लिफाफे उतरे आसमान से और...
भाजपा में इस बार जिलाध्यक्षों के चुनाव में दिग्गज नेताओं की पसंद को तवज्जो नहीं मिली है। पार्टी ने उन नेताओं को महत्व दिया है, जो संगठन में लगातार मेहनत करते रहे हैं, और विवादों से परे रहे हैं। रविवार को 35 में से 15 जिलों में चुनाव अधिकारी प्रदेश कार्यालय से लिफाफा लेकर गए थे, और वहां जिले के पदाधिकारियों की बैठक में लिफाफा खोला गया। और फिर उनसे नामांकन भराने की औपचारिकता पूरी कर निर्विरोध चुनाव किया गया।
रायपुर शहर में रमेश सिंह ठाकुर, और ग्रामीण में श्याम नारंग को अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। ठाकुर जिले के महामंत्री थे। वो कई बार पार्षद रह चुके हैं। वो सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी रहे हैं। विधायक सुनील सोनी भी रमेश सिंह ठाकुर के लिए प्रयासरत थे। मगर पार्टी का एक बड़ा खेमा ओंकार बैस, अथवा सत्यम दुआ के नाम पर जोर दे रहा था।
विकल्प के रूप में सूर्यकांत राठौर का नाम सुझाया गया था। मगर ठाकुर अपनी वरिष्ठता, और संगठन में काम करने के अनुभव के चलते बाकी दावेदारों पर भारी पड़ गए। ग्रामीण का चुनाव पहले हो गया था। श्याम नारंग के अध्यक्ष बनने पर खूब आतिशबाजी हुई, लेकिन जैसे ही शहर अध्यक्ष के लिए रमेश सिंह ठाकुर के नाम का ऐलान हुआ विरोधी खेमे के नेता अपना पटाखा लेकर निकल गए।
इसी तरह ग्रामीण अध्यक्ष के लिए राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा, पूर्व स्पीकर गौरीशंकर अग्रवाल ने अनिल अग्रवाल का नाम आगे बढ़ाया था। लेकिन स्थानीय नेताओं की पसंद पर श्याम नारंग को दोबारा मौका दिया गया है। दुर्ग, और भिलाई अध्यक्ष के चयन में भी सांसद विजय बघेल, और पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय के सुझाव को अनदेखा किया गया।
सरोज ने भिलाई में नटवर ताम्रकार, और विजय बघेल ने मौजूदा अध्यक्ष महेश वर्मा को रिपीट करने का सुझाव दिया था। मगर लिफाफा पुरुषोत्तम देवांगन के नाम खुला। इसी तरह दुर्ग जिला अध्यक्ष पद पर सुरेन्द्र कौशिक के नाम पर मुहर लगाई गई, जो कि वर्तमान में महामंत्री का दायित्व निभा रहे हैं। मानपुर-मोहला जिलाध्यक्ष पद पर पूर्व आईएएस नारायण सिंह की पुत्री नम्रता सिंह का चुनाव किया गया। नम्रता मानपुर-मोहला विधानसभा सीट से टिकट की दावेदार रहीं हैं। दूसरी तरफ, रायगढ़ और जशपुर जिलाध्यक्ष के चयन में सीएम विष्णुदेव साय की राय को तवज्जो मिली है।
साय चार बार रायगढ़ के सांसद रहे हैं। वो रायगढ़ और जशपुर के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़े रहे हैं। उनकी पसंद पर रायगढ़ में अरुण धर दीवान, और जशपुर में भरत सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। दोनों ही वर्तमान में जिला पदाधिकारियों के रूप में काम कर रहे थे।
परेशान रहे मंत्री समर्थक
सूरजपुर जिलाध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी काफी कश्मकश रही। ऐसी चर्चा थी कि पार्टी एक ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बना सकती है, जिसके खिलाफ विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करने का आरोप लगा था। लिफाफा खुलने से पहले बैठक में महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने संभावित नाम को लेकर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर दिया था। मगर लिफाफा खुला, तो उम्मीद से परे नाम सामने आया। यद्यपि नए अध्यक्ष मुरली मनोहर सोनी, लक्ष्मी रजवाड़े विरोधी खेमे के माने जाते हैं, लेकिन उनकी साख अच्छी है।
महिला बाल विकास मंत्री के समर्थकों ने सोनी के चयन पर थोड़ी राहत की सांस ली है। इसी तरह बलरामपुर में कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने बलवंत सिंह का नाम आगे बढ़ाया था, लेकिन लिफाफा ओमप्रकाश जायसवाल के नाम पर खुला। जायसवाल, पुराने नेता हैं, और सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी है। कुल मिलाकर नए नामों को लेकर ज्यादा विरोध नहीं हुआ है।
सरनेम और जाति
बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोपी सुरेश चंद्राकर के सरनेम को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा गया। बाद में यह बात सामने आई कि सुरेश, अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। कांग्रेस के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के पदाधिकारी रहे हैं। आर्थिक रूप से बेहद सक्षम सुरेश से कांग्रेस और भाजपा के कई नेताओं की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इससे परे कांकेर भाजपा के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष महेश जैन को पार्टी के कई लोग जैन समाज का मानते हैं, लेकिन महेश वास्तव में कलार समाज से आते हैं, जो पिछड़ा वर्ग है। कांकेर जिले में कलार समाज की अच्छी खासी आबादी है, और कई लोग अपने सरनेम जैन लिखते हैं। ऐसे में सरनेम से जाति का अंदाजा लगाना मुश्किल है। ये अलग बात है स्थानीय लोग और पार्टी के नेता इससे परिचित होते हैं। और यह सब देखकर नियुक्ति की जाती है।
छत्तीसगढ़ से गुजरे एक गिद्ध की अद्भुत यात्रा
महाराष्ट्र के ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिजर्व से तमिलनाडु तक की 4000 किलोमीटर लंबी यात्रा ने एक सफेद पूंछ वाले गिद्ध की अद्वितीय यात्रा की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। इस गिद्ध को अगस्त 2024 में सैटेलाइट टैग (एन-11) किया गया था, और तब से यह गिद्ध कई राज्यों से होते हुए तमिलनाडु पहुंच चुका है।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के निदेशक किशोर रीठे के अनुसार इस गिद्ध ने महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक होते हुए तमिलनाडु तक का सफर तय किया। इस दौरान गिद्ध को कमजोरी और बीमारी का सामना करना पड़ा। इसलिए यात्रा के दौरान उसे दो बार पकड़ा गया और उसका उपचार किया गया।
इस यात्रा में खास क्या है? इसका महत्व केवल इस गिद्ध की उड़ान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की गिद्ध संरक्षण पहल की एक कहानी है। महाराष्ट्र के वन विभाग और बीएनएचएस ने मिलकर 10 लुप्तप्राय गिद्धों को जीपीएस टैग किया और उन्हें पेंच व ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व में प्री-रिलीज़ एवियरी में रखा। यह पहल 21 जनवरी 2024 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य गिद्धों की घटती आबादी को पुनर्जीवित करना है।
1990 से 2006 के बीच भारत में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई। इसका मुख्य कारण मवेशियों के शवों में डाईक्लोफेनाक नामक दवा का उपयोग था। इसके बाद सरकार ने इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया अब प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से गिद्धों की आबादी को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
ज्यादा संतानों को प्रोत्साहन-एक नया विमर्श
आज देश और दुनिया में बढ़ती जनसंख्या एक अहम मुद्दा बनी हुई है। इधर प्रदेश में माहेश्वरी समाज ने अपनी घटती आबादी पर चिंता व्यक्त की है। हाल ही में हुई उनकी बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अधिक बच्चे पैदा करने के लिए परिवारों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत,तीसरी संतान होने पर 51 हजार रुपये और चौथी संतान पर एक लाख रुपये दिए जाएंगे। प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया।
यह निर्णय अपने आप में अनोखा है, क्योंकि अक्सर ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील धार्मिक संगठनों, विशेष रूप से हिंदू संगठनों द्वारा की जाती है। उनका तर्क यह होता है कि आने वाले समय में हिंदू आबादी घट सकती है, जबकि मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या बढऩे की संभावना है। इधर, माहेश्वरी समाज की यह पहल धर्म आधारित न होकर अपने समुदाय की घटती जनसंख्या पर केंद्रित है।
जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में किए गए शोध बताते हैं कि यदि आबादी बढ़ती रही तो संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या को 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर पर स्थिर रहना चाहिए। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 10 दंपतियों के बीच औसतन 21 संतानों का होना जरूरी है।
माहेश्वरी समाज की यह पहल एक बड़े प्रश्न को जन्म देती है—क्या किसी समुदाय द्वारा अपनी आबादी को बनाए रखने के लिए इस प्रकार की आर्थिक प्रोत्साहन योजनाएं हों ? यह कदम न केवल जनसंख्या स्थिरता की बहस को नई दिशा दे सकता है, बल्कि किसी समाज की घटती जनसंख्या के अन्य आयामों पर भी विचार करने का अवसर देता है।