राजपथ - जनपथ

सूरजमुखी आयोजन समिति
डब्ल्यू आर एस के रावण भी बड़े अजीब हैं हर पांच वर्ष में नाम बदलते रहता है और अगले पांच वर्ष चलता है। इस रावण को आयोजन समिति के प्रमुखों के नाम से जाना जाता है। पहले स्व तरुण चटर्जी, फिर राजेश मूणत, और इसका बाद कांग्रेस सरकार में मेयर-विधायकों की टीम आयोजन समिति के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन इस बार पुरंदर मिश्रा को आयोजन समिति का मुखिया बनाया गया है।
यह सिलसिला चार दशक से चल रहा है। रेलवे का यह इलाका रायपुर ग्रामीण का हिस्सा रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा भीड़ भी डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव में उमड़ती रही है। हर बार का दशहरा उत्सव पिछली के मुकाबले ज्यादा भव्य होता आया है। विधानसभा के परिसीमन के बाद स्थिति बदल गई, और डब्ल्यूआरएस का इलाका रायपुर उत्तर का हिस्सा बन गया। मगर राजेश मूणत पश्चिम के विधायक होने के बावजूद डब्ल्यूआरएस दशहरा उत्सव समिति के मुखिया बने रहे।
कांग्रेस की सरकार आई, तो मूणत को हराने वाले विकास उपाध्याय दशहरा उत्सव समिति का प्रमुख बनना चाह रहे थे। लेकिन रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा ने दावेदारी ठोक दी, और फिर मेयर एजाज ढेबर भी कूद पड़े। इसके बाद सामूहिक नेतृत्व में आयोजन होता रहा। मगर भाजपा की सरकार बनी, तो आयोजन समिति ने मूणत से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने पारिवारिक कारणों से मना कर दिया।
उन्होंने समिति के लोगों से कहा बताते हैं कि पांच साल उन्हें दूर रखा गया अब मन नहीं है। फिर समिति के प्रमुखों ने पुरंदर को मना लिया, और वो तैयारी में जुट भी गए हैं। दरअसल, बड़ा खर्च देखकर आयोजन समिति विधायक और उनके जरिए सरकार निगम के संसाधनों की मदद ले लेते है। दपूमरे रेल प्रशासन मैदान दे देता, बाकी संसाधन समिति को खर्च कर जुटाने पड़ते, सो वे विधायकों को ही अध्यक्ष बनाकर आयोजन करने लगे। पुरंदर हर साल भव्य रथयात्रा तो निकालते ही हैं, और इस बार उन पर दशहरा उत्सव की जिम्मेदारी है। डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव पर इस बार लोगों की नजरें टिकी हुई है। सूरजमुखी का फूल, जिधर सूरज रहता है, उसी तरफ़ घूम जाता है।
सदस्यता की चुनौती
भाजपा के सदस्यता अभियान के चलते दिग्गजों की नींद उड़ गई है। हाल यह है कि रायपुर के चारों विधानसभा मिलाकर लक्ष्य से आधे सदस्य नहीं बन पाए हैं। रायपुर की सीमा से सटे विधानसभा के युवा विधायक का तो हाल काफी बुरा है। विधायक के खराब बर्ताव की वजह से कार्यकर्ता छिटक गए हैं। युवा विधायक टारगेट का आधा भी पूरा नहीं कर पाए हैं।
रायपुर के एक विधानसभा क्षेत्र में एक जमीन कारोबारी तो सदस्य बनाने में स्थानीय विधायक को पीछे छोडऩे का दावा कर रहे हैं। लेकिन वस्तु स्थिति तो सदस्यता अभियान खत्म होने के बाद ही सामने आ पाएगी। इन सबके बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन की काफी चर्चा हो रही है। अजय चंद्राकर ने सबसे ज्यादा 70 हजार सदस्य बनाए हैं। जबकि दूसरे नंबर पर रिकेश सेन हैं, जो कि 25 हजार से अधिक सदस्य बना चुके हैं। चर्चा है कि आधा दर्जन विधायक ही सदस्यता के लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं। देखना है कि भाजपा की सदस्यता अभियान के आंकड़े कहां तक पहुंचते हैं।
फिर वही पीएससी इंटरव्यू
छत्तीसगढ़ पीएससी 2022 में हुई गड़बड़ी की जांच की जिम्मेदरी मिलने के बाद सीबीआई ने शुरूआती जांच की, कुछ जगहों पर छापामारी की लेकिन अब तक आरोपियों पर शिकंजा नहीं कसा है। इधर धीरे-धीरे पीएससी 2023 की मुख्य परीक्षा हो गई और उसकी मेरिट लिस्ट भी जारी हो गई। अब 15 अक्टूबर से इसमें साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। लोकसेवा आयोग में अध्यक्ष व चार सदस्यों का पद होता है। पर इनमें अभी दो पद रिक्त हैं। टोमन सिंह सोनवानी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा प्रवीण वर्मा संभाल रहे हैं। वहीं डॉ. सरिता उइके और संतकुमार नेताम सदस्य हैं। सभी पद संवैधानिक हैं इसलिये नियुक्ति कांग्रेस के समय की होने के बावजूद वे अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहेंगे। उम्मीदवारों का साक्षात्कार ये ही लोग होंगे।
यह बात अलग है कि सन् 2023 की प्रारंभिक परीक्षाओं के खिलाफ दायर 40 याचिकाओं को हाल ही में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन इसके पहले की कोई भी परीक्षा विवाद के बिना नहीं गुजरा। 2003 में हुई पहली परीक्षा में गलत टेबुलेशन से चयन में गड़बड़ी की बात हाईकोर्ट में खुद पीएससी ने मान ली थी, पर इस आधार पर चयन किए गए लोग सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल जाने के कारण सेवा में हैं। इनमें से अनेक लोग आईएएस अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं और कुछ साल में रिटायर्ड भी हो जाएंगे।
भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद पीएससी के पैटर्न में बदलाव किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग की तरह परीक्षा से लेकर चयन तक की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। मगर, स्थिति यह है कि सरकार के गठन के 10 माह बाद भी रिक्त दो पदों पर नियुक्ति नहीं हो पाई है। भाजपा से जुड़े कई दावेदार भी इसका इंतजार कर रहे थे। सोशल मीडिया पर इशारों में दावेदारी भी कर रहे हैं और अपनी सरकार का ध्यान खींच रहे हैं। मगर, इंटरव्यू की तारीख इतने करीब आ चुकी है कि अब रिक्त सदस्यों की नियुक्ति की जल्दी हो इसकी उम्मीद कम है। बस, इंटरव्यू दिलाने वाले परीक्षार्थियों की चिंता यह है कि चयन योग्यता के अनुसार हो, पिछली बार की तरह विवादित न हों।
टूथ पिक भी चाइनिज
चीन से आयातित दंतखुदनी (टूथपिक) का पैकेट 25 रुपये में मिल रहा है, जिसमें 300 स्टिक्स हैं। भारत में बने टूथ पिक की कीमत 140 रुपये है। इसमें 500 स्टिक्स हैं, फिर भी हिसाब में चीन का बना टूथपिक काफी सस्ता है। ऐसी वजह के चलते ही तमाम देशप्रेमियों के विरोध के बावजूद दीपावली पर चाइनिज झालर, पटाखे बाजार पर कब्जा कर ही लेते हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)