राजपथ - जनपथ
पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी दंतेवाड़ा में जमीन की अदला-बदली के पुराने प्रकरण में फंस गए हैं। प्रकरण की जांच पर ऐसा माना जा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट से रोक लगी है। लेकिन अभी सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में लगाई गई एक विशेष याचिका पर अपने पिछले आदेश पर यह स्पष्टीकरण दिया है कि उसने जांच पर कभी रोक नहीं लगाई थी। प्रकरण कुछ इस तरह का है कि चौधरी ने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहते कलेक्टोरेट के समीप करीब साढ़े तीन एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। इसके एवज में भू-स्वामियों को बाजार के समीप जमीन का आबंटन कर दिया गया। अदला-बदली के तहत सौंपी गई जमीन पर दंतेवाड़ा के व्यापारियों के लिए कॉम्पलेक्स का निर्माण प्रस्तावित था। इसकी शिकायत पर स्थानीय लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार की आशंका जताते संबंधित अफसरों के खिलाफ जांच के आदेश जारी किए थे। कोर्ट का फैसला आता तब तक कॉम्पलेक्स का निर्माण हो चुका था और कई व्यापारियों ने कॉम्पलेक्स में दुकानें खरीदी थीं। बाद में कुछ व्यापारी सुप्रीम कोर्ट चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश 20 फरवरी 2017 को दिया था, उसे ऐसा मान लिया गया था कि मानो जांच पर सुप्रीम कोर्ट से रोक लग गई। दूसरी तरफ रमन सरकार के इस लाड़ले कलेक्टर को बचाने की कोशिश भी हुई। जांच के लिए पहले रिटायर्ड जज (अब लोकायुक्त) जस्टिस टी पी शर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। कमेटी अपना प्रतिवेदन भी नहीं दे पाई थी कि सुप्रीम कोर्ट से रोक का हल्ला हो गया। नौकरी छोड़कर राजनीति में आ चुके ओपी चौधरी की आगे की राह आसान नहीं है क्योंकि सरकार बदल चुकी है। उनके खिलाफ कई और प्रकरण सामने आ रहे हैं। अब जब यह साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट से जांच पर रोक कभी लगी ही नहीं थी, तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।