राजपथ - जनपथ
डैमेज कंट्रोल की कोशिश में केरल भाजपा
केरल में इस साल के आखिर में स्थानीय निकाय चुनाव और अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा लंबे समय से हिंदी बेल्ट से बाहर, खासकर दक्षिण और पूर्वोत्तर में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। जहां धार्मिक ध्रुवीकरण और धर्मांतरण जैसे मुद्दे असर नहीं करते, वहां भाजपा बहुलवादी रणनीति अपनाती है। नॉर्थ-ईस्ट में सरकारें बनाना और पश्चिम बंगाल में दूसरे नंबर पर आना इसी रणनीति से संभव हुआ है।
केरल में ईसाई समुदाय करीब 18 प्रतिशत है और राजनीति में उनकी भूमिका काफी अहम मानी जाती है। यहां भाजपा का अब तक असर सीमित रहा, लेकिन पिछली लोकसभा में पार्टी ने त्रिसूर सीट जीतकर इतिहास रच दिया और वोट शेयर 16.68त्न तक पहुंच गया। पार्टी यहां मेहनत कर ही रही थी कि छत्तीसगढ़ में एक घटना ने मुश्किल खड़ी कर दी। केरल की दो नन, वंदना फ्रांसिस और प्रीति मेरी, को धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिली। छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसद इस मुद्दे को शून्यकाल में उठाकर धर्मांतरण और मानव तस्करी से जोड़ते दिखे तो केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि दोनों नन निर्दोष हैं। वे खुद दौड़े-दौड़े छत्तीसगढ़ पहुंच गए। चर्चा तो यह भी है कि इस मसले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीधे दखल दिया। जमानत तो मिल गई, लेकिन 9 दिन जेल में रहने से केरल के ईसाई समुदाय में नाराजगी फैल गई।
केरल की मीडिया पर नजर डालें तो पता चलता है कि वहां इस मामले को बड़े पैमाने पर कवर किया गया। जैसे ही गिरफ्तारी हुई, मुस्लिम संगठनों जैसे एसडीपीआई और जमात-ए-इस्लामी ने भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी बताकर माहौल बनाने की कोशिश की। जवाब में भाजपा ने कहा कि ये संगठन ईसाई आंदोलन में घुसपैठ कर रहे हैं और राजनीतिक इस्लाम से चर्चों को खतरा है। भाजपा को डर है कि ईसाई-मुस्लिम गठजोड़ उसके किए कराये पर पानी न फेर दे।
केरल की राजनीति में चर्चों का बड़ा प्रभाव है। ननों की रिहाई के बाद कई बिशप और गैर-कैथोलिक संप्रदायों के पादरी भाजपा मुख्यालय पहुंचे और आभार जताया। पार्टी भी वहां पर ईसाई पादरियों से मिलकर राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका को सकारात्मक बता रही है। भाजपा नेता चर्चों को बता रहे हैं कि केवल भाजपा ने ननों की जमानत के लिए ईमानदार कोशिश की। मतलब यह कि सीपीआई (एम) के नेता यहां आए जरूर पर ननों को छुड़ाना उनसे संभव नहीं हुआ। केरल में एक आर्कबिशप जोसेफ पंप्लानी ने भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की सराहना की, जबकि एक दूसरे बिशप पॉली कन्नूक्कादन ने केंद्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों की आलोचना की। इस बीच, भाजपा ने अपनी कोर कमेटी में फेरबदल कर कई ईसाई नेताओं को जगह दी, जिनमें मध्यप्रदेश से भेजे गए राज्यसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन भी शामिल हैं। साथ ही, ईसाई समुदाय से जुडऩे के लिए चल रहे स्नेह यात्रा अभियान को तेज करने का फैसला किया गया।
कुल मिलाकर, यह एक दिलचस्प वाकया है कि एक राज्य की स्थानीय राजनीति ने राष्ट्रीय स्तर की रणनीति को कैसे हिला दिया। अगर भाजपा इस डैमेज कंट्रोल में सफल रही, तो केरल में उसकी संभावनाएं बढ़ेंगी, वरना आगामी चुनावों में नुकसान झेलना पड़ सकता है।
जंगल दफ्तर से कई बिदा हो रहे

वन मुख्यालय में इस माह के आखिरी में सीनियर आईएफएस अफसरों के प्रभार बदले जाएंगे। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स के बाद पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) को दूसरे नंबर का अहम पद माना जाता है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) सुधीर अग्रवाल 31 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के लिए तपेश झा, और प्रेम कुमार का नाम चर्चा में हैं।
पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के साथ ही पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान)के पद पर भी नई पदस्थापना की जाएगी। सरकार वन मुख्यालय में नए सिरे से अफसरों के कामकाज में बदलाव पर विचार कर रही है। पीसीसीएफ स्तर के अफसर मौरिस नंदी, और सुनील मिश्रा भी अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं। इन सबको देखकर वन मुख्यालय में नए सिरे से अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। ऐसे में पीसीसीएफ के अफसर अरुण पाण्डेय को अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। देखना है क्या कुछ बदलाव होता है।


