राजपथ - जनपथ
बृजमोहन तो बृजमोहन है
भाजपा में सर्वाधिक 8 बार के विधायक रहे रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल दिल्ली की राजनीति में रम गए हैं। उनकी लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला, और कई केन्द्रीय मंत्रियों से नजदीकियां हैं। यद्यपि वो पहली बार सांसद बने हैं, लेकिन उन्हें दिल्ली के लाजपत नगर में बड़ा बंगला आबंटित हुआ है। बृजमोहन भी दिल्ली में उसी तरह पहचान बनाने में लगे हैं, जो कभी दिवंगत विद्याचरण शुक्ल की रही है।
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल जब पॉवर में थे, तो छत्तीसगढ़ वासियों के लिए दिल्ली में उनका बंगला हमेशा खुला रहता था। वो बिना किसी भेदभाव के यथासंभव मदद किया करते थे। बृजमोहन के यहां भी प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से लोग पहुंच रहे हैं, और दिल्ली में उनकी टीम यथासंभव मदद भी कर रही है। उनके बंगले में किचन 24 घंटे खुला रहता है। खुद बृजमोहन व्यक्तिगत तौर पर सत्कार करने में पीछे नहीं रहते हैं।
पिछले दिनों प्रदेश युवा मोर्चा के पदाधिकारी दिल्ली पहुंचे, तो वो प्रदेश के एक सीनियर सांसद के यहां भी गए। सांसद महोदय के यहां खाने के लिए थोड़ी खिचड़ी मिली, क्योंकि सांसद महोदय डाइटिंग पर हैं। मगर बाद में ये पदाधिकारी बृजमोहन के यहां गए, तो उनके लिए शानदार खाना तैयार था। पदाधिकारियों के लिए विशेष मिठाई मंगाई गई थी। खुद बृजमोहन खाने की टेबल पर उनसे बतियाते रहे। बृजमोहन के आतिथ्य सत्कार से युवा मोर्चा के पदाधिकारी काफी प्रभावित रहे, और वो पार्टी के भीतर बृजमोहन का गुणगान करने में थक नहीं रहे हैं।
बृजमोहन की केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से काफी बेहतर संबंध हैं। वैष्णव, बृजमोहन की अनुशंसाओं को खास तवज्जो देते हैं। उनकी अनुशंसा पर जबलपुर के लिए नई ट्रेन शुरू हुई है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में रायपुर को विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन बनाने सहित कई और कार्यों को मंजूरी मिल सकती है। मगर रायपुर विशेषकर के लोग मंत्री नहीं रहने से मायूस हैं। इसकी वजह यह है कि सरकार के तमाम मंत्री नवा रायपुर शिफ्ट हो गए हैं। वो बृजमोहन जैसे सुलभ नहीं रह गए हैं। ऐसे में उनकी कमी तो महसूस हो ही रही है।
संगठन तक पहुंची पार्षदों की बात

रायपुर नगर निगम के नए नवेले कई भाजपा पार्षदों के खिलाफ शिकायतें पार्टी संगठन को पहुंची है। एक महिला पार्षद के खिलाफ शिकायत यह है कि उनके पति कॉलोनी में सब्जी बेचने वालों तक से उगाही कर रहे हैं।
दो-तीन पार्षदों के खिलाफ शिकायत आई है कि वो अपने वार्ड में हो रहे निजी निर्माण कार्यों पर हस्तक्षेप करते हैं, और मालिकों को निगम से नोटिस भिजवा देते हैं। फिर उनसे वसूली करते हैं। वार्डों में सफाई-बिजली का बुरा हाल है। पिछले दिनों रायपुर के विधायकों, और शहर जिले के पदाधिकारियों की एक बैठक में पार्षदों के कार्यप्रणाली की खूब आलोचना हुई।
विधायकों की मौजूदगी में शहर जिले के एक बड़े पदाधिकारी ने कहा बताते हैं कि पार्षदों ने सफाई ठेकेदारों पर दबाव बना लिया है, और अपने लिए राशि फिक्स कर रखी है। इसका नतीजा यह है कि ज्यादातर वार्डों में गिनती के ही सफाई कर्मी काम कर रहे हैं। एक-दो पार्षदों को बुलाकर चेताया भी गया है, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिख रहा है।
तकनीकी सोसायटी में कुछ भी ठीक नहीं
सरकार के बजट से चलने वाले राज्य के एक तकनीकी प्रोद्योगिकी सोसायटी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। सब कुछ अधिकारियों की मनमर्जी पर चल रहा है। सरकार के दिशा निर्देश पर चलने के लिए 14 मंत्रियों की सहभागिता वाली भारी भरकर समिति का प्रावधान है। और नीतिगत निर्णयों के लिए 14 सदस्यों की गवर्निंग काउंसिल और दैनंदिन कार्यों के लिए कार्यपालिक मंडल बनाया गया है। बाईलाज अनुसार गवर्निंग काउंसिल की एक वर्ष में कम से कम तीन और कार्यपालिक मंडल 4 बैठक अनिवार्य है।
हकीकत यह है कि कांग्रेस सरकार आने और विदा होने के बाद गवर्निंग काउंसिल की बैठक 2018 और कार्यपालिक मंडल की बैठक 2020 के बाद से नहीं हुई है। इतना ही नहीं सोसायटी में कार्यपालक समिति भी 2020 से आज तक गठित नहीं की जा सकी है। इस दौरान सोसायटी ने सैकड़ों करोड़ के तकनीकी काम मंजूर किए। इनमें से कुछ हुए कुछ भविष्य के गर्भ में जा चुके हैं। कब पूरे होंगे पता नहीं। इसी तरह से भर्तियां भी साहबों के अपने बनाए नियमों से मनमाने तरीके से बदस्तूर जारी है।
समस्त भर्ती 2016 में बनाए गए सेटअप और भर्ती नियमों और तय किए गए अहर्ता के अनुसार होनी थी? पर पिछले 8 महीनों में जितनी भी भर्ती हुई है उनमें इस भर्ती नियम और अहर्ता को बदल दिया गया है। इन्हें बिना वित्त विभाग की स्वीकृति, गवर्निंग काउंसिल और कार्यपालिक मंडल के अनुमोदन के नहीं बदला जा सकता।
2018 में कांग्रेस सरकार आने के बाद अधिकारियों द्वारा जानबूझकर गवर्निंग काउंसिल की एक भी बैठक नहीं होने से सारा कार्य अधिकारियों की मनमर्जी चल रही है। मंत्रिस्तरीय संचालन समिति भी अफसरों की करतूतों से अवगत नहीं हो पा रही है और अधिकारियों के हिसाब से ही अनीतिगत निर्णय भी लिए जा रहे हैं। फलस्वरूप मानव संसाधन की भर्ती, वित्तीय व्यय की स्वीकृति, परियोजनाओं की प्रगति संबंधी कार्यवाही और अन्य सभी दैनंदिनी कार्य भी कार्यपालक समिति में रखे बगैर सीधे किए जा रहे हैं। इससे सोसायटी में अनेक अनियमितताओं की खबरें आ रही है।
विकास की राह में छलांग- स्टाप डेम बना पुल

कांकेर जिले के बांसकुंड और उसके आश्रित तीन गांव- ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचूर का यह मामला छत्तीसगढ़ के सैकड़ों गांवों की हकीकत सामने लाती है, जहां विकास अब भी छलांग लगाकर ही पहुंचता है।
मानसून आते ही जब चिनार नदी उफान पर होती है, तब इन गांवों के लोग, चाहे वे स्कूल जाते बच्चे हों या राशन लेने वाले बुजुर्ग, जान जोखिम में डालकर स्टापडेम के 16 पिलरों पर कूदते-फांदते नदी पार करते हैं। पुल है नहीं, तो स्टाप डेम के पिलरों पर ही छलांग लगाकर नदी पार की जा रही है। वैसे कई स्टाप डेम छत्तीसगढ़ में दिख जाएंगे, जिनके ऊपर ग्रामीणों की सुविधा के लिए कम भार वाले पुल बनाए गए हैं। मगर, पता नहीं यहां इसकी जरूरत क्यों नहीं समझी गई। यहां के ग्रामीणों के लिए ये पिलर जिंदगी की बाधाओं को दूर करने के काम आ रहे हैं। स्कूली बच्चे बस्ता पीठ पर टांगे पिलरों पर उचकते हुए स्कूल जाते हैं। दो गांवों में सिर्फ प्राथमिक स्कूल हैं। छोटे बच्चों को नदी के उस तरफ पढऩे का मौका मिल जाता है, जबकि मिडिल स्कूल और राशन दुकान तक पहुंचने के लिए नदी पार करना अनिवार्य है। जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया, शायद अब दें क्योंकि इसका वीडियो पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर तैर रहा है।
शिक्षक नहीं दे पाने की सजा प्राचार्यों को
छत्तीसगढ़ में वर्षों से शिक्षकों की भारी कमी है। स्कूलों में गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी जैसे विषयों के शिक्षक नहीं हैं, पर सरकार अब तक इस मूल समस्या को हल नहीं कर पाई है। युक्तियुक्तकरण से इतना जरूर हुआ कि 56 हजार रिक्त पदों की संख्या को घटाकर 26 हजार तक लाने में सफलता मिल गई है। बेमेतरा जिले में हाल ही में शिक्षकों की मांग को लेकर छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन किया। सडक़ भी जाम किया और शिक्षा विभाग के जिला व ब्लॉक दफ्तरों को घेरा। अब इसका इलाज यही था कि यथासंभव शिक्षकों की नियुक्ति के प्रयास किए जाते। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने आंदोलन को रोकने का नायाब तरीका निकाला है। उन्होंने ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों, प्राचार्यों को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि ऐसे आंदोलन हुए तो उनका वेतन कटेगा। छात्रों को आंदोलन से रोकें, शासन के स्तर पर खाली पदों पर नियुक्ति का प्रयास किया जा रहा है। क्या पता जिला शिक्षा अधिकारी पर भी ऊपर के अफसरों का दबाव होगा, क्योंकि शिक्षा विभाग से जुड़ा एक एक अधिकारी समझ रहा है कि बच्चों को अपने विषय के शिक्षक नहीं मिलने के कारण अपनी पढ़ाई की कितनी चिंता हो रही है। प्रायमरी और मिडिल स्कूल के स्तर पर तो एक शिक्षक को कई-कई विषयों की पढ़ाई कराने की जिम्मेदारी दे दी गई है पर उससे ऊपर की कक्षाओं में तो उस विषय के ही शिक्षक पढ़ा सकेंगे। छात्र-छात्राओं के सडक़ों पर आ जाने से, स्कूलों में ताला लगा देने से कोई संदेह नहीं व्यवस्था बिगड़ती है, पर समस्या का हल निकालने की जगह उस पर पर्दा डालने का यह नायाब तरीका है। यदि प्राचार्य के कहने के बावजूद यदि छात्र और अभिभावक सडक़ पर उतरते हैं तो? वेतन कटने के डर से क्या प्राचार्य इन बच्चों को स्कूल से निकाल देंगे, या फिर पुलिस को बुला लेंगे?


