संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रावतपुरा जैसे संस्थानों की धोखाधड़ी-जालसाजी की आगे जांच राज्य का जिम्मा
सुनील कुमार ने लिखा है
09-Jul-2025 4:51 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : रावतपुरा जैसे संस्थानों की धोखाधड़ी-जालसाजी की आगे जांच राज्य का जिम्मा

लोगों का जितना बड़ा नुकसान किसी एक मामले में फंसने से होता है, उससे कई गुना अधिक नुकसान तब होता है जब सरकार या जांच एजेंसी, अदालत या मीडिया की नजरें उस गलत पर जाकर टिक जाती हैं। अब ऐसा एक गलत संस्थान छत्तीसगढ़ में रावतपुरा सरकार के नाम पर चलने वाले शिक्षण संस्थान हैं, जिनके एक भ्रष्टाचार को सीबीआई ने पकड़ा, तो तथाकथित आध्यात्मिक-धार्मिक गुरू कहे/माने जाने वाले रविशंकर महाराज का नाम भी रिश्वत देने वालों की लिस्ट में सीबीआई ने अदालत में पेश कर दिया है। और अब नेशनल मेडिकल कमीशन से लेकर दूसरी कई रेगुलेटरी एजेंसियों की नजरें जब इस मेडिकल कॉलेज, और इससे जुड़े हुए रावतपुरा विश्वविद्यालय, और कई तरह के कॉलेज पर पड़ी है, तो घपले ही घपले सामने आ रहे हैं। अपने मेडिकल कॉलेज के लिए सीटें बढ़ाने को रिश्वत देते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार होने के बाद अब यह भी पता लग रहा है कि अलग-अलग कई कोर्स के लिए रावतपुरा के संस्थान अंधाधुंध फीस वसूली कर रहे थे। आज प्रकाशित एक रिपोर्ट बता रही है कि रावतपुरा शैक्षणिक संस्थाओं में इसी शहर में बिना मान्यता के पैरामेडिकल कोर्स चलाए जा रहे थे, और उनमें दाखिला लेने वाले पांच हजार छात्रों का भविष्य अब अंधकारमय दिख रहा है क्योंकि केन्द्र की मोदी सरकार की मातहत सीबीआई ने रिश्वत देकर मान्यता पाने का यह केस बनाया है, और राज्य की भाजपा सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे भ्रष्ट संस्थान की गड़बडिय़ों की जांच करवाए। इसीलिए कहा जाता है कि बिल्ली जब दूध पीकर जाती है, तो नुकसान सिर्फ दूध का नहीं होता, इस बात का भी होता है कि बिल्ली ने दूध रखने की जगह देख ली है। अब राज्य की कॉलेज-यूनिवर्सिटी जांचने-परखने वाली एजेंसियों और इनसे जुड़े हुए विभागों की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि ऐसे घपलेबाज संस्थानों की ठीक से जांच की जाए। कुछ नागरिक संगठनों ने इस भ्रष्टाचार को उजागर भी किया है, और आर्थिक अपराध ब्यूरो से इसकी जांच करवाने की मांग की है। रावतपुरा सरकार कहे जाने वाले रविशंकर महाराज को कांग्रेस का करीबी माना जाता है, लेकिन कल तो राजधानी रायपुर में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने इस विश्वविद्यालय जाकर जमकर प्रदर्शन किया है, और कहा है कि चार साल से यह विश्वविद्यालय, गैरकानूनी कोर्स चला रहा है, और छात्रों को धोखा दे रहा है। इस विश्वविद्यालय के बारे में ये भी आरोप सामने आए हैं कि बीएड जैसे कोर्स करने वाले लोगों से हाजिरी की छूट देने के लिए एक-एक सेमेस्टर में 35-35 हजार रूपए तक वसूल किए जा रहे हैं।

रावतपुरा सरकार शैक्षणिक संस्थानों का यह भांडाफोड़ बताता है कि कोई धार्मिक या आध्यात्मिक मूल्य ऐसे नहीं होते जो भ्रष्टाचार करने, धोखाधड़ी और जालसाजी से मान्यता पाने, और गैरकानूनी तरीके से दाखिले देने, मनमानी वसूली करने से किसी को रोक लें। तमाम तरह की नैतिकता की नसीहतें भक्तजनों को बेवकूफ बनाने के लिए रहती हैं, और ऐसे संस्थान हर किस्म की धोखाधड़ी, बेईमानी, और भ्रष्टाचार से अपने अरबों के साम्राज्य को खड़ा करते हैं। कुछ नागरिक संगठनों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से पत्र लिखकर मांग की है कि रावतपुरा के शैक्षणिक संस्थानों को बंद किया जाए। सरकार बंद करे या न करे, इसकी जांच करना तो उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि अगर बिना मान्यता के यहां पर कोर्स चलाए जा रहे हैं, और छात्र-छात्राओं से मोटी फीस वसूली जा रही है, तो इस पर धोखाधड़ी, और जालसाजी का जुर्म दर्ज किया जाए, और ऐसे संस्थानों की संपत्ति जब्त करके धोखा खाए हुए इन छात्र-छात्राओं को मुआवजा दिया जाए क्योंकि उनकी जिंदगी के ये कीमती बरस बर्बाद हुए, उन्होंने जाने कहां से इंतजाम करके ऐसी मोटी फीस दी, और अब ऐसी फर्जी डिग्री या डिप्लोमा की वजह से आगे नौकरी पाने की उनकी उम्र भी निकल जाएगी। यह मामला छत्तीसगढ़ के निजी कॉलेज-यूनिवर्सिटी के धोखाधड़ी के मामलों में सबसे ही बड़ा है, और यह केन्द्र और राज्य सरकार दोनों की जिम्मेदारी है कि भ्रष्टाचार के ऐसे पुख्ता मामले को जब सीबीआई ने स्थापित किया है, तो केन्द्र और राज्य दोनों की तमाम एजेंसियों को इसे ठोक-बजा लेना चाहिए, और इसके साथ-साथ कई और निजी विश्वविद्यालय फर्जी डिग्री बेचने के धंधे में लगे हुए हैं, जिनके बारे में बेरोजगारों के बाजार में बहुत से लोगों को जानकारी है, और इन लोगों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।

आज राज्यपाल को चांसलर बनाकर निजी विश्वविद्यालय डिग्री बेचने के धंधे में लगे हुए हैं, और रायपुर के अलावा दुर्ग-भिलाई इस किस्म की संगठित धोखाधड़ी का अड्डा बने हुए हैं। ऐसे कॉलेज नेशनल मेडिकल कमीशन, एआईसीटीई, यूजीसी, तरह-तरह की पैरामेडिकल काउंसिल जैसी संस्थाओं को खरीदकर अपनी कमियों को छुपाते हैं, और छात्र-छात्राओं की जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं। यह तो बहुत अच्छा हुआ जो सीबीआई ने रावतपुरा मेडिकल कॉलेज के लोगों को इस तरह रिश्वत के मामले में गिरफ्तार किया है, और इसमें बड़े-बड़े डॉक्टरों और अफसरों के नाम भी अदालत में पेश किए हैं। ये ही रावतपुरा संस्थान राज्य सरकार से रिटायर होने वाले अखिल भारतीय सेवाओं के बड़े-बड़े अफसरों को भी नौकरी पर रखते हैं, और उनके संपर्कों का फायदा भी उठाते हैं। यह पूरा सिलसिला राज्य सरकार की ईमानदार जांच से उजागर हो सकता है। सीबीआई के इतने पुख्ता केस के बाद राज्य सरकार को अपने दायरे की जिम्मेदारी को पूरा करना चाहिए, इसमें उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, राजभवन जैसे कई संस्थानों की इज्जत दांव पर लगी हुई है। अब भला कौन इस बात को मानेंगे कि रावतपुरा के नाम पर चल रहे संस्थान इतना भयानक भ्रष्टाचार करें जिसे कि सीबीआई रंगे हाथों नोटों सहित पकड़े, और उसमें राज्य सरकार के अफसरों, नेताओं, या राजभवन के लोगों को जानकारी न हो? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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