बस्तर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 14 अक्टूबर। रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म ‘बाहर रैनी’ के तहत माडिय़ा जाति के ग्रामीणों द्वारा परंपरा के मुताबिक 8 पहिए वाले रथ को चुराकर कुम्हडाकोट ले जाया जाता है।
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी की शुरुआत पूजा-अर्चना से हुई। रथ खींचने बस्तर के किलेपाल परगना के 32 गांव की लगभग 2000 से अधिक ग्रामीण शामिल हुए। इन लोगों ने रविवार की आधी रात राजमहल परिसर के मुख्य द्वार के सामने से आठ चक्कों वाले विजयर थ को चुराकर कुम्हडाकोट के जंगल में छिपा दिया
बाहर रैली के विधान के साथ विजयरथ को लेकर लौटेंगे राजपरिवार के सदस्य
राजशाही समय में ग्रामीण राजा से नाराज़ होकर रथ को चुराकर जंगल में छिपा दिया था और सोमवार को राजपरिवार ग्रामीणों को मना कर रथ को वापस महल के पास लेकर आएंगे। रथ चुराने के बाद आदिवासी ग्रामीणों ने नवाखाई में साथ में भोजन करने की मांग की थी और आज भी यही परंपरा चली आ रही है।
राजा को इस बात की ख़बर लगते ही राजा अपने लाव लश्कर और गाजे बाजे - के साथ ग्रामीणों को मनाने और उनके साथ नए फसल के प्रसाद को ग्रहण कर विजयरथ को वापस शहर दंतेश्वरी मंदिर वापस लेकर आएंगे। नवा खाई के त्यौहार में सैकड़ों देवी देवता शामिल होंगे। इस रस्म को ही बाहर रैनी कहा जाता है।