राजपथ - जनपथ
दिल्ली में प्रतिष्ठित चुनाव और छत्तीसगढ़
दिल्ली के प्रतिष्ठित कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव को लेकर भाजपा के अंदर खाने में काफी हलचल है। क्लब के सचिव पद के लिए पार्टी के ही दो पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, और संजीव बालियान आमने-सामने हैं। खास बात ये है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी भी चुनाव मैदान में कूद गए हैं, और कार्यकारिणी सदस्य के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।
कांस्टीट्यूशन क्लब के पदेन अध्यक्ष लोकसभा स्पीकर होते हैं। यह देश की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। पीएम, केन्द्रीय मंत्रियों व सांसद, और पूर्व सांसद के अलावा केन्द्र सरकार के सचिव स्तर के अफसर क्लब के सदस्य होते हैं। लिहाजा, यहां का सदस्य होना ही काफी प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। क्लब के कुल सदस्यों की संख्या 12 सौ के आसपास है। मगर सिर्फ सांसदों, और सदस्य पूर्व सांसदों को ही वोट डालने का अधिकार है। पहले सचिव, और अन्य पदों पर पदाधिकारी निर्विरोध चुने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार बकायदा चुनाव हो रहे हैं।
सचिव, और अन्य पदों के लिए 12 अगस्त को वोटिंग होगी। चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला खेल सचिव के पद पर निर्विरोध चुने जा चुके हैं। मगर सचिव, और कार्यकारिणी सदस्य के 11 पद के लिए खींचतान चल रही है। सचिव पद के लिए भाजपा के ही दो दिग्गज नेता रूडी, और संजीव बालियान के बीच मुकाबला है। चर्चा है कि राजीव प्रताप रूडी को कई भाजपा सांसदों के अलावा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भी समर्थन है। जबकि संजीव बालियान को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समर्थक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
प्रत्याशी, सांसदों के बीच समर्थन जुटाने के लिए काफी मेहनत भी कर रहे हैं। इन सबके बीच राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी भी सांसदों से संपर्क कर अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं। गांधी के लिए छत्तीसगढ़ के विशेषकर भाजपा सांसद प्रचार कर रहे हैं। वैसे तो गांधी वर्ष-2004 में सांसद बने थे, लेकिन वो दो साल के भीतर ही संसद में सवाल पूछने के नाम पर पैसे लेने के आरोप में बर्खास्त भी हो गए थे। उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था।
प्रदीप गांधी की किसी तरह भाजपा में वापसी तो हो गई, लेकिन पार्टी की मुख्य धारा में नहीं आ पाए। ये अलग बात यह है कि पूर्व सांसद होने के नाते संसद भवन के सेंट्रल हॉल तक आने-जाने में रोक नहीं है। वो हमेशा सत्र के दौरान संसद भवन में रहते हैं। काफी सांसदों से उनका परिचय है। इन सबके चलते उन्हें चुनाव जीतने का भरोसा है।
प्रदीप गांधी के अलावा पूर्व सांसद असलम शेरखान, और उद्योगपति नवीन जिंदल भी सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं, और वो प्रदीप गांधी के मुकाबले में हैं। चुनाव में क्या होगा, यह तो 12 तारीख को ही पता चलेगा। मगर क्लब के चुनाव को भाजपा के गुटीय नजरिए से भी देखा जा रहा है।
अपराधी वाहन चालक ही क्यों ?

यह व्हाट्सएप पोस्ट हमें हमारे एक परिचित ने रिसेंड किया है। उन्हें यह मैसेज किसी ग्रुप में पढऩे को मिला था। हमारे परिचित का कहना है कि वे निम्नांकित 8 जुर्माने में से छह यानी 1,2,3,6,7 और 8 के शिकार हो चुके थे। कभी अनजाने तो कभी भूलवश गलती कर बैठते। लेकिन अहम बात यह है कि ट्रैफिक पुलिस, नगर निगम, पशुपालन विभाग जैसे सरकारी तंत्र पर उसकी अपनी ढिलाई अनदेखी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। ऐसा लगता है जनता ही एकमात्र अपराधी है, और केवल उसी पर जुर्माना लगता है। उन पर कोई नियम लागू नहीं होते, ऐसी लापरवाही के लिए कभी जवाबदेह नहीं होते।
क्या उन्हें भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? नागरिकों को कड़ी मेहनत करनी चाहिए, कष्ट सहने चाहिए, टैक्स चुकाने चाहिए, जुर्माना भरना चाहिए, सरकारी खजाना भरना चाहिए। अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए आम जनों से अनुरोध किया कि इस मैसेज को जितना संभव हो उतना व्यापक रूप से साझा करें, ताकि जिन्होंने ये नियम बनाए हैं, वे भी इस सच्चाई से अवगत हों।
ऐसी वसूली
हेलमेट नहीं... जुर्माना 1,000/-
नो-पार्किंग जोन में पार्किंग... जुर्माना 3,000/-
बीमा नहीं... जुर्माना 1,000/-
नशे में गाड़ी चलाना... जुर्माना 10,000/-
नो-एंट्री जोन में गाड़ी चलाना... जुर्माना 5,000/-
गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बात करना... जुर्माना 2,000/-
प्रदूषण प्रमाणपत्र नहीं... जुर्माना 1,100/-
तीन सवारी बैठाना (ट्रिपल सीट राइडिंग)... जुर्माना 2,000/-
परन्तु
खराब यातायात संकेत... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ों पर गड्ढे... कोई जिम्मेदार नहीं!
अतिक्रमित फुटपाथ... कोई जिम्मेदार नहीं!
स्ट्रीट लाइटिंग नहीं... कोई जिम्मेदार नहीं!
गलियों में कचरा बिखरा हुआ... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ों पर स्ट्रीट लाइट पोल नहीं... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ें खोदकर बिना मरम्मत के छोड़ दी गईं... कोई जिम्मेदार नहीं!
अगर आप गड्ढे में गिर जाए और चोट लग जाए... कोई जिम्मेदार नहीं!
अगर आवारा गाय या जानवर आपकी गाड़ी से टकरा जाएं या कुत्ता काट ले... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ पर सीवेज का पानी बह रहा है... कोई जिम्मेदार नहीं!
दोपहिया चालकों की सर्जरी, पर उड़ते ट्रक अछूते
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प्रदेश की यातायात पुलिस इन दिनों पूरे जोश से सडक़ों पर सक्रिय है। पर ध्यान बस एक ही दिशा में लगा है-दोपहिया चालकों की चेकिंग। कहीं हेलमेट की कमी है, कहीं बीमा की कॉपी नहीं है, कहीं नंबर प्लेट पर क्यूआर कोड नहीं दिखा, तो कहीं आरसी गायब। लगता है जैसे दुपहिया चालकों की सर्जरी के लिए ही विभाग ने कमर कस रखी है। शहर की सीमा पार करते ही दृश्य बदल जाता है। सडक़ किनारे आरटीओ की चमचमाती गाडिय़ां खड़ी दिखती हैं। यह जांच चौकी किसी अस्थायी दुकान की तरह सजी होती है, पर उनका ध्यान भी सिर्फ दुपहिया पर टिका होता है।
वहीं ट्रक जो तेज रफ्तार में दौड़ते हैं। जैसे सडक़ उनकी निजी रेसिंग ट्रैक हो। जिनके पास न आगे नंबर प्लेट है, न पीछे। पर ये पुलिस और आरटीओ के रेडार में आते ही नहीं। ये ट्रक आम आदमी के नहीं, बल्कि धनकुबेरों, रसूखदारों और सिस्टम से नजदीकी रखने वालों के हैं। जांच की लक्ष्मण रेखा यहां दुपहिया चालकों तक खींची हुई होती है।
कांकेर जाते समय पुराने धमतरी रोड पर दर्जनों ट्रकें बिना नंबर प्लेट के सरपट दौड़ते देख सकते हैं। ये पुराना रोड प्रेम समझदारी से भरा है। इस रास्ते से निकलने पर टोल टैक्स नहीं देना पड़ता। यानी, बिना नंबर, बिना ज़म्मेदारी और बिना जवाबदेही, ये ट्रकें खुलेआम कानून का मजाक बना रहे हैं। कानून शायद नींद की गोली खाकर सो गया है।
अब सवाल ये नहीं कि जांच हो रही है या नहीं। ये है कि क्या ये जांच सबके लिए बराबर हो रही है?
शहर की ट्रैफिक पुलिस के आला अफसरों को समझना होगा कि व्यवस्था तब सुधरेगी जब दोपहिया चालकों से आगे बढक़र उन रफ्तारबाज ट्रकों पर भी कार्रवाई की जाए, जो कानून को ताक पर रख सडक़ को अपनी जागीर समझ बैठे हैं।
( तस्वीर एवं विवरण- गोकुल सोनी)


