राजपथ - जनपथ
हेल्थ कैंपों की भीड़, कमजोरी का भी आईना
सरगुजा से बस्तर तक, रायपुर से गौरेला-पेंड्रा-मरवाही तक, छत्तीसगढ़ के किसी भी कोने में जब मेगा हेल्थ कैंप लगते हैं, तो मरीजों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। हाल ही में रायपुर के मेगा हेल्थ कैंप-2025 में हजारों मरीज पहुंचे, जहां उन्हें मुफ्त जांच और इलाज की सुविधा उपलब्ध मिली। ऐसे शिविरों का आयोजन करने वाले संगठनों और व्यक्तियों के प्रयास कई जिंदगियां बचाते हैं। मगर, सवाल यह है कि इन कैंपों में इतनी भीड़ क्यों लगती है?
जवाब ढूंढना आसान है। राजधानी रायपुर का मेकाहारा राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहां लगभग 1340 बेड हैं। यहां भी आठ विभागों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। रोजाना सैकड़ों मरीज ओपीडी में आते हैं, फिर भी विशेषज्ञ सेवाओं की कमी से कई को रेफर करना पड़ता है। 960 बिस्तरों वाले एम्स में बढ़ती मरीजों की संख्या के चलते वेटिंग चलती रहती है, सिफारिशें लगानी पड़ती हैं। डीकेएस में भी विशेषज्ञों की भारी कमी है।
बस्तर और सरगुजा जैसे क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी है। रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स- ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में हैं, लगभग 71 प्रतिशत पद खाली। आदिवासी इलाकों में पहुंच कठिन है, सडक़ें नहीं हैं। पिछले दिनों बालोद जिले की तस्वीर आई थी कि किसी तरह 10 किलोमीटर पहाड़ी में चलकर खाट पर मरीज को सडक़ तक लाया गया तब एंबुलेंस मिली। खाट और कंधे पर मरीजों और शवों को ढोने की तस्वीरें आती ही रहती हैं। कई जगहों पर विशेषज्ञ डॉक्टर सालों से नहीं आए। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जैसे नए जिलों में तो और बुरा हाल है। यहां के एक स्वास्थ्य केंद्र का प्रभार तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को सौंपना पड़ा था। बलरामपुर-रामानुजगंज से लेकर जीपीएम तक आदिवासी जिलों में मलेरिया, कुपोषण और अन्य संक्रामक रोग आम हैं, लेकिन समय पर इलाज न मिलने से मौतें होती हैं।
बिल्डिंग तो बन जाती हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं शुरू होतीं। बिलासपुर के कोनी में मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल का उद्घाटन दो साल पहले हो चुका है, लेकिन अभी तक केवल ओपीडी स्तर की सेवाएं ही चल रही हैं। राज्य में कई जिला अस्पतालों में आईसीयू की सुविधा नहीं है। सीटी स्कैन, एमआरआई और डायलिसिस जैसी आवश्यक मशीनें भी नहीं हैं। नए जिलों में इसका अभाव ज्यादा दिखा है।
2024-25 में नए मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के लिए 1390 करोड़ से अधिक की मंजूरी बजट में मिली, लेकिन समस्या भर्तियों की है। राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ में डॉक्टर-मरीज अनुपात का फासला बड़ा है। मजबूरन, आम लोग महंगे निजी अस्पतालों का सहारा लेने को मजबूर होते हैं या फिर ऐसे ही मेगा कैंपों की राह देखते हैं।
4 वर्ष बाद नए सीएस को मौका
करीब 4 वर्ष बाद किसी नए मुख्य सचिव (विकास शील) को देश भर के मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय कॉफ्रेंस में शामिल होने का अवसर मिलेगा। ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि बीते 4 सम्मेलनों में छत्तीसगढ़ से अमिताभ जैन ही शामिल होते रहे हैं। इसे लेकर पौने पांच वर्ष मुख्य सचिव रहे जैन ने अपने आप में एक रिकॉर्ड बनाया। उन्हें छ माह का सेवा विस्तार भी दिया गया था। वैसे केंद्र सरकार ने इन सम्मेलनों की शुरुआत ही पांच वर्ष पहले की थी। वहीं पुलिस के डीजीपी की कांफ्रेंस तो 64 हो चुके थे लेकिन मुख्य सचिवों की कॉफ्रेंस की शुरुआत मोदी 2.0 के अंतिम वर्षों में की गई। इस बार का यह सम्मेलन दिल्ली में आईसीएआर में 26-27 में आयोजित होना है। इसमें विकासशील के साथ सचिव जीएडी, कृषि, पंचायत ग्रामीण विकास जैसे बड़े फील्ड डिपार्टमेंट के सचिव भी बुलाए जाते हैं। नवंबर में मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सम्हालने वाले विकासशील को भी अगले तीन साल शामिल होने का अवसर मिलेगा। छत्तीसगढ़ में अब तक 13 मुख्य सचिव हुए हैं। इनमें अधिकांश एक दो वर्ष का कार्यकाल कर चुके हैं। जैन से पहले विवेक ढांड को ही 4 वर्ष का कार्यकाल मिला था।


