राजपथ - जनपथ
गोयल से अधिक निजी विवि खुश
आखिरकार छह महीने बाद राज्य निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग में चेयरमैन पद पर प्रोफेसर वीके गोयल की नियुक्ति हो गई। रविवि के प्रोफेसर डॉ. व्यास दुबे को आयोग का सदस्य बनाया गया है। नियुक्ति को लेकर काफी खींचतान की भी चर्चा है। वजह यह है कि निजी विश्वविद्यालयों में अनियमितताओं पर राज्यपाल रामेन डेका नाखुश रहे हैं। आयोग के सदस्य बृजेशचंद मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में सभी 17 विवि में गड़बडिय़ों का जिक्र किया था। उच्च शिक्षा सचिव आर प्रसन्ना भी निजी विवि पर अंकुश लगाने के लिए काफी प्रयासरत थे। अब मिश्रा, और प्रसन्ना हट चुके हैं।
प्रसन्ना केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। ऐसे में आयोग में सख्त चेयरमैन की दरकार थी। बताते हैं कि तीन नाम का पैनल तैयार किया गया था जिसमें सुंदरलाल विवि के पूर्व कुलपति बीजी सिंह, मप्र निजी विवि के पूर्व चेयरमैन अखिलेश पाण्डेय, और प्रोफेसर वीके गोयल का नाम था। गोयल ज्यादातर समय माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव पद पर रहे हैं। वो एक तरह से उच्च शिक्षा से अलग हो गए थे। दो महीना पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया था। इसके बाद उन्हें चेयरमैन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। देखना है कि गोयल निजी विवि की अनियमितताओं पर अंकुश लगा पाते हैं या नहीं। वैसे गोयल की नियुक्ति से निजी विवि प्रबंधक खुश नजर आ रहे हैं। गोयल से अधिक निजी विवि खुश !!
अगली नियुक्ति किसकी?
निजी विवि नियामक आयोग में सदस्य के रूप में डॉ. व्यास दुबे की नियुक्ति की गई है। चर्चा है कि आयोग के एक अन्य सदस्य के लिए तीन रिटायर्ड आईएएस अफसरों का नाम पैनल में है। इनमें रायपुर के पूर्व कमिश्नर डॉ. संजय अलंग, उमेश अग्रवाल, और पूर्व उच्चशिक्षा आयुक्त शारदा वर्मा का नाम हैं।
उमेश अग्रवाल, भूपेश सरकार में पुलिस प्राधिकार सदस्य रह चुके हैं। डॉ. अलंग रायपुर-बिलासपुर कमिश्नर रह चुके हैं। वो कुलपति के प्रभार पर ही रहे हैं। वैसे तो शारदा वर्मा वित्त सेवा की अफसर रही हैं। उन्हें रमन सरकार में आईएएस अवार्ड हुआ था। वो सबसे ज्यादा समय तक उच्च शिक्षा में काम कर चुकी हैं। देखना है कि सरकार किस पर मुहर लगाती है।
जीत के बाद भी जश्न मनाना हुआ मुश्किल
पंचायत चुनाव संपन्न हो चुके हैं। शहरों, कस्बों में नई सरकारें बन गईं, पर पंच और सरपंच जीतकर भी काम संभालने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जैसे ही प्रशासनिक कार्यों की शुरुआत होनी थी, पंचायत सचिवों की राज्यव्यापी हड़ताल शुरू हो गई।
कई सरपंच ऐसे हैं जो दूसरी या तीसरी बार चुने गए हैं, उन्हें अनुभव है कि पंचायत की प्रक्रिया कैसे चलती है। फिर भी अधिकांश कामों में पंचायत सचिव की भूमिका अनिवार्य है। विशेषकर फंड से जुड़े दस्तावेजों में सचिव के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। पंचायत में आने वाली निधि का उपयोग, बैंक से राशि की निकासी या विकास योजनाओं की मंजूरी जैसे काम सचिव के बिना संभव नहीं हैं।
नई पंचायतों में बड़ी संख्या में पहली बार निर्वाचित सरपंच भी शामिल हैं, जो अभी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को समझने की शुरुआत ही कर रहे हैं। उन्हें कौन-से फंड कहां से मिलते हैं, अधिकार व दायित्व क्या हैं, इन सभी पहलुओं की जानकारी देने वाला ही कोई नहीं है।
हड़ताल को एक माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इसके जल्द समाप्त होने के आसार नहीं दिख रहे। उल्टा अब आंदोलनरत पंचायत सचिव दिल्ली जाकर प्रदर्शन की तैयारी में हैं। इस स्थिति का असर ग्रामीण जनता पर भी पड़ रहा है। जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीयन, पीएम आवास योजना के सर्वे, राशन कार्ड हेतु प्रमाण पत्र, पेंशन आवेदन स्वीकृति, पीने के पानी व निस्तारी के लिए राशि नहीं निकल रही है। 15वें वित्त आयोग की करोड़ों रुपये की राशि पंचायतों के खातों में पड़ी है, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
प्रशासनिक स्तर पर वैकल्पिक प्रयासों के तहत शिक्षकों और रोजगार सहायकों को पंचायत सचिव का अतिरिक्त प्रभार देने के निर्देश जिला और अनुविभागीय के स्तर पर जारी हुए हैं, लेकिन अधिकांश कर्मचारी हाथ डालने से कतरा रहे हैं। न तो उन्हें पंचायत संचालन का अनुभव है और न ही वे जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं। वे आशंका जता रहे हैं कि कलम कहीं फंस न जाए।
जहां नगरीय निकायों में महापौर, अध्यक्ष और पार्षद नई जीत का जश्न मना रहे हैं, वहीं गांवों में चुने गए जनप्रतिनिधि असहाय बैठे हैं। एक ओर सरकार के रुख की ओर टकटकी लगाए, पंचायत सचिवों की वापसी की उम्मीद लगाए।
ठंडा पानी सस्ता नहीं मिलेगा
गर्मी का मौसम शुरू होते ही रेलवे की ओर से बयान जारी किया गया था, जिसमें बताया गया था कि यात्रियों के लिए प्लेटफार्म में किस तरह से ठंडे पानी का इंतजाम किया जा रहा है। मगर दुर्ग रेलवे स्टेशन की यह तस्वीर कुछ और ही बता रही है। यहां की वाटर वेंडिंग मशीन धूल खाती पड़ी हुई है। जो लोग बिसलेरी, किनले नहीं खरीद पाते उनके लिए शुद्ध ठंडा पानी पांच रुपये में यहां उपलब्ध होता है। मगर, भीषण गर्मी के बीच रेलवे ने इसे चालू करने के बारे में नहीं सोचा।


