राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ: कुर्सी है ही ऐसी, कहीं छूटती नहीं
24-Jul-2025 7:14 PM
राजपथ-जनपथ: कुर्सी है ही ऐसी, कहीं छूटती नहीं

कुर्सी है ही ऐसी, कहीं छूटती नहीं

अन्नदाता जब खेत में उतरता है, तो न धूप की परवाह करता है, ना बारिश की। न खाल झुलसने का डर, न कीचड़ में सन जाने की चिंता। उसके लिए खेत ही कर्मभूमि है, जहां वक्त पर बोनी, रोपाई, निंदाई करना आजीविका की शर्त है। तभी जाकर फसल पकती है और हम सबका पेट भरता है।

छत्तीसगढ़ के अधिकांश मंत्री और विधायक खुद को किसान बताते हैं।  यह बात कागज पर तो दर्ज है ही, चुनावी हलफनामों में भी है। पर जैसे ही कुर्सी मिलती है, लगता है खेतों से रिश्ता छूट जाता है।

महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े की यह तस्वीर भी कुछ ऐसा ही किस्सा बयान कर रही है। खेत में कुर्सी लगाकर आरामदायक रोपाई करती दिख रहीं मंत्री जी ने शायद यह तय किया था कि कैमरे में खेत में काम करने का लुक आना चाहिए, मेहनत नहीं।

रोपाई कोई आरामकुर्सी पर बैठकर चाय पीने जैसा काम नहीं है। मगर मंत्री जी ने कुर्सी लगाई, हाथ में रोपा लिया, कैमरे की क्लिक हुई, और किसान दिखने की प्रक्रिया पूरी हो गई। विपक्ष-समर्थक और सत्ता के बड़े नेता खेत में उतरकर फोटो खिंचवा रहे हैं, तो उन्होंने भी  सोचा होगा कि पीछे क्यों रहा जाए।

मगर, यह तस्वीर बता रही है कि वह जमीन से नहीं जुड़ी रह पाई। कुर्सी मंत्री को खूब भली लगने लगी है। जब कीचड़ भरे खेत में उतरने की मजबूरी हो तब भी।

नेताओं की खेती

प्रदेश में अच्छी बारिश के बाद गांवों में धान की रोपाई रफ्तार चल रही है। भाजपा, और कांग्रेस के कई नेताओं की खेत में रोपा लगाते तस्वीर वायरल हो रही है। इनमें महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े तो कुर्सी पर बैठकर रोपाई करते ट्रोल हो गईं।

दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय, और गृहमंत्री रहते ननकीराम कंवर की खेती-किसानी करते तस्वीर सुर्खियों में रही हैं। ये नेता राजनीति में व्यस्तता के बाद भी समय निकालकर किसानी का काम करते रहे हैं। खुज्जी की पूर्व विधायक छन्नी साहू, तो मनरेगा मजदूर रहीं हैं, और विधायक बनने के बाद भी वो समय निकालकर खेतों में काम करने चली जाती थीं। पिछले दिनों सामरी की विधायक उद्देश्वरी पैकरा की अपने गृह ग्राम भगवतपुर में रोपा लगाते तस्वीर वायरल हुई, तो बाकी नेताओं मेें भी ऐसा करने की होड़ मच गई।

उद्देश्वरी के पति सिद्धनाथ पैकरा दो बार विधायक रहे हैं। उद्देश्वरी भी विधायक बनने से पहले भी अपने खेतों में मजदूरों के साथ काम करती रही हैं। और जब महिला मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े की तस्वीर वायरल हुई, तो कई लोगों ने उनके बारे में जानकारी जुटाई। यह पता चला कि लक्ष्मी घरेलू महिला रही हैं, और विधायक बनने से पहले जिला पंचायत की सदस्य रही हंै। उन्हें खेतों में उतर कर काम करने का कोई अनुभव नहीं रहा है। उनके पति का ईंटभ_े का व्यवसाय है, और पंचायत सचिव भी थे। स्वाभाविक है कि लक्ष्मी को बैठकर रोपा लगाने में दिक्कत महसूस हुई, तो उन्होंने कुर्सी मंगवा ली। बस फिर क्या था। सोशल मीडिया में लोग चुटकियां लेते नजर आए।

कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने खेत में काम करते राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम, और लक्ष्मी राजवाड़े की तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट किया, और अंतर बताने की कोशिश की। फूलोदेवी बिना कुर्सी के रोपा लगाते नजर आ रही हैं। कांग्रेस तो सत्ता में नहीं है, ऐसे में फुलो देवी का बिना कुर्सी के रोपा लगाते फोटो खिंचवाना गलत भी नहीं है।

कलेक्टर कॉन्फ्रेंस और फेरबदल

विधानसभा का मानसून सत्र से पहले  सरकार ने एक बड़ी खेप में मैदानी अमले को इधर उधर कर दिया था। और अब सत्र निपटते ही राज्य प्रशासन में फेरबदल की खबरें आ रही है। इस बार  बारी आईएएस, आईपीएस आईएफएस की होगी। लेकिन यह फेरबदल  अभी नहीं कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के बाद ही होने के संकेत हैं।

सीएम ने कल ही एक बैठक में कॉन्फ्रेंस आयोजित करने अपने सचिवों को निर्देशित किया है। इसमें बजट के बाद से कलेक्टरों और फिर सत्र में मंत्रियों के जरिए उनके सचिवों के परफार्मेंस का भी आकलन हो जाएगा। कुछ सचिव दोहरे तिहरे प्रभार में भी है। इतना ही नहीं नए निगम मंडल अध्यक्षों की भी अपने एमडी से पटरी नहीं बैठ रही।

कुछ ने तो नए नाम भी सरकार तक पहुंचा दिए हैं। इसी दौरान जिले वार कानून व्यवस्था की भी समीक्षा होनी स्वाभाविक है और एसपी आईजी भी बदले जाएंगे। इसे देखते हुए हाल में पदोन्नत की हरी झंडी हासिल करने वाले  रापुसे के तीस अफसर भी जोड़ तोड़ में लग गए हैं। बड़े न सही छोटे जिलों में एसपी तो बन ही सकते हैं।

हाथी की सूंड में, मासूम की चीख

रायगढ़ सहित छत्तीसगढ़ के जिन जिलों को वन संपदा का वरदान मिला था, वहां अब यह शाप बन रहा है।

धर्मजयगढ़ के एक गांव में घुसे हाथी, घरों को तोड़ते हुए तीन लोगों की जान ले गए। तीन साल का मासूम सत्यम, जिसे शायद यह भी नहीं पता होगा कि हाथी क्या होता है, अपने ही घर में जान गवां बैठा। हाथी ने उसे रोता देख सूंड से उठाकर पटक दिया। एक महिला, खेत में काम करती हुई, जंगल और वन्य जीवों के बीच बिगड़ते संतुलन की कीमत चुका गई। एक और व्यक्ति, अपने ही घर में मलबे के नीचे दब गया, जिसे हाथी ने ढहा दिया था। यह सब एक ही रात में हुआ।

सरकार और प्रशासन की कथनी और करनी के बीच की खाई में आज इंसान और हाथी दोनों फंस चुके हैं। वन विभाग मॉनिटरिंग और सतर्कता की दुहाई देता है, पर हाथियों के हमले ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं। जंगल को उद्योगपतियों के हवाले किया जा रहा है और हाथियों से कहा गया है, रास्ता बदलो। चाहे उस रास्ते में पडऩे वाले आदिवासियों को जान गंवानी पड़े, खेत बाड़ी नष्ट हो जाए। जानकार बताते हैं कि हाथी पचासों साल की स्मृतियों को अपने साथ लेकर चलता है। उन रास्तों को उजड़ता पा रहे हैं और बेचैन हैं। आज हालात ये हैं कि छत्तीसगढ़ के प्रभावित गांवों में ग्रामीण रात को यह सोचकर सो रहे हैं कि अगली बारी उसकी तो नहीं?


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