संपादकीय
ममता बैनर्जी की बंगाल की राजधानी कोलकाता में कल एक लॉ कॉलेज में तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए कुछ छात्र-नौजवानों ने वहां की एक छात्रा के साथ कॉलेज में ही गैंगरेप किया, और उसका वीडियो बनाकर उसे चुप रहने की धमकी भी दी। पुलिस ने इनमें से तीन छात्रों को गिरफ्तार किया है, जो अलग-अलग स्तर पर तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद से जुड़े हुए थे। इसे लेकर बंगाल में प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को घेरा है, और यह मुद्दा बनाया है कि बंगाल में लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। जो तीन नौजवान कल गिरफ्तार किए गए हैं, उनमें से दो, प्रमित मुखर्जी, और जे.अहमद इसी कॉलेज में पढ़ते हैं, और तीसरा अभियुक्त मनोजित मिश्र यहां का भूतपूर्व छात्र है। इन्होंने छात्रा को कॉलेज छात्रसंघ का अध्यक्ष बनाने की बात कहकर बुलाया था, और वहां गार्डरूम में उसके साथ तीनों ने बलात्कार किया। अब तृणमूल कांग्रेस यह कहकर हाथ झाड़ रही है कि अभियुक्त सालों पहले उसके छोटे-मोटे पद पर थे, और उन्हें कोई बड़ा पद नहीं दिया गया था। इसके जवाब में विपक्ष इन अभियुक्तों की तृणमूल नेताओं के साथ तस्वीरें सामने रख रहा है।
देश भर में बलात्कार राजनीतिक दलों को तभी दिखता है जब वह किसी विपक्षी पार्टी के राज में होता है। अपनी पार्टी के राज का बलात्कार पारदर्शी रहता है। अभी पिछले हफ्ते अमरीकी सरकार की अपने नागरिकों के लिए यह चेतावनी सामने आई कि महिलाओं को भारत में अकेले नहीं घूमना चाहिए, क्योंकि यहां बलात्कार और यौन अपराध बहुत होते हैं, और अकेली महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। इस पर कांग्रेस ने कई जगह इसे मुद्दा बनाया, लेकिन खुद कांग्रेस का राज रहते हुए कई प्रदेशों में बलात्कार की घटनाएं बहुत ज्यादा होती रहीं। हमने भारत में आबादी के अनुपात में अलग-अलग प्रदेशों में बलात्कार के आंकड़े देखे, तो वे कुछ विश्वसनीय नहीं लग रहे। भारत सरकार के नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो में वही आंकड़े जाते हैं, जो राज्य सरकार में पुलिस रिपोर्ट मेें दर्ज होते हैं। इनमें बड़े राज्यों में राजस्थान सबसे आगे है जहां प्रति एक लाख महिला आबादी पर 13.8 मामले दर्ज हो रहे हैं। इसके तुरंत बाद हरियाणा और दिल्ली का नंबर है। लेकिन देश की राष्ट्रीय प्रति लाख आबादी औसत बलात्कार दर 4.7 है, लेकिन जो पांच राज्य सबसे ऊपर हैं, उत्तराखंड, चंडीगढ़, राजस्थान, हरियाणा, और दिल्ली, इनमें राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक तक बलात्कार दर्ज हो रहे हैं। ऐसे में बंगाल में यह संख्या राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है, 2.3 जो कि इस बात से भी प्रभावित हो सकती है कि कुछ राज्यों में पुलिस को जुबानी हुक्म रहते हैं कि वे बलात्कार की शिकार महिलाओं का रिपोर्ट दर्ज कराने का हौसला न बढ़ाएं। उत्तरप्रदेश में भी बलात्कार राष्ट्रीय औसत से बहुत कम 3.27 प्रति लाख महिला आबादी दर्ज हुए हैं। भाजपा के ही शासन वाले राजस्थान में यह आंकड़ा 13.84 प्रति लाख महिला है, और यूपी में 3.27, यह कुछ हैरान करता है कि अगल-बगल के दोनों हिन्दीभाषी प्रदेशों में इतना फर्क कैसे हो सकता है, सिवाय इसके कि इन जगहों पर पुलिस की रिपोर्ट लिखने में उदासीनता में फर्क हो।
लेकिन इन आंकड़ों से परे एक और चीज को देखने की जरूरत है कि देश में बलात्कार के दर्ज मामलों में कुल एक चौथाई लोगों को ही सजा हो पाती है। बाकी लोगों के मामले या तो झूठे रहते हैं, या जांच और सुबूत जुटाने में पुलिस कमजोरी करती है, या फिर दोनों पक्षों में कोई समझौता हो जाता है, या जांच और सुनवाई में जिस भ्रष्टाचार की आम चर्चा रहती है, उसके चलते भी लोग छूट जाते हैं। हम आए दिन खबरें देखते हैं कि बलात्कार के किसी आरोपी को जब जेल भेजा जाता है, तो उसका परिवार या उसका गिरोह शिकायतकर्ता के परिवार का जीना हराम कर देते हैं। ऐसे में बहुत सारे मामलों में लडक़ी या महिला शिकायत वापिस ले लेते हैं। दूसरी तरफ जमानत पर छूटकर आते ही आरोपी बहुत से मामलों में शिकायतकर्ता पर फिर हमला करते हैं, कहीं चाकू भोंकते हैं, कहीं तेजाब फेंकते हैं, और कहीं मार डालते हैं। इसलिए भारत में लडक़ी या महिला बलात्कार की रिपोर्ट लिखाते हुए यह भी ध्यान में रखती हैं कि उसके बाद वे कितनी सुरक्षित रह सकेंगी, या उन पर कितना खतरा बढ़ जाएगा। इस हिसाब से हमें एक पल को बंगाल और यूपी ेमें आंकड़े एकदम कम होने की एक वजह समझ में आती है कि वहां शिकायतकर्ता को अपनी हिफाजत खतरे में लगती है, इसलिए वे रिपोर्ट लिखाती नहीं हैं। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी पहले भी बलात्कार की शिकार नाबालिग लडक़ी और महिला को राजनीतिक साजिश का हिस्सा बता चुकी हैं, और उत्तरप्रदेश में कई किस्म की अराजकता के राज एक-दूसरे के समानांतर चलते हैं, वहां जाति के असर से, या राजनीतिक ताकत से, पुलिस की मनमानी से, कई मुजरिम फंसते हैं, कई बचते हैं। इसलिए भी हो सकता है कि यूपी में शिकायत कम दर्ज होती हो।
ऐसा लगता है कि भारत में बलात्कारी, और बलात्कार की शिकार की सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर एक विस्तृत विश्लेषण होना चाहिए कि आर्थिक स्थिति, धर्म या जाति, ग्रामीण या शहरी पृष्ठभूमि, इन सबमें कौन-कौन से पहलू बलात्कार के पीछे रहते हैं। पुलिस के आम आंकड़ों से परे ऐसा व्यापक अध्ययन जरूरी है ताकि आर्थिक और सामाजिक पहलुओं का समाधान निकाला जा सके। बलात्कार होने के बाद बलात्कारी को सजा दिलवाने से शिकार लडक़ी या महिला की जिंदगी बहुत बेहतर नहीं हो जाती, बल्कि उस पर हमेशा के लिए एक जख्म लगता है। अमरीकी सरकार की अपने नागरिकों को दी गई चेतावनी का बुरा मानने की जरूरत किसी को नहीं है। भारत में सचमुच ही लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। अभी सोशल मीडिया पर हिन्दी साहित्य का संसार एक बड़ी अप्रिय बहस से भरा हुआ है कि पटना में एक किसी आयोजन में किस तरह एक नामी-गिरामी लेखक ने एक नौजवान लेखिका के कमरे में जाकर उससे यौन-बदसलूकी की। जो लोग लगातार खबरों और चर्चाओं में रहते हैं, वे भी शोषण का मौका नहीं छोड़ते। भारत में जो पुरूषप्रधान सोच लडक़ों को बचपन से ही विरासत में मिलती है, उसका असर उनके मरणासन्न होने तक भी कायम रहता है, अगर अस्पताल में उनकी आखिरी धडक़न के वक्त आसपास कोई नर्स हो। भारत में महिला असुरक्षित है, यह बताकर अमरीका ने कोई परमाणु रहस्य नहीं बता दिया है, यह बात सूरज के पूरब से निकलने सरीखी हर किसी को मालूम बात है। इस पर आत्ममंथन और आत्मचिंतन की जरूरत है, नेताओं के एक-दूसरे पर बरसने की नहीं।


