संपादकीय
cartoonist alok nirantar
ईरान पर अमरीका के हवाई हमले से बातचीत का आखिरी रास्ता भी फिलहाल तो खत्म हो गया है। अमरीका का यह निर्वाचित बेदिमाग, और बददिमाग तानाशाह अपने दोस्तों और दुश्मनों, दोनों के साथ के सारे पुल गिराते चल रहा है। उसने पूरे के पूरे योरप, और नाटो को धोखा दिया, उसने भारत सहित दर्जनों देशों के साथ बदसलूकी की, नीचा दिखाया, उसने रूस के साथ एक अप्राकृतिक प्रेम दिखाते हुए, ईरान को लेकर उसे भी बुरा झटका दिया। राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र की सारी संस्थाओं को खारिज कर दिया, जलवायु समझौते को खारिज कर दिया, अमरीकी विश्वविद्यालयों को नीचा दिखाया, और उनका दीवाला निकाल देने का काम किया, दुनिया भर में अमरीकी मदद करने वाले यूएस-एड को खत्म किया, और तो और उसने अभी पिछले पखवाड़े अपने जिगर के टुकड़े एलन मस्क से भी दुश्मनी कर ली। उसने दुनिया के सबसे बदनाम और घटिया देशों में से एक, इजराइल को बाप बनाकर सिर पर बिठाकर रखा है, और अमरीकी राजनीतिक-कार्टूनिस्ट कार्टून बना रहे हैं कि इजराइली प्रधानमंत्री ट्रंप के चेहरे वाले कुत्ते को चेन से बांधकर चल रहा है, और उससे ईरान के सुप्रीम नेता को कटवा रहा है। अमरीकी जनता के बीच यह बात उठ रही है कि उसने वोट ट्रंप को दिया था, और अब वह इजराइली प्रधानमंत्री की गुलाम बन गई है।
ऐसी तमाम बातों के बीच यह भी देखने की जरूरत है कि जो ईरान लगातार अमरीका के साथ एक परमाणु समझौते के लिए मेज पर बैठकर बात कर रहा था, बातचीत जारी ही थी, कि ट्रंप की दी गई 60 दिनों की समय सीमा पूरी हुई, और 61वें दिन ट्रंप के आज के सबसे बड़े हमबिस्तर इजराइल ने ईरान पर हवाई हमला शुरू कर दिया। इसके बाद ईरान हमलों के बीच भी यूरोपीय देशों के साथ बातचीत कर रहा था, और उसके दो दिन के भीतर बिना किसी नए घटनाक्रम के ट्रंप ने ईरान पर दुनिया के इतिहास के सबसे बड़े बम गिराए, और इस पर गर्व करते हुए ट्रंप आने वाले दिनों के लिए भी ईरान को धमकियां दे रहा है। नतीजा यह हुआ है कि पूरी दुनिया में तेल का संकट आते दिख रहा है, और तेल के दाम लगातार बढ़ सकते हैं जिससे कि दुनिया की हर अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचेगी। फिर इस जंग के आगे बढऩे की आशंका में दुनिया भर के शेयर बाजार डूब रहे हैं। वैसे भी ट्रंप की तूफानी लहरों की तरह ऊपर-नीचे आती-जाती अप्रत्याशित टैरिफ-नीतियों के चलते खुद अमरीकी कारोबारी भयानक आशंकाओं से घिरे हुए हैं, और पूरी दुनिया का कारोबार अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में ईरान में एक निहायत नाजायज, और गैरजरूरी फौजी मोर्चा खोलकर ट्रंप ने खुद अमरीका को एक ऐसी नई मुसीबत में डाला है जिसे उसी की रिपब्लिकन पार्टी के सांसद पसंद नहीं कर रहे हैं, बाकी का अमरीका तो इस फिजूल के जंगी एडवेंचर के खिलाफ है ही।
हम जरा सा पुराना देखें, तो अभी 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार में ट्रंप ने अपने पिछले एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति बुश के इराक पर हमले की कड़ी आलोचना की थी। सार्वजनिक रूप से बार-बार कहा था कि अमरीका को यह युद्ध लडऩा ही नहीं चाहिए था। उसने अपनी ही पार्टी की सरकार के बारे में साफ-साफ कहा था कि यह हमला इराक पर जनसंहार के हथियारों का जखीरा रखने का झूठा आरोप लगाकर किया गया था, और यह एक बहुत महंगा गलत फैसला था जिसने मध्य-पूर्व को अस्थिर भी कर दिया था। ट्रंप ने चुनाव प्रचार में खुलकर यह आलोचना की थी, और आज पश्चिमी रेडियो-टीवी स्टेशन उसकी वह रिकॉर्डिंग निकालकर याद दिला रहे हैं कि ट्रंप ने इस बार 2024 के चुनाव प्रचार में बार-बार यह कहा था कि अमरीका दुनिया की किसी भी जंग में हिस्सा नहीं लेगा। और कुछ महीनों के भीतर ही ट्रंप ने ईरान पर यह पूरी तरह बेबुनियाद तोहमत लगाकर असाधारण हमला किया है, जो कि अमरीका को एक लंबी जंग में खींच सकता है। इस तरह ट्रंप ने 2016 और 2024 की अपनी खुद की घोषणाओं, और वायदों के खिलाफ जाकर यह हमला बोला है। फिर यह भी है कि फिलीस्तीन पर अमानवीय युद्ध-अपराध लगातार करने वाले इजराइल को लेकर आज जब विश्व समुदाय उसके खिलाफ हो चुका है, उस वक्त अमरीका न सिर्फ फिलीस्तीन पर बरसाने के लिए इजराइल को हथियार दे रहा है, बल्कि वह लेबनान से लेकर ईरान तक दूसरी कई जगहों पर इजराइली हमलों में उसके साथ सबसे बड़ा मददगार बनकर खड़ा हुआ है, और अमरीका के खरबों डॉलर डुबा भी रहा है।
हम खर्च की बात करें, तो इराक पर हमला अमरीका को करीब तीन ट्रिलियन डॉलर से अधिक महंगा पड़ा था, उसके अलावा 45 सौ से अधिक अमरीकी फौजी मारे गए थे, पूरी दुनिया में तेल के दाम आसमान पर पहुंच गए थे, और उस वक्त बढ़ा हुआ आतंक आज तक खत्म नहीं हो पाया है। अब हमने आज यह अंदाज लगाने की कोशिश की कि ईरान पर हमला अगर आगे और फौजी टकराव में बदलता है, तो क्या होगा? एक अंदाज यह निकला कि यह टकराव जितना बढ़ेगा, उस हिसाब से दो से पांच ट्रिलियन डॉलर की फौजी लागत अमरीका को ईरान के मोर्चे पर आ सकती है, लेकिन इसके साथ-साथ जो परोक्ष लागत आएगी, वह तेल के दाम आसमान पर पहुंचने की होगी, दुनिया भर में महंगाई बढऩे की होगी, और रूस और चीन के साथ रिश्ते खराब होने की होगी। इन तमाम चीजों से अमरीका पर अंधाधुंध आर्थिक बोझ आएगा। इसलिए ट्रंप की खुद की अपनी चुनावी-भाषणों की नीतियों के खिलाफ जाकर उसने गैरजरूरी हमला ईरान पर बोला है, उसके दाम अमरीका के अलावा दुनिया के बाकी तमाम देशों को भी चुकाने होंगे, और अमरीका-इजराइल जैसे जंगखोर देशों की खून की प्यास भर इससे बुझेगी।
लोगों को अगर याद न हों, तो हम याद दिला दें कि राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 22 बरस पहले इराक पर झूठे सुबूतों का सहारा लेकर फौजी हमला बोला था, और वहां के शासक सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाकर फांसी तक पहुंचाया था, वहां अपनी पिट्ठू सरकार बनाकर अमरीका खुद ही राज कर रहा था, और वहां एक लाख से अधिक स्थानीय लोग मारे गए थे। इसके बाद अमरीका इराक को पहले के मुकाबले अधिक खराब हालत में छोडक़र वहां से भागने को मजबूर हुआ था। बाद में अफगानिस्तान में ठीक इसी तरह का हुआ कि तालिबानों को हटाने के नाम पर अमरीका वहां घुसा, 20 बरस तक ्अफगानिस्तान को रौंदा, और फिर अफगानिस्तान को उन्हीं तालिबानों के हवाले करके, अफगान महिलाओं को पत्थर युग में पहुंचाकर अमरीका वहां से अपने सैनिकों को लेकर किसी तरह भाग निकला। अपने हथियार और हेलीकॉप्टर तक छोडक़र भागा, और तालिबानों से एक समझौता करके अपने सैनिकों के विमानों को किसी तरह वहां से रवाना करवाया था। जंगखोर अमरीका दुनिया के दर्जनों देशों में ऐसी ही हिंसा कर चुका है, और बिना दांत-नाखून, बिना हाथ-पैर वाला संयुक्त राष्ट्र अमरीकी खूनी-गुंडागर्दी के सामने महज बयानबाजी करने के लायक बच गया है। लेकिन दुनिया के लोगों को याद रखना चाहिए कि अमरीका के मुंह जो खून लगा हुआ है, उसके चलते आज दुनिया के बाकी देश तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक अमरीका को उन पर हमला करने की जरूरत नहीं लग रही है, और फिर ट्रंप जैसे के रहते हुए तो दुनिया के किसी देश की हिफाजत का कोई बीमा नहीं हो सकता। एक अंडरवर्ल्ड डॉन, माफिया-गॉडफॉदर व्हाईट हाऊस में अभी पौने चार साल और रहेगा, बाकी देश अपनी-अपनी चमड़ी बचाकर रखें, जानें किसकी बारी कब आएगी।


