राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : महादेव का प्रकोप जारी है...
10-Aug-2025 7:12 PM
राजपथ-जनपथ : महादेव का प्रकोप जारी है...

महादेव का प्रकोप जारी है...

सीबीआई महादेव ऑनलाइन सट्टा केस की पड़ताल कर रही है। चर्चा है कि करीब 50 से अधिक लोगों को सीबीआई ने नोटिस भी जारी किया है। सभी से एक-एक कर बयान लिए जा रहे हैं।

दुर्ग के एक ज्वेलर्स संचालक को भी पूछताछ के लिए तलब किया गया है। ऐसी चर्चा है कि सट्टेबाजी का पैसा ज्वेलर्स संचालक के माध्यम से राजनेताओं, कारोबारियों, और पुलिस अफसरों तक पहुंचा है। पांच आईपीएस अफसरों के नाम चर्चा में रहे हैं। सभी के यहां जांच-पड़ताल भी हुई थी।  मगर ‘महादेव’ से कोई साक्ष्य मिलने की बात सामने नहीं आई है।

सीबीआई ने ईडी, और ईओडब्ल्यू-एसीबी की अब तक की कार्रवाई के आधार पर आगे बढ़ रही है। चर्चा है कि सीबीआई ने उन्हीं लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया है, जिनके यहां पहले भी कार्रवाई  हो चुकी है।

बताते हैं कि  ‘महादेव’  का पैसा म्यूल अकाउंट के जरिए प्रभावशाली लोगों तक पहुंचा है। इस दौरान रायपुर, और दुर्ग में काफी प्रापर्टी के सौदे हुए हैं। सारे रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। हल्ला है कि आने वाले दिनों में सीबीआई कुछ प्रभावशाली लोगों को दबोच सकती है। देखना है क्या कुछ होता है।

गौवंश की मौतें, दोषियों को फिक्र नहीं

हाईवे पर भारी वाहनों की टक्कर से गौवंश की लगातार हो रही मौतों ने सरकार से लेकर आम नागरिक तक, सभी को विचलित कर दिया है। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब ये मूक पशु सडक़ों पर अपनी जान न गंवा रहे हों। कई बार तो यह मौतें समूह में हो रही हैं।

यदि बिलासपुर जिले की बात करें तो मात्र एक महीने में 100 से अधिक मवेशी अपनी जान गंवा चुके हैं। केवल 15 दिनों में हुई तीन-चार बड़ी दुर्घटनाओं में 80 से ज्यादा मवेशियों की मौत हुई। इन घटनाओं ने हाईकोर्ट का भी ध्यान खींचा, जिसके बाद अदालत ने राज्य सरकार और सभी जिलों के कलेक्टरों को कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए।

लगभग सभी जिलों में कलेक्टरों ने इस विषय पर बैठक की और विभिन्न उपाय शुरू किए। इनमें सडक़ों से पशुओं को खदेडऩा, कांजी हाउस में बंद करना, उनके मालिकों की पहचान कर कार्रवाई करना भी शामिल है। कुछ पशुपालकों की पहचान गांववालों की मदद से हुई और उनकी गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन, हुआ यह कि सभी आरोपी थाने से ही मुचलके पर रिहा कर दिए गए। क्यो?

दरअसल, कलेक्टरों ने तो बीएनएस की धारा 325 (पशु क्रूरता अधिनियम) के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन पुलिस कुछ तकनीकी कारणों से ऐसा नहीं कर पा रही है। इस धारा के तहत यह साबित करना आवश्यक है कि पशु के मालिक ने उसके साथ क्रूरता की है। शारीरिक चोट पहुंचाई है या हिंसक व्यवहार किया है। जबकि सडक़ पर छोड़े गए मवेशियों के मामले में मालिक की गलती मुख्यत: लापरवाही ही है। यदि सडक़ पर घूमते-फिरते मवेशी वाहनों की चपेट में आकर मारे जाते हैं, तो इसके लिए वाहन चालक ही जिम्मेदार है, जबकि मालिक पर केवल लापरवाही, बीएनएस की धारा 291 का मामला बनता है। इस धारा में अधिकतम छह महीने की कैद और 5,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है, और मुचलके पर थाने से ही रिहाई हो जाती है। इसलिए, मवेशी मालिकों की गिरफ्तारी की खबर सुनने पर भले ही लगे कि कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है, लेकिन हकीकत में इसका उन पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा।

अब बात करते हैं, इन मवेशियों को कुचलकर भागने वाले चालकों की। ये दुर्घटनाएं अधिकतर रात में होती हैं, और भारी वाहनों का पता ही नहीं चलता। हाल ही में मनेंद्रगढ़ में एक ट्रेलर को जब्त किया गया और उसका चालक अनूपपुर से गिरफ्तार हुआ। चाहे मामला मवेशी को कुचलने का हो या इंसान को—कानून एक ही है। बीएनएस के तहत, यदि चालक दुर्घटना के बाद बिना सूचना दिए भाग जाए, तो धारा 106(2) के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें 10 साल की कठोर कैद और 7 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन इस धारा के खिलाफ देशभर के ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल की, जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की कि इसे फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा। इस कारण, यह प्रावधान देशभर में स्थगित है। फिलहाल ऐसे मामलों में धारा 106(1) के तहत कार्रवाई की जा रही है, जो पहले की आईपीसी की तरह अपेक्षाकृत नरम है। पांच साल की कैद और कुछ हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान, साथ ही निचली अदालत से आसानी से जमानत मिल जाती है। भारी वाहन चालकों के लिए यह कोई नई बात नहीं है।

कहने का तात्पर्य यह है कि केवल कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देकर न तो मवेशियों को सडक़ों से हटाया जा सकता है और न ही उनकी जान बचाई जा सकती है। इसके लिए लोगों में  ही जागरूकता लाना जरूरी है। इसी क्रम में, छत्तीसगढ़ सरकार ने कल गौधाम योजना शुरू की है। यह योजना पिछली सरकार की योजना से अलग है और विशेष रूप से ऐसे ही घुमंतू मवेशियों पर केंद्रित है। उम्मीद है कि इसके बाद सडक़ पर गौवंश की संख्या कम होगी और उनकी जान बच सकेगी।

 

भारतमाला जांच

भारतमाला परियोजना घोटाला प्रकरण में ईओडब्ल्यू-एसीबी के हाथ खाली हैं। जांच एजेंसी ने जिन 4 लोगों को आरोपी बनाया था उन सभी को हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है। बताते हैं कि घोटाले में संलिप्तता पर जांच एजेंसी ने एनएचएआई के तीन अफसरों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किए हैं, लेकिन एजेंसी अब तक तीनों अफसरों से पूछताछ नहीं कर पाई है।

चर्चा है कि मुआवजा घोटाले की जांच के मसले पर भारत सरकार की संस्था एनएचएआई, और ईओडब्ल्यू-एसीबी के बीच मतभेद हैं। जांच एजेंसी ने तीनों अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एनएचएआई से अनुमति मांगी थी, लेकिन एनएचएआई ने अनुमति नहीं दी।

एनएचएआई से जुड़े लोगों का कहना है कि जमीन अधिग्रहण से लेकर मुआवजा निर्धारण की जिम्मेदारी राजस्व अफसरों की रही है। ऐसे में मुआवजा अपात्र अथवा ज्यादा देने के लिए राज्य के अफसर ही जिम्मेदार हैं। एनएचएआई की कोई भूमिका नहीं होती है। लिहाजा, एनएचएआई के लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना उचित नहीं है।  राज्य सरकार ने कमिश्नर के माध्यम से एक और जांच टीम बनाकर मुआवजा घोटाले की पड़ताल करवा रही है। मगर इसका भी कोई निष्कर्ष सामने नहीं आ पाया है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

सिंचाई नहीं संविदा विभाग

सिंचाई विभाग इन दिनों संविदा विभाग के नाम से पहचाना जा रहा है। विभाग में नीचे से ऊपर कई रिटायर अधिकारी कर्मचारी संविदा पर काम कर रहे हैं। वह भी उसी कुर्सी पर जिसमें 35-40 वर्ष बैठकर रिटायर हुए थे। बताया तो यह भी गया है कि संविदा नियुक्ति के लिए तीन लोग प्लेसमेंट फर्म की तरह काम कर रहे हैं। संविदा के एक ठेकेदार का दावा है विभाग में हमारे संविदा नियुक्ति कराने की गारंटी कभी फेल नहीं होगी।

विभाग में प्रमुख अभियंता ईएनसी से लेकर लिपिक तक संविदा नियुक्ति दिलवा रहे हैं। विभाग के प्रमुख अभियंता, मुख्य अभियंता कार्यालय के बड़े अधिकारी व लिपिक के पद के लिए और अंत में वित्त से एनओसी मिल जाती है। स्वयं प्रमुख अभियंता ईएनसी, दो मुख्य अभियंता जैसे वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त हुए  संविदा प्राप्त करने में सफल हुए हैं। इसी तरह से एक कर्मचारी नेता भी संविदा प्राप्त कर कार्यरत हैं। अनेक लिपिक लेखापाल अधिकारी संविदा में खेला कर रहे हैं।

 सेवानिवृत होने के पहले ही संविदा की तैयारी की जाती है। एक वरिष्ठ लिपिक सेवानिवृत्त होने के बाद उसके कार्यभार प्राप्त करने के लिए लिपिक स्टेनो में खींचतान जारी ही था, कि उसकी भी संविदा नियुक्ति की फाइल चल चुकी है। प्रति माह हजारों रुपए पेंशन प्राप्त करने वाले ऐसे लोग दोहरा आर्थिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इनको मिलने वाली राशि से दो-तीन बेरोजगार नौकरी प्राप्त कर सकते हैं।

शायद इसलिए कबीर दास का लिखा दोहा यहां सटीक बैठता है। उन्होंने लिखा था- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सुन, अब विभाग में यह युक्ति बदल कर रहिमन मुद्रा राखिए बिन मुद्रा सब सुन। बहरहाल इस खेल को जानने वालों ने सरकार को पत्र भेजकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है , जिससे संविदा चैनल का पर्दाफाश हो जाएगा। देखना होगा आगे क्या होता है।


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