‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 17 जून। राज्य गठन के बाद पहली बार उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। यह भर्ती पिछली सरकार के कार्यकाल में विज्ञापन जारी होने के साथ शुरू हुई थी, लेकिन योग्यता संबंधी समस्याओं के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। इसके चार वर्षों के बाद योग्यता में संशोधन कर उच्च शिक्षा विभाग एवं लोक सेवा आयोग ने पुन: 7 सितंबर 2024 तक आवेदन आमंत्रित किए । यह प्रक्रिया अब अनेक विवादों और संदेहों के घेरे में है।
भर्ती प्रक्रिया में एलाइड सब्जेक्ट्स की सूची दो बार जारी की गई। इससे अभ्यर्थियों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। यह अपने आप में संदेहास्पद है कि सूचियों में परिवर्तन क्यों किया गया और इसके पीछे किसका प्रभाव है।
इसके बाद लोक सेवा आयोग द्वारा 11 विषयों के दस्तावेज सत्यापन की समय-सारणी जारी की गई, जिसमें 2 जून 2025 को भौतिकी और बॉटनी विषय के अभ्यर्थियों को प्रात: और अपराह्न सत्र में बुलाया गया। दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रिया में यह तथ्य सामने आया कि उम्मीदवारों के लिए क्कद्ध.ष्ठ. मार्गदर्शन का अनुभव आवश्यक है।
उच्च शिक्षा विभाग के कुछ अफसरों पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे नियमों की गलत व्याख्या कर छत्तीसगढ़ के अभ्यर्थियों को इस भर्ती से वंचित कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के शैक्षणिक परिप्रेक्ष्य में ऐसे कई प्राध्यापक हैं जिन्हें हाल ही में पदोन्नति मिली है और उन्होंने पीएचडी मार्गदर्शन सफलतापूर्वक नहीं किया है। प्रदेश के महाविद्यालयों में बहुत कम संस्थान ऐसे हैं जहाँ रिसर्च सेंटर उपलब्ध हैं, तो ऐसे में स्थानीय शिक्षक पीएचडी मार्गदर्शन कहाँ और कैसे कर सकते हैं? यह एक गंभीर प्रश्न है जिसका समाधान आवश्यक है।
यदि प्रोफेसर पद हेतु योग्यता के नियमों को बारीकी से पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि मार्गदर्शन संबंधी शर्त केवल उन अभ्यर्थियों पर लागू होती है जो किसी शिक्षण संस्था में कार्यरत न होकर शोध संस्थानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन वर्तमान में इस शर्त की गलत व्याख्या की जा रही है, जिससे स्थानीय उम्मीदवारों को नुकसान पहुंच रहा है।
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए छत्तीसगढ़ के स्थानीय अभ्यर्थियों में भारी आक्रोश है। वे निकट भविष्य में एक बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं। उनका कहना है कि यदि बाहरी हस्तक्षेप नहीं रोका गया और पारदर्शी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। तो वे राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
यदि शासन स्तर पर इस विवादास्पद भर्ती प्रक्रिया में शीघ्र और पारदर्शी हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो यह मुद्दा शीघ्र ही कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। पहले ही चार वर्षों की देरी झेल चुकी इस भर्ती प्रक्रिया में न्यायालयीन हस्तक्षेप से और विलंब की संभावना बढ़ जाएगी। अभ्यर्थियों का कहना है कि वे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को बाध्य होंगे, क्योंकि उनकी योग्यता और अवसरों के साथ किया जा रहा अन्याय अब असहनीय होता जा रहा है।