इसलिए भी खास होते हैं, क्योंकि आसानी से पॉलीनेशन का काम होता है। जिससे हर उपज के बाद प्राकृतिक रूप से इनकी गुणवत्ता बढ़ती चली जाती है। इस तरह ये बीज खुद को जलवायु के अनुसार ढाल लेते हैं और इनसे बुवाई करने के बाद फसलों की पैदावार के साथ.साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर बनती है। ये बीज प्रकृतिक रूप से डिजाइन होते हैं। जिनमें मित्र कीटों के परागण से गुणवत्ता सुधार होता है और इसी तरह बीजों को बचाकर अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हाइब्रिड बीजों के मुकाबले देसी बीज काफी सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इनकी बुवाई से पहले बीज उपचार करके खेती के जोखिमों को कम कर सकते हैं। हाइब्रिड यानी संकर बीजों को कृतिम रूप से डिजाइन किया जाता है। ये बीज दो या दो अधिक बीज-पौधों के क्रॉस पोलिनेशन से बनाए जाते हैं। जिससे दो वैरायटी के गुण एक ही बीज में आ जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इन बीजों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। ये देशी बीजों के मुकाबले ज्यादा मजबूत और अधिक उत्पादन देते हैं। हाइब्रिड यानी संकर बीजों में दो या दो से अधिक बीजों के गुण आ जाते हैं, जिसके चलते ये महंगे भी होते हैं। इन बीजों में कीट.रोगों के प्रतिरोधी क्षमता होती ही है, साथ ही कुछ हाइब्रिड किस्में मौसम की मार का भी सामना कर लेती हैं। ये बीज लैब में वैज्ञानिक तकनीक से डिजाइन किए जाते हैं। जिसके चलते उपज की क्वालिटी और स्वाद कम हो जाता है। बाजार में अनाज से लेकर फल, सब्जी, मसाले, तिलहन, दलहन और बाकी कृषि उत्पादों में हाइब्रिड किस्में आ गई हंैंं। जिससे किसानों को भी काफी फायदा मिल रही है। लेकिन अचानक देसी बीजों का इस्तेमाल कम होने से कृषि उत्पादों का स्वाद गुम होता जा रहा है। इसलिए मिट्टी और जलवायु के अनुसार देसी बीजों से खेती करके बीजों के संरक्षण का काम शुरू हो चुका है।
इस साल जिले के किसानों ने हाइब्रिड अराइज 6444 धान की हाइब्रिड किस्म 135 से 140 दिन में तैयार होने वाली फसल ली है। मध्यम किस्म की इनब्रीड में किस्मों की दूसरे धान की तुलना में 6444 धान 20 से 30 फीसदी ज्यादा उपज देती है। इनकी प्रत्येक बालियों में 250 से 300 दानें निकलते हैं। इस किस्म में कम से कम 12 से 15 कल्लो में बालियां लगती हैं। इनमें सूखा सहने की क्षमता है। इस किस्म में साबुत चावल 70 फीसदी तक निकलता है। अराइज 6444 डायरेक्ट सीड राइस सिस्टम के लिए भी उपयुक्त हैं। और ये भारत सरकार द्वारा अधिसूचित है।
इसी तरह कुछ किसानों ने धान की अराइज 6129 हाइब्रिड किस्म भी बोया है। यह 115 दिन से 125 दिन में तैयार होने वाली किस्म है। दूसरे किस्मों की तुलना में अराइज 6129 का उत्पादन 20 से 25 प्रतिशत ज्यादा है। इस किस्म में अधिक कल्लो की संख्या और 90 फीसदी बालियों में दाने भरते हैं। इसी तरह अराइज गोल्ड 125 से 130 दिन में तैयार होने वाली हाइब्रिड धान भी किसानों ने लिया है जो बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट बीएलबी के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। वहीं अराइज 6201 गोल्ड भी 125 से 130 में तैयार होने वाली हाइब्रिड धान है। दूसरे धान की तुलना में 20 से 25 फीसदी ज्यादा उपज देती है और इसके दाने लम्बे पतले अकार के होते हैं।