राजपथ - जनपथ
खाना तो ठीक है, पर किसके घर?
सीएम भूपेश बघेल के लंच डिप्लोमेसी की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा है। भूपेश भेंट-मुलाकात के लिए जिस गांव में उनका पड़ाव होता है, वहां वो भोजन करते हैं। कुछ इसी अंदाज में भाजपा संगठन के कर्ता-धर्ता अजय जामवाल और पवन साय भी घूम-घूमकर भोजन कर रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि भूपेश गांव के निर्धन परिवार के यहां भोजन करते हैं, तो जामवाल और पवन साय के मेजबान टिकट के दावेदार अथवा पार्टी के धनिक नेता होते हैं।
अजय जामवाल, और पवन साय पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं के यहां भोजन पर जा चुके हैं। स्वाभाविक है कि संगठन दिग्गजों के लिए भोजन भी राजसी होता है। इससे परे सीएम जिस परिवार के यहां भोजन करते हैं वो एकदम सात्विक, और सामान्य होता है। जमीन पर बैठकर परिवार के लोगों के साथ वो भोजन करते हैं। आदिवासी इलाकों में तो उन्होंने वहां के समाज में प्रचलित रोजमर्रा का खाना ही खाया। लेकिन जामवाल, और पवन साय के लिए आदिवासी इलाकों में भी विशेष इंतजाम होता है।
जामवाल सरगुजा प्रवास पर गए तो बड़े कारोबारी अखिलेश सोनी, हरपाल भांमरा के घर जाकर भोजन ग्रहण किया। वो अब तक किसी गरीब-आदिवासी, दलित कार्यकर्ता के यहां भोजन पर नहीं गए। पत्थलगांव जैसे दूरस्थ इलाके में भी जामवाल नगर सेठ के मेजबान थे। जबकि भाजपा हाईकमान ने बड़े नेताओं को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया है कि वो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के यहां जाएं, और उनके यहां भोजन ग्रहण करे। मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। खास बात यह है कि बड़े नेताओं की भोजन को लेकर भाजपा में विवाद भी हो चुका है।
बताते हैं कि कुछ दिन पहले सह प्रभारी नितिन नबीन का दुर्ग प्रवास के दौरान एक कार्यकर्ता के यहां भोजन का आमंत्रण था, लेकिन बाद में वो सरोज पाण्डेय के यहां चले गए। इस पर दुर्ग सांसद विजय बघेल ने सहप्रभारी से मिलकर आपत्ति की थी। बाद में नबीन नाराजगी दूर करने उस कार्यकर्ता के यहां चाय पर गए। भेंट मुलाकात में जब भी भूपेश की भोजन करते तस्वीर मीडिया में आती है, तो भाजपा के भीतर जामवाल, और साय के भोजन से तुलना होती है। असंतुष्ट नेता इसकी शिकायत हाईकमान तक पहुंचाने के फेर में हैं।
ईडी भी कोर्ट के इंतजार में
सोशल मीडिया पर शराब घोटाला केस से जुड़े अरविंद सिंह, और एक आईएएस अफसर के गिरफ्तारी की खबर उड़ी। यह चर्चा रही कि अरविंद सिंह को ईडी ने नेपाल बॉर्डर के पास से गिरफ्तार किया गया है, लेकिन इसकी किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हो पाई है।
दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनवर ढेबर की याचिका पर सुनवाई के बीच ईडी के वकील को साफ तौर पर कहा था कि जिनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पेंडिंग है उसे गिरफ्तार न किया जाए। हालांकि ऑर्डर शीट में इस तरह की कोई बात नहीं लिखी है। अरविंद सिंह, और अन्य की याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में कथित गिरफ्तारी को लेकर कई तरह की चर्चा होती रही।
खैर, शराब घोटाला केस में 29 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में चार अलग-अलग याचिकाओं पर अहम सुनवाई होनी है। जानकारों का अंदाजा है कि कोर्ट के फैसले से ईडी की आगे की कार्रवाई की दिशा तय होगी। ऐसे में सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है।
बेरोजगारी भत्ता कितने दिन तक?
कड़ी शर्तों से गुजरकर जो बेरोजगार भत्ते के पात्र हुए हैं, उनके फायदे के लिए सरकार ने एक और नियम बनाया है। उनको कौशल विकास और स्वरोजगार का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से लेना होगा। पर बेरोजगार इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। बहुत से युवाओं ने तो अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा है। कुछ ने फोन पर ही बता दिया कि वे ट्रेनिंग नहीं लेना चाहते। रायगढ़, दुर्ग और राजनांदगांव से इस तरह की खबरें आ चुकी हैं। बाकी में भी ऐसी ही स्थिति होगी। दुर्ग में ही 5784 युवाओं को भत्ते का पात्र माना गया है लेकिन यहां 500 युवा भी ट्रेनिंग के लिए तैयार नहीं हुए। बताया जा रहा है कि यदि युवा प्रशिक्षण नहीं लेंगे तो उनका भत्ता 6 महीने में बंद कर दिया जाएगा। भत्ता वैसे दो साल के लिए है लेकिन एक साल बाद इसकी समीक्षा होगी। जिनको रोजगार मिल चुका है उन्हें भी भत्ता बंद नहीं मिलना है।
इधर भत्ता पाने वाले बेरोजगारों का कहना है कि ढाई हजार तो उनके प्रशिक्षण के लिए आने-जाने में ही निकल जाएंगे। उनको डाटा एंट्री ऑपरेटर जैसा प्रशिक्षण लेने कहा जा रहा है जबकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस पैसे से कुछ किताबें ले सकते हैं, घर खर्च में थोड़ी सी मदद कर सकते हैं। ज्यादातर लोग प्रशिक्षण नहीं लेना चाहते, मतलब उनका भत्ता 6 महीने के बाद शायद ही जारी रहे। फिर भी चुनावी साल में शुरू किया गया बेरोजगारी भत्ता वोट डाले जाने तक तो चलेगा ही।
एक मोबाइल से शुरू इतनी लंबी बहस
पखांजूर के जलाशय में गिरे फूड इंस्पेक्टर के महंगे मोबाइल और उसकी तलाश में पूरा पानी बहा देने के मामले ने सोशल मीडिया में बहस और चटखारे लेने का मौका दिया है। इसके जरिए लोग प्रशासनिक अमले के पद दुरुपयोग की पोल खोल रहे हैं। ऐसे ही एक ग्रुप की चर्चा बड़ी खूब रही। एक मेंबर के खबर का लिंक सेंड करते ही दूसरे सदस्य ने कहा-ये खबर बाहर आने के बाद भी इस अधिकारी के खिलाफ कुछ गलत नहीं हो सकता क्योंकि पहला पत्थर वो मारे जिसने कोई पाप ना किया हो, ऐसा भी कोई है नहीं। जिसके मन में जो आ रहा है वो किए जा रहा है...डर, खौफ, राज्य के प्रति वफादारी कुछ नहीं बची है। अंग्रेजों की तरह पहले वाले 15 साल नोचे खाए। अब ये है जो कोई भी कुछ भी किसी भी तरह से नोच खसोट कर सकता है करने की अनुमति दी हुई है। जनता जाए भाड़ में। अभी तो शुरुआत है।
दूसरे ने लिखा- आपने पंद्रह साल का उल्लेख किया मैं खुश नहीं हूं। आप मर्यादा लांघ रहें हैं। आपको याद रखना चाहिए नीति/पॉलिसी अफसर बनाते हैं उनको पैंतीस चालीस साल तक आजादी है उसे आप लूट खसोट कह रहें डबल अटैक नहीं चलेगा, ये। मतलब अल्लाह, भगवान, जीजस, और वाहेगुरु से एक ही दुआ है कि अगला जन्म छत्तीसगढ़ में ही दे। वह भी सरकारी अधिकारी या उसके रिश्तेदार के रूप में दे। सिंचाई विभाग का मासूम अधिकारी थोड़ा बहुत पानी निकलेगा। इसकी भी विभागीय जांच हो और दोनो के खिलाफ अपराधिक मामला (बांध को तोडक़र पानी बहाने का) 430/34 आईपीसी दर्ज होना चाहिए। कुछ नहीं होगा क्योंकि 2 लाख जांच अधिकारी के रूप में आने वाले एसडीएम को। 25-25 हजार जलाशय के चारों जिम्मेदारों को बयान पलटने के लिए। सबसे बाद में जांच रिपोर्ट पर फाइनल टीप लिखने के लिए स्थानीय आईएएस साब की पत्नी के मार्फत लाख दो लाख देने का मन बना लिया है। इससे अच्छा तो किसे ठेकेदार को बोल के एक लाख का नया मोबाइल मंगा लेते बिचारे।
तीसरे ने लिखा - आप नाखुश, तो मैं नाखुश। आप हमारे हो। क्योंकि पिछला रिकॉर्ड उठाकर देखे तो,चंगुल में आए सरकारी अधिकारियों की पत्नियों का भी बड़ा रोल सामने आया है। एक ईडी अधिकारी कोर्ट में किसी को बोल रहा था कि फलाने आईएएस की आईएएस पत्नी पैसे देखकर सबसे ज्यादा पागल होने के पूरे सबूत मिले है। उसको जब चाहेंगे जब उठायेंगे। अभी पहले हिडन लॉक को तलाश रहे हैं।
मिठाई के जैसा मीठा फल
गुलाबजामुन केवल मिठाई नहीं, एक दुर्लभ फल का भी नाम है। यह नाम इसकी खुशबू और स्वाद की वजह से ही है। बिल्कुल हलवाई के पास मिलने वाले मिठाई गुलाब जामुन की तरह। अमरकंटक की तराई में और पेंड्रा-गौरेला के जंगल में जितना भीतर जाए यह फल फरवरी के बाद से बारिश के पहले तक मिलते हैं। इसे कान के पास लाकर हिलाएं तो भीतर से बीज की आवाज आएगी। नरम इतना कि उंगलियों से दबा लें। गुलाब जामुन के फल ही नहीं इसके पत्ते और बीज भी फायदेमंद है। खासकर डायबिटीज के लिए। छत्तीसगढ़ के अलावा यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि में भी जंगलों के भीतर ये फल पाए जाते हैं। इसके पेड़ अब कम दिखते हैं। अभी यह डेढ़ सौ से 200 रुपए किलो में बिक रहा है।
एक और दंपत्ति पर भी ईडी की नजर
प्रदेश की एक अफसर दंपत्ति दफ्तर नहीं आ रहे हैं। पति आबकारी विभाग में फील्ड में पोस्टेड हैं, तो पत्नी मंत्रालय के दो विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर हैं।
बताते हैं कि पति ईडी की जांच के घेरे में है, और चर्चा है कि ईडी उनसे पूछताछ भी कर चुकी है। पत्नी जमीन से जुड़े विभाग में है, वे भी ईडी की नजर में हैं। दोनों का किसी स्कैम में कोई सीधा वास्ता है, यह तो साफ नहीं है, लेकिन एक साथ दोनों की गैरमौजूदगी प्रशासनिक हल्कों में खूब चर्चा हो रही है। तब से वह दफ्तर भी आ रहीं हैं। उन्होंने छुट्टी ली है या नहीं इसे लेकर परस्पर विरोधी दावे हैं। ईडी इससे पहले दो आईएएस दंपत्ति के यहां रेड कर चुकी है। एक की तो प्रापर्टी अटैच भी कर चुकी है।
पिता पर बेटे की पीएचडी
रविशंकर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में करीब 500 गोल्ड मेडल और पीएचडी उपाधियां कल दी गईं। इनमें से एक डॉक्टरेट उपाधि इस मायने में खास है कि वह एक बेटे को अपने पिता पर किए गए शोध के लिए दी गई है। स्व. रेशम लाल जांगड़े आजाद भारत की पहली लोकसभा के निर्वाचित सांसद ही नहीं, बल्कि संविधान सभा के सदस्य, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सुधारक भी थे। वे सतनामी समाज के पहले वकील भी रहे। उन्होंने 1949 में नागपुर विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की थी। संसद में 1956 में पारित अस्पृश्यता निवारण कानून के लिए उन्होंने पुरजोर आवाज उठाई थी। लंबे समय तक राजनीति में रहने के बावजूद उन्होंने कोई संपत्ति नहीं बनाई। जीवन के अंतिम दिनों में उसकी खबर उनके बीमार होने पर बाहर आई। तभी बहुत से लोगों को पता चल पाया कि वह एक साधारण से दो कमरों के जनता क्वार्टर में रहते हैं। उनके बेटे हेमचंद्र जांगड़े को इस बात का अफसोस था कि लंबे सामाजिक राजनीतिक योगदान के बावजूद पिता के नाम से कोई स्कूल, कॉलेज, सडक़, प्रतिमा स्थापित करने में न काग्रेस ने रुचि दिखाई, न भाजपा ने। तब उन्होंने फैसला लिया कि आने वाली पीढ़ी के लिए उन्हें अपने पिता पर खुद ही एक शोध ग्रंथ तैयार करना चाहिए। पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय से उन्हें छत्तीसगढ़ के विकास में स्वर्गीय रेशम लाल जांगड़े का योगदान विषय पर पीएचडी करने की अनुमति मिल गई। शोध की ज्यादातर सामग्री कोविड-19 के दौरान जुटाई गई। इसी दौरान वे संसद की लाइब्रेरी में पहुंचे। शोध ग्रंथ स्वीकृत होने के बाद कल उन्हें रविवि के दीक्षांत समारोह में डॉक्टरेट की उपाधि सौंपी गई।
एटीएम उगल रहे छोटे नोट
2000 रुपए के नोट चलन से बाहर करने के बाद सन् 2016 की नोटबंदी की तरह आपदा तो दिखाई नहीं दे रही है लेकिन कुछ दूसरे प्रभाव जरूर हैं। बैंक वालों की मानें तो दिनों लॉकर खोलने के लिए आने वालों की तादात बढ़ गई है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने घर में रखने के बजाय लॉकर में ही कैश बंद करके रखे हुए थे। अकाउंट में 2000 के नोटों को जमा करने में तो बैंक कर्मचारियों को दिक्कत नहीं हो रही है लेकिन एक्सचेंज के लिए 5-5 सौ कि नोटों की अतिरिक्त व्यवस्था रखनी पड़ रही है। यह जानकारी आरबीआई तक भी पहुंच चुकी है कि आने वाले दिनों में 500 के नोटों की मांग बढ़ सकती है। एटीएम भी 500 से छोटे 100-200 के नोट इन दिनों आसानी से उगल रहे हैं।
बस्तर की बुलंद बेटियां
यूपी के लखनऊ में 17 से 21 मई तक हुई छठवीं राष्ट्रीय मिक्स मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में बस्तर की बेटियों ने 5 गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीतने का कमाल किया है। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पलक नाग ने फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया। इस तरह की कामयाबी बस्तर को नक्सल हिंसा ग्रस्त इलाका होने की पहचान से अलग करती है। जगदलपुर पहुंचने पर इनका गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ।
लोग अछूत हो रहे हैं
ईडी के घेरे में आए नेता, और कारोबारियों से अब करीबी लोग ही कन्नी काटने लगे हैं। एक बोर्ड चेयरमैन के यहां मुलाकातियों का तांता लगा रहता था। लेकिन अब सन्नाटा पसरा रहता है। एक और बोर्ड के चेयरमैन की नाराजगी इस बात को लेकर है कि करीबी लोग भी एक बार में मोबाइल कॉल रिसीव नहीं कर रहे हैं। जबकि उनका किसी स्कैम से कोई लेना-देना नहीं है। और वो प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर ईडी की कार्रवाई चुनौती भी दे चुके हैं। मगर करीबियों का भय निकल नहीं रहा है।
कारोबारियों का भी हाल कुछ ऐसा ही है। ईडी की पूछताछ से फ्री होने के बाद दो दिन पहले एक कारोबारी फुर्सत के क्षण बिताने के लिए क्लब पहुंचे, तो उन्हें देखकर वहां मौजूद कई लोग इधर-उधर निकल गए। कारोबारी दो घंटे तक वहां बैठे रहे, लेकिन किसी ने उनसे कुशलक्षेम तक नहीं पूछा। इससे पहले तक तो कारोबारी के क्लब पहुंचते ही वहां के सदस्य उनके आगे-पीछे होते रहते थे, लेकिन अब उनसे नजर मिलाने से भी परहेज करने लगे हैं।
भाजपा संगठन, और शुकराना
भाजपा हाईकमान ने अरुण साव को फ्री हैंड दे दिया है, लेकिन वो अपनी टीम से काम नहीं ले पा रहे हैं। यही वजह है कि कुछ पदाधिकारियों को बदलने की नौबत आ गई है। चुनाव में पांच महीने बाकी रह गए हैं, फिर भी उन्होंने जोखिम लेकर रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, और संगठन प्रभारी को बदल दिया।
सुनते हैं कि कुछ और जिला अध्यक्षों का परफार्मेंस साव के मनमाफिक नहीं है। जिन्हें बदलने पर विचार हो रहा है। यही नहीं, जिस मोर्चे से साव, और कार्यकर्ताओं को बड़ी उम्मीदें थी उनकी गतिविधियां ठप सी पड़ गई है। साव ने मोर्चा अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद के नेता को बिठाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था। अब हल्ला है कि मोर्चे में कई पदों के लिए नजराना-शुकराना जैसा कुछ हुआ है।
मोर्चा अध्यक्ष राजधानी से दूर हैं। मगर उन्होंने कई ऐसे लोगों को उपकृत किया है, जिनको लेकर कई तरह की शिकायतें आई है। ये अलग बात है कि सुदूर इलाके में रहने वाले अध्यक्ष पहले दो पहिया वाहन में घूमते थे। पद पाने के बाद स्विफ्ट डिजायर पा गए, और अब वो नई इनोवा में नजर आ रहे हंै। ये अलग बात है कि अध्यक्ष की खुशहाली कई लोगों को खटक रही है। कुछ ने ‘ऊपर’ तक बात पहुंचाई है। देखना है आगे क्या होता है।
दिव्यांगों को ताकत देने की मुहिम
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत दिव्यांगों को भी काम करने का अधिकार मिला हुआ है। पर, प्राय: इस पर अलग से ध्यान नहीं दिया जाता। वहीं, जशपुर जिले में कुछ ऐसी कोशिश की गई है जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही है। 2019 बैच के आईएएस जितेंद्र यादव यहां जिला पंचायत के सीईओ हैं। एक मजदूर से उनका सामना हुआ जो कोविड-19 महामारी के दौरान काम की तलाश में राज्य से बाहर चला गया था और अपना एक हाथ गंवा बैठा। सबसे पहले उसको गांव में मनरेगा का काम दिलाया गया। इसके बाद पूरे जिले में सीईओ ने ऐसे विकलांगों का सर्वे कराया है, जो मनरेगा में काम कर सकते हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इसके लिए पंचायतों में शिविर आयोजित किए गए। विकलांगों के बीच चर्चा की गई कि वे किस तरह का काम कर सकते हैं। इनमें दूसरे मजदूरों के बच्चों के सहायक के रूप में काम करना, पर्यवेक्षक का काम करना, मजदूरों को पानी पिलाना, कंक्रीट निर्माण के दौरान दीवारों और पौधों को पानी देना जैसे काम पहचाने गए। इसके चलते करीब एक हजार विकलांग मनरेगा में काम कर रहे हैं और उन्हें करीब 26000 श्रम दिवस की राशि का भुगतान किया जा चुका है। देश में शायद यह पहला जिला है जहां इतनी बड़ी संख्या में विकलांग मनरेगा का लाभ उठा रहे हैं। उनको महसूस हो रहा है कि वे कुछ कर सकते हैं। शारीरिक अक्षमता इसमें बाधा नहीं है।
फिर लंपी वायरस की आहट
पिछले साल लंबी वायरस से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा सहित करीब 7 राज्यों में हजारों पशुओं की मौत हो गई थी। साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इसका प्रकोप फैला। हालांकि पशुओं की मौत ज्यादा नहीं हुई। उस समय टीकाकरण अभियान चलाया गया और मवेशी बाजारों पर रोक लगा दी गई। इधर एक बार फिर कबीरधाम जिले से कुछ गांवों से लंबी वायरस फैलने की खबरें आ रही हैं। इस बार प्रशासन जरा भी अलर्ट दिखाई नहीं दे रहा। कबीरधाम जिले के कई बाजारों में दूसरे राज्यों के पशु लाए जाते हैं, जिनसे वायरस फैलने का खतरा बढ़ रहा है। इन बाजारों पर रोक लगाने का कोई आदेश अब तक नहीं निकला है और न ही ग्रामीणों को इस खतरे को लेकर मुनादी आदि के जरिए आगाह किया जा रहा है।
छप्पर के घर की मरम्मत
प्रधानमंत्री आवास में भी अब कांक्रीट के छत बनने लगे हैं। खपरैल से तैयार घर अब कम ही दिखते हैं। पर ये घर पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। कांक्रीट के घरों के मुकाबले इसके भीतर का तापमान कम होता है। पर लगभग हर साल इसकी मरम्मत करनी पड़ती है। बारिश के पहले जब इसे तैयार किया जाता है तो धूप बड़ी तेज होती है। छत्तीसगढ़ के एक गांव में 40 डिग्री तापमान पर छत की मरम्मत करता परिवार। ([email protected])
मोदी आयेंगे?
खबर है कि पीएम नरेंद्र मोदी 10 जून के आसपास छत्तीसगढ़ दौरे पर आ सकते हैं। पहले 12 मई को आना प्रस्तावित था, लेकिन बाद में कार्यक्रम स्थगित हो गया। प्रदेश भाजपा प्रभारी ओम माथुर खुद मोदी के कार्यक्रम के लिए लगे हुए हैं।
प्रदेश के नेताओं ने कार्यक्रम तैयारियों से जुड़ी जानकारियां हाईकमान को भेजी है। यह कहा गया है कि 10 जून के आसपास छत्तीसगढ़ में मानसून आ जाता है, और बस्तर में बारिश शुरू हो जाती है। ऐसे में इससे पहले ही आना तैयारियों की दृष्टि से दौरा उचित रहेगा। इस पर केन्द्रीय नेतृत्व ने मौसम को देखकर प्रदेश इकाई के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति दे दी है।
चर्चा है कि पीएम की सभा दुर्ग में हो सकती है। इसके अलावा सरगुजा में भी कार्यक्रम हो सकता है। खास बात यह है कि पीएम का अड़ोस-पड़ोस के राज्यों में दौरा तो हुआ है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले साढ़े तीन साल में एक बार भी नहीं आए। अब चुनाव नजदीक है, ऐसे में राज्य इकाई पीएम का दौरा कराने के लिए काफी जोर लगा रही है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव और ईडी के घेरे में अफसर
ईडी की जांच के घेरे में आए दर्जनभर आईएएस-आईपीएस अफसरों को फील्ड की पोस्टिंग में रुकावट आ सकती है। इस साल विधानसभा के चुनाव हैं, और सितम्बर से ही चुनाव आयोग से अफसर-कर्मियों की पोस्टिंग को लेकर दिशा-निर्देश जारी हो जाती है।
बताते हैं कि ईडी की चार्ज शीट में कई अफसरों के नाम हैं। इनमें से एक की पोस्टिंग फील्ड में है। इससे पहले आयोग कोई निर्देश जारी करे, उन्हें बदला जा सकता है। आयोग का साफ तौर पर निर्देश है कि जिनके खिलाफ कोई भी जांच चल रही है, उन्हें चुनाव कार्य से अलग रखा जाए। संकेत है कि आईएएस-आईपीएस अफसरों की ट्रांसफर सूची आयोग के निर्देशों को ध्यान में रखकर ही होगी।
एडसमेटा की दसवीं बरसी
बीते 19 मई को 10 साल पूरे हो गए एडसमेटा कांड को। सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस की पेट्रोलिंग टीम ने त्योहार मनाते ग्रामीणों पर नक्सली समझकर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी थी, जिसमें 3 बच्चों सहित आठ लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। एक बच्चे सहित दो ने बाद में दम तोड़ा। इस घटना की चर्चा कुछ दिन बाद 25 मई को परिवर्तन रैली पर हुए हमले की वजह से दब गई। सितंबर 2021 में जस्टिस बी एल अग्रवाल की न्यायिक जांच रिपोर्ट आ गई थी, जिसे 6 महीने के बाद मार्च 2022 में विधानसभा में पेश किया गया। इस रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि ग्रामीण निहत्थे और निर्दोष थे लेकिन हथियारबंद जवानों ने उन पर नक्सली समझकर 48 राउंड फायरिंग की।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि जवानों के पास उपकरणों की कमी थी, वरना वे पहचान सकते थे कि ग्रामीण त्यौहार मना रहे थे, न कि हथियार लेकर मुठभेड़ के लिए खड़े थे। आयोग ने जवानों की गलती तो मानी लेकिन उन पर किसी तरह की कार्रवाई की सिफारिश नहीं की। इस वजह से किसी भी गोली चलाने वाले जवान पर मामूली सी भी आंच नहीं आई है, पर आज तक मारे गए किसी भी ग्रामीण के परिजन को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है। बस्तर के मंत्री कवासी लखमा उस वक्त विपक्ष में थे। उनके ही नेतृत्व में कांग्रेस की जांच की एडसमेटा गई थी। फोर्स को कसूरवार माना गया था। उन पर कार्रवाई कथा मुआवजे की मांग तब कांग्रेस ने उठाई थी। इधर दसवीं बरसी के दिन हजारों ग्रामीण इक_े हुए। उन्होंने यही दोनों मांग फिर उठाई कि घटना के लिए जिम्मेदार जवानों पर अपराध दर्ज हो और सरकार पीडि़तों को मुआवजा दे।
घटना भाजपा के कार्यकाल में हुई थी। उसको 5 साल और मिले थे न्याय देने के लिए। कांग्रेस को भी अब साढ़े 4 साल बीत चुके, परिस्थिति नहीं बदली।
कांग्रेस विधायकों की चिंताजनक रिपोर्ट
सोशल मीडिया पर कल से कांग्रेस विधायकों की एक परफारमेंस रिपोर्ट वायरल हो रही है। यह अधिकारिक है या नहीं इसकी कोई पुष्टि नहीं कर रहा। इसके बावजूद लोग रिपोर्ट को दिलचस्पी से पढ़ रहे हैं। यदि इसे सही माना जाए तो ज्यादातर विधायकों का परफारमेंस चिंताजनक है।
रिपोर्ट में कोरिया जिले से सिर्फ अंबिका सिंहदेव को जीतने की स्थिति में बताया गया है। गुलाब कमरो के हार जाने और डॉ. विनय जयसवाल की टक्कर में होने की बात कही गई है। सूरजपुर जिले में मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम सहित तीनों विधायकों के हार जाने का दावा है। बलरामपुर जिले के दोनों विधायक बृहस्पति सिंह और चिंतामणि महाराज के भी हार जाने की बात कही गई है। सरगुजा में टीएस सिंहदेव के जीतने, डॉ प्रीतम राम के हारने और मंत्री अमरजीत सिंह भगत के टक्कर में होने का दावा है। जशपुर जिले में केवल विनय कुमार भगत के जीतने का दावा किया गया है। विधायक यूडी मिंज के बारे में कहा गया है कि वे व्यवहार कुशल नहीं हैं, प्रत्याशी बदलना पड़ेगा। पुराने रायगढ़ जिले की किसी भी सीट पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित नहीं कही गई है। चक्रधर सिंह सिदार ,प्रकाश नायक और उमेश पटेल को टक्कर में और बाकी दोनों उत्तरी जांगड़े और लालजी सिंह को हारने के खाने में रखा गया है। कोरबा जिले में जयसिंह अग्रवाल की ही जीत सुनिश्चित बताई गई है। मोहित राम को टक्कर में बताया गया है। पुरुषोत्तम कंवर के हारने की बात की गई है। इस जिले की रिपोर्ट में ननकीराम कंवर के भी हारने का दावा है और सलाह दी गई है कि सशक्त प्रत्याशी को टिकट दी जाए, कांग्रेस जीत सकती है।
मरवाही स्वीट से डॉ. केके ध्रुव के हारने की बात की गई है। कोटा से भी डॉ. रेणु जोगी हार सकती है बशर्ते कांग्रेस अच्छे प्रत्याशी को वोट दे। लोरमी को धर्मजीत सिंह हार जाएंगे लेकिन मुंगेली से पुन्नूलाल मोहले फिर जीत जाएंगे, यहां कांग्रेस कमजोर है। तखतपुर से रश्मि सिंह और बिलासपुर से शैलेश पांडे दोनों की हार का दावा किया गया है। बिल्हा में भाजपा के धरमलाल कौशिक को टक्कर में बताया गया है। बेलतरा से भाजपा प्रत्याशी रजनीश कुमार सिंह हारेंगे और मस्तूरी से डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी टक्कर में रहेंगे।
जांजगीर से नारायण चंदेल टक्कर में रहेंगे। सौरभ सिंह जीत जाएंगे। डॉ चरणदास महंत भी जीतेंगे लेकिन स्वयं लड़ेंगे तब, किसी दूसरे को समर्थन देंगे तो कांग्रेस नहीं जीतेगी। चंद्रपुर के कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव के हारने का अनुमान लगाया गया है। बसपा के दो विधायक इसी इलाके के हैं। जैजैपुर के केशव प्रसाद चंद्रा को टक्कर में तथा पामगढ़ की इंदु बंजारे को हार जाने की स्थिति में बताया गया है।
महासमुंद से 4 सीटों में सिर्फ खल्लारी से कांग्रेस की जीत की बात कही गई है। बाकी तीन विधायकों के बारे में स्पष्ट रूप से हार जाने का दावा है। महासमुंद विधायक विनोद चंद्राकर के बारे में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देने, अवैध रेत खनन अवैध शराब बिक्री करने वालों को संरक्षण देने तथा परिवारवाद को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप रिपोर्ट में है।
बलौदा बाजार की बिलाईगढ़ और कसडोल सीटों पर कांग्रेस के हारने का दावा है। बलौदा बाजार से जेसीसी के प्रमोद कुमार शर्मा के भी हारने की बात कही गई है जबकि भाटापारा से भाजपा के शिवरतन शर्मा की जीत की संभावना रिपोर्ट में है।
रायपुर में सिर्फ विकास उपाध्याय के टक्कर में होने की बात कही गई है बाकी सभी कांग्रेसी विधायकों के हारने की बात कही गई है इसमें सत्यनारायण शर्मा और डॉ शिव कुमार डेहरिया भी शामिल है। रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल के फिर जीतने की बात कही गई है, लेकिन कहा गया है कि एजाज ढेबर अगर उम्मीदवार बनते हैं तो टक्कर देंगे।
राजनांदगांव से डॉ रमन सिंह अकेले भाजपा विधायक हैं, जिनके जीत की बात कही गई है। बाकी सभी कांग्रेस विधायकों के हारने का अनुमान लगाया गया है। इनमें छन्नी साहू तथा यशोदा वर्मा भी शामिल है। कांकेर जिले की अंतागढ़ सीट से अनूप चुनाव के हारने की बात कही गई है जबकि भानुप्रतापपुर के कांग्रेस प्रत्याशी की फिर से जीत होने का अंदाजा लगाया गया है। कांकेर से शिशुपाल सौरी के भी फिर से जीतने की बात है। कोंडागांव की दोनों सीटों केशकाल और कोंडागांव से कांग्रेस की जीत का अनुमान है। कोंडागांव से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम विधायक हैं। नारायणपुर के कांग्रेस विधायक चंदन कश्यप और चित्रकूट के राजमन बेंजाम की हार का दावा किया गया है जगदलपुर से भी कांग्रेस हार जाएगी, ऐसा कहा गया है। बस्तर से लखेश्वर बघेल को जीत का अनुमान है। दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा सीटों पर कांग्रेस की जीत का अनुमान लगाया गया है।
अब तक रमन को ही तोहमत !
भाजपा के रणनीतिकारों के बीच आपसी खींचतान की पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने तो पहले काफी सक्रियता दिखाई, लेकिन ओम माथुर की प्रदेश संगठन के प्रमुख के तौर पर एंट्री के बाद एक तरह से छत्तीसगढ़ से दूरियां बना ली है।
सुनते हैं कि माथुर ने पहले शिवप्रकाश, पवन साय, और अजय जामवाल से चर्चा कर कोर ग्रुप के सदस्यों के नाम तय कर लिए थे। चुनाव अभियान समिति, और घोषणा पत्र समिति का भी ऐलान होना था, लेकिन वो सब अटक गया है। एक खबर और आई है कि पूर्व सीएम रमन सिंह भी ओम माथुर से नाखुश हैं। यद्यपि पिछले दिनों रमन सिंह ने माथुर समेत तमाम प्रमुख नेताओं को अपने यहां चाय पर आमंत्रित किया था, लेकिन आपस में दूरियां कम होने का नाम नहीं ले रही है।
चर्चा है कि रमन सिंह इस बात को लेकर नाराज हैं कि माथुर कार्यकर्ताओं की बैठक में यदा-कदा विधानसभा चुनाव में बुरी हार के लिए रमन सरकार को दोषी ठहरा देते हैं। अब कांग्रेस सरकार को साढ़े चार साल हो गए हैं, मगर माथुर जैसे नेता भाजपा सरकार में हुए बेहतर कार्यों को नहीं गिनाते हैं। जबकि प्रदेश में अधोसंरचना का विस्तार, और गरीबी उन्मूलन के लिए चावल जैसी योजना रमन सरकार ने लांच की थी। ऐसे में डॉक्टर साब की नाराजगी स्वाभाविक है।
याददाश्त इतनी कमजोर तो नहीं है
सीएम भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र पाटन में कांग्रेस के भरोसे के सम्मेलन में अपार भीड़ उमड़ी। इससे पहले इतनी भीड़ पाटन इलाके में किसी भी दल की सभा में नहीं जुटी थी। कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी आना था, लेकिन वो व्यस्तता की वजह से नहीं आ पाए। भीड़ देखकर प्रदेश प्रभारी शैलजा काफी खुश थीं।
सब कुछ अच्छा होने के बाद भी एक-दो बातें ऐसी हो गई जिसकी पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है। मसलन, सीएम ने अपने उद्बोधन में प्रदेश प्रभारी से लेकर ब्लॉक स्तर तक के तमाम पदाधिकारियों का जिक्र तो किया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का नाम लेना भूल गए। अब मरकाम के अध्यक्ष को हटाने या फिर पद पर बनाए रखने का मसला केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में मरकाम का नाम नहीं लेने के मायने तलाशे जा रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनाव को देखते हुए सीएम बस्तर के सांसद दीपक बैज को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। जबकि सिंहदेव खुले तौर पर मरकाम के साथ हैं। चाहे कुछ भी हो, भरोसे के सम्मेलन में सीएम का मरकाम पर भरोसे को लेकर संशय नजर आया।
धर्मजीत सिंह का भाजपा में जाना तय?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापकों में से एक, पर निष्कासित लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर बहुत जल्दी ऐलान करने वाले हैं कि वे किस पार्टी में जाएंगे। उनकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की है लेकिन जिन परिस्थितियों में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर स्व. अजीत जोगी के साथ नई पार्टी बनाई, वह उनके मुताबिक अब भी विद्यमान है। यही वजह है कि डॉ. चरण दास महंत के खुले निमंत्रण और टीएस सिंहदेव की सहमति के बावजूद उनकी कांग्रेस से दूरी दिखती है।
रविवार को एक कार्यक्रम में सिंह ने अचानकमार अभयारण्य के संदर्भ में छिड़ी बात पर डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल की तारीफ और मौजूदा वन मंत्री मोहम्मद अकबर की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह के दौर में उनकी बात कम से कम सुन तो ली जाती थी लेकिन अब कोई सुनता भी नहीं।
धर्मजीत सिंह जिस दल में रहेंगे बिलासपुर मुंगेली जिले की कुछ सीटों पर असर डालेंगे। प्रदेश में करारी हार के बावजूद इन दोनों जिलों में सन् 2018 में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। इधर कांग्रेस संगठन की ओर से कहा गया है कि उनका फोकस हारी हुई सीटों पर है। पर धर्मजीत सिंह की कांग्रेस वापसी की कोई गंभीर कोशिश नहीं हो रही है।
दूसरी ओर भाजपा उन्हें लेने के लिए उत्सुक है। उनको तखतपुर से टिकट भी दी जा सकती है। पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पांडेय तीसरे नंबर थी और कांग्रेस से करीब 10 हजार कम वोट उन्हें मिले। दूसरे स्थान पर जेसीसी के संतोष कौशिक थे, जो अब कांग्रेस में जा चुके हैं। पहले के विधानसभा चुनावों में तखतपुर में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन होता रहा है लेकिन पिछली बार के नतीजे से लगता है कि यह सीट उससे फिर फिसल सकती है। धर्मजीत सिंह ऐसे में उनके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
बस्तर पर छोटे दलों की निगाह
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बस्तर संभाग की सीटों पर जिस तरह एकतरफा जीत मिली उसने तीसरे दलों का भी ध्यान खींचा है। उन्होंने भी अपने हिस्से की जगह तलाश करनी शुरू कर दी है। आम आदमी पार्टी ने कोमल हुपेण्डी को कमान दी है। बहुजन समाज पार्टी की जिम्मेदारी हेमंत पोयम को मिली है। दोनों ने ही सन् 2018 में बस्तर से विधानसभा चुनाव लड़ा था। कोमल हुपेंडी भानुप्रतापपुर से तो हेमंत ने अंतागढ़ से। इधर सर्व आदिवासी समाज ने छत्तीसगढ़ की 50 से 55 सीटों पर लडऩे का ऐलान कर दिया है, जिसमें बस्तर की सभी सीटें होंगी।
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में 23 हजार से अधिक वोट हासिल होने के बाद इस सामाजिक संगठन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उभरकर आई है। पामगढ़, मालखरौदा, चंद्रपुर, अकलतरा सहित प्रदेश की करीब आधा दर्जन दलित और ओबीसी सीटों पर असर और वर्तमान में दो विधायकों वाली बहुजन समाज पार्टी, संगठन का नेतृत्व आदिवासी वर्ग को सौंपने का यदि लाभ उठाने में सफल होती है तो यह आप और सर्व आदिवासी समाज के बाद तीसरी पार्टी होगी जो कांग्रेस-भाजपा के पारंपरिक वोटों पर बस्तर में सेंध लगाएगी। इन तीनों दलों की कोई सीट नहीं भी निकलती है तो भी दोनों प्रमुख दलों के समीकरण को बिगाडऩे वाला है। बस्तर की सीटों से ही प्रदेश में सरकार बनने का रास्ता निकलता है इसलिये इन तीनों दलों की मौजूदगी कांग्रेस भाजपा दोनों की चिंतित कर रही है।
चिडिय़ों के लिए दाना-पानी
भीषण गर्मी में पक्षियों की जान बचे, प्यास बुझे इसके लिए कोरबा में छात्र, युवाओं की एक टीम टीन के कनस्तर के घोंसले बना रही है। भीतर लकड़ी और भूसा है, जिससे तापमान न बढ़े। भीतर दाना और पानी दोनों रख रहे हैं।
तब सच या अब?
खबर है कि शराब घोटाला केस में ईडी ने प्रदेश के सबसे बड़े शराब निर्माता नवीन केडिया को मुख्य गवाह बनाया है। ईडी ने केडिया के मुख्य आरोपी अनवर ढेबर से लिंक का ब्यौरा भी दिया है। दिलचस्प बात यह है कि करीब साढ़े तीन साल पहले आईटी रेड के बाद नवीन केडिया के बयान भी लिए थे।
चर्चा है कि केडिया ने लिखित बयान में कहा था कि वो अनवर ढेबर को जानते तक नहीं हैं। वो मेयर होने की वजह से एजाज ढेबर से परिचित हैं। लेकिन अनवर से दूर-दूर तक कोई कारोबारी रिश्ता नहीं है। अब सवाल उठ रहा है कि केडिया पहले सही बोल रहे थे या अब। चाहे कुछ भी हो, शराब घोटाला केस उलझा हुआ नजर आ रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
उठापटक और खुशी
सूत न कपास, जुलाहों में ल_म ल_ा। ये कहावत रायपुर के मेयर की दौड़ में शामिल कांग्रेस के कुछ पार्षदों पर फिट बैठ रही है। दरअसल, रायपुर के मेयर एजाज ढेबर से ईडी पांच बार पूछताछ कर चुकी है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। इस पूरे घटनाक्रम पर मेयर की दौड़ में शामिल एक-दो पार्षदों की पैनी नजर है।
दरअसल, एक युवा पार्षद ने मेयर के हटने की संभावनाओं के चलते कुछ पार्षदों के साथ बैठक की, तो इसकी खबर चारों तरफ फैल गई। अब इससे जुड़ी नई खबर यह है कि भविष्य में होने वाले शक्ति प्रदर्शन में साथ देने के लिए कुछ पार्षदों को एक-एक लाख दिए गए हैं। हल्ला यह भी है कि हितग्राहियों में एक-दो भाजपा के पार्षद भी हैं। भाजपा के लोगों को सेट करने की जिम्मेदारी ‘राम’ नाम के एक नेता को दी गई है।
मेयर हटेंगे या नहीं, इसकी संभावना तो बेहद कम है। लेकिन पार्षद दल के अंदरखाने में जिस तरह उठापटक चल रही है, उससे भाजपाई खेमे में खुशी की लहर है।
सिंहदेव पैराशूट से उतरेंगे?
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव इन दिनों विदेश घूम रहे हैं। उन्होंने कल शाम स्काईडाइविंग करते हुए एक वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया। लिखा- आसमान की पहुंच की कभी कोई सीमा नहीं थी। ऑस्ट्रेलिया में स्काईडाइविंग का अविश्वसनीय अवसर मिला। यह एक असाधारण साहसिक कार्य था, बेहद सुखद अनुभव हुआ।
24 घंटे से भी कम समय में इसे 3 लाख लोग देख चुके है और सैकड़ों लोगों ने प्रतिक्रिया दी है। अनेक अफसर, नेताओं और आम लोगों ने इसे वंडरफुल, माइंड ब्लोइंग, अमेजिंग, सुपर, वाह- बाबा साहब, ग्रेट सर जी, नाइस आदि कहा है। लोगों ने कहा कि इस उम्र में भी आपकी एनर्जी कमाल की है।
पर कुछ प्रतिक्रियाएं चुटकी लेते हुए भी की गई है। जैसे एक ने कहा है कि दिल जवां तो बेबसी कैसी, सफेद बालों की ऐसी की तैसी। और एक ने सिंहदेव की जाहिर इच्छा की ओर इशारा करते हुए लिखा- बस इसी तरह से प्रदेश के मुखिया की कुर्सी संभालने के लिए आप जल्दी ही पैराशूट से उतरने वाले हैं।
पेड़ के नीचे हेल्थ कैंप
बस्तर के सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कितनी बदहाल है इसका बयान इस तस्वीर में है। बीजापुर जिले के ताकिलोड सहित आसपास के कई गांवों में एनीमिया का प्रकोप फैलने की खबर जिला मुख्यालय पहुंची। इन गांवों तक जाने का रास्ता नहीं था, क्योंकि इंद्रावती नदी पर पुल नहीं बना है। इन इलाकों में पुल-पुलिया, सडक़ बनाना कठिन काम है क्योंकि नक्सल प्रभावित है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम नाव से नदी पार कर वहां पहुंची। उन्होंने यहां एक अस्थायी स्वास्थ्य शिविर लगाया। साधन नहीं था तो पैरा और कपड़े बिछाकर पीडि़त मरीजों को जमीन पर लिटाया और पेड़ों के सहारे रस्सी खींच कर उन्हें सलाइन चढ़ाया। इन कर्मचारियों के जज्बे की वजह से ही तीन दिन के भीतर ही लगभग 200 लोगों की सेहत में सुधार आ सका है।
सरकारी स्कूल के छात्रों को आरक्षण
सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले मेधावी बच्चों का ख्याल रखने के लिए मध्य प्रदेश सरकार के फैसले की शायद आने वाले दिनों में दूसरे राज्य भी नकल करें। यहां एक आदेश पिछले सप्ताह जारी किया गया है जिसके मुताबिक छठी से बारहवीं तक सरकारी स्कूलों में नियमित पढ़ाई कर पास बच्चों के लिए एमबीबीएस और बीडीएस की पांच प्रतिशत सीट रिजर्व रहेगी। इसके अलावा निजी स्कूलों में आरटीई के तहत आठवीं तक पढऩे वाले और फिर आगे की पढ़ाई सरकारी स्कूलों में करने वाले बच्चों को भी यह लाभ मिलेगा।
सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार के तमाम प्रयास विफल हो जाने की वजह से ही स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की मांग हो रही है। इन स्कूलों में दाखिले के लिए अर्जी देने वाले सिर्फ 10 या 20 प्रतिशत छात्रों को एडमिशन मिल पाता है।
कई बार कहा जाता है कि यदि बड़े अफसर अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना शुरू करें तो स्थिति बदल जाएगी। मध्य प्रदेश सरकार के फैसले से एक छोटी सी उम्मीद नजर आ रही है कि सरकारी स्कूलों में भी संसाधन और शिक्षा का स्तर उठाने के लिए कुछ गंभीर प्रयास होंगे।
रंग में भंग
चुनावी साल में छोटे-बड़े नेता अपने जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन से पीछे नहीं है। कुछ दिन पहले पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और अन्य प्रमुख नेताओं का जन्मदिन समर्थकों ने उत्साहपूर्वक मनाया था। इससे परे सत्ताधारी दल के एक विधायक का जन्मदिन तनाव भरे माहौल में मनाया गया।
बताते हैं कि विधायक महोदय के जन्मदिन के दो दिन पहले ईडी ने समंस जारी कर पूछताछ के लिए बुलावा भेजा। महोदय के उम्मीद थी कि ईडी दो -चार घंटे में पूछताछ कर जाने देंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ। ईडी की पूछताछ रूक-रूक कर चलती रही। समर्थकों ने घूम-घूमकर जन्मदिन के लिए जरूरी संसाधन जुटा लिए, लेकिन ईडी के जांच के चलते वैसा तामझाम नहीं हो पाया है। जिसकी तैयारी महीनेभर से चल रही थी।
कुछ इसी तरह बिलासपुर संभाग के एक विधायक ने तो कुछ हफ्ते पहले जन्मदिन के लिए समर्थकों के माध्यम से खूब चंदा एकत्र करवाया, लेकिन अंतिम में उन्होंने किन्हीं कारणों से जन्मदिन को सादगी से मनाने का फैसला लिया। अब कहा जा रहा है कि जो संसाधन जुटाए गए हैं, वो विधानसभा चुनाव के काम आएंगे।
खेल-खेल से पढ़ाने में फर्क
एक बड़े राजा की बेटी, 2 दिन से बीमार पड़ी, 3 संतरी दौड़े आए, 4 दवा की पुडिय़ा लाए, 5 मिनट में घोल बनाए, छह घंटे बाद पिलाई, 7 दिनों में आंखें खुली, 8 दिनों में मां से बोली, नौवें दिन फिर दौड़ लगाई, दसवें दिन पाठशाला आई। छोटे बच्चों को खेल-खेल में गणित जैसे विषय कैसे सिखाया जाए इसके लिए यह तरीका समग्र शिक्षा अभियान के तहत अन्य राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़ में भी अपनाया जा रहा है। इसके लिए एफएलएन (फाउंडेशन लिटरेसी एंड चार्ट पेपर) किट की पूरे राज्य के प्रायमरी स्कूलों में सप्लाई होने वाली है। सरकारी स्कूलों में तो सत्र लगभग बीत जाने के बाद यह मार्च तक पहुंची। ग्रामीण क्षेत्रों के कई स्कूलों में तो यह पहुंची ही नहीं। बहुत से बच्चों और अभिभावकों को तो इसके बारे में मालूम भी नहीं है। दूसरी ओर इसी नए प्रयोग ने प्राइवेट स्कूलों के अभिभावकों पर बोझ डाल दिया है। लर्न बाइ फन नाम से किट और बुक उन्हें अपनी पसंद के प्राइवेट प्रकाशकों के थमाये जा रहे हैं। छोटे बच्चों की पढ़ाई का सवाल है। स्कूल प्रबंधन अनिवार्य बताता है इसलिए खरीदना भी पड़ रहा है। सरकारी स्कूलों के किट में गुणवत्ता पर सवाल है, खर्च नहीं करना है। पर प्राइवेट स्कूलों में गुणवत्ता की शिकायत कम लेकिन खर्चीला है।
हसदेव के तट पर रस्साकशी
खेलों के जरिये सामूहिकता, सहयोग और संवाद का कौशल विकसित होता है। नदी की धारा और तट हो तो ऐसे खेल और आकर्षक हो जाते हैं, जो उनके स्वास्थ्य और स्वाभाविक विकास में मदद करता है। कोरबा के समीप झोरघाट पर बच्चे रस्साकशी के खेल में लगे हुए हैं। इस बात से अनजान कि इस नदी को बचाने के लिए सरकार और तट के निवासियों के बीच कितनी रस्साकशी चल रही है। इन दिनों वैसे हर तरफ नदियों में हाईवा ट्रैक्टर उतरे हुए दिखाई दे रहे हैं, पर यहां रेत पर बच्चे खेलते नजर आ रहे हैं।
तिरंगे पर सियासत
राष्ट्रध्वज मे जो तीन रंग हैं, उन्हीं तीन रंगों का कांग्रेस पार्टी के झंडे में इस्तेमाल होता है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की अलग पहचान इसके बीच के हिस्से में बने अशोक चक्र से होती है। कांग्रेस के झंडे में उसका चुनाव चिन्ह होता है। पर यदि सिर्फ तीन रंग हों, न ही अशोक चक्र न ही पंजे का निशान, तब उसे क्या समझा जाएगा? कोरबा में इसी बात को लेकर सियासत हो रही है। यहां पर बुजुर्गों के लिए एक सियान सदन बनाया गया। साज-सज्जा के दौरान इसमें एक पट्टी तिरंगे की भी बनाई गई। आरोप है कि नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल ने नगर-निगम के कर्मचारियों पर दबाव डाला, पट्टिका मिटा दी गई। प्रतिपक्ष के पार्षदों का कहना है कि सरकारी भवनों का कांग्रेसीकरण किया जा रहा है। भाजपा पार्षदों ने अपर आयुक्त से शिकायत की कि उनके वार्ड में कराए गए निर्माण कार्यों में कांग्रेसी पार्षदों का नाम लिखा जा रहा है। इधर कांग्रेसी पार्षदों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई है, तिरंगे के अपमान की। अब पुलिस पेशोपेश में है कि जो तिरंगा मिटाया गया उसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान माना जा सकता है या नहीं।
ओपी ने मोर्चा सम्हाला
पीएससी में गड़बड़ी पर प्रदेश की राजनीति गरम है। इस पर भाजपा के अंदरखाने में काफी चर्चा भी हुई। ज्यादातर नेताओं का सुझाव था कि यह लाखों बेरोजगारों से जुड़ा मामला है, और इसको लेकर प्रदेश स्तर पर बड़ा आंदोलन होना चाहिए।
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने तो शुरू में गड़बड़ी पर चुप्पी साध ली थी। प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास अकेले लड़ाई लड़ते दिख रहे थे। ऐसे में नौकरी छोडक़र सक्रिय राजनीति में आए ओपी चौधरी की खामोशी से कई नेता नाराज भी हो गए। चौधरी जी यूपीएससी और पीएससी परीक्षा की तैयारियों में लगे युवाओं को फेसबुक पर टिप्स भी देते हैं।
हजारों युवा उन्हें फालो भी करते हैं। मगर इस गंभीर विषय पर उनकी खामोशी कई नेताओं को बर्दाश्त नहीं हुई। एक-दो नेताओं ने पार्टी पदाधिकारियों को वाट्सएप ग्रुप में लिखा कि चौधरी जी को विधानसभा सीट खोजने के बजाए पीएससी में गड़बड़ी खोजना चाहिए। फिर क्या था, चौधरी जी सक्रिय हुए और पीएससी अभ्यर्थी का कथित गड़बड़ी के खुलासे वाला गुमनाम पर्चा ट्विटर पर डालकर सुर्खियों में आ गए। इस पर सैकड़ों लोगों की प्रतिक्रिया आई है।
मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ से कौन?
चर्चा है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल हो सकता है। जिन पांच राज्यों में सालभर के भीतर चुनाव होने वाले हैं, वहां से प्रतिनिधित् मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। अभी वर्तमान में रेणुका सिंह एकमात्र मंत्री हैं।
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ से एक और सांसद को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके लिए जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले का नाम प्रमुखता से उभरा है। अजगले दूसरी बार के सांसद हैं। अजा वर्ग से आने वाले अजगले की साख अच्छी है। इससे परे कांकेर के सांसद मोहन मंडावी, और विजय बघेल व संतोष पाण्डेय के नाम का भी हल्ला है।
एक चर्चा यह भी है कि रेणुका की जगह रायगढ़ के सांसद गोमती साय को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। गोमती साय को रेणुका के मुकाबले ज्यादा प्रभावी माना जाता है। गौर करने लायक बात यह है कि कुछ महीने पहले भी इसी तरह केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हल्ला उड़ा था, तब कई उत्साही लोगों ने विजय बघेल को बधाई भी दे दी थी। मगर इस बार विधानसभा चुनाव को देखते हुए मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल के आसार दिख रहे हैं। भाजपा सांसद भी दिल्ली में कुछ ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बस्तर में सोशल मीडिया बूम
इंटरनेट कनेक्टिविटी के विस्तार के बाद दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक बात पहुंचाना बहुत आसान हो गया है। माओवाद प्रभावित बस्तर में यदि मीलों भीतर आंदोलन हों, हवाई हमले हों तो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर अपलोड हो जाती है। नक्सली अपनी बात सरकार और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अखबारों में चि_ियां भेजते थे लेकिन अब उनके प्रेस नोट कुछ ही क्षण में वायरल हो जाते हैं। सुरक्षा बलों को भी बस्तर में इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार होने का लाभ मिला है। और वहां के युवा इसका अलग ही तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। दर्जनों यू ट्यूबर हैं। बहुत से लोग न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। कोई सम-सामयिक खबरें कवर कर रहा है तो कोई बस्तर की प्रकृति और संस्कृति को। बस्तर के कोंडागांव की इस दुकान को देखने से पता चलता है कि वहां ट्राइपॉड और वीडियो कवरेज के काम आने वाले उपकरणों की कितनी मांग है। बहुत से युवा यू-ट्यूब और न्यूज पोर्टल से ठीक-ठाक कमाई भी कर रहे हैं।
बाबा के मंजन में मांसाहारी तत्व
बाबा रामदेव और उनके पतंजलि उत्पाद हमेशा विवादों में रहे हैं। पतंजलि के कई प्रोडक्ट दूसरे देशों में बैन होने की खबरें आती रही हैं। पर ये खबरें किसी कोने में छिपी होती हैं क्योंकि तमाम टीवी चैनल, अखबार इनसे विज्ञापन पाते हैं। अपने यहां उनके उत्पाद बैन नहीं होते। सन् 2014 में अपने लाखों भक्तों के बीच उन्होंने 40 रुपये में पेट्रोल बिकने और हर किसी की जेब में काला धन का 15 लाख रुपये आने वादा कर केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने में मदद की थी। कोविड महामारी के समय भी उन्होंने कोरोनिल नाम की दवा निकालकर कोरोना से छुटकारा देने का दावा किया। लाखों लोगों ने यह दवा ली। चिकित्सक संगठनों ने इस दावे को झूठ बताया, तब उन्होंने कहना शुरू किया कि कोरोनिल इम्युनिटी बढ़ाने की दवा है जिससे कोरोना ठीक करने में मदद मिलेगी। अब उनका एक और प्रोडक्ट विवाद में है। दिल्ली की एक अधिवक्ता शाशा जैन ने बाबा, आचार्य बालकृष्ण और उनकी कंपनी को कानूनी नोटिस भेज दी है। नोटिस में कहा गया है कि उनके प्रोडक्ट दिव्य दंतमंजन में कैटल फिश ( समुद्री फेन) का इस्तेमाल किया गया है, जो मांसाहार की श्रेणी में आता है, जबकि मंजन की डिबिया में ग्रीन सिंबल दिया गया है जो शाकाहारी उत्पाद में ही प्रयोग हो सकता है। ऐसा करना उन उपभोक्ताओं के साथ धोखा है, जो मांसाहारी नहीं है। साथ ही ग्रीन, रेड लेबलिंग के नियमों का भी उल्लंघन है।
शाशा जैन ने यह पोस्ट अपने ट्विटर हैंडल पर 15 मई को डाली है, जो 11 मई को भेजी गई थी। अब तक पतंजलि की ओर से कोई जवाब आया हो, इसकी जानकारी उन्होंने नहीं दी है। छत्तीसगढ़ में भी पतंजलि उत्पादों के कई बड़े शो-रूम हैं और छोटी दुकानें तो हर शहर कस्बे में हैं। यहां भी यह मंजन बिक रहा है, शाकाहारी लोग भी इसे खरीद रहे हैं।
धार्मिक आयोजन की तैयारी?
ऊर्जा नगरी कोरबा में इन दिनों इस तरह की होर्डिंग कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिज्ञासा पैदा करने की तकनीक है कि इसमें होर्डिंग लगाने वाले का कोई विवरण नहीं है। मीडिया के लोगों ने जानना चाहा तो उन्हें कुछ पता नहीं चला। नगर-निगम जिसकी अनुमति होर्डिंग के लिए जरूरी है, को भी नहीं मालूम। चुनाव नजदीक आ रहे हैं। अकेले भाजपा धार्मिक आयोजन करती हो तब तो लोग अंदाजा लगा लेते कि बाबा बागेश्वर जैसा कोई प्रवचनकार आ रहा होगा, पर अब तो प्रदेशभर में कांग्रेस सरकार भी रामायण का आयोजन करा रही है। लोग कह भी कर रहे हैं कि जून में होने वाले राम मंदिर के शिलान्यास की तैयारी है। कुछ कह रहे हैं जया किशोरी आने वाले हैं, कुछ का अनुमान है शंकराचार्य पहुंचने वाले हैं।
खाना कैसे लेट करें?
पिछले 4 साल से एक के बाद एक हो रही बैठकों से भाजपा नेता ऊबने लगे हैं। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक बीच में छोडक़र कई नेता बाहर निकल गए थे। इसके लिए उन्हें फटकार भी सुननी पड़ी।
हुआ यूं कि कार्यसमिति की बैठक से पहले ही बता दिया गया था कि तीन बजे भोजन होगा। बैठक मोदी सरकार के 9 साल का कार्यकाल पूरे होने के पर प्रदेशभर में सभा-सम्मेलनों के आयोजन के लिए बुलाई गई थी।
बैठक में बड़े नेताओं के भाषण के बीच कुछ पदाधिकारी चुपके से बाहर निकल गए, और भोजन शुरू कर दिए। एक के बाद एक पदाधिकारियों को निकलते ही महामंत्री (संगठन) पवन साय की नजर उन पर पड़ गई। पवन साय ने कुछ नहीं कहा, और वो भी चुपचाप पदाधिकारियों के पीछे हो लिए। साय ने देखा कि भोजन अवकाश से पहले ही कुछ ने खाना शुरू कर दिया है। साय को देखते ही पदाधिकारी थाली छिपाने लगे। फिर क्या था, साय का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
और उन्होंने महत्वपूर्ण बैठक को गंभीरता से नहीं लेने पर पदाधिकारियों को जमकर फटकार लगाई। इसके बाद पदाधिकारी खाना अधूरा छोड़ बैठक में जाना पड़ा। सायजी को कौन समझाए कि बीपी, शुगर से जूझ रहे एक-दो पदाधिकारियों के दवाई खाने का समय हो गया था। खाली पेट तो दवाई खा नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने खाना शुरू कर दिया। इससे नाराज पदाधिकारी आपस में बतियाते निकले कि पार्टी के कर्णधार अब भी छोटे नेताओं, और कार्यकर्ताओं की समस्याएं नहीं समझ पा रहे हैं।
असंतुष्ट मंत्रियों की गुहार
सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल, और रूद्र कुमार गुरु की अपनी समस्याएं हैं। चर्चा है कि उन्होंने प्रदेश प्रभारी सुश्री शैलजा को अवगत करा दिया है। जयसिंह पहले भी प्रशासनिक अड़चनों को लेकर काफी कुछ कह चुके हैं।
नई खबर यह है कि चुनाव से पहले असंतुष्ट नेताओं की समस्याओं के निराकरण का फार्मूला तैयार हो रहा है। चर्चा है कि पुलिस और प्रशासनिक फेरबदल में इसकी छाया देखने को मिल सकती है। फेरबदल की सूची जल्द जारी होने की संभावना है।
इसी बीच रुद्र गुरु एक और बात को लेकर खफा हो गए हैं। शैलजा ने सीएम हाउस की बैठक के लिए नाम खुद तय किए थे, लेकिन रुद्र गुरु बिना बुलाए पहुंच गए थे। उन्हें मीटिंग में शामिल नहीं किया गया, वापस आना पड़ा। शिकायत के लिए गए थे, एक और शिकायत लेकर लौटे।
खिलाडिय़ों के खाने के साथ खेल
एक केला, एक उबला अंडा और थोड़ा सा अंकुरित मिलेट। यह किसी बीमार-बुजुर्ग का नाश्ता लग रहा हो लेकिन यह उन खिलाडिय़ों क है जो रायगढ़ में चल रहे ग्रीष्मकालीन खेलों में अपनी ताकत झोंक रहे हैं। जानकारी यह भी आई है कि ऐसी एक प्लेट के पीछे कांट्रेक्टर को 75 रुपए भुगतान किया जा रहा है। ऐसी प्लेट खिलाडिय़ों की पेट भरे न भरे, जो लोग फंड संभाल रहे हैं उनकी सेहत जरूर बन जाएगी।
पटवारी से बचें तो एसडीएम दफ्तर में भटकें
प्रदेश के पटवारी 15 मई से बेमियादी हड़ताल पर हैं। 2 साल पहले भी इन्होंने 10 दिन की हड़ताल की, फिर राजस्व मंत्री के आश्वासन पर वापस लौट गए। बीते 24 अप्रैल को एक दिन की हड़ताल करके इन्होंने याद दिलाया कि 2 साल पहले का आश्वासन अब तक पूरा नहीं हुआ है।
आगामी चुनाव के मद्देनजर बहुत से कर्मचारी संगठन आंदोलन कर अपनी मांगें मनवाने की आखिरी कोशिश में हैं।
वैसे तो पटवारियों की वेतन विसंगति, प्रमोशन, मुख्यालय में रहने की बाध्यता, स्टेशनरी भत्ता जैसी करीब 8 मांगे हैं मगर इनमें से एक भुइयां सॉफ्टवेयर से होने वाली परेशानी का हल निकालने की मांग है। यह समस्या ऐसी है जिसे दूर करने की शासन से कोई पहल नहीं हो रही है। यह सॉफ्टवेयर किसानों को पटवारी के चक्कर लगाने से बचाता है ने लेकिन इसमें दर्ज हो जाने वाली त्रुटियों को लेकर वे काफी परेशान हैं। किसान की जाति, जमीन का रकबा दर्ज कुछ और किया जाता है और एंट्री कुछ अलग हो जाती है। इसमें जो त्रुटि होती है उसका संशोधन नीचे कोई अधिकारी-कर्मचारी नहीं कर सकता। एसडीएम के पास आवेदन करना पड़ता है। राजस्व विभाग किसानों का ख्याल रखते हुए कम से कम इस सॉफ्टवेयर को तो ठीक करा दें। अभी पटवारी से तो राहत मिल रही है, पर त्रुटि में सुधार के लिए एसडीएम ऑफिस का चक्कर लगाना पड़ता है।
रूट दोगुनी, बोगियां आधी
वंदे भारत एक्सप्रेस की जगह नागपुर-बिलासपुर के बीच तेजस एक्सप्रेस चलाने का निर्णय अस्थायी है, यह तो रेलवे ने बताया था लेकिन इतनी जल्दी यू-टर्न होगा इसका किसी को अनुमान नहीं था। तेजस तीन दिन ही चली अब दोबारा वंदे भारत की ही स्पेशल बोगियां दौड़ रही है। मगर एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि ट्रेन की बोगियां घटकर आधी हो गई हैं। पहले इसमें एग्जीक्यूटिव क्लास के 2 कोच और 14 चेयर कार थे। अब जो कल से वंदे भारत दौड़ रही है उसमें एग्जीक्यूटिव कार एक और चेयर कार घटाकर सात कर दी गई है। दरअसल यह आधी बोगियां खाली ही दौड़ रही थी। लंबाई आधी करने का लाभ हुआ कि दूसरे राज्यों में नई वंदे भारत ट्रेन चलाने के लिए बोगियां मिल गई। जैसा कि आज भी हावड़ा पुरी के बीच एक और वंदे भारत शुरू हो गई है।
भाजपा की रणनीति फ्लॉप ?
भाजपा में अंतर्कलह यदा-कदा सामने आ जा रही है। बड़े नेताओं की आपसी खींचतान का सीधा असर पार्टी के कार्यक्रमों पर पड़ रहा है, और कई कार्यक्रम इसकी वजह से फ्लाप-शो बनकर रह जा रहे हैं।
हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने अपने करीबी दोनों महामंत्री ओपी चौधरी, और विजय शर्मा से मिलकर सरकार की गौठान योजना की पोल खोलने की रणनीति तैयार की थी। इससे बाकी बड़े नेताओं को अलग रखा गया। यह तय किया गया कि रायपुर के 25 किमी की परिधि में स्थित दो-तीन गौठान में जाकर मीडिया के जरिए आम लोगों तक पहुंचाएंगे।
रायपुर ग्रामीण के एक-दो नेताओं से चर्चा कर खराब तरीके से चल रहे कुछ गौठान चिन्हित किए गए। इनमें महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस के गृहग्राम गोढ़ी का गौठान भी था। नेताओं ने तय किया कि सबसे पहले गोढ़ी में ही छापेमारी करेंगे, और अनियमितता को उजागर करेंगे। सारे पत्रकारों को 2 बजे पार्टी दफ्तर आमंत्रित किया गया, और साथ लेकर गोढ़ी जाने का फैसला लिया गया। कहां जाना है, यह गोपनीय रखा गया था।
चर्चा है कि पार्टी के मीडिया सेल के जिम्मेदार लोगों ने मीडियाकर्मियों को सुबह-सुबह जानकारी दे दी, और फिर बात इतनी तेजी से फैली कि सुबह 10 बजे तक ग्राम गोढ़ी तक बात पहुंच गई। प्रदेश अध्यक्ष के आने से पहले एक-दो पदाधिकारी चुपचाप गौठान देखने पहुंचे थे कि बड़ी संख्या में गौठान के लोग, और ग्रामवासी एकत्र हो गए। इसके बाद भाजपा पदाधिकारियों के साथ झूमा झटकी हो गई। तब तक आसपास के गांव के कांग्रेस के कार्यकर्ता गोढ़ी पहुंच गए, और अध्यक्ष अरूण साव की टीम के पहुंचने से पहले विरोध में नारेबाजी शुरू हो गई।
साव गोढ़ी पहुंचे तब तक एक-दो कार्यकर्ताओं की पिटाई हो चुकी थी। उन्हें वहां विरोध का सामना करना पड़ा। बाद में वो थाने पहुंचकर कांग्रेस के लोगों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पीछा करते वहां तक पहुंच गए, और उन्होंने थाने के बाहर नारेबाजी करने लगे। साथ ही कॉउंटर रिपोर्ट भी लिखवा दी। मुश्किल में फंसे अरूण साव ने मीडिया से चर्चा में गोठान योजना में 13 सौ करोड़ का आरोप लगाकर किसी तरह से निकल पाए। पार्टी के कई लोग मीडिया सेल को ही इस फ्लाप-शो के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
इस पूरे कार्यक्रम से सांसद सुनील सोनी, और विधायक बृजमोहन अग्रवाल को दूर रखने से उनके समर्थक नाराज हैं, सो अलग।
नेताम के दिन फिरे
भानुप्रतापपुर उपचुनाव के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की पूछपरख बढ़ गई है। अरविंद नेताम को भाजपा अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। पार्टी नंदकुमार साय के भाजपा छोडऩे से काफी दबाव में हैं। दूसरी तरफ, नेताम कह चुके हैं कि सर्व आदिवासी समाज अजजा सीटों के अलावा जनजाति मतदाताओं की बाहुल्यता वाली सीट पर प्रत्याशी उतारेंगे।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अरविंद नेताम, सीएम भूपेश बघेल से व्यक्तिगत तौर पर नाराज हैं। यही वजह है कि भाजपा अब उन्हें साथ लेकर अजजा सीटों पर अपना दबदबा कायम करना चाहती है।
बताते हैं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर की पिछले दिनों पूर्व केन्द्रीय मंत्री नेताम से लंबी चर्चा हुई है। दोनों के बीच बातचीत का माहौल पूर्व राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने तैयार किया। चर्चा है कि नेताम कुछ शर्तों के साथ भाजपा का साथ देने के लिए तैयार भी हो गए हैं। अब नेता भाजपा की मदद कैसे, और किस तरह करते हैं, यह देखना है।
रेलवे के बर्ताव में कोई भेदभाव नहीं
रेलवे में सफर करने वाले आम यात्री हों या खास, युवा हो या बुजुर्ग, सभी एक जैसी तकलीफ से दो-चार हो रहे हैं। दो दिन के भीतर हुई दो घटनाओं का जिक्र। एक यात्री एसी फर्स्ट क्लास में अपने 70 वर्षीय पिता के साथ रायपुर से हावड़ा जा रहे थे। उनकी ट्रेन मुंबई हावड़ा मेल के बारे में बताया गया कि वह रात 19.50 बजे जगह अगले दिन सुबह 3 बजे रवाना होगी। अमूमन यात्री इस तरह के घंटों लेट के आदी हो चुके हैं। शुक्रिया कि रेलवे ने एसएमएस भेजकर जानकारी दे दी। यह तो हुआ लेकिन ट्रेन इस नए समय पर भी नहीं आई। पहुंचने पर जब उन्हें अपना जगह खोजने लगे।तब बताया गया कि उनकी दोनों सीटें कहीं? बदल दी गई है। यहां तक की श्रेणी भी बदलकर 3ए से 3ई कर दी गई है। बुजुर्ग के साथ पूरे प्लेटफार्म पर अपना डिब्बा ढूंढते यात्री परेशान हुए। ट्रेन पर चढऩे के बाद 70 साल के बुजुर्ग पिता को लिए वे एक घंटे तक अपनी जगह तलाशते रहे। उन्होंने 139 नंबर पर कॉल किया, जवाब नहीं मिला। टीटीई, जिन्हें आजकल टेबलेट से लैस कर दिया गया है, उनका भी रूखा जवाब। आखिरकार खुद ही नई सीट ढूंढकर वे बैठे। इसकी शिकायत उन्हें रेल मंत्री और मंत्रालय से की है लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है।
बालोद के एक पैसेंजर के साथ तो और बुरा हुआ। उनकी पैसेंजर ट्रेन समय पर नहीं आई उन्होंने स्टेशन मास्टर के पास शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, क्योंकि उनको ड्यूटी में रायपुर पहुंचने में देर हो गई। मैनेजर ने शिकायत दर्ज की नहीं उल्टे धमकाया कि आप यही आखिरी विकल्प क्यों चुनते हैं। पैसेंजर बार-बार यह जानना चाह रहा था कि आंखें ट्रेन लेट क्यों हैं, स्टेशन मास्टर यही कहते रहे कि कई कारण होते हैं। यह भी कहा कि समय पर सिर्फ राजधानी और वंदे भारत जैसी गाडिय़ां चलती हैं। यानि बाकी ट्रेनों में सफर करने वाले यात्री चाहे ए 1 क्लास में चलें या जनरल डिब्बों में रेलवे के लिए दूसरे दर्जे के नागरिक हैं।
जिलों के लंबे-लंबे नाम
जिलों के नाम छत्तीसगढ़ में इतने लंबे लंबे हो गए हैं कि सरकारी कागजातों में भी समाता। शिक्षा विभाग की ओर से जारी परीक्षा केंद्र संबंधी इस पत्र में नए जिलों का नाम तो ठीक लिखा गया है मगर कुछ पुराने जिलों का पूरा नाम लिखना रह गया है। जैसे बलरामपुर के साथ रामानुजगंज छूट गया। बलोदा बाजार के साथ भाटापारा नहीं लिखा गया है। पहले जिलों के कई नाम ऐसे तय किए जा चुके हैं जिससे पूरे क्षेत्र की विशेषता का पता चल जाता है। जैसे कबीरधाम, कोरिया, सरगुजा और बस्तर। इधर कुछ नए जिलों का नाम लोगों ने संक्षेप में लिखना शुरू कर दिया है। जैसे गौरेला पेंड्रा मरवाही को जीपीएम, मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर को एमसीबी। अब सरकारी दस्तावेजों में भी ये संक्षिप्त नाम दिखाई देने लगे हैं। पर खैरागढ़ साथ छुईखदान और गंडई भी शामिल है, यह लिखते समय ध्यान रखना होगा। मोहला के साथ मानपुर और अंबागढ़ चौकी भी जोडऩा होगा। इन जिलों के लिए संक्षिप्त नामों की तलाश होनी चाहिए। ऐसे नाम जिससे पूरे क्षेत्र की पहचान स्पष्ट हो।
बेकार सामानों का इस्तेमाल
आर आर आर। नाम फिल्मी लग रहा है लेकिन ऐसा नहीं है। स्वच्छता अभियान पर पूरे देश में पहचान बना चुके अंबिकापुर में यह एक नया सेंटर खोला गया है। यहां पर अनुपयोगी सामानों की रिसाइक्लिंग पहले से की जाती थी लेकिन अब तीसरा काम लिया गया है। किसी एक के लिए कोई सामान अनुपयोगी हो तो वह उसे यहां जमा कर दे और जिसे जरूरत हो यहां से ले जाए। केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में यह योजना लाई गई है, जिसका छत्तीसगढ़ में प्रयोग अंबिकापुर से शुरू हुआ है। ([email protected])
संदेह से ऊपर रहना था...
पीएससी राज्य सेवा परीक्षा के चयनित अभ्यर्थियों की सूची जारी होने के बाद से विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूची में अफसरों, नेताओं, और ताकतवर लोगों के बेटे-बेटियों, और नजदीकी रिश्तेदारों की भरमार है। अगर कोई प्रतिभाशाली है, तो उन्हें आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। मगर कुछ सवाल जरूर उठ रहे हैं जिसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है। मसलन, पीएससी चेयरमैन के परिवार के तीन सदस्य क्रमश: डिप्टी कलेक्टर, और डीएसपी व श्रम अधिकारी के पद पर चयनित हुए हंै।
नियमों में साफ है कि परिवार के नजदीकी रिश्तेदारों के परीक्षा में शामिल होने की दशा में चयन प्रक्रिया से जुड़े लोगों को घोषणा पत्र भरकर देना होता है, और वो नियमानुसार चयन प्रक्रिया से अलग हो जाते हैं। मगर पीएससी चेयरमैन ने ऐसा किया है अथवा नहीं, यह साफ नहीं हो पाया है। न सिर्फ पीएससी राज्य सेवा बल्कि कई और परीक्षाओं में धांधली की शिकायत आई है। आयुष टीचिंग स्टॉफ की भर्ती में ऐसी ही धांधली को लेकर कई अभ्यार्थी हाईकोर्ट चले गए हैं।
पीएससी की कार्यप्रणाली पारदर्शिता का अभाव रहा है। वर्ष-2005 की राज्य सेवा की परीक्षा में धांधली को राज्य की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू ने भी पकड़ा था। हाईकोर्ट ने गड़बड़ी की शिकायत को सही पाया था, और नई चयन सूची जारी करने के आदेश दिए थे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। प्रकरण पर सुनवाई अभी भी लंबित है।
वैसे पीएससी चेयरमैन आलोचकों के निशाने पर है। वजह यह है कि प्रशासनिक कैरियर में वो बेदाग नहीं रहे हैं। उन पर जांजगीर-चांपा के जिला पंचायत सीईओ रहते मनरेगा घोटाले के छींटे पड़े थे। उनकी दो वेतन वृद्धि भी रोकी गई थी। हालांकि बाद में वो कांकेर और नारायणपुर कलेक्टर रहे। सरगुजा कमिश्नर भी बनाए गए। सीएम के सचिव भी रहे। अब गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो पुराने मामलों पर चर्चा हो रही है। प्रसिद्ध रोमन कहावत है कि सीजर की पत्नी को संदेह से ऊपर रहना चाहिए। मगर चेयरमैन उक्त कहावत पर फिट नजर नहीं आ रहे हैं।
कर्नाटक नतीजे और वंदेभारत
नागपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली वंदेभारत ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 11 दिसंबर को हरी झंडी दिखाई थी। इसे नागपुर से लेकर बिलासपुर तक के सभी भाजपा सांसदों ने केंद्र की एक बड़ी उपलब्धि बताया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और सांसद संतोष पांडेय ने इस ट्रेन को राजनांदगांव में भी स्टापेज दिलाया। रायगढ़ से इस ट्रेन को शुरू करने की मांग होने लगी थी। मगर बड़ी खामोशी से ठीक 5 माह बाद यह ट्रेन हटा ली गई है। इसकी बोगियां सिकंदराबाद, यानि हैदराबाद भेज दी गई है। उसकी जगह बिना जलसा किए तेजस एक्सप्रेस चला दी गई।
तेलंगाना के सिंकदराबाद (हैदराबाद) से चलने वाली यह दूसरी वंदेभारत ट्रेन है। यह ट्रेन हैदराबाद से तिरुपति बालाजी तक चलाई जा रही है, जिसके लिए बिलासपुर-नागपुर की बोगियां भेज दी गई हैं। तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल 16 जनवरी 2024 तक है। इस साल दिसंबर में यहां चुनाव प्रस्तावित है। यह वंदेभारत ट्रेन जिस चित्तूर जिले के तिरुपति को जोड़ रही है वह आंध्रप्रदेश में है। यहां विधानसभा का कार्यकाल 11 जून 2024 तक है। यानि करीब एक साल के भीतर इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव है। अप्रैल मई में देश में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। आंध्रप्रदेश विधानसभा में स्थिति यह है कि 175 में से 173 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था लेकिन उसके हाथ एक भी सीट नहीं आई। यही हाल लोकसभा का है। एक भी भाजपा सांसद नहीं। लोकसभा, विधानसभा दोनों में वाईएसआर कांग्रेस का दबदबा है। इधऱ तेलंगाना विधानसभा में भी बीआरएस का दबदबा है, 117 सीटों में से सिर्फ 3 भाजपा के पास है। लोकसभा की 17 सीटों में 4 भाजपा के पास है और बीआरएस के पास 9 सीटें हैं।
यह संयोग ही है कि एग्जिट पोल में कर्नाटक से भाजपा की हार जब बताई जाने लगीं, उसी समय रेलवे बोर्ड से वंदेभारत को बिलासपुर-नागपुर के बीच बंद करने की खबर आई। हालांकि संभावना है कि इसका निर्णय पहले हुआ होगा। इसे दक्षिण के इन दोनों राज्यों के मतदाताओं को खुश करने की कोशिश के रूप में लिया जा रहा है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में तो भाजपा की गठबंधन सरकार है ही, विदर्भ की लोकसभा सीटों पर भी दबदबा है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा में सीटें जरूर कम हैं, पर सांसद तो 11 में से 9 हैं। इन दोनों राज्यों सहित एमपी, गुजरात, यूपी, राजस्थान आदि में भाजपा अपना अधिकतम बेहतर प्रदर्शन कर चुकी है। दिल्ली में मोदी सरकार को 2024 में फिर से बिठाने के लिए दक्षिण से सीटें लाना जरूरी है। कर्नाटक चुनाव के बाद यह चुनौती और बढ़ गई है। वंदेभारत एक्सप्रेस को इसी का हिस्सा मान सकते हैं। विदर्भ और छत्तीसगढ़ के मतदाताओं को तो बहलाया जा सकता है।
ग्रामीण बचें, काश बाघ भी बच जाएं...
तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए जंगल के भीतर जा रहे ग्रामीणों का इन दिनों उन वन्यप्राणियों से मुठभेड़ हो रहा है, जो पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। तीन दिन पहले खैरागढ़ अंचल के केरलागढ़ के जंगल में तेंदूपत्ता तोडऩे गया एक ग्रामीण बाघ के हमले से घायल हो गया। उसके आसपास दूसरे लोग भी पत्ता तोड़ रहे थे। उनके शोर से घबराकर बाघ भाग गया। पर, बाघ का पता नहीं चल सका है। कल ही कोरबा के पसान इलाके में एक तेंदुआ बस्ती के भीतर घुसकर एक बैल का शिकार कर गया। बीते मार्च में सूरजपुर जिले के कुदरगढ़ जंगल में एक बाघ के हमले से दो युवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मार्च में ही रामानुजगंज में एक बाघ बस्तियों के पास घूम रहा था। ग्रामीण उन्हें जगह-जगह लाठियां पत्थर लेकर दौड़ाते रहे। ऐसी घटनाओं के बाद आसपास के कई गांवों में भय फैल ही जाता है। ग्रामीण मौका पाकर बाघों पर हमला कर देते हैं। सरगुजा में पिछले साल दो भैंसों का शिकार करने का बदला ग्रामीण ने बाघ की हत्या करके लिया। कुछ साल पहले राजनांदगांव में एक बाघ और एक बाघिन को ग्रामीणों ने घेरकर लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। अचानकमार अभयारण्य के कोटा क्षेत्र में पिछले साल एक शावक मृत मिला था, जिसकी भी हत्या की आशंका जताई गई थी। एटीआर में ही एक बाघिन रजनी घायल अवस्था में मिली थी, जिसकी कुछ महीनों के बाद कानन पेंडारी में मौत हो गई थी। हाल ही में बिलासपुर से सिर्फ 13 किलोमीटर दूर एक तेंदुआ एक फॉर्म हाउस में ग्रामीणों से डर कर छिपा था, जिसे वन विभाग ने रेस्क्यू किया। दो साल पहले नागझीरा, राजनांदगांव के फॉरेस्ट रिजर्व में मां के साथ पटरी पार कर रहे शावक बाघ की मालगाड़ी के पहिये के नीचे आने से मौत हो गई थी। पिछले साल कटनी रेल मार्ग पर बेलगहना और खोंगसरा के बीच एक 6 साल के तेंदुए की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी। पिछले साल ही जून माह में कोरिया जिले के गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ की मौत हो गई। यहां बाघों के प्राकृतिक आवास के इलाके में वन विभाग के अधिकारी सडक़ बना रहे थे।
बाघों के मामले में छत्तीसगढ़ का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है। पहले 48 बाघ थे अब 19 बताए जा रहे हैं। नया आंकड़ा अभी अलग से नहीं बताया गया है। पर कमी दूर करने मध्यप्रदेश से और बाघ लाकर वनों में छोडऩे की योजना बनाई गई है। पर इस तरह से हो रही असमय मौतों को देखते हुए लगता है कि बाघों का संकट उतना बड़ा नहीं है, जितना जो हैं उन्हें बचा लेने का है। जरूरी यह है कि इधर उधर भटक रहे बाघों की सुरक्षा के लिए ही वन विभाग ठीक तरह से प्रबंध कर ले।
जैन-अग्रवाल उम्मीदवारों का वजन
प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे टीम सक्रिय है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही दल अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए सर्वे करा रही है। भाजपा तो निजी एजेंसी से सर्वे करा रही है। साथ ही केन्द्र की खुफिया एजेंसी भी प्रदेश की जमीनी हालात पर नियमित रिपोर्ट केंद्र को भेजती है।
बताते हैं कि एक एजेंसी ने हाल ही में जमीनी स्थिति का आकलन कर रिपोर्ट भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक भेजी है। रिपोर्ट में अनारक्षित सीटों पर बिजनेस कम्युनिटी (अग्रवाल और जैन) के दबदबे का जिक्र किया गया है। यह कहा गया कि अग्रवाल और जैन समाज के दावेदारों को नजर अंदाज करना पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। ये अलग बात है कि दोनों समाज की कुल आबादी 1 फीसदी से भी कम है, लेकिन आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है। विधानसभा की करीब 25 सीटों पर अग्रवाल-जैन नेताओं की दावेदारी है।
कहा जा रहा है कि अग्रवाल-जैन दावेदार सरगुजा से लेकर बस्तर तक की सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं। सरगुजा संभाग में पांच सामान्य सीटें हैं। अभी पार्टी से एक भी विधायक नहीं है, लेकिन सभी सीटों पर ताकतवर व्यापारी नेता दावेदारी ठोक रहे हैं। बैकुंठपुर से संजय अग्रवाल का नाम चर्चा में है। संजय केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह के करीबी माने जाते हैं। हालांकि वो अभी रेत ठेका-मारपीट केस के चलते जेल में हैं। इसी तरह मनेन्द्रगढ़ से मुनमुन जैन, प्रेम नगर से बाबूलाल अग्रवाल, भीमसेन अग्रवाल, दावेदारी कर रहे हैं। भीमसेन तो पार्टी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। वो पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन भी थे। भटगांव से अजय गोयल, अंबिकापुर से नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष राजेश अग्रवाल ताल ठोक रहे हैं।
बिलासपुर संभाग की सीटों रायगढ़, खरसिया, बिलासपुर शहर, जांजगीर-चांपा से अग्रवाल नेताओं को स्वाभाविक दावेदारी है। रायगढ़ को तो पार्टी एक तरह से अग्रवाल सीट ही मानी जाती है, और यहां से ज्यादातर समय अग्रवाल समाज से ही विधायक रहे हैं। पार्टी ने पहले विजय अग्रवाल, और फिर रोशनलाल अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था, और दोनों विधायक भी रहे। इस बार पूर्व विधायक विजय अग्रवाल की मजबूत दावेदारी है। खरसिया से कमल गर्ग का नाम चर्चा में है। बिलासपुर शहर से तो अमर अग्रवाल की स्वाभाविक दावेदारी है, जबकि जांजगीर-चांपा से लीलाधर सुल्तानिया का नाम चर्चा में है।
रायपुर संभाग में विशेषकर रायपुर की चारों सीटों पर अग्रवाल-जैन दावेदार हैं। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तो पिछले 35 साल से विधायक हैं। यदि लोकसभा फार्मूले के चलते उन्हें विधानसभा की जगह लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ, तो बृजमोहन की जगह उनके छोटे भाई विजय अग्रवाल दावेदार हो सकते हैं।
रायपुर पश्चिम से पूर्व मंत्री राजेश मूणत, रायपुर उत्तर से छगनलाल मूंदड़ा, केदार गुप्ता, और रायपुर ग्रामीण से राजीव अग्रवाल का नाम चर्चा में है। राजीव अग्रवाल की तो रायपुर ग्रामीण में वॉल राइटिंग पूरी हो चुकी है। कसडोल से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के अलावा उनके पुत्र नितिन अग्रवाल को भी दावेदार माना जा रहा है। महासमुंद सीट से पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा, बसना से संपत अग्रवाल, और डॉ. एनके अग्रवाल का नाम दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है।
संपत तो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 50 हजार से अधिक वोट पाए थे, और भाजपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। इसी तरह धमतरी सीट से पूर्व विधायक इंदर चोपड़ा का नाम चर्चा में है। दुर्ग संभाग की सीटों में से भिलाई की दोनों सीटों पर पूर्व साडा अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल, और उनकी पत्नी अनीता अग्रवाल की दावेदारी है। इसके अलावा वैशाली नगर से संगीत शाह का नाम चर्चा में है। दुर्ग शहर से कांतिलाल बोथरा, साजा से लाभचंद बाफना, बालोद से यशवंत जैन, और राजनांदगांव शहर से खूबचंद पारेख, डोंगरगांव से दिनेश गांधी, और प्रदीप गांधी का नाम लिया जा रहा है। यही नहीं, जगदलपुर शहर से संतोष बाफना मजबूत दावेदार हैं।
पार्टी हल्कों में यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश में छत्तीसगढ़ीवाद जोरों पर है। ऐसे में बिजनेस कम्युनिटी से ज्यादा प्रत्याशी तय करने से पार्टी के खिलाफ माहौल तैयार हो सकता है। मगर पार्टी के भीतर ताकतवर हो चुके अग्रवाल-जैन नेताओं को अनदेखा करना जोखिम भरा भी हो सकता है। देखना है कि पार्टी के रणनीतिकार अग्रवाल-जैन दावेदारों को कैसे संतुष्ट करते हैं।
प्रकृति से निर्मित पात्र
भोजन के लिए पात्रों का अविष्कार किस तरह हुआ होगा, इसकी बानगी बस्तर के एक गांव में रखे गए एक सामूहिक भोज (दार-पानी) में दिखाई दे रहा है। यहां भोजन परोसने के लिए बांस की टोकनी को ही पात्र बनाया गया है। तले में पत्ते लगा दिए गए हैं, जिसके चलते रसेदार भोजन भी नीचे गिरता नहीं। जंगल में इतना कुछ मिल जाता है कि यहां रहने वालों का काम शहर में कोई खरीदारी किए बिना भी काम चल जाता है।
जवानों का एक मदर्स डे...
भानुप्रतापपुर की भीरागांव की एक 80 साल की अकेली महिला का गांव के लोगों ने जीते-जीत इतना ख्याल तो किया कि कोई न कोई उसे रोज खाना लाकर दे देता था, पर जब मौत हो गई तो उसके अंतिम संस्कार के लिए कोई सामने नहीं आया। ऐसी स्थिति क्यों बनी, यह पता नहीं चल सका है मगर मुमकिन है कि सामान जुटाने के लिए खर्च कौन करे, यह संकट आ गया होगा। गांव धुर नक्सल प्रभावित भी है। जब 24 घंटे तक शव उसके घर में ही पड़ा रहा तो छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स के जवानों को इसका पता चला। वे आगे आए और अफसरों से अनुमति लेकर अंतिम क्रिया पूरी की। जवानों ने खुद काठी बनाई, कंधे पर उठाया और मिट्टी खोदी और शव को दफनाया। यह मदर्स डे पर हुआ। जवानों की सराहना हो रही है।
हाईवे पर शराब दुकान
धमतरी में काली मंदिर के पास नेशनल हाईवे पर ही नई शराब दुकान खुल गई। भीड़ के कारण लोगों को परेशानी होने लगी। एक किलोमीटर दूर तक चखना सेंटर। लोगों ने कहा कि यह तो सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का उल्लंघन है। नेशनल और स्टेट हाईवे के 500 मीटर की दूरी तक कोई दुकान नहीं खोली जाएगी। बढ़ती सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर दायर की गई एक याचिका पर शीर्ष अदालत का एक फैसला आया था। नागरिकों ने जब प्रशासन से इसे लेकर आपत्ति दर्ज कराई तो बताया गया कि अब वह नियम शिथिल कर दिया गया है। हाईवे का मतलब सिर्फ उन सडक़ों से है जो किसी शहरी इलाके में नहीं आते। यदि नगरीय निकाय सीमा में कोई दुकान खोलनी है तो उसके लिए पाबंदी नहीं है। तो, फिलहाल इस दुकान के बंद होने की कोई संभावना नहीं है।
दारू में ईडी की तेज रफ्तार
शराब केस में ईडी तेज रफ्तार से कार्रवाई कर रही है। ज्यादातर लोगों को तो कस्टडी पर ले लिया है। दो-चार बचे हैं, उन पर भी शिकंजा कसने की कोशिश चल रही है। ऐसे में केस से जुड़े लोगों के पास बचाव के रास्ते सीमित रह गए हैं। इस केस में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य आरोपी अनवर ढेबर की याचिका पर अहम सुनवाई होनी है।
सुनते हैं कि शराब केस में ईडी के तेज कार्रवाई के पीछे सोची समझी रणनीति भी है। अगर मंगलवार को कोई राहत नहीं मिली, तो आरोपियों के पास बचाव के रास्ते तकरीबन बंद हो जाएंगे। वजह यह है कि कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश लग रहा है। ऐसे में ईडी अवकाश के बीच में प्रकरण पर चालान पेश कर सकती है। ईडी की तैयारी भी कुछ इसी तरह की है।
ईडी ने मुख्य आरोपी अनवर ढेबर को गिरफ्तार करने के साथ जिस तेजी से दो-तीन घंटे के भीतर 12 पेज की ईसीआईआर(यानी मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है। इसमें उस मामले से जुड़ी जानकारी होती है। इसमें आरोप और आरोपी के बारे में पूरी जानकारी होती है।) विशेष अदालत में पेश किया, इससे उनकी तैयारियों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
केस के अन्य आरोपी पप्पू ढिल्लन, और आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी के खिलाफ भी तेज रफ्तार से ईसीआईआर दाखिल की गई। ईडी की कार्रवाई भले ही सवालों के घेरे में हैं, लेकिन सरकार को जवाब देना आसान नहीं है। इस केस के बहाने भाजपा, भूपेश सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है।
शनिवार को पार्टी के मीडिया सेल की बैठक भी हुई, जिसमें सरकार पर हमले के लिए टिप्स दिए गए। कर्नाटक चुनाव की वजह से नेशनल मीडिया में केस को अपेक्षाकृत ज्यादा महत्व नहीं मिला, लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा कवरेज के लिए भाजपा के राष्ट्रीय नेता मेहनत करते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर शराब केस में भाजपा चुनावी फायदा उठाने की कोशिश में अभी से जुट गई है। देखना है आगे क्या होता है।
सबसे ज्यादा गड़बड़ी तो यूपी, मप्र में
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की शिकायत पर चावल घोटाले की केन्द्रीय टीम रायपुर पहुंची, तो मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी। टीम लौट भी गई है, लेकिन चर्चा है कि केन्द्रीय टीम को वैसा कुछ नहीं मिल पाया, जिससे केन्द्रीय जांच एजेंसियां कूद पड़ें।
टीम पहुंची, तो उन्होंने चावल आबंटन के दस्तावेज खंगाले। खाद्य विभाग के लोगों ने उन्हें बताया कि गड़बडिय़ां राशन दूकानों के सत्यापन के बाद सामने आई है। किसी ने कोई शिकायत नहीं की थी। केन्द्रीय टीम को यह भी बताया गया कि प्रदेश में 13 हजार से अधिक राशन दुकानों का सत्यापन कराया गया था, जिसमें से 7 हजार में राशन कम पाया गया।
विस्तृत जांच के बाद 22 एफआईआर हो चुकी है। एक हजार से अधिक राशन दूकानें निरस्त हो चुकी हैं। यही नहीं, 15 हजार टन चावल की वसूली भी हो चुकी है। कार्रवाई अभी भी चल रही है। सुनते हैं कि केन्द्रीय टीम को राशन दुकानों से घोषणा पत्र हटवाने के विभाग के फैसले से समस्या थी।
इस पर विभाग ने उन्हें बताया कि बायोमीट्रिक सिस्टम लागू हो गया है। 96 फीसदी राशन दूकानों में सिस्टम लग गया है। इससे आबंटन और वितरण व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी हो चुकी है। ऐसे में घोषणा पत्र का अब कोई महत्व नहीं है। जहां अभी भी लिए जा रहे हैं वहां से घोषणा पत्र वापस लेने की तैयारी चल रही है। कहा जा रहा है कि चावल-राशन में गड़बड़ी तो सबसे ज्यादा भाजपा शासित राज्य यूपी, और मध्य प्रदेश में हैं जहां गड़बड़ी की पड़ताल करने से बचने के लिए राशन दुकानों का सत्यापन ही रोक दिया गया है।
अब तेरा क्या होगा स्नढ्ढक्र ?
राजनीतिक फेरबदल कई तरह की दिलचस्प परिस्थितियां पैदा करते हैं अब छत्तीसगढ़ में श्वष्ठ जितनी जाँच कर रही है उसका अधिकतर हिस्सा बेंगलुरु पुलिस में दर्ज एक स्नढ्ढक्र पर टिका हुआ है, और कर्नाटक पुलिस सभी रायपुर आकर जेल में बंद सूर्यकांत तिवारी से बात करने की कोशिश भी करके गई जिसके खिलाफ कि यह स्नढ्ढक्र है। अब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार आ गई है, अब इस स्नढ्ढक्र का वहां पर क्या होगा, यह देखना दिलचस्प बात होगी।
अफसरों ने दीवार रोकी
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने अभी पुलिस विभाग की एक बैठक ली और उस बैठक में इस बात की कोशिश की गई कि दुर्ग जिले के किसी थाने के बाउंड्रीवाल के लिए पुलिस कल्याण कोष के पैसे का इस्तेमाल किया जाए। ऐसा पता लगा है कि अफसरों ने इस बात का विरोध किया और इस बात को होने नहीं दिया । अब पुलिस कल्याण कोष से अगर थानों का निर्माण किया जाएगा, या थानों में निर्माण किया जाएगा, तो इससे कल्याण कोष का पूरा मकसद ही परास्त हो जाएगा।
महानदी तो सूख गई, पानी कैसे दें?
कसडोल के पास ली गई यह तस्वीर बता रही है कि जो महानदी बारिश के दिनों में अपनी उफान से कहर बरपाती है उसकी रेत माफियाओं ने क्या हालत कर दी है। धड़ल्ले से जेसीबी से रेत की खुदाई हो रही है और भारी वाहनों से परिवहन हो रहा है, जबकि इन दोनों पर प्रतिबंध है। कसडोल की विधायक शकुंतला साहू और खुज्जी की विधायक छन्नी साहू हाल ही में रेत परिवहन करने वाली गाडिय़ों को छुड़ाने के लिए किस हद तक अफसरों से भिड़ गई थीं, यह सबने देखा है। कसडोल के आसपास जो अवैध रेत खनन हो रहा है उसमें तो ओडिशा से भी गाडिय़ां लाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ का ओडिशा से इस बात का विवाद चल रहा है कि महानदी का पानी यहां रोक दिया जाता है। नदी के इस हिस्से को दिखाकर छत्तीसगढ़ के अधिकारी जरूर कह सकते हैं कि नदी तो बर्बाद हो रही है आप हमसे ज्यादा पानी लेने की जिद क्यों करते हैं?
भाजपा में अब क्या फर्क दिखेगा?
छत्तीसगढ़ भाजपा में कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं। कर्नाटक भाजपा में देखा गया कि चुनाव अभियान की सारी रणनीति दिल्ली से बनी, किसे मुख्यमंत्री बनाएं, किसे किनारे रखें, टिकट किसकी काटी जाए, किसे मिले, सब दिल्ली से तय हो रहा था। पहले यही तरीका कांग्रेस का था जिसका नुकसान भी उसने झेला। कर्नाटक में कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं को महत्व दिया, घोषणा पत्र उनके ही सुझाव पर बनाए गए, टिकट के वितरण में स्थानीय नेताओं की राय को तवज्जो दी। छत्तीसगढ़ भाजपा में भी दिल्ली का नियंत्रण इतना अधिक है कि जब अचानक प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का नाम तय किया गया तो घोषणा के पहले यहां के कई बड़े नेताओं को पता ही नहीं था। संवाद की कमी का जो संकट कभी कांग्रेस में था, वह भाजपा में दिखाई देता है। चार दशकों से भाजपा के साथ रहे, या कहिये उन्हें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में खड़ा करने वालों में से एक नंदकुमार साय की यही शिकायत थी। वे उस कांग्रेस के साथ जाने के लिए विवश हुए जिससे हमेशा लड़ते रहे। अब जब छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को करीब 6 माह रह गए हैं, स्थानीय नेताओं की दिल्ली में पूछ बढ़ सकती है।
सर्विस रोड या पार्किंग रोड?
ये हाल है करोड़ों की लागत से बनी राजधानी के वीआईपी रोड का। सर्विस रोड बनी जनता के लिए है पर इसको अब सर्विस रोड की जगह पार्किंग रोड कहना चाहिए। कुछ होटल कारोबारियों का रसूख पुलिस और प्रशासन पर हावी है। इस तरह से कानून तोडऩे वालों के खिलाफ वे कुछ नहीं करते हैं। उसका डंडा फुटपाथ पर खड़े ठेले खोमचे वालों पर ही चलता है।
अब वो सब टेंशन फ्री हो चुके
शराब घोटाला केस में ईडी ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है। ईडी ने आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी को गिरफ्त में ले लिया है। कुछ और लोगों के खिलाफ कार्रवाई का अंदेशा जताया जा रहा है। इन सबके बीच शराब कारोबार से जुड़े कई और लोग सीधे सुप्रीम कोर्ट की तरफ रूख कर रहे हैं। वजह यह है कि याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट से तत्काल राहत की उम्मीद नहीं है। क्योंकि पहले इसी तरह की पांच याचिकाएं खारिज हो चुकी है।
बताते हैं कि आबकारी सचिव निरंजन दास ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। वैसे तो त्रिपाठी ने भी याचिका लगाई थी, लेकिन प्रकरण पर सुनवाई से पहले ही ईडी ने उन्हें घेर लिया। निरंजन दास सेे भी ईडी एक बार पूछताछ कर चुकी है। अब त्रिपाठी की तरह ईडी उन्हें भी गिरफ्तार न कर ले, इसलिए दास सुप्रीम कोर्ट गए हैं। यही नहीं, कारोबारी सिद्धार्थ सिंघानिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। हालांकि इन याचिकाओं पर अभी सुनवाई की तिथि तय नहीं हुई है।
दूसरी तरफ, शराब केस में डिस्टिलर संचालकों की गिरफ्तारी का अंदेशा जताया जा रहा था। रेड के बाद दो-तीन बार उनसे पूछताछ की गई। अब वो सब टेंशन फ्री हो चुके हैं। चर्चा है कि ये सभी अब गवाह बन चुके हैं। ईडी अब आगे क्या करती है, यह देखना है।
पीएससी अचानक खबरों में
दो साल बाद पीएससी राज्य सेवा परीक्षा की चयन सूची घोषित हुई, तो चयनित अभ्यार्थियों के यहां बधाईयों का तांता लगा है। इस बार अफसर, और नेताओं के बेटे-बेटियों ने अच्छा रैंक हासिल किया है। खुद पीएससी चेयरमैन टॉमन सिंह सोनवानी के दत्तक पुत्र नितिश सोनवानी ने 7वां रैंक हासिल किया। यह भी संयोग है कि दिवंगत पीएससी चेयरमैन खेलनराम जांगड़े की बेटी संतनदेवी जांगड़े भी उनके पद पर रहते डिप्टी कलेक्टर बनी थीं।
राज्यपाल के सचिव अमृत खल्को की बेटी नेहा, और निखिल ने भी टॉप 15 में जगह बनाई। डीआईजी पीएल धु्रव की बेटी साक्षी भी 11वें नंबर पर रही। कांग्रेस नेता सुधीर कटियार की बेटी भूमिका और दामाद शशांक गोयल भी टॉप 15 में आए हैं। बिल्हा के विधानसभा प्रत्याशी रहे कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला के बेटे स्वर्णिम शुक्ला ने 16वां रैंक हासिल किया है। ये सभी डिप्टी कलेक्टर बनेंगे। ऐसे लोग भी हैं, जो पीएससी नतीजे पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर काफी प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं।
भाजपा प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने ट्विटर पर लिखा कि छत्तीसगढ़ पीएससी में कथित नेता-अधिकारी के पुत्र-पुत्रियों के चयनित नतीजों ने प्रदेश के योग्य युवा वर्ग को गहरा आघात पहुंचाया है। पिछले चार साल में ऐसा कई बार हुआ है। पिछले 4 साल के सभी नतीजों की जांच की नितांत आवश्यकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल ने फेसबुक पर लिखा कि आज दो परीक्षाओं की चर्चा है। सीबीएसई और पीएससी छत्तीसगढ़...मैं दूसरी चर्चा में एकदम बाहर हूँ..कौन बधाई का पात्र है कौन भ्रष्टाचार से शामिल हुआ है ...यह तथ्य सामने लाना कठिन है।
उन्होंने लोगों के बीच बातचीत का हिस्सा भी पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि आजकल टॉप 20 सीट्स बिक रही हैं..75 लाख का रेट चल रहा है...कुछ चयनित बड़े अफसरों और पीएससी के करीबियों के हैं। ऐसी चर्चाएं मेहनत से चयनित के बधाई पर भी शक पैदा करती हैं। उन्होंने आगे अपने पोस्ट में कहा कि अगर झूठ है तो बहुत अच्छा है...
लेकिन अगर सच है तो सोचिए भ्रष्टाचार कैसे अधिकारी चयन कर रहा..और ऐसे नाकाबिल अधिकारी चयनित होकर राज्य का क्या भला करेंगे? लोक सेवा आयोग जैसी संस्थाओं पर अगर प्रश्न चिन्ह लगेगा, तो युवाओं का राज्य प्रशासनिक सेवाओं से विश्वास जल्द ही उठेगा और राज्य की व्यवस्था चर्मराएगी। शायद इस पर गंभीरता से बातचीत होना चाहिए ..तथ्यों पर विचार होना चाहिए। चयन परिणामों का विश्लेषण होना चाहिए।
विधायक का अपना निजी फंड
बस्तर केवल सैलानियों का स्वर्ग नहीं है बल्कि उन अफसरों और नेताओं के लिए भी है जिन्हें यहां पहुंचने वाले भारी भरकम फंड के दुरुपयोग की लत है। अब एक मामला ऐसा आया है जिसमें बच्चों की तंदुरुस्ती के हक को विधायक और अफसरों ने मिलकर हड़प लिया।
जनपद पंचायत बास्तानार के प्रि-मैट्रिक बालक छात्रावास में जिम के लिए सामग्री खरीदी गई। करीब 5 लाख के इन उपकरणों को छात्रावास में लगाया जाना था लेकिन यह पहुंच गई विधायक राजमन बेन्जाम के निजी निवास पर। यह अगस्त 2020 की बात है, पर छात्रावास के बच्चों की शिकायत पर अब सामने आई है। गौर करने की बात यह भी है यह खरीदी विधायक निधि से ही की गई थी। इस फंड को विधायक ने अपनी जेब का पैसा समझ लिया। ग्राम के सरपंच, छात्रावास अधीक्षक, जनपद पंचायत के सीईओ और दूसरे अधिकारियों ने इसका भौतिक सत्यापन कर बिल पास भी करा लिया।
जिस बस्तर में जवानों की शहादत से बनी सडक़ों पर भी भारी भ्रष्टाचार होता हो, वहां के लिए 5-10 लाख की लूट को भला कौन गंभीरता से लेगा?
आत्मानंद स्कूलों का क्रेज बढ़ा
पब्लिक स्कूलों की तरह सुविधाओं से लैस किए गए स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में दाखिले की पहले भी होड़ लगी हुई थी लेकिन इस बार 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आने के बाद और मारामारी दिखाई दे रही है। टॉप टेन की सूची में 10 विद्यार्थी इन स्कूलों से हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां भी भेंट-मुलाकात के लिए जा रहे हैं, इस स्कूल की मांग हो रही है। प्राय: नए स्कूलों की वे घोषणा कर भी रहे हैं। अंबिकापुर के ब्रह्मपारा स्थित स्कूल में पहली और दूसरी कक्षा के लिए 54 सीटें हैं, पर आवेदन 800 से ऊपर आ गए हैं। सीटों और आवेदनों के बीच इतना अंतर बताता है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।
क्रोकोडाइल पार्क का हश्र
बारनवापारा अभयारण्य के भीतर एक तालाब में तीन साल पहले एक मगरमच्छ दिखा। वन विभाग के अफसरों को तुरंत सूझा कि यहां क्रोकोडाइल पार्क बना लेना चाहिए। इस बात पर विचार किए बिना कि जंगल के भीतर पार्क की रखवाली कौन करेगा। मगरमच्छ को आहार कौन देगा, उनकी दिनचर्चा और गतिविधियों की निगरानी कौन करेगा। दो मगरमच्छ बाहर से लाए गए। फेंसिंग पर करीब एक करोड़ रुपये खर्च किए गए। पहले एक मगरमच्छ की मौत हो गई, धीरे-धीरे बाकी की जान भी खतरे में पड़ती गई। अब एक नन्हा मगरमच्छ मिला है, जिसे जंगल सफारी रायपुर छोडऩे की योजना बनाई जा रही है। यानि एक करोड़ रुपये तीन साल के भीतर उसी तालाब में डूब गए।
जांच से इंद्रावती में हडक़ंप
चावल घोटाले की जांच के लिए केन्द्रीय टीम इंद्रावती भवन पहुंची, तो खाद्य महकमे में हडक़ंप मच गया। जांच टीम देर रात तक फाइलें खंगालती रही, और अफसरों से भी पूछताछ की। बताते हैं कि चावल की अफरा-तफरी का खेल कोरोनाकाल में हुआ था, और इसका खुलासा तब हुआ जब राज्य सरकार ने राशन दूकानों का सत्यापन कराया। लेकिन चर्चा है कि गड़बड़ी को सार्वजनिक करने में विभाग के तीन रिटायर्ड अफसरों की अहम भूमिका रही है।
सुनते हैं कि रिटायर्ड अफसर सेवा में रहते असंतुष्ट रहे हैं। और जब सेवा से पृथक हुए, तो विभाग की गड़बडिय़ों को उजागर करने का बीड़ा उठाया। चर्चा है कि रिटायर्ड अफसरों ने ही कागजात विपक्ष के नेताओं तक पहुंचाए। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह सक्रिय हुए, और गड़बडिय़ों पर विधानसभा में जोरशोर से मामला उठाया। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने माना था कि राशन दूकानों के सत्यापन में गड़बडिय़ां सामने आई है। लेकिन जांच रिपोर्ट उनसे पहले तत्कालीन सीएम तक पहुंच गई। इसके बाद उन्होंने बिना देर किए कुछ और बिन्दुओं को जोडक़र सीबीआई जांच के लिए केन्द्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को चिट्ठी लिख दी।
आगे क्या होगा, ये तो केन्द्रीय टीम की जांच रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। मगर जांच के मसले पर केन्द्र, और राज्य सरकार के बीच टकराव के आसार दिख रहे हैं। वजह यह है कि राज्य सरकार ने गड़बडिय़ों की जांच एसीबी-ईओडब्ल्यू से करा रही है। गबन हुए चावल की वसूली का काम भी चल रहा है। लेकिन संभव है कि चुनावी साल में केन्द्र राज्य की कार्रवाई से संतुष्ट न हो, और केस सीबीआई के हवाले कर दे। जिसे राज्य सरकार ने बैन कर रखा है। कुल मिलाकर चावल घोटाले के मसले पर प्रदेश की राजनीति गरम रहेगी।
सालों बाद दिखा भेडिय़ा
भेडिय़ों पर कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं। एक जंगल गए चरवाहे की कहानी, भागो भेडिय़ा आया.. तो बचपन में सुनाई जाती थी जिसमें सीख यह थी कि यदि बार-बार झूठ बोलोगे तो सच को भी लोग सच नहीं मानेंगे। इंसानों के बीच एक खास तरह के असामाजिक तत्व, दरिंदे या भेडिय़ा कह दिये जाते हैं। मगर असल भेडिय़ा एक खतरनाक किंतु सामाजिक प्राणी है। सामाजिक इस मायने में कि ये झुंड बनाकर ही शिकार करते हैं। किस्सों कहानियों और गांव शहर में मौजूद भेडिय़ों के अस्तित्व पर पिछले कुछ वर्षों से संकट चल रहा है। देश में अब कुल 3100 भेडिय़े रह गए हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी कभी ये बहुतायत में पाये जाते थे। वन्य जीव प्रेमियों को यह जानकर खुशी हुई कि बस्तर के कांगेर नेशनल वैली पार्क में कई साल बाद हाल ही में दिखा है। वन विभाग के लगाए ट्रैप कैमरों में तीन भेडिय़े पानी पीते कैद हुए हैं। भेडिय़ों की मौजूदगी बताती है कि उनके लिए आहार जैसे हिरण सहित चरने वाले कई जानवर मौजूद हैं। बताया गया है कि वन विभाग ने स्थानीय आदिवासी युवकों को पेट्रोलिंग गार्ड नियुक्त किया है। यह प्रयोग जंगल और वन्यप्राणियों की हिफाजत में मददगार साबित हो रहा है।
मोदी अब छत्तीसगढ़ आएंगे?
वैसे तो चुनावी साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ दौरा कई बार हो सकता है, चुनाव प्रचार के पहले भी। वहीं, इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि उनका अगला दौरा बस्तर का होगा। यहां का नगरनार स्टील प्लांट लगभग तैयार है और जल्दी ही कमीशनिंग होनी है। परियोजना का निर्माण कार्य काफी लंबा खिंचा। सन् 2003 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी आधारशिला रखी थी। करीब 23 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है। इसलिए उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री से कम में बात बनेगी नहीं। यदि उनका दौरा फायनल हो जाता है तो बस्तर के विकास में एक कड़ी और जुड़ जाएगी। साथ ही भाजपा को बस्तर और छत्तीसगढ़ में अपने लिए अनुकूल वातावरण बनाने का मौका भी मिलेगा।
घोषणा पत्र को सिंहदेव की ना
कांग्रेस ने सन् 2018 में घोषणा पत्र तैयार करने को चुनाव अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। एक समिति बनी जिसके अध्यक्ष तब के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव थे। करीब एक साल तक उन्होंने प्रदेशभर में दौरा किया। विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक संगठनों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं से बात कर सुझाव लिए। ऐतिहासिक जीत के बाद कुछ समूहों, संगठनों की मांगें पूरी होती गई, कुछ अब तक नहीं हो पाई हैं। अनियमित कर्मचारियों की मांगें अब तक अधूरी हैं। पर इन चार-साढ़े चार सालों में सिंहदेव को जगह-जगह एक मुसीबत का सामना करना पड़ा कि जब घोषणा पत्र आपने तैयार की, तो मांगें पूरी क्यों नहीं हो रही है। सरकार में तो आप ही हैं, वादे आपने ही किए। अंबिकापुर में उनकी बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें वे कह रहे थे कि सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं तो मांग पूरी कैसे हो। सिंहदेव को बार-बार लोगों को समझाना पड़ा कि मैंने सिर्फ घोषणा पत्र तैयार किया है, निर्णय तो पूरे मंत्रिमंडल और सरकार को लेना है। मेरे हाथ बंधे हैं।
ऐसी परिस्थिति में मीडिया ने उनसे राजनांदगांव में सवाल पूछ लिया कि क्या अगली बार फिर घोषणा पत्र आप ही तैयार करेंगे? सिंहदेव ने नहीं कहा। यह भी कहा कि वे ऐसी किसी समिति में नहीं हैं। सुझाव मांगा जाएगा तो जरूर दे देंगे। वैसे यह सवाल भी गैरजरूरी था क्योंकि उन्होंने अभी तक तो चुनाव ही लडऩे का मन नहीं बनाया है।
ईडी का अटैचमेंट कमजोर तो नहीं?
ईडी ने कोल स्कैम केस में प्रेस नोट जारी कर अफसर, कारोबारी, और नेताओं की संपत्ति अटैच करने की सूचना दी है। मगर जानकारों को लगता है कि कुछ अटैचमेंट की कार्रवाई हड़बड़ी में की गई है।
मसलन, विधायक देवेन्द्र यादव की जो संपत्ति अटैच की गई है, वह पुश्तैनी बताई जा रही है। युवा आयोग के सदस्य विनोद तिवारी के जिस दूकान को अटैच किया गया है, वह तो 2015 में खरीदी थी, और उस पर 30 लाख का लोन भी है।
यही नहीं, कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह के जिस घर को अटैच करने की कार्रवाई की गई, उसे बनाने में आरपी का कोई आर्थिक योगदान नहीं दिखता है। कम से कम कागजात तो यही बता रहे हैं। दरअसल, आरपी सिंह की पत्नी प्रोफेसर है और सैलरी भी दो-ढाई लाख रूपए महीना है।
आरपी सिंह की पत्नी के नाम पर वर्ष 2006 में दो प्रापर्टी थी जिसे बेचकर उन्होंने नया मकान बनवाया। इस मकान में पति का नाम भी साथ रखा। मकान निर्माण के लिए अतिरिक्त राशि जुटाने के लिए दोनों ने बैंक से लोन भी लिया, और मकान के पेपर बैंक में मॉडगेज है।
बावजूद इसके ईडी ने मकान को अटैच कर लिया है। आरपी सिंह, और विनोद तिवारी, दोनों ही काफी मुखर रहे हैं, और पिछली सरकार के खिलाफ काफी शिकायतें कर रखी हैं। इस पर ईओडब्ल्यू-एसीबी जांच कर रही है। तीनों खुले तौर पर ईडी की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित करार दे रहे हैं। साथ ही ईडी की कार्रवाई को हाईकोर्ट, और ट्रिब्यूनल में चुनौती देने के लिए कानूनी सलाह ले रहे हैं।
दूसरी तरफ, आईएएस रानू साहू के खिलाफ ईडी के प्रापर्टी अटैचमेंट की कार्रवाई पहली नजर में पुख्ता मानी जा रही है। वजह यह है कि खुद रानू साहू ने कुछ साल पहले तक राज्य सरकार को अपने नाम से कोई प्रापर्टी नहीं होने की सूचना दी थी। इसके बाद कोरबा कलेक्टर रहते कई प्रापर्टी खरीदी है, जो कि घोषित आय से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में उन्हें खुद को पाक साफ बताना आसान नहीं रहेगा। देखना है आगे क्या होता है।
कारोबारियों के क्या उसूल?
सीएम भूपेश बघेल ने शराब घोटाला केस में डिस्टिलर, और ईडी के बीच साठगांठ का शक जताया है। सीएम की टिप्पणी की खूब चर्चा हो रही है। प्रदेश में आधा दर्जन डिस्टिलर हैं, और ये तीन घरानों के नियंत्रण में है। इनमें से 2 तो भाटिया हैं, और एक केडिया। ईडी ने भाटिया के प्रतिष्ठानों में रेड डाली थी। साथ ही डिस्टिलर के अफसरों के यहां भी कार्रवाई हुई थी।
सुनते हंै कि तीनों डिस्टिलर संचालकों की आपस में बोलचाल नहीं के बराबर थी। केडिया ने तो सीधे कभी बाकी दोनों सेे बातचीत तक नहीं की थी। रेड के बाद अब स्थिति बदल गई है। तीनों आपस में मिलजुल रहे हैं, और लगातार बैठकें हो रही है। चूंकि शराब तो डिस्टिलर में बनती है, और स्वाभाविक है पैसा भी डिस्टिलर संचालकों ने ज्यादा कमाते हैं, और कमाया भी है। तीनों ही अपार राजनीतिक संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में खुद को बचाने के लिए अगर पाला बदल लिया हो, तो भी हैरानी नहीं होगी, कारोबार के कोई लंबे-चौड़े उसूल नहीं होते हैं, कमाई उसका अकेला उसूल होता है।
बिलासपुर, कोरबा का सूची से बाहर होना
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के बोर्ड नतीजों पर नजर डालने से यह दिख रहा है कि छोटे शहरों गांवों के कई स्कूलों में अच्छी पढ़ाई हो रही है और छात्र भी मेहनत कर रहे हैं। 10वीं बोर्ड की प्रावीण्य सूची में तो पहले से चौथे तक जशपुर के ही छात्र छात्राओं का नाम है।
जशपुर जिले में स्कूल शिक्षा विभाग को लेकर बहुत अच्छी खबरें नहीं आती रही हैं। एक छात्रावास में मूक बधिर बच्चों से यौन उत्पीडऩ और दुष्कर्म की घटना हुई थी। शराब पीकर स्कूल पहुंचने वाले कई शिक्षकों की कई शिकायतें हुई और उनको निलंबित भी किया गया। इनमें एक महिला शिक्षक भी थीं। एक और शिक्षिका के खिलाफ अभी-अभी छात्रों को धमकाने का मामला भी सामने आया था। रिजल्ट आने के एक दिन पहले ही यहां के जिला शिक्षा अधिकारी जेके प्रसाद को ट्रांसफर, पोस्टिंग और स्वामी आत्मानंद स्कूलों में भर्ती में गड़बड़ी के आरोपों के चलते निलंबित किया गया।? यहां दूसरे जिलों की तरह कई ऐसे स्कूल हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं। और कहीं दो-दो हेड मास्टर प्रभार के लिए झगड़ा कर रहे हैं।
कांकेर, सरगुजा, गरियाबंद जैसे जिलों के ग्रामीण स्कूलों से भी प्रावीण्य सूची में बच्चों ने जगह बनाई। इसके विपरीत दुर्ग जिले से दसवीं बोर्ड में केवल एक छात्रा आदिवासी वर्ग की सानिया मरकाम को जगह मिली है और 12वीं में किसी को नहीं। बिलासपुर और कोरबा दो ऐसे जिले हैं जहां से 10वीं 12वीं के 48 लोगों की सूची में एक भी स्कूल का नाम नहीं आ पाया। राजधानी रायपुर से 10वीं 12वीं बोर्ड की प्रावीण्य सूची में कुल 5 नाम आए हैं। राजधानी में स्कूलों और विद्यार्थियों की संख्या के लिहाज से यह संख्या कुछ कम ही है।
इस मेरिट लिस्ट का मतलब यह है ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के बच्चे कम संसाधनों के बावजूद अच्छी मेहनत कर रहे हैं। बहुत से ऐसे शिक्षक और स्कूल हैं जहां बच्चों के करियर की तरफ ध्यान दिया जा रहा है। एक और निष्कर्ष या निकाला जा सकता है कि स्वामी आत्मानंद स्कूलों का फैसला उपयोगी साबित हो रहा है क्योंकि इसके 10 विद्यार्थियों ने टॉप टेन में जगह बनाई है। दूसरी ओर कुल मिलाकर सरकारी स्कूलों के बच्चे कम सफल हुए हैं। 48 टॉप टेन की सूची में 27 विद्यार्थी निजी स्कूलों से निकले हैं। स्वामी आत्मानंद स्कूलों का प्रदर्शन मेरिट में नहीं होता तो सरकारी स्कूलों की संख्या और कम होती।
डेढ़ लाख बच्चे फेल हो गए
10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा में शामिल 6 लाख 53321 बच्चों का परिणाम जारी किया गया है। इनमें से 5 लाख 6221 पास हो पाए। दसवीं में करीब 18 हजार तो 12वीं में 23 हजार छात्र पूरक की श्रेणी में हैं। फेल परीक्षार्थियों की संख्या मामूली नहीं है। क्या ये सब परीक्षा को लेकर लापरवाह रहे होंगे। सिलेबस पूरा नहीं होना, विषय विशेष के शिक्षकों की स्कूलों में कमी, शिक्षकों का नियमित रूप से कक्षाएं नहीं लेना और उनकी गैरहाजिरी पर अफसरों का ध्यान नहीं देना भी हो सकता है। 1 लाख 47 हजार बच्चों का फेल हो जाना यह भी बताता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई की क्षमता पर जो असर हुआ है उसकी भरपाई पूरी तरह नहीं हो पाई है। छात्रों को ऑनलाइन परीक्षा लेकर उदारता से पास किया, पर सभी रिपोर्ट बताती है कि उनकी लर्निंग क्षमता पर इसके चलते बड़ा असर हुआ। अगली कक्षा में स्कूल आ गए पर पिछली ऑनलाइन पढ़ाई के कारण उस साल की जो चीजें याद होनी चाहिए, नहीं हैं। शिक्षा विभाग पिछले साल से बेहतर रिजल्ट आने को लेकर खुशी जता रहा है पर अफसरों को इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के विफल होने की वजह तलाश करनी चाहिए और उनके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
बसों की चली खूब मनमानी
रायपुर में एक सप्ताह तक चले रेलवे के सुधार कार्य के चलते हजारों लोगों ने आसपास की दूरी सडक़ मार्ग से नापने का विकल्प चुना। इसका बस चालकों और एजेंटों ने खूब फायदा उठाया और यात्रियों को चूना लगता रहा। एक यात्री ने सोशल मीडिया पर अपनी तकलीफ बयान की है। 9 मई की शाम वे बिलासपुर जाने के लिए भाटागांव बस अड्डा पहुंचे। परिवार साथ था, इसलिए सीट मिलने पर ही चढऩा चाहते थे। खचाखच रवाना हो रही एक बस एजेंट ने कहा- बस आगे 10-15 किलोमीटर बाद सीट मिल जाएगी, इसके बाद कोई बस नहीं है। रात में परेशान हो जाओगे। उम्मीद में यात्री परिवार सहित चढ़ गए। रास्तेभर कहीं जगह नहीं दी गई। कंडक्टर बिलासपुर आते तक आश्वासन ही देते रह गया। एजेंट ने बताया कि पीछे बिलासपुर के लिए कोई बस नहीं, रायपुर से इसके बाद कई बसें बिलासपुर पहुंची। उनसे किराया ठीक लिया गया या अधिक यह भी मालूम नहीं, क्योंकि साथी यात्री अलग-अलग किराया बता रहे थे।
यहां भी रुपयों की बारिश होगी?
मध्यप्रदेश में इस साल के जनवरी माह से मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना लागू की गई है। इसमें 1963 के बाद पैदा हुई विवाहित, परित्यक्ता, तलाकशुदा महिलाओं को यदि उसके परिवार की आमदनी 2.5 लाख रुपये से कम है तो 1000 रुपये की सहायता हर महीने दी जाएगी। इसके जवाब में कांग्रेस ने प्रत्येक विधानसभा में फॉर्म भरवाओ अभियान वहां शुरू किया है। महिलाओं से वादा किया जा रहा है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो 500 रुपये में गैस सिलेंडर दिया जाएगा और हर माह 1500 रुपये की मदद की जाएगी। राजस्थान सरकार ने भी बीपीएल परिवारों के लिए 500 रुपये में गैस सिलेंडर की व्यवस्था पिछले बजट से कर दी है। 75 लाख परिवारों को फ्री राशन किट देने की योजना भी लाई गई है।
दोनों राज्यों में महंगाई से राहत देने के नाम पर इन योजनाओं को लाया गया है। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार ने सीधे-सीधे महंगाई का नाम नहीं लिया है क्योंकि यह दिल्ली और प्रदेश में चल रही उनकी ही सरकार के खिलाफ कहा जाता। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का मकसद बताया गया है। राजस्थान में इसे महंगाई राहत नाम दिया गया है। कमलनाथ के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में चल रहे अभियान को महंगाई राहत बताया गया है।
इस साल नवंबर-दिसंबर में जिन पांच राज्यों में (मिजोरम, तेलंगाना सहित) चुनाव होने जा रहे हैं उनमें राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस दुबारा सत्ता में लौटने की उम्मीद कर रही है। केवल एक छत्तीसगढ़ ही बच गया है जहां ऐसी सीधे नगद राहत देने की कोई नई घोषणा चुनाव की तैयारी में नहीं की गई है। अभी यहां 2018 के वादों को ही पूरा करने का सिलसिला चल रहा है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ता 4 साल गुजरने के बाद कुछ जटिल प्रावधानों के साथ शुरू कर दिया गया है। श्रमिकों को 50 किलोमीटर तक के लिए यात्रा पास देने की घोषणा अभी एक मई को की गई। किसानों के लिए बोनस और न्याय योजना के तहत मिल रही राहत सरकार बनने के बाद से ही जारी है। पर, हाथ में नगद देने, 500 रुपये में सिलेंडर देने का महिलाओं का अलग ही आकर्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह की राहत को रेवड़ी बताया था। इसे लेकर एक केस सुप्रीम कोर्ट में भी लग चुका है। चुनाव आयोग के सामने भी मसला विचाराधीन है। पर, मध्यप्रदेश, राजस्थान और इस समय हो रहे कर्नाटक चुनावों में किए गए वादे बता रहे हैं कि किसी दल को इससे परहेज नहीं है। चाहे इसके एवज में टैक्स चुकाने वालों का जीवन-यापन कठिन होता जाए और लोगों की सरकार पर आश्रित होते जाने का खतरा क्यों न हो।
यूक्रेन लौटने का जोखिम कैसे उठाएं?
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध एक साल से अधिक हो चुका है। मेडिकल पढ़ाई के लिए छत्तीसगढ़ से भी अनेक युवा यूक्रेन गए थे। जिन लोगों की फाइनल ईयर की पढ़ाई पूरी हो गई थी, उनको दिल्ली बुलाकर डिग्री दे दी गई, लेकिन बस्तर के 40 छात्र ऐसे हैं जिनका कोर्स अधूरा रह गया है। इन्हें ऑनलाइन पढ़ाई का तो मौका मिल गया। कुछ लोगों ने ऑनलाइन को ठीक नहीं माना तो पोलेंड जाकर वहां बाकी पढ़ाई पूरी की, पर अब इन सबसे कहा जा रहा है कि फाइनल एग्जाम देने के लिए उन्हें यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचना होगा।
जिन छात्रों ने बमों की बमबारी के बीच बंकरों में छिपकर जान बचाई, कितनी ही मुसीबतों का सामना कर किसी तरह देश लौट पाए, वे उसी देश में दोबारा कैसे जाएं? वे उम्मीद कर रहे हैं कि भारत सरकार कोशिश करे और दिल्ली में ही एग्जाम सेंटर मिल जाए। फिलहाल ऐसी कोई पहल हुई नहीं है और इन छात्रों को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है।
मानसून बर्ड ‘चातक’ समय से पहले
मानसून का संदेश लेकर चातक पक्षी छतीसगढ़ पहुंच गया है। समय से पहले, शायद पिछले कुछ दिन मौसम में आए उतार-चढ़ाव की वजह से। प्राय: यहां पर यह पक्षी मई के आखिरी सप्ताह में या जून के पहले हफ्ते में दिखना शुरू होता है। चातक की पीहू-पीहू पर कई मार्मिक गीत बने हैं। इस आवाज की विरह वेदना से तुलना होती है। यह तस्वीर आज ही रायपुर में खारून नदी के किनारे फोटो जर्नलिस्ट रूपेश यादव ने ली है। ([email protected])
बस, सिर्फ पांच टिकट...
चुनाव नजदीक आते ही अलग-अलग समाज के लोगों ने विधानसभा टिकट में अपनी हिस्सेदारी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इसमें सिंधी समाज सबसे आगे है।
सिंधी समाज के कुछ प्रमुख नेता तो सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं से भी मिलकर आ गए। बताते हैं कि सीएम से मिलने सिंधी अकादमी के चेयरमैन राम गिडलानी की अगुवाई में पहुंचे थे। सिंधी नेताओं ने सीएम से आबादी को देखते हुए विधानसभा की पांच टिकट देने की मांग की।
सीएम ने मजकिए लहजे में कहा बताते हैं कि बस, पांच टिकट। फिर उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने समाज के लोगों को पद दिया है। भगवान झुलेलाल जयंती पर अवकाश घोषित किया है। सिंधी नेताओं ने माना भी, कि सरकार ने समाज के हितों का ध्यान रखा है।
सीएम ने उनकी मांगों पर विचार का भरोसा दिलाया है। ये अलग बात है कि कांग्रेस में जितने भी सिंधी लीडर हैं, उनका जमीनी आधार सीमित है। यही वजह है कि पिछले चुनाव में समाज से एक भी टिकट नहीं दी गई थी। अलबत्ता, सरकारी संस्थानों में एक दर्जन सिंधी नेताओं को पद दिए गए हैं।
सीएम से मिलने के बाद सिंधी नेता, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव, अजय जामवाल, और पवन साय से मिलने गए। वहां भी पांच टिकट की मांग रखी। सिंधी नेताओं ने उनसे कहा कि प्रदेश में 10 लाख के आसपास है। पिछली बार रायपुर उत्तर से एकमात्र टिकट दी गई थी। जबकि पहले राजनांदगांव शहर से भी सिंधी समाज से प्रत्याशी तय किए जाते थे।
सिंधी नेताओं ने सुझाव दिया कि रायपुर उत्तर के अलावा रायपुर पश्चिम व ग्रामीण में भी सिंधी समाज के वोटर अच्छी खासी तादात में हैं। ऐसे में इन सीटों पर भी पार्टी सिंधी समाज से प्रत्याशी कर सकती है। भाजपा नेताओं ने भरोसा दिलाया कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा। देखना है कि दोनों प्रमुख दल सिंधी समाज से प्रत्याशी बनाती है या नहीं।
भाजपा नेता भी घेरे में !!
शराब-कोल, और हवाला कारोबार से जुड़े लोगों पर ईडी ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है। चर्चा तो यह भी है कि जांच सही ढंग से हुई, तो कम से कम तीन भाजपा नेता भी घेरे में आ सकते हैं। राजनीतिक हल्कों आरोप लगते हैं कि किसी भी भाजपा नेता के यहां ईडी-आईटी की टीम नहीं जाती है।
सीएम भूपेश बघेल तो सेंट्रल एजेंसियों को भाजपा का एजेंट तक करार देने में नहीं हिचक रहे हैं। इससे परे छत्तीसगढ़ में अभी सिर्फ भाजपा नेता नितिन अग्रवाल को ही जांच पड़ताल का सामना करना पड़ा है। जिन तीन नेताओं के यहां ईडी कभी भी पहुंच सकती है उनमें से एक तो रायपुर जिले के प्रमुख पदाधिकारी हैं।
सुनते हैं कि जो लोग अभी ईडी की गिरफ्त में हैं, उनसे भाजपा नेताओं के कारोबारी रिश्ते हैं। एक ने तो मोबाइल भी बंद कर रखा है। यही नहीं, ईडी की एक पत्र की खूब चर्चा हो रही है। यह पत्र प्रशासनिक प्रमुख को भेजा गया है, जिसमें शराब-कोल के हितग्राहियों में अफसरों के साथ-साथ मीडिया जगत के लोगों का भी नाम है। देखना है कि पत्र सार्वजनिक होता है या नहीं।
बदहाल स्टेशन में हजारों यात्री
रेलवे ने 3 मई से 10 मई तक निर्माण कार्यों के चलते रायपुर स्टेशन पर अधिकांश ट्रेनों का स्टॉपेज रोक रखा है। मंगलवार के लिए तो यह भी अनाउंस किया गया है कि यहां पर एक भी ट्रेन नहीं रुकेगी। हावड़ा और कटनी मार्ग की रायपुर से गुजरने वाली ट्रेनों को उरकुरा रेलवे स्टेशन पर रोका जाएगा। जाहिर है कि इतने लंबे ब्रेक के लिए काफी पहले से रेलवे ने तैयारी की होगी, लेकिन यह किस तरह से की गई है यह उरकुरा स्टेशन से रवाना होने वाले यात्री बता रहे हैं। यहां पर रेलवे ने किसी तरह के अस्थायी शेड, कुर्सियां आदि तो लगाया नहीं है। इसके अलावा पीने का पानी उपलब्ध नहीं है, टोटियां टूटी हुई हैं। ट्रेन घंटों विलंब से चल रही हैं। यात्री समय पर पहुंचकर चिलचिलाती धूप में खड़े होते हैं। रायपुर स्टेशन से जिन बसों को यात्री लाने ले जाने के लिए लगाया गया है उसका भी काफी इंतजार करना पड़ रहा है। मतलब यह है कि यात्री सेवा रेलवे की प्राथमिकता में है ही नहीं।
सिलेब्रिटी के बीच सिलेब्रिटी परिवार
आईपीएस आरिफ शेख ने सोशल मीडिया पर कॉमेडियन कपिल शर्मा के साथ अपने परिवार की फोटो शेयर की है। अपनी पत्नी आईएएस शम्मी आबिदी और दोनों बच्चों के साथ वे इसमें दिखाई दे रहे हैं। सोनी टीवी पर शनिवार रविवार को आने वाले द कपिल शर्मा शो की शूटिंग में वे परिवार के साथ दर्शक दीर्घा में बैठे। इसके पहले भी शेख सोशल मीडिया पर सलमान खान, रवि किशन, मोहम्मद अजहरूद्दीन जैसे क्रिकेट और बॉलीवुड के सितारों के साथ फोटो डालते रहे हैं। खुद भी सिलेब्रिटी हैं, पर दूसरे सिलेब्रिटीज से मिलने जुलने उनके साथ तस्वीरें लेने का शौक बना हुआ है।
स्कूली बच्चों की बेबाक रिपोर्टिंग
बेमेतरा जिले के चारभाठा के सरकारी स्कूल की छात्राओं ने एक मार्मिक चि_ी एसडीएम, प्रशिक्षु आईएएस सुरुचि सिंह को लिखी। बताया कि हमारे स्कूल के पास शराब अवैध रूप से बिकती है। शराबी यहां से गुजरते हैं और माहौल खराब करते हैं। चि_ी पर एक्शन लेते हुए एसडीएम ने छापा मारा और अवैध शराब बेचने वालों को गिरफ्तार कराया। बताते हैं कि इस स्कूल के बच्चे सच कहने से खौफ नहीं खाते। एक प्रधानाध्यापक ने उन्हें साप्ताहिक अखबार निकालने का टास्क दिया। उसमें मेरा प्यारा स्कूल, पूजनीय गुरुदेव जैसे आदर्श निबंध उसमें नहीं छपे छात्रों ने लिखा-टीचर गुटका खाकर आते हैं, इधर-उधर थूकते हैं। स्कूल की दीवार को गंदा करते हैं। मध्यान्ह भोजन देने वाली माता जब भोजन लेकर आती है तो ऐसा लगता है कि वह खाना खिलाने नहीं पीटने आ रही है। दाल पतली होती है। वगैरह-वगैरह। अब स्कूली अखबार का छपना बंद है पर व्यवस्था ठीक करने में छात्र छात्राएं लगी हुई हैं। इसी का नतीजा था कि उन्होंने अवैध शराब की बिक्री रुकवाई। ([email protected])
ढेबर से अधिक वकील परेशान
आबकारी घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी ने होटल कारोबारी अनवर ढेबर को मुख्य आरोपी तो बना लिया है, लेकिन कहा जा रहा है कि अब तक की पूछताछ से अनवर के वकील ज्यादा परेशान हो रहे हैं। जिला अदालत ने अनवर के वकील की मौजूदगी में पूछताछ की अनुमति दी है। पूछताछ की वीडियोग्राफी भी हो रही है।
सुनते हैं कि ईडी के अफसरों ने शनिवार, और रविवार को रात 2 बजे तक पूछताछ की। रोजाना 12-15 घंटे की लंबी पूछताछ से अनवर का तो पता नहीं, लेकिन साथ रहने वाले वकील हलाकान हैं। वो अब कोर्ट की तरफ रूख करने वाले हैं। अनवर के वकीलों का तर्क है कि पूछताछ के लिए समय नियत होना चाहिए। तडक़े तक पूछताछ चलने से अगले दिन की उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है। अब आगे क्या होता है, यह तो एक-दो दिन बाद पता चलेगा।
आबकारी मामला कहां-कहां
सीएम भूपेश बघेल ने ईडी के आबकारी घोटाले के आरोपों का तीखा प्रतिवाद किया है। ईडी ने आबकारी की जांच के लिए बड़ी टीम लगाई है। इस केस में संभवत: 12 मई को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता अनवर ढेबर ने ईडी के समंस को कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका लगने के बाद ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
अनवर को आबकारी से जुड़े केस में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट से राहत मिली हुई है। अब सुप्रीम कोर्ट पर निगाहें है। दूसरी तरफ, ईडी ने प्लेसमेंट एजेंसी के संचालक सिद्धार्थ सिंघानिया से लगातार पूछताछ कर रही है। लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि जल्द ही ईडी कुछ और लोगों की गिरफ्तारी कर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा हुई आक्रामक
छत्तीसगढ़ के आबकारी कारोबार की ईडी तो जांच कर रही है, लेकिन अब घोटाला राजनीतिक रंग ले रहा है। चर्चा है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश इकाई को इस प्रकरण को हर स्तर पर उठाने के निर्देश दिए हैं। कर्नाटक चुनाव में भी भाजपा के नेता इस केस को सभाओं में प्रचारित कर रहे हैं।
भाजपा के रणनीतिकार छत्तीसगढ़ के आबकारी केस की तुलना दिल्ली के शराब घोटाले से कर रहे हैं, और उससे बड़ा बता रहे हैं। दिल्ली में तो इस केस में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुई है। ये सभी अभी जेल में है। भाजपा के लोग भी इसी अंदाज में छत्तीसगढ़ में कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन यहां सीएम ने जिस तरह पलटवार किया है, और प्रकरण से जुड़े लोग अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। इससे यह मामला उलझ गया है। चाहे कुछ भी हो, मई के महीने में तापमान बढऩे के साथ-साथ छत्तीसगढ़ का राजनीतिक पारा भी गरम रहेगा।
जवानों में कामयाबी की खुशी
अपने-आप में हम उलझे होते हैं। जो हमारी हिफाजत करते हैं उनका खयाल भी नहीं करते। चाहे उनकी अरनपुर की तरह सामूहिक शहादत क्यों न हो जाए। मगर जो जवान मैदान पर होते हैं, आप परवाह करें न करें-अपनी कामयाबी पर जश्न मना लेते हैं। यह 3 मई की तस्वीर है जब गरियाबंद में सीआरपीएफ के 207 कोबरा जवानों की टीम ने माओवादियों से लोहा लिया और उन्हें खदेडक़र भगा दिया। एक शव मिला और ढेर सारे हथियार भी मिले।
‘आप’ जो दिल्ली से चल रही
छत्तीसगढ़ मे तीसरी ताकत के तौर पर पैर जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेताओं को इस बात का बड़ा अफसोस है कि किसी को फ्री हैंड दिया ही नहीं गया है। छत्तीसगढ़ के पदाधिकारियों ने ऐसे नेताओं की एक सूची बनाई जो अपने-अपने दल से नाराज हैं। कांग्रेस के कुछ नेता हैं, कुछ भाजपा के। यह सूची महीनों पहले दिल्ली भेजी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ का दौरा करने, प्रभार संभालने वाले आप नेताओं को भी दे दी गई। पर इनको पार्टी में लाने की कोई कोशिश नहीं हुई, दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। बोले कि केजरीवाल से पूछेंगे, और उनसे बात करने का वक्त नहीं मिल पाता।
आप के एक बड़े पदाधिकारी का कहना है कि हमें अगले चुनाव में टिकट मिली तो अपनी तय सीट से ठीक-ठाक वोट तो पा लेंगे, पर राज्य में तीसरी ताकत के तौर पर खड़ा करने के लिए कुछ ऐसे नाम चाहिए जिनकी जमीन पर दशकों से पकड़ है, चेहरा जाना-पहचाना हो। छवि साफ-सुथरी हो-भ्रष्टाचार का कोई आरोप न हो। बात ही बात में वे धर्मजीत सिंह, नंदकुमार साय, टीएस सिंहदेव और नोबेल वर्मा जैसे कई नाम ले गए। पर बात यह है कि इनमें से एक धर्मजीत सिंह किसी दल में आज नहीं हैं, साय कांग्रेस में जा चुके, सिंहदेव पार्टी से नाराज तो हैं पर किसी सूरत में कांग्रेस छोडऩे के लिए राजी नहीं हैं।
पठान और केरला स्टोरी
द केरला स्टोरी मूवी रायपुर के पीवीआर और दूसरे मल्टीप्पेक्स सहित धमतरी, भाटापारा और छत्तीसगढ़ के अन्य देहातों में शान से चल रही है। कहीं कोई हंगामा नहीं हो रहा है, कोई तोडफ़ोड़ नहीं। फिल्म का प्रदर्शन बंद करने का कोई एक आंदोलन दिखाई नहीं दे रहा है। मध्यप्रदेश में इस मूवी को टैक्स फ्री कर दिया गया है। एक मंत्री ने वहां महिलाओं के लिए फ्री थियेटर भी बुक कर दी है। पर छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है। यह सब ब्यौरा इसलिए क्योंकि इसी साल जब जनवरी में पठान मूवी आई थी तो रायपुर के कई थियेटरों पर बजरंग दल ने पोस्टर जलाए थे। शाहरूख खान और दीपिका पादुकोण को राष्ट्रविरोधी बताया था। सोचने की बात है कि हंगामा कब होता है और कोन करता है?
एक दूसरे को पॉवर दिखाने का मौसम
जनप्रतिनिधियों, पार्टी नेताओं का सरकारी महकमे के बीच तालमेल इन दिनों बिगड़ता ही जा रहा है। दरिमा, अंबिकापुर के नए रन वे पर कल सीएम का विमान पहली बार उतरने वाला था इसके पहले ही भीतर घुसने के नाम पर कांग्रेसियों का एक गुट पुलिस वालों से भिड़ गया। एक दूसरे के खिलाफ वे अपशब्दों का इस्तेमाल करने लगे। वहां मौजूद एसडीएम पर भी उनका रोष फूटा। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कुछ दूरी पर खड़े थे। बात बढ़ी तो उनका ध्यान गया। उनके बीच-बचाव से किसी तरह विवाद शांत हो पाया। इसके एक दिन पहले तो सूरजपुर जिले में और गजब हो गया। विश्रामपुर में दाखिला संबंधी किसी विवाद के चलते एनएसययूआई ने डीएवी स्कूल के घेराव किया था। पुलिस वालों से छात्र नेताओं की बहस हो गई। एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें छात्र नेता का हाथ हवलदार की गर्दन तक पहुंच गया है। इस छात्र नेता का नाम बॉबी अग्रवाल बताया गया है। विधायक बृहस्पत सिंह का एक बैंक कर्मचारी को थप्पड़ जडऩा, फिर सुलह कर लेना भी तो कुछ दिन पहले की ही बात है। जशपुर में भाजपा के जिला पंचायत सदस्य गेंदबिहारी सिंह को जबरदस्ती खींचकर पुलिस गाड़ी में डालने और कथित मारपीट का मामला भी पिछले हफ्ते सामने आ चुका है। इसमें एसडीओपी और दो पुलिस कर्मचारियों पर एक्शन भी लिया गया। पर ऐसा केवल सरगुजा संभाग में नहीं हो रहा है। जगदलपुर में एक प्रशिक्षु आईपीएस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई की घटना 4 दिन पहले ही हुई है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर दुर्व्यवहार का आरोप लगा रहे हैं। प्रशासन को लगता है कि कानून व्यवस्था संभालना हमारी जिम्मेदारी है जिसमें नेता अवरोध खड़ा करते हैं। नेताओं, जनप्रतिनिधियों को लगता है कि पुलिस और प्रशासन का तेवर उनके प्रति गैरजरूरी ढंग से आक्रामक है।
बीजेपी मीडिया में फेरबदल
आखिरकार भाजपा में बड़े नेताओं की नाराजगी के चलते मीडिया सेल में बदलाव किया गया है। पार्टी के बड़े नेताओं ने मीडिया सेल अपनी शिकायतों को संगठन प्रमुखों के पास रखा था। कहा जा रहा है कि प्रदेश सहप्रभारी ने कल मीडिया प्रकोष्ठ की बैठक भी ली थी। इसमें उन्होंने विषय की पकड़, तथ्यान्वेषण और सत्ता पक्ष को घेरने के बिन्दुओं, मीडिया से संपर्क तालमेल जैसे विषयों पर प्रकोष्ठ को परखा।
उन्होंने यह महसूस किया कि जब वे, पूर्व आयोजित प्रेस मीट करते है तो उसके लिए तथ्य, विषय से संबंधित प्रकोष्ठ से लेना पड़ता है। जबकि यह कार्य मीडिया सेल को करना चाहिए। बहरहाल बदलाव के अन्याय कारणों को देखते हुए चार लोगों को जिम्मेदारी दी गई है।
दीपकमल के पूर्व संपादक पंकज झा अब सभी के रिपोर्टिंग मैनेजर होंगे। टीवी डिबेट की जिम्मेदारी, जगदलपुर के युवा पत्रकार हेमंत पाणिग्रही को, और प्रेस नोट और मीडिया समन्वय का काम मौजूदा दोनों पदाधिकारी अमित चिमनानी, और अनुराग अग्रवाल देखेंगे। वैसे दिल्ली से भी कुछ लोग पंकज के सहयोग के लिए आ सकते हैं। देखना है कि सेल में बदलाव कितना कारगर रहता है।
खौफ से परे हैं अफसर
ईडी की कार्रवाई तेजी से चल रही है। नई खबर यह है कि जिस आईएएस दंपत्ति के यहां छापेमारी हुई थी, उन पर शिकंजा कस सकता है। चर्चा यह भी थी कि आईएएस दंपत्ति असम, और दिल्ली में अपने संपर्कों के जरिए अपने खिलाफ केस को मैनेज करने में सफल रही है। कई दिनों तक जांच-पड़ताल के बाद आगे की कार्रवाई रूकी पड़ी थी।
चर्चा है कि आईएएस दंपत्ति के खिलाफ ईडी अब जल्द चालान पेश कर सकती है। दंपत्ति और उनके करीबियों के पास से बड़े पैमाने पर बेनामी संपत्ति का पता चला है। यह भी दावा किया जा रहा है कि गिरफ्तारी भी हो सकती है। हालांकि दंपत्ति बेखौफ काम करते नजर आ रहे हैं। काम करने का अंदाज भी पुराना है। ऐसे में आगे क्या होगा, यह तो कुछ दिनों बाद ही पता चलेगा।
बैस, कितने पास कितने दूर
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस भले ही महाराष्ट्र के राज्यपाल बनकर सक्रिय राजनीति से दूर हैं। मगर वो पार्टी की छोटी-बड़ी गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं। अरुण साव को भले ही प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में संघ परिवार, और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की भूमिका रही है, लेकिन बैस ही साव के गाडफादर माने जाते हैं। चर्चा यह है कि बैस का उन्हें मार्गदर्शन भी हासिल है।
दूसरी तरफ, नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनवाने में रमेश बैस की भूमिका रही है, लेकिन चर्चा है कि बैस उनके काम से संतुष्ट नहीं हैं। बेटे के खिलाफ रेप केस की वजह से नारायण चंदेल खुद ही बैकफुट पर आ गए थे। प्रदेश के असंतुष्ट नेताओं को बैस से काफी उम्मीदें हैं। वो भले ही मुंबई में रहते हैं, लेकिन असंतुष्ट नेता वहां जाकर उनसे मिल ही आते हैं। बैस के राज्यपाल बनने के बाद छत्तीसगढ़ के नेताओं की महाराष्ट्र राजभवन में आवाजाही बढ़ी है।
आईआरसीटीसी की मार्केटिंग
भारतीय रेल की सहायक कंपनी आईआरसीटीसी ने इस बार अपने पर्यटन स्थलों के टूर पैकेज को नई पैकेजिंग के साथ पेश किया है। पहले पोर्टल पर विवरण डाल दिया जाता था, लोग बुकिंग करा लेते थे। पर इस बार उन्होंने इसे ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ योजना का हिस्सा बताया। पहली यात्रा बिलासपुर से दक्षिण के पर्यटन स्थलों के लिए चलाई जा रही ट्रेन को ‘भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन’ नाम दिया है अमृत महोत्सव, एक भारत-श्रेष्ठ भारत जैसे लेवल लगाकर साधारण कामों को भी असाधारण दर्शाने के काम में वैसे भी केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग लगे हुए हैं। तो, इस बार आईआरसीटीसी ने इस गौरव यात्रा के लिए न केवल विभिन्न स्थानों पर मीडिया से बातचीत की बल्कि जन प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उन्हें ब्रोसर सौंपे। आम लोगों को बस यही शिकायत है कि नियमित यात्री ट्रेनों को चलाने में भारी अनियमितता दिखाई दे रही है। पर्यटकों की कनेक्टिंग ट्रेन और फ्लाइट भी इस देरी के कारण छूट जा रही है। रेलवे इस तरह के गौरव वाले अतिरिक्त ट्रेन चलाकर वाहवाही लूटे, यह ठीक है पर जो लोग बिना आईआरसीटीसी का पैकेज लिए घूमने-फिरने जा रहे हैं उनका भी ख्याल रखे।
पंडो आदिवासियों की प्रगतिशील सोच
समाज ने धीरे-धीरे कई कुरीतियों से छुटकारा पाया। बाल विवाह ऐसी ही एक प्रथा है। छत्तीसगढ़ में सरकारी, गैर सरकारी संगठन कम उम्र में होने वाली शादियां रोकने में लगे रहते हैं। कहीं, समझाने-बुझाने से काम चल जाता है तो कहीं पुलिस हस्तक्षेप की नौबत आ जाती है। पर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले विशेष संरक्षित जनजातियों में से एक पंडो समाज ने जो तय किया है उसमें ऐसे दखल की जरूरत नहीं पड़ रही है। यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सरगुजा संभाग के बलरामपुर और सूरजपुर जिलों में बीते एक साल के भीतर पंडो समाज में 112 शादियां तय की गईं, पर इनमें से सिर्फ 55 हो पाई, बाकी रोक दी गईं। दरअसल, जो 57 शादियां भविष्य के लिए टाल दी गईं, वे कम उम्र में की जा रही थीं।
दरअसल, पंडो समाज के कुछ बड़े-बुजुर्गों ने इस बात को समझा कि छोटी उम्र में शादी होने से बच्चियां बीमार होती हैं, बच्चों और माताओं की मौत की दर बढ़ रही है। इनके साथ हिंसा और उत्पीडऩ की घटनाएं भी हो रही हैं, काम का बोझ कमजोर बना देता है। अब इन दोनों जिलों में प्रमुख लोगों की एक पंचायत बना ली गई है। अब जब भी कोई परिवार अपने बच्चों की शादी तय करता है तो इसकी जानकारी इस पंचायत को देनी पड़ती है। पंचायत दूल्हे दुल्हन दोनों की उम्र की जानकारी हासिल करता है। इसमें सरकारी मदद भी ली जाती है। जब यह तय हो जाता है कि लडक़ी की उम्र 18 और लडक़े की 21 है तभी इस शादी की मंजूरी मिल पाती है। बाकी को बता दिया जाता है कि वे अभी रुकें, जब समय आए तब करें। अक्सर पंडो और दूसरी विशेष संरक्षित जनजातियों के बारे में खबर आती है कि उन्हें सामूहिक रूप से किसी बीमारी ने घेर लिया। पूरा गांव पीडि़त है। मौतें भी हो चुकी हैं। इस समय पंडो जनजाति का अस्तित्व संकट में चल रहा है। इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। ऐसे में, पंडो समाज, जिसे बहुत पिछड़ा माना जाता है उस की यह प्रगतिशील सोच उनकी आबादी को स्वस्थ बनाने, मृत्यु दर घटाने में मदद कर रही है।
पानी की तलाश तो नहीं?
राजधानी रायपुर से लगे मांढऱ रेलवे स्टेशन पर काफी देर तक यह बारहसिंगा पटरियों और प्लेटफॉर्म पर उछलकूद करता रहा, फिर वह जंगल की ओर वापस चला गया। इन दिनों चीतल, हिरण और दूसरे जंगली जानवर पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर पहुंच रहे हैं। इनमें से कई दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं तो कुछ को शिकारी ही अपना निशाना बनाते हैं। वन विभाग के अफसरों को पता नहीं इस खतरे का अंदाजा है भी या नहीं।
दो राज्यों में मारपीट की नौबत
महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण पिछले दिनों छत्तीसगढ़ दौरे पर था। न्यायाधिकरण के सदस्य के अलावा विधिक सलाहकार, और दोनों ही राज्य ओडिशा, और छत्तीसगढ़ के आला सिंचाई अफसर भी थे। दौरे की शुरुआत महानदी के धमतरी जिले स्थित उद्गम स्थल से शुरू हुई। कई मौके ऐसे आए जब अपना-अपना पक्ष रखते दोनों राज्यों के अफसर भिड़ गए, और उनके बीच तू-तू, मैं-मैं भी हुई।
सुनते हैं कि जांजगीर-चांपा के डैम के निरीक्षण के बीच ओडिशा के एक अफसर ने यह कह दिया कि छत्तीसगढ़ ज्यादा जल स्टोरेज कर रहा है। इसको लेकर सीडब्ल्यूसी ने चि_ी लिखी है। उस समय तो छत्तीसगढ़ के अफसर थोड़ी देर के लिए चुप रह गए। फिर आपस में सीडब्ल्यूसी के पत्र पर चर्चा हुई।
थोड़ी देर बाद स्थिति स्पष्ट हुई कि सीडब्ल्यूसी ने कभी इस तरह का पत्र लिखा ही नहीं है। बस फिर क्या था छत्तीसगढ़ के अफसर गुस्से में आ गए। एक सीनियर इंजीनियर ने ओडिशा के दल से सीडब्ल्यूसी पत्र दिखाने के लिए कहा, तो ओडिशा के अफसर बगलें झांकने को मजबूर हो गए। इस पर छत्तीसगढ़ी इंजीनियर अपना आपा खो बैठे, और उन्होंने झूठ बोलने के लिए सबके सामने ओडिशा के अफसरों को गालियां बकना शुरू कर दिया। इसके बाद मारपीट की नौबत आ गई। तब हड़बड़ाए अन्य लोगों ने उन्हें किसी तरह शांत किया। बाद में सिंचाई सचिव पी अलबंगन ने छत्तीसगढ़ी इंजीनियर को राज्य के हितों को लेकर सतर्क रहने की सराहना की, साथ ही साथ उन्हें भाषा पर नियंत्रण रखने की भी नसीहत दे गए।
एक अफसर को हटाकर दूसरे से...
महानदी जल विवाद पर छत्तीसगढ़ का पक्ष हमेशा से मजबूत रहा है। पिछली सरकार में सिंचाई ठेकों में भ्रष्टाचार को लेकर विभाग जरूर कुख्यात रहा है, लेकिन उस वक्त भी इस संवेदनशील मुद्दे पर अपना पक्ष हर फोरम में बेहतर ढंग से रखा। खुद तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह भी इसको लेकर गंभीर रहे हैं।
कुछ लोग बताते हैं कि दिल्ली में जल विवाद के निपटारे के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती की मध्यस्थता में बैठक हुई थी। जिसमें दोनों राज्यों के सीएम नवीन पटनायक, और डॉ. रमन सिंह भी थे। उस समय गणेश शंकर मिश्रा सिंचाई सचिव थे। छत्तीसगढ़ सरकार को बैठक में अपना प्रेजेंटेशन देना था, लेकिन इस गंभीर विषय पर तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के कहने पर गणेश शंकर मिश्रा की जगह तत्कालीन सीएस विवेक ढांड ने प्रेजेंटेशन दिया। ढांड लंबे समय तक सिंचाई सचिव भी रहे हैं, और इसकी बारीकी से अवगत रहे हैं। उनके प्रेजेंटेशन के बाद पूरा माहौल छत्तीसगढ़ के पक्ष में हो गया। ओडिशा के अफसरों के लिए ज्यादा कुछ कहने को नहीं रह गया था, और फिर आपसी चर्चा से विवाद सुलझाने के लिए कहा गया।
काम नहीं आए आइसोलेशन कोच..
कोविड-19 के दौरान रेल के डिब्बों को जब आइसोलेशन कोच बनाया जा रहा था तभी लोग सवाल कर रहे थे कि क्या इनका इस्तेमाल किया जाना व्यवहारिक हो पाएगा। हालांकि इसका रेलवे ने बड़ा महिमामंडन किया था। अस्पतालों में जब बिस्तर की कमी पड़ गई तो लोगों ने घरों में रहकर उपचार कराना ठीक समझा। रेलवे ने भी कोच तैयार तो कर दिए पर डॉक्टर और स्टाफ लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल दी थी। इधर राज्य की स्वास्थ्य टीम अपने ही अस्पतालों में ठीक तरह से मरीजों की देखभाल नहीं कर पा रहे थे, रेल के डिब्बों में क्या कर पाते। 18 लाख रुपये की लागत से तैयार किए गए 55 आइसोलेशन कोच एक भी बार काम में नहीं लाया गया। ये सभी कोच दुर्ग की कोचिंग डिपो में खड़े-खड़े कंडम हो रहे हैं।
मछुआरों के बच्चे अंतर्जाल में...
छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर कितना नीचे है इस पर असर की रिपोर्ट हर साल आ जाती है। पर कुछ ऐसे स्कूल भी हैं जहां शिक्षकों की लगन ने नामुमकिन सा बदलाव ला दिया है। ऐसा एक स्कूल रायपुर जिले के पठारीडीह में चल रहा है। खारून नदी के तट पर बसे इस गांव में ज्यादातर मछुआरों का परिवार हैं। यहां शिक्षक उत्तम देवांगन के कमरे में कम्प्यूटर देखकर बच्चों ने उसके बारे में जानना चाहा। शिक्षक ने पहले एक कम्प्यूटर लाकर बच्चों के सीखने के लिए रखा। फिर कुछ लोगों से मदद मिल गई और कम्प्यूटर सेट लाए गए। साथ ही साथ उन्होंने अंग्रेजी सिखाना शुरू किया। अब स्थिति यह है कि बच्चे फर्राटे से अंग्रेजी टाइपिंग कर लेते हैं। अंग्रेजी बोलने और खुद से लिखने की कोशिश भी कर रहे हैं। हिंदी टाइपिंग और कम्प्यूटर के दूसरे कमांड भी सीख रहे हैं। काम अच्छा होता देख अभिभावक भी सहयोग कर रहे हैं। सीख यह है कि स्कूल को उत्कृष्ट बनाने के लिए सरकार की किसी मदद या योजना की जरूरत नहीं है। शिक्षक और अभिभावक चाहें तो रास्ते खुल जाते हैं।
नींद सबकी एक जैसी जरूरत...
नींद के लिए गद्देदार बिस्तर की जरूरत नहीं, केवल थका होना जरूरी है, ताकि जब यह पूरी हो जाए तो दिमाग और शरीर तरोताजा होकर नए दिन, नए काम की शुरूआत हो सके। फिर वह जगह कोई भी हो सकती है। शौचालय के पास, मवेशियों के बीच। राजनांदगांव रेलवे स्टेशन की यह फर्श कम से कम साफ सुथरी दिखाई दे रही है। सफर की थकान उतारने के लिए काफी है।
मन की बात में मनमानी की बात
चर्चा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम को लेकर भाजपा के अंदरखाने में खूब तमाशा हुआ है। प्रदेश में मन की बात सुनने के लिए 16 जगहों पर विशेष इंतजाम किए गए थे। यहां पार्टी के बड़े नेताओं की तैनाती की गई थी।
प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने मन की बात सुनने आरंग के भानसोज गांव पहुंचे थे। यहां बड़ी संख्या में जिले के कार्यकर्ता भी थे। बताते हैं कि मन की बात कार्यक्रम के कवरेज दूरदर्शन की टीम को भानसोज पहुंचना था। मगर ऐसा नहीं हुआ, और दूरदर्शन टीम बालोद के कार्यक्रम का कवरेज कर चली गई। बालोद में मन की बात सुनने कुछ कारोबारी और स्थानीय नेता ही थे।
सुनते हैं कि भानसोज के कार्यक्रम का कवरेज नहीं होने पर अरुण साव ने दूरदर्शन के लोगों से जानकारी चाही, तो पता चला कि दिल्ली से बालोद जाने के लिए निर्देशित किया गया था। चर्चा है कि साव ने दिल्ली दूरदर्शन मुख्यालय में संपर्क किया, तो पीएमओ से निर्देश मिलने की बात कही गई।
बाद में साव ने माथुर, और अजय जामवाल से चर्चा की। और कवरेज का स्थान बदलने पर ऐतराज किया, तो वस्तु स्थिति की जानकारी लेने की कोशिश की गई। यह बात उभरकर सामने आई कि प्रदेश के एक छुटभैय्ये नेता ने एक पूर्व संगठन की शह पर अपने संपर्कों का उपयोग कर दूरदर्शन के कवरेज का स्थल ही बदलवा दिया।
चर्चा है कि साव ने बड़े नेताओं के समक्ष इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। हल्ला तो यह भी है कि बाद में छुटभैय्ये नेता ने अपने कृत्य के लिए प्रदेश अध्यक्ष से माफी भी मांगी है। इस पूरे वाक्ये की पार्टी के अंदर खाने में खूब चर्चा हो रही है।
सभी के विदिशा जाने की तैयारी
प्रदेश भाजपा में ताकतवर रहे संगठन मंत्रियों के यहां विवाह समारोह चल रहा है। इसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा है। इसके बीच नंदकुमार साय एपिसोड की चर्चा भी हो रही है।
पिछले दिनों प्रदेश भाजपा के पूर्व महामंत्री (संगठन) रामप्रताप सिंह के पुत्र, और पुत्री का विवाह समारोह था। रामप्रताप जशपुर के रहवासी हैं, और पार्टी छोडक़र जाने वाले दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी जशपुर के ही हैं।
बताते हैं कि रामप्रताप सिंह भी नंदकुमार साय को निमंत्रण भेजा था, लेकिन वो नहीं आए। अलबत्ता, पवन साय तीन दिन तक जशपुर में डेरा डाले रहे। इस दौरान नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे से उपजे हालात पर स्थानीय नेताओं से चर्चा करते रहे।
इसी तरह, छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन के सबसे प्रभावशाली नेता सौदान सिंह के भतीजे का 10 तारीख को विवाह है। विवाह विदिशा में है। सौदान सिंह ने तमाम प्रमुख नेताओं, और विधायकों को शादी में शामिल होने का न्योता दिया है। तकरीबन सभी प्रमुख नेताओं के विदिशा जाने की तैयारी भी है। चुनाव नजदीक हैं, और तमाम प्रमुख नेता साथ होंगे, तो कुछ न कुछ बात तो होगी ही।
तस्वीरें दो, हालत एक जैसी...
ये दो तस्वीरें हैं। पहली तस्वीर जिसमें महिला ने चेहरे को साड़ी से ढंका है, 2017 की है। दूसरी तस्वीर कल की है। दोनों ही कांकेर जिले की है। पहली तस्वीर में एक शव है, जिसे खाट पर लिटाकर परिजन अस्पताल से वापस ले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुक्तांजलि गाड़ी नहीं मिली। दूसरी तस्वीर में मरीज है, जिसे भी खाट पर ही लिटाकर 8 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाया गया, क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं आ सकी। इन 6 सालों में ग्रामीण, खासकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में स्वास्थ्य सेवा में कितना सुधार हुआ है, एक अंदाजा तो लगा ही सकते हैं।
आरक्षण विधेयक पर नया पेंच
सन् 2023 के विधानसभा और करीब एक साल बाद होने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा विरोधी दलों की कोशिश वोटों के हिंदुत्व या राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण होने रोकने की है। बीते एक दशक से भाजपा सरकारों की तमाम नाकामियों को विपक्ष ने मुद्दा बनाया, पर असरदार नहीं रहे। जातिगत गणना या सर्वेक्षण पर जोर इसी का विकल्प है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भाजपा की जगह राष्ट्रीय जनता दल से नाता जोड़ा तो केंद्र पर जातिगत सर्वेक्षण नहीं कराने का आरोप लगाया। सरकार से भाजपा को अलग करने के बाद बिहार में सर्वेक्षण शुरू हुआ। कुछ ही दिन इसका दूसरा चरण पूरा होना था लेकिन इस पर हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। रोक अंतरिम है, अगली सुनवाई जुलाई में रखी गई है। जातिगत जनगणना के विरोध में दी गई अनेक दलीलों में से एक यह भी थी कि यह केंद्र सरकार का काम है, राज्य जनगणना नहीं करा सकती। राज्य सरकार की यह दलील कोर्ट ने नहीं मानी कि यह जनगणना नहीं सिर्फ सर्वेक्षण है।
कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं की जनसभाओं में-जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी की बात कही जा रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस केंद्र से जातिगत गणना के साथ जनगणना कराने की मांग कर चुकी है। केंद्र सरकार शायद ध्रुवीकरण में बिखराव की आशंका के चलते नहीं करा रही है। जब जनगणना की घोषणा हो तब पता चल सकेगा कि वह क्या जातियों की अलग-अलग गणना भी कराएगी, जैसा कि कई राज्यों में विपक्ष की मांग है। अभी भी अगर जनगणना की तैयारी शुरू कर ली जाए तो रिपोर्ट आने में दो साल लग जाएंगे।
पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद यह तय है कि ऐसी कोई शुरूआत दूसरे राज्यों की ओर से गई तो उसे भी कोर्ट में चुनौती मिल जाएगी। आरक्षण पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होने का एक आधार यह भी बताया गया है कि आरक्षण के समर्थन में स्पष्ट आंकड़े नहीं है। ऐसे आंकड़े जुटाने के लिए अब यदि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी ओर से बिहार की तरह कोई कोशिश करेगी तो उसे भी आसानी से चुनौती दे दी जा सकेगी। यानि आरक्षण विधेयक के राजभवन से बाहर आने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिखती, पर चुनाव के लिए यह एक बड़ा मुद्दा जरूर बना रहेगा।
कांकेर में सडक़ किनारे दीवार पर लिखा हुआ यह नोटिस शायद शादी-ब्याह में नाचने वालों
के लिए है। इसे फेसबुक पर बस्तर के एक पत्रकार तामेश्वर सिन्हा ने पोस्ट किया है।
फटा पोस्टर, निकला पार्टी का ही कोई ?
विधानसभा चुनाव में अभी पांच माह बाकी हैं, लेकिन भाजपा में टिकट के दावेदारों में जंग छिड़ गई है। दावेदार एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। रायपुर शहर से सटे धरसींवा विधानसभा में पोस्टर फाडऩे की घटना को इसी से जोडक़र देखा जा रहा है।
हुआ यूं कि प्रधानमंत्री की योजना के प्रचार-प्रसार, और उपलब्धियों को लेकर दावेदारों ने पोस्टर लगाए थे। धरसींवा में टिकट के लिए आधा दर्जन से अधिक दावेदार मशक्कत कर रहे हैं। आर्थिक रूप से सक्षम इन दावेदारों ने विधानसभा मार्ग से लेकर अन्य जगहों पर पोस्टर लगवाए, लेकिन एक-दो दिनों बाद एक को छोडक़र बाकी दावेदारों के पोस्टर फटे पाए गए।
इसकी शिकायत भाजपा के प्रमुख पदाधिकारी ने थाने में भी की है। पार्टी के नेता उस दावेदार पर शक जता रहे हैं, जिसके पोस्टर सही सलामत हैं। कुछ इसी तरह का अंदाजा पुलिस भी लगा रही है। मगर कार्रवाई मुश्किल है। वजह यह है कि पोस्टर फाडऩे की घटना के प्रमाण नहीं है। शिकायत भी नामजद नहीं है। लेकिन इससे भाजपा में अंदरूनी लड़ाई और तेज हो गई है।
दारू के साथ रेत का चखना !
खबर है कि कोल-परिवहन शराब के बाद ईडी अब रेत कारोबार की पड़ताल में जुट गई है। कहा जा रहा है कि शराब ठेकेदारों ने रिंग बनाकर ऑन लाइन फार्म भरे, और खदानें भी हासिल कर ली। पहली नजर में तो प्रक्रियागत त्रुटि नहीं है। क्योंकि सारी प्रक्रिया ऑनलाइन हुई थी। मगर पहले ही जांच से घिरे शराब ठेकेदारों के रेत कारोबार की पड़ताल हो रही है। चर्चा है कि पिछले दिनों एक कारोबारी से सिर्फ रेत को लेकर भी पूछताछ हुई है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि जल्द ही कुछ गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं।
हालांकि अब तक के छापे में क्या कुछ मिला, ये तो ईडी बता नहीं पाई है। ईडी की कार्रवाई के खिलाफ कई पीडि़त कोर्ट भी गए थे। ये अलग बात है कि किसी को राहत नहीं मिल पाई। सीएम से भी आबकारी अफसर ईडी की शिकायत कर चुके हैं। कुल मिलाकर हालात यह है कि गिरफ्तारियां हुई, तो प्रतिक्रिया भी उसी तरह की होगी। अंदाजा लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में तापमान बढऩे के साथ-साथ राजनीतिक पारा भी चढ़ा रहेगा।
बालक बजरंगी क्या बोल रहा?
सआदत हसन मंटो ने कभी कहा था कि मजहब जब दिलों से निकलकर दिमाग पर चढ़ जाए तो वह जहर बन जाता है। और जब यह जहर बच्चों के दिमाग में आ जाए तो वह और भी खतरनाक है।
इस बच्चे के हाथ में एक ध्वज है। किसी जुलूस में शामिल है। जब इससे कहा गया कोई नारा लगाओ, उसने पूछा क्या नारा लगाऊं? बोला गया –जय श्री राम बोलो...। बच्चे ने जय श्री...तक कहा, फिर रुक गया। क्या दिमाग में आया, उसने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर एक बेहूदे गाली का नारा लगाया, और फिर आगे बढ़ गया। खुद मुख्यमंत्री ने इस वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किया है। उन्होंने लिखा है- भगवान राम का नाम लेने से परहेज कर रहा ये बच्चा मुझे गाली दे रहा है। यह बजरंग दल का सदस्य है। धर्म की आड़ में इन लोगों ने हमारे बच्चों को क्या बना दिया है देखिए। मैं इस बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। ईश्वर सभी बच्चों को हनुमान जी की तरह ज्ञानवान और बलवान बनाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा आज बजरंग दल को जिस तरह बजरंगबली से जोड़ रहे हैं, उसकी हकीकत सामने है।
दुरुस्त हाईवे पर दुर्घटनाएं...
बालोद के पुरूर और चारामा के बीच बीती रात हुई सडक़ दुर्घटना में 11 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं। प्राय: सभी एक ही परिवार के थे। बीते फरवरी 23 तारीख को बलौदाबाजार जिले में ट्रक और पिकअप के बीच टक्कर हुई थी। इसमें भी 11 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में चार बच्चे थे। 9 फरवरी को कांकेर जिले के कोकर में ट्रक से आटो रिक्शा की भिड़ंत हो गई थी। इसमें 7 बच्चों की मौत हो गई थी। रायपुर- बिलासपुर नेशनल हाईवे पर बीते नवंबर में एक खड़े ट्रक से कार टकराई थी, तीन की मौत हो गई। इनके अलावा भी दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें एक या दो लोगों की मृत्यु इस हाईवे पर हुई। कटघोरा अंबिकापुर रोड में साल भर के भीतर कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। बिलासपुर से पथर्रापाली के बीच लगभग बनाई जा चुकी सडक़ पर कुछ ऐसे ब्लैक स्पॉट हैं जिनमें लगातार सडक़ पर मौतें हो रही हैं। हाईकोर्ट में प्रदेश की खस्ता हाल सडक़ों पर सुनवाई हो रही है। इसमें न्याय मित्रों से रिपोर्ट भी ली जा रही है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश की कई खराब सडक़ों का जिक्र किया है वह तो अपनी जगह है, पर जो ठीक ठाक और चौड़ी सडक़ें बनी हैं उनमें हो रही दुर्घटनाओं का ब्यौरा भी दिया गया है। चालकों की लापरवाही, नशे में ड्राइविंग न हो तब भी हो रही हैं।
अधिकतर दुर्घटनाएं रात में हो रही हैं। नेशनल हाईवे ने सडक़ों को बना लिया पर गति को नियंत्रित रखने के लिए संकेतक नहीं, हाईवे पेट्रोलिंग लचर हैं। सामने से आ रही गाडिय़ों की रोशनी से बचने के लिए डिवाइडर पर पौधे नहीं लगाए गए हैं। ब्रेक डाउन खड़े भारी वाहनों को हटाया नहीं जाता, बिना रिफ्लेक्टर खड़े होते हैं। यह तस्वीर बेमेतरा-दुर्ग सडक़ की है। छोटी गाडिय़ों के साथ भारी गाडिय़ां चल रही हैं, दिन में तो टूटी रेलिंग दिख रही है लेकिन रात में गाड़ी नीचे गिरे इसका पूरा इंतजाम है।
टॉपर बिरहोर छात्रा का हाल
राष्ट्रपति की दत्तक संतान कही जाने वाली समूचे बिरहोर जाति की निर्मला पहली लडक़ी थी जिसने तीन साल पहले 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस दौरान कलेक्टर, मंत्री सबने निर्मला को बुलाकर सम्मानित किया। सीएम के हाथों से भी सम्मान कराया गया। एक जिला पंचायत सदस्य ने घोषणा की कि सिंहदेव फाउंडेशन से उसे नीट की तैयारी कराई जाएगी। निर्मला डॉक्टर बनना चाहती थी। उस वक्त दर्जनों लोगों की तस्वीर अलग-अलग खबरों के साथ छपीं, मदद के लिए हाथ बढ़ाने के वादे के साथ। इस वाहवाही और आश्वासन के बाद ऐसा लगा कि निर्मला का भविष्य उजला है, उसे आसमान छूने से कोई नहीं रोक सकता। पर स्वागत-सम्मान कुछ ही दिनों का था। उसके बहाने अपना प्रचार करने के बाद सब उसे भूल गए। सरकार ने जरूर योजना के मुताबिक 2 लाख रुपये देकर उसे प्रोत्साहित किया। लडक़ी का परिवार बेहद गरीब है। उसने ये रुपये घर बनाने के लिए अपनी मां को दे दिया। आगे निर्मला की पढ़ाई छूट गई। बड़ी बड़ी बातें करने वाले सामने नहीं आए। घर में खाली-खाली बैठी रह गई। ऊपर से घर बनाने व एक भाई की शादी में परिवार पर कर्ज चढ़ा था, जिसे लौटाने का दबाव था। निर्मला की एक सहेली जो बाहर काम करती है, निर्मला उसके साथ पुणे, महाराष्ट्र चली गई।
यहां पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के इस सीमा पर मानव तस्करी एक बड़ी समस्या है। धोखे से युवक युवतियों को ले जाया जाता है और कैद कर लिया जाता है, तमाम तरह से शोषण होता है। हालांकि प्रशासन की मुस्तैदी से ऐसी घटनाएं कम हुई हैं, पर खत्म नहीं। इनसे घरों, होटलों और सेहत के लिए खतरनाक किस्म की फैक्ट्रियों में रखकर 14-16 घंटे काम लिया जाता है। इसलिए निर्मला कितनी बेहतर स्थिति में पुणे में होगी, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है। सीएम की घोषणा के अनुरूप 12वीं परीक्षा पास 142 विशेष संरक्षित जाति के युवाओं को सहायक शिक्षक बनाया गया है। इस सूची के मुताबिक निर्मला अकेली ही बिरहोर समुदाय से है, जिसे नियुक्ति दी गई है। शेष 141 पहाड़ी कोरवा हैं। नौकरी मिलने की खबर निर्मला की मां बिरसमणि को दी गई तो चौंक गईं। अब वह अपनी बेटी की सहेली को फोन लगा रही है तो फोन बंद मिल रहा है। साथ गए अन्य परिचितों के जरिये वह संपर्क कर जल्द से जल्द बेटी को वापस बुलाना चाहती है। उम्मीद कर सकते हैं, निर्मला जल्द लौटकर सरकारी नौकरी ज्वाइन कर लेगी। निर्मला तो सरकारी नौकरी मिल जाने के चलते लौट रही हैं, पर न जाने कितनी ही बच्चियां जो 12वीं पढ़ भी नहीं पाईं वे अपने करियर के किस मुकाम पर होंगी।
हेराफेरी मिली पर कार्रवाई नहीं
यह भाजपा सरकार के दौरान हुए चावल घोटाले के मुकाबले छोटा है पर ताजा-ताजा है। राशन दुकानों में स्टाक की गड़बड़ी को लेकर प्रदेशभर में जांच की गई थी। फूड विभाग ने जांच की तो 4900 राशन दुकानों के स्टाक में करीब 42 हजार टन चावल, गेहूं, शक्कर गायब मिला, जिसका मूल्य 260 करोड़ रुपये से अधिक है। इसकी एक बड़ी वजह यह सामने आई कि दुकानदारों की स्टोरेज क्षमता को नजरअंदाज कर चावल आवंटन किया जाता रहा। इसके चलते गोदाम तो भरे दिखाई देते थे लेकिन अतिरिक्त राशन सीधे राइस मिल या बाजार में चला जाता था। मार्च माह के आखिरी सप्ताह में प्राय: सभी जिलों की रिपोर्ट कलेक्टर व खाद्य संचालनालय में भेज दी गई, पर एक माह से ज्यादा बीत जाने के बाद भी कार्रवाई का अता-पता नहीं है। प्रदेश में कुल 13 हजार 487 राशन दुकानें हैं। मतलब करीब 40 प्रतिशत दुकानों में गड़बड़ी थी। पर कार्रवाई की फाइल एक साथ सभी जिलों में दबी हुई है। क्या इतनी बड़ी संख्या में दुकानों पर कार्रवाई होने से राशन वितरण की व्यवस्था बिगडऩे का खतरा है? या फिर नुकसान की वसूली कर मामला समेटने की कोशिश हो रही है? यह भी गौर करने की बात है कि अधिकांश दुकान पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आवंटित किए गए थे। इसलिए यदि विपक्ष ने इस घोटाले को मजबूती से नहीं उठाया है तो इसकी वजह समझी जा सकती है। ([email protected])
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के झटके से भाजपा उबर नहीं पा रही है। हल्ला है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुण साव को फोन पर डांट पिलाई है। साव मंगलवार को लेह-लद्दाख में थे, इसलिए इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। साय प्रकरण के बाद तो संगठन के प्रमुख रणनीतिकार ओम माथुर और अजय जामवाल की बोलती बंद हो गई है। पवन साय तो डैमेज कंट्रोल के लिए जशपुर निकल गए हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं ने पलटवार के लिए प्लान तैयार किया है। चर्चा है कि कांग्रेस के किसी प्रभावशाली नेता को भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि शाह खुद इन सब चीजों को देख रहे हैं। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के एक बड़े नेता से अमित शाह की चर्चा हो चुकी है। हल्ला यह भी है कि सब कुछ ठीक रहा, तो कर्नाटक चुनाव के बाद बड़ा धमाका हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
साय को रोकना नहीं हो पाया क्यूँकि
नंदकुमार साय एपिसोड में मान मनौव्वल का खूब ड्रामा भी चला। पवन साय, और एक-दो अन्य नेता भी साय बंगले पहुंच गए थे। अमित चिमनानी जैसे कई तो ऐसे थे जिन्हें साय पहचानते तक नहीं हैं।
चर्चा है कि संगठन नेताओं ने सबसे पहले रेप के आरोपों से घिरे, और हाल ही में जमानत पर छूटे पूर्व ओएसडी को दूत बनाकर साय के पास भेजा गया था। साय बंगले के बाहर पुलिस फोर्स देखकर ओएसडी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई।
बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने साय को रोकने के लिए उनके पोते से सोशल मीडिया पर बयान दिलवा दिया कि सायजी पार्टी में ही रहेंगे। बस अज्ञात जगह पर मौजूद साय को इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने अपने पोते को फोन पर जमकर फटकार भी लगाई।
मान मनौव्वल के तनाव भरे माहौल के बीच पार्टी के नेता हंसी-मजाक भी खूब कर रहे थे। एक नेता ने चुटकी ली कि साय इसलिए आसानी से चले गए कि वो इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरते हैं। इनकम टैक्स पेयी होते, तो आयकर-ईडी की टीम ढूंढकर ले आती। सोशल मीडिया में एक टिप्पणी आई कि साय के कांग्रेस प्रवेश से उनके बाल और अमरजीत भगत की मूंछ, दोनों बच गई।
जंगल में बेचैनी बहुत है
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहला मौका है जब एपीसीसीएफ स्तर के अफसर श्रीनिवास राव को फारेस्ट मुखिया बनाया गया है। इससे उनसे सीनियर अफसरों की नाराजगी स्वाभाविक है। इसका नजारा हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स के पद से रिटायर होने वाले संजय शुक्ला के विदाई समारोह में भी देखने को मिला। श्रीनिवास से सीनियर पीसीसीएफ अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल, अनिल राय, और तपेश झा समारोह से दूर रहे। उन्होंने अलग-अलग व्यक्तिगत तौर पर संजय से मिलकर उन्हें रेरा चेयरमैन के नए दायित्व के लिए बधाई भी दी।
आरक्षण के आदेश पर सभी खुश क्यों?
सितंबर 2022 में आए हाईकोर्ट के उस आदेश से हर कोई असमंजस में था जिसमें 58 प्रतिशत आरक्षण के सन् 2012 के प्रावधान को असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद प्रदेश में आरक्षण की स्थिति शून्य हो गई थी। इस आदेश में यह साफ नहीं था कि 58 प्रतिशत आरक्षण नहीं होगा तो कौन सा होगा? नतीजतन भर्तियों, प्रमोशन और एडमिशन पर रोक लग गई। इससे युवाओं, छात्रों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने को कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ मुद्दा जरूर बना रखा था लेकिन डेड लॉक की स्थिति बनने से सरकार के अलावा उन लोगों में भी बेचैनी थी जो आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के विधेयक को पारित होते देखना चाहते थे। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इस स्थिति की भांपते हुए अक्टूबर महीने में हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन के लिए अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्थगन के बाद अब जरूर यह स्थिति बन गई है कि 58 प्रतिशत के आधार पर भर्तियां हो सकेंगी। भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे यही प्रतीत होता है कि सन् 2012 में जो प्रावधान उसकी सरकार ने किये थे उसे सुप्रीम कोर्ट ने सही मान लिया है। पर, वस्तुस्थिति यह नहीं है। कानून के जानकारों ने आदेश को पढक़र यह साफ किया है कि भाजपा की यह दलील गलत है। दरअसल, सरकार की इस चिंता को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि भर्तियां रुकने से जन-शक्ति का अभाव रोजमर्रा के प्रशासनिक कामकाज में दिक्कतें खड़ी कर सकता है। 58 प्रतिशत आरक्षण सही है, यह तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा ही नहीं है। इस बिंदु पर तो ग्रीष्म अवकाश के बाद सुनवाई होनी है। पर इस आदेश ने सभी को अपने-अपने हिस्से की प्रसन्नता दे दी है। राज्यपाल शायद यह सोच रहे हों कि अब विधेयक पर हस्ताक्षर का दबाव कम रहेगा। कांग्रेस यह सोच रही है कि चुनाव के समय एक भी भर्ती नहीं हो पा रही थी, युवाओं की नाराजगी से बच गए। भाजपा को खुशी है कि उनके शासनकाल में तय किए गए 58 प्रतिशत पर ही भर्ती हो रही है, ये बात वे मतदाताओं को बता सकेंगे। युवा और छात्र इसलिये खुश हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उनकी तैयारी व्यर्थ नहीं जाएगी।
गीली सडक़ पर धूल की खोज...
बारिश तो अपने साथ धूल बहा ले गई, सडक़ धुल चुकी है। पर पता नहीं रायपुर की सडक़ पर यह भारी-भरकम झांकी क्यों उतारी गई है। तस्वीर मंगलवार की ही है।
हादसों को बुलावा देते आवारा पशु
एक भारतीय के साथ यूरोप से घूमने आया मित्र रायपुर एयरपोर्ट से बस्तर के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचा। गाय-भैंसों का बड़ा झुंड बीच सडक़ पर इत्मीनान बैठा हुआ था। पहली बार भारत आया यूरोपियन मित्र सीट से उछल पड़ा। गाड़ी रुकवाई और बैग से कैमरा निकालकर फोटो खींचना चालू कर दिया। दोस्त ने पूछा, ऐसी क्या विशेष बात देखी। उन्होंने कहा जानवरों में तो कोई विशेष अंतर नहीं है लेकिन मैंने अपने जीवन में इस तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग को कब्जाए हुए जानवरों का झुंड कभी नहीं देखा। इस वाकये का जिक्र बस्तर के एक किसान नेता ने अपने ब्लॉग में किया है।
बालोद में बीती रात एक आवारा पशु को बचाने की कोशिश में कार ट्रक से जा भिड़ी। तीन को जान गंवानी पड़ी और इतने ही लोग घायल भी हो गए। आवारा पशुओं के चलते हो रही दुर्घटनाओं की संख्या इतनी अधिक है कि अब हाईवे पर भी लोग रफ्तार में गाड़ी चलाने से बचते हैं। पिछले साल जारी पशुधन जनगणना रिपोर्ट में बताया गया था कि में करीब 25 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं। ये दुर्घटनाओं के बड़े कारण हैं। एक और रिपोर्ट में बताया गया था कि कोरोना महामारी से ज्यादा पशुओं के सडक़ में होने के चलते हुई दुर्घटनाओं में लोग मारे गए।
छत्तीसगढ़ में हजारों गौठान बनाए गए हैं। रोका-छेका अभियान भी चलता है। इन्हें ग्रामीणों की आमदनी से जोड़ा गया है, पर समस्या हल नहीं हो रही है। आवारा पशुओं को लेकर छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी समय-समय पर हाईकोर्ट की फटकार पड़ती है। इसके बाद वहां देसी गाय पालने पर 900 रुपये प्रतिमाह अनुदान देने का ऐलान सरकार ने कर दिया है। पर सिर्फ गायों को अनुदान देने से क्या होगा, गोवंश में दूसरे जानवर भी हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों को सशक्त बनाने के लिए सरकारी सहायता दी ही जा रही है। यूपी में भी लगभग छत्तीसगढ़ की तरह कार्यक्रम चल रहे हैं। वहां योगी सरकार ने गौठानों में सीएनजी बनाने तक का प्लान तैयार किया है। पर आंकड़ा बताता है कि 11.84 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं, जो राजस्थान के 12.72 लाख पशुओं से थोड़ा कम है। छत्तीसगढ़ का स्थान मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद पांचवां है। यहां 1 लाख 85 हजार पशु सडक़ों पर हैं। गौठानों या पशुपालन केंद्रों पर बनाई गई योजनाओं का जमीन पर ठीक तरह से क्रियान्वयन हो तो समस्या पूरी नहीं तो कुछ हद तक तो दूर हो ही सकती है। बजट प्रत्येक राज्य ने इस समस्या से निपटने के लिए भारी-भरकम रखा है, पर सडक़ों पर डेरा डाल बैठे पशुओं की संख्या लाखों में हो तो समझ सकते हैं कि बजट का सदुपयोग भी हो रहा है, या नहीं। ([email protected])
एक मई को पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का भी जन्मदिन था। वे भाजपा के बड़े लीडर हैं, और मिलनसार भी हैं। ऐसे में उन्हें जन्मदिन की बधाई देने सुबह से रात तक बंगले में कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। खाने-पीने के तमाम इंतजाम थे। बावजूद इसके वहां पहले जैसी रौनक गायब थी। हर कोई एक-दूसरे से दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे पर बतियाते नजर आ रहे थे।
एक-दो अनुशासित कार्यकर्ता तो साय का हिसाब-किताब लेकर बैठे थे। वो यह बताने से नहीं चूक रहे थे कि नंदकुमार साय भाजपा में 32 साल तक अलग-अलग पदों पर रहे। पार्टी ने उनका पूरा सम्मान दिया। बावजूद इसके पार्टी छोडऩा समझ से परे है। यह भी तर्क दिया जा रहा था कि साय का कोई जनाधार नहीं रह गया है। उनकी पुत्री, और बहू तक पंचायत चुनाव हार चुकी है। मगर कई लोग ऐसे भी थे जो यह मानकर चल रहे थे कि साय के जाने से पार्टी को बहुत डैमेज हुआ है, और इसे कंट्रोल करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। कुछ लोग तो साय के पार्टी छोडऩे के लिए रमन सिंह, और सौदान सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
बृजमोहन के कई समर्थक तो चिंतित दिखे, और कुछ तो उन्हें बधाई देते वक्त साय का पार्टी छोडऩे पर प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक थे। बृजमोहन कहते सुने गए कि जशपुर में उनकी पार्टी नेताओं से बात हुई है, और दिलासा दे रहे थे कि उनके जाने से कोई नुकसान नहीं होगा। मगर इस बात पर आम राय थी कि नंदकुमार साय चुनाव से पहले भाजपा का माहौल खराब कर गए।
शहीद तो ड्राइवर भी हुआ
दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर जिस गाड़ी को उड़ाया गया, उसे एक निजी वाहन चालक धनीराम यादव चला रहा था। डीआरजी ने यह गाड़ी किराये पर ली थी। नक्सली पुलिस वाहनों को पहचान कर लेते हैं, इसलिए निजी वाहनों को सर्चिंग और जवानों को लाने-ले-जाने के लिए किराये पर लिया जाता है। इन गाडिय़ों को लेकर चलने वाले ड्राइवरों को भी उतना ही खतरा होता है, जितना जवानों को। पर इनकी जोखिम का दर्जा समान नहीं माना जाता। पुलिस विभाग का ड्राइवर यदि शहीद होता तो उसे बाकी जवानों के परिजनों के बराबर मुआवजा मिलता। इस घटना में शहीद प्रत्येक जवान के परिवार को 35 लाख रुपये मिले हैं, पर धनीराम के परिवार को केवल 5 लाख। धनीराम की पत्नी को इस बात से ऐतराज है। बस्तर में मीडिया से उन्होंने कहा कि जब पति को भी तिरंगा में लिपटाया गया और सलामी दी गई तो मुआवजा भी बराबर मिलना चाहिए।
निजी वाहनों में पुलिस बल को लेकर धुर नक्सल क्षेत्र में घुसते रहे दूसरे ड्राइवरों का कहना है कि हम जाने से मना करें तो हमारे साथ पिटाई भी की जाती है। निजी वाहनों के मालिक कोई और होते हैं, जिन्हें जान का खतरा तो होता ही नहीं, गाड़ी को नुकसान हो तो क्लेम भी मिल जाता है। मृतक बलराम यादव तो करीब 21 साल से अपने मालिक की अलग-अलग गाडिय़ां चलाता रहा है। उसे कुल 7 हजार वेतन मिलते थे। कुछ भत्ते आदि मिल जाते थे, जिससे घर चलता था। अब धनीराम अपने पीछे न केवल पत्नी को बल्कि दो बच्चे भी छोड़ गया है। एक बेटी है। उसका करियर संवारने का वक्त आ चुका, वह 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। इस पांच लाख से उन्हें भविष्य सुधारने में कितनी मदद मिलेगी, कहा नहीं जा सकता। बस्तर में नक्सल मोर्चे के खिलाफ नेतृत्व कर रहे पुलिस अफसर शायद अब इस बारे में सोचें कि वे साथ के सिविलियन्स के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो उसके परिवार को आर्थिक, सामाजिक मदद में भेदभाव न हो।
कलेक्टर की 10 माह में विदाई
कुछ कलेक्टर किसी जिले में थोड़े दिन ही काम करते हैं, पर वहां अपनी छाप स्थायी रूप से छोड़ जाते हैं। बलौदाबाजार-भाटापारा से आईएएस रजत बंसल का तबादला हो गया। वे पिछले साल जून के आखिरी हफ्ते में बस्तर से यहां आए थे। वहां नागरिकों ने एक विदाई समारोह उनके लिए रखा था, जिसमें उन्होंने गाना भी गाया था- रुक जाना नहीं...। बलौदाबाजार में कल जब नये कलेक्टर चंदन कुमार को पदभार सौंपकर वे वापस रायपुर रवाना हो रहे थे तो पलारी मुख्य सडक़ पर उनकी विदाई के लिए भावुक भीड़ खड़ी थी। यह देखकर बंसल गाड़ी से उतरे। सबसे बुके, फूल स्वीकार किया। उन्हें एक सिद्धेश्वर भगवान की प्रतिमा भी भेंट की गई। भीड़ के बीच से अमेरा ग्राम की सोनी कुर्रे आगे आईं, उसने कहा कि आपकी कोशिशों से मुझे सीएम साहब ने बेटी के लीवर ट्रांसप्लांट के लिए 22 लाख रुपये दिए, अब मेरी बेटी स्वस्थ हो गई है। ऐसे ही कई लोगों ने अपने अनुभव बताए कि उनसे किस तरह मदद मिली। बंसल ने कहा- मुझे भी यहां से जाने का दुख तो हो रहा है, पर शासकीय जिम्मेदारी है। यहां काम करना अच्छा लगा। कभी भी कोई जरूरत हो रायपुर आकर मिलें।
बहुत कम अफसर होते हैं जो आम लोगों के दिलों में जगह बना पाते हैं। अपने प्रदेश के कुछ जिलों में तो ऐसे भी शीर्ष अधिकारी देखे गए हैं जो नागरिकों, संगठनों के प्रतिनिधियों से दुर्व्यवहार की वजह से चर्चा में होते हैं। हाल के वर्षों में भी ऐसा हुआ है।
हाफ योजना का दुरुपयोग?
क्या बिजली बिल हाफ योजना का लाभ लेने के लिए ऐसा भी किया जा रहा है कि एक ही घर में चार-पांच मीटर लगवा लिए जाएं ताकि रीडिंग 400 यूनिट से ज्यादा न आए। सोशल मीडिया पर राजधानी रायपुर के एक पेज में इस तरह की कुछ तस्वीरों के साथ यही दावा किया जा रहा है। एक बिल्डिंग में यदि अलग-अलग लोगों के कई फ्लैट्स या ऑफिस हों तो एक ही दीवार पर कई मीटर लगा होना तो गलत नहीं है, पर यदि एक ही घर में ऐसा किया जा रहा है तो सीएसपीडीसीएल के मैदानी कर्मचारियों की मिलीभगत से ही यह मुमकिन है।
सभी मौजूदा एमएलए को टिकट?
कांग्रेस ने मौजूदा विधायकों का संगठन के जरिये परफार्मेंस का पता किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी सर्वे कराया था। प्रदेशभर में चल रही भेंट मुलाकात का एक मकसद यह भी है। इसके चलते कई मौजूदा विधायकों को चिंता है कि अगली बार उन्हें टिकट मिलेगी या नहीं। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने दूसरा ही बयान दे दिया है। उनका कहना है कि वे तो चाहते हैं कि सभी मौजूदा 71 विधायकों को टिकट मिले। मरकाम ने यह कहा तो इसका मतलब यह है कि वे अपनी टिकट की बात भी कर रहे हैं। मरकाम का यह भी कहना है कि इस बार 75 सीटों का टारगेट लेकर चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों बातों को जोडक़र देखें तो कहा जा सकता है कि सभी विधायकों ने अच्छा काम किया। सर्वे की जरूरत ही नहीं।( [email protected])