रायपुर

जन संगठनों ने दल्ली राजहरा में की बैठक के बाद रायपुर से जारी किया बयान, राज्यपाल से मिलकर मांगेंगे न्याय
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 24 अप्रैल। राज्य के अनेक जन आंदोलन और जनवादी संगठनों ने बस्तर में शांति स्थापना के लिए सरकार और माओवादियों से तत्काल युद्धविराम की अपील की है। रायपुर में जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य में उन्होंने कहा कि यह कदम शांति वार्ता की दिशा में पहला और जरूरी कदम होना चाहिए, जिससे दोनों पक्षों की ईमानदारी और आम जनता के प्रति भरोसा स्थापित हो सके।
जन संगठनों ने कहा कि बस्तर की शांति सिर्फ सरकार और माओवादियों का मसला नहीं, बल्कि वहां की आम जनता, खासकर आदिवासी समुदाय इसका मुख्य पक्ष है। वे दोनों ओर से हो रहे हिंसा, दमन और उत्पीड़न के शिकार हैं। ऐसे में किसी भी वार्ता को तभी सार्थक कहा जा सकता है जब उसमें आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो।
20 अप्रैल को दल्ली राजहरा में हुई बैठक में राज्य के दो दर्जन से अधिक जन संगठनों के 150 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की हत्या, फर्जी गिरफ्तारियों और दमन की घटनाओं की कड़ी निंदा की गई और पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की मांग की गई।
प्रतिनिधियों ने फैसला किया कि अब वे आम जनता की ओर से बात करने के लिए आगे आएंगे और इस विषय में एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल से मुलाकात कर उनके समक्ष मुद्दों को रखेगा।
जन संगठनों ने आरोप लगाया कि माओवादी उन्मूलन के नाम पर बस्तर को सैन्य छावनी में तब्दील कर दिया गया है। इस क्षेत्र की खनिज संपदा को कॉरपोरेट्स को सौंपने के लिए जंगल-जमीन खाली कराई जा रही है, जो शांति प्रक्रिया की सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा कि अगर माओवादी वाकई वार्ता के इच्छुक हैं, तो उन्हें पहले अपने विरोध में बोलने वाले आदिवासियों पर उत्पीड़न बंद करना होगा। संयुक्त बयान में कहा गया है कि पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं की सहमति के बिना खनिज नीलामी करना संविधान के खिलाफ है। सरकार को चाहिए कि वह निर्दोष आदिवासियों के खिलाफ दमन रोके, पेसा और अन्य आदिवासी कानूनों को ईमानदारी से लागू करे, नागरिकों को स्वतंत्र आवाजाही और शांतिपूर्ण आंदोलन की अनुमति दे।
जन संगठनों ने मांग की है कि बस्तर में भूरिया समिति की सिफारिशों पर आधारित पेसा कानून सम्मत “स्वशासी जिला परिषद” की व्यवस्था लागू की जाए। साथ ही, नक्सल हिंसा में मारे गए निर्दोष लोगों की पहचान कर उन्हें न्याय दिलाया जाए, बिना सबूत जेल में बंद आदिवासियों को रिहा किया जाए और विभिन्न आयोगों की सिफारिशें लागू की जाएं।
इन संगठनों ने बस्तर के लोगों के मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा में हो रहे संघर्षों को समर्थन देने की घोषणा की है और प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर सभा, सम्मेलन और कन्वेंशन आयोजित करने का निर्णय लिया है, ताकि आम जनता की आवाज तीसरे पक्ष के रूप में बुलंद की जा सके।
संयुक्त बयान जारी करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, सर्व आदिवासी समाज, प्रदेश किसान संघ, छत्तीसगढ़ किसान सभा, रावघाट संघर्ष समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, भारत जन आंदोलन, आदिवासी भारत महासभा, नव लोक जनवादी मंच, जाति उन्मूलन आंदोलन, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा, और अन्य कई संगठन शामिल हैं।