राजपथ - जनपथ
अब आईएएस भी ईडी की नजर में
ईडी ने स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीद घोटाले की पड़ताल शुरू कर दी है। जांच एजेंसी ने रायपुर, बिलासपुर, और दुर्ग में 18 जगहों पर छापेमारी की है। वैसे तो ईओडब्ल्यू-एसीबी भी मामले की जांच कर रही है। दवा घोटाले के मुख्य सूत्रधार शशांक चोपड़ा, और दवा निगम अफसरों समेत कुल 7 लोग जेल में हैं। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण पर चालान भी पेश कर चुकी है। मगर प्रकरण पर कुछ और खुलासा होना बाकी है।
बताते हैं कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने चार सौ करोड़ से अधिक के दवा घोटाले में कार्रवाई तो की है, लेकिन घोटाले के लिए जिम्मेदार विभाग के आला अफसरों तक नहीं पहुंच पाई। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने विधानसभा में संकेत दिए थे कि घोटाले में दो बड़े अफसरों की भी भूमिका रही है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने तीन आईएएस अफसरों से पूछताछ तो की थी, लेकिन उन पर प्रकरण नहीं दर्ज किया गया। अब ईडी ने मामले को हाथ में लिया है, तो उन लोगों पर कार्रवाई होना तय है, जो अब तक बचे रहे हैं।
ईडी जेल में बंद दवा व्यापारी, और अफसरों से भी पूछताछ करने वाली है। यही नहीं, उन तीन आईएएस अफसरों को भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है। चर्चा है कि ईडी जल्द ही कुछ और लोगों को गिरफ्तार कर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
कलेक्टर, और नाखुश भाजपा नेता
बस्तर के नारायणपुर जिला प्रशासन, और स्थानीय भाजपा नेताओं में ठन गई है। सरकार ने यहां कलेक्टर पद पर प्रतिष्ठा ममगाई की पोस्टिंग की है, जिन्हें तीन माह ही हुए हैं। आईएएस की वर्ष-2018 बैच की अफसर प्रतिष्ठा नारायणपुर की पहली महिला कलेक्टर है।
हाल ही में प्रतिष्ठा ने सरकारी जमीनों में अतिक्रमण पर प्रभावी कार्रवाई की है। कुछ नेता भी इससे प्रभावित हुए हैं। इनमें एक भाजपा के पदाधिकारी भी हैं। इसके बाद से स्थानीय भाजपा नेता उनके खिलाफ चल रहे हैं। पिछले हफ्ते केन्द्रीय राज्य मंत्री डॉ. चद्रशेखर बस्तर दौरे पर थे, उस समय भी पदाधिकारियों की एक पुलिस अफसर से बहस हो गई। इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, और नगरीय निकाय के तमाम पदाधिकारियों ने हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सीएम विष्णुदेव साय को भेजा है जिसमें उन्होंने जिला प्रशासन पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का आरोप लगाया है।
नारायणपुर सरकार के ताकतवर मंत्री केदार कश्यप का विधानसभा क्षेत्र भी है। चर्चा है कि वो अपने पदाधिकारियों के साथ हैं। इस पूरे प्रकरण को सीएम सचिवालय ने संज्ञान में लिया है। कलेक्टर, और जनप्रतिनिधियों से चर्चा हो रही है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
आत्मसम्मान और संघर्ष की एक इमारत...

रायपुर के श्याम टॉकीज के पास खड़ा भव्य इनडोर और आउटडोर स्टेडियम किसी आम खेल परिसर जैसा नहीं है। ये उस संघर्ष, उम्मीद और आत्मसम्मान की कहानी है जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
कई सालों तक यह स्टेडियम अधूरा और सूनसान पड़ा रहा। तब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह रायपुर आए। उनके साथ रायपुर के महापौर बलबीर सिंह जुनेजा भी थे। जब दोनों स्टेडियम पहुंचे, तो जुनेजा जी ने अपनी पगड़ी उतारकर मुख्यमंत्री के पैरों में रख दी और भावुक होकर बोले- मुख्यमंत्री जी, यह हमारी आखिरी उम्मीद है। इस स्टेडियम के लिए मदद दीजिए...।
ये सिर्फ पगड़ी नहीं थी। रायपुर की अस्मिता, खिलाडिय़ों का सपना और एक नेता की झुक कर की गई विनती थी।
हालांकि उस वक्त सरकारी मदद नहीं मिली, लेकिन संघर्ष रुका नहीं।
बाद में जब स्टेडियम बनकर तैयार हुआ और रमन सिंह मुख्यमंत्री बने, तब बलबीर जी के छोटे भाई और कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा ने एक विनती की- इस स्टेडियम का नाम बलबीर सिंह जुनेजा जी के नाम पर रखा जाए।
यह मांग विपक्ष से थी, लेकिन रमन सिंह ने इसे राजनीति नहीं, खेल और सम्मान के नजरिए से देखा।
और स्टेडियम का नाम रखा गया- सरदार बलबीर सिंह जुनेजा स्टेडियम
एक और बात, तब कुछ लोगों ने स्व. पं. रविशंकर शुक्ल के नाम की भी चर्चा की थी।
लेकिन विद्या चरण शुक्ल ने कहा- कक्का जी के नाम पर पहले ही बहुत संस्थान हैं, हमें हर चीज उन्हीं के नाम पर नहीं करनी चाहिए। इसमें एक परिपक्व सोच और संतुलन था।
आज जब आप इस स्टेडियम की तस्वीर देखें, तो सिर्फ ईंट-पत्थर मत देखिए। उसके पीछे छिपे संघर्ष, सम्मान और समर्पण को महसूस कीजिए।
ये सिर्फ इमारत नहीं है, ये यादों का स्मारक है। (फोटो और विवरण- गोकुल सोनी)
समोसे का सवाल बड़ा गहरा है..
लोकसभा में सांसद रवि किशन ने एक दिलचस्प मुद्दा उठाया। वैसे हंसी आ सकती है कि समोसे के दाम व साइज पर सांसद क्या बात कर रहे हैं, लेकिन इसमें गंभीरता भी छिपी है। कुछ सरकारी संस्थानों, रेलवे पेंट्री कार, स्टेशन के स्टॉल- पार्लियामेंट कैंटीन, कुछ सरकारी केंद्रीय उपक्रमों के कैंटीन के अलावा किसी भी जगह खाद्य पदार्थों का वजन नहीं बताया जाता। होटलों में तो अलग समस्या है जो रवि किशन ने दर्शाया- कहीं पर एक प्लेट दाल या सब्जी बहुत हो जाती है, कई बार कम। किसी भी होटल,रेस्तरां में मेनू के साथ व्यंजन की मात्रा नहीं लिखी होती है। ऐसे में कई बार ऑर्डर करने के बाद खाना बर्बाद होता है। दुनिया भर में खाने की बर्बादी एक बड़ा संकट है, और दूसरी तरफ लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं।
कुछ अस्पतालों में जैसे अपोलो के मेस में जहां बुफे सिस्टम है लिखा होता है कि थाली में उतना ही लें जितना खा सकें, फेंकने के लिए नहीं लें। जबकि शादी ब्याह के समारोहों में दिखावे का चलन बढ़ रहा है। अधिक से अधिक मिष्ठान, अलग-अलग राज्यों के व्यंजन रखे जाते हैं। कहीं पर सरकार ने बाध्य नहीं किया, न समाज जागरूक है कि इस तरह खाने को बर्बाद मत किया जाए। जब ऐसे समारोह खत्म होते हैं तो बड़ी मात्रा में खाद्यान्न कूड़े में फेंके गए मिलते हैं। ग्राहकों को अधिकार तो मिलना ही चाहिए कि उसे किस तेल और आटे का डिश दिया जा रहा है और उसकी मात्रा कितनी होगी, कितने लोगों के लिए काफी होगा?


