राजपथ - जनपथ
ईडी वाला जिलाध्यक्ष
एआईसीसी के नए भवन में जिलाध्यक्षों की बैठक के बाद से विशेषकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस में थोड़ा उत्साह का संचार हुआ है। बैठक की बात छन-छन बाहर निकल रही है। वैसे तो सभी जिलाध्यक्षों ने बैठक में अपनी बात रखने के लिए तैयारी कर रखी थी, लेकिन सिर्फ दो जिलाध्यक्षों को बोलने का मौका मिल पाया।
छत्तीसगढ़ के एक जिलाध्यक्ष ने तो बैठक में बोलने के लिए हाथ उठाया भी था, और जोर से कहा कि मैं ईडी वाला जिलाध्यक्ष....। ये आवाज राहुल गांधी तक पहुंची, फिर भी उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। दरअसल, जिलाध्यक्ष के यहां महादेव प्रकरण को लेकर ईडी ने छापेमारी की थी।
जिलाध्यक्ष ने जांच एजेंसियों के खिलाफ बोलने के लिए काफी तैयारी भी कर रखी थी, लेकिन उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला। पार्टी के रणनीतिकार नहीं चाहते थे कि संगठन से परे किसी और विषय पर चर्चा हो। शायद यही वजह है कि ईडी वाले जिलाध्यक्ष को अनदेखा कर दिया गया।
खूब वक्त दिया सबको

केन्द्रीय कोयला राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी दो दिन के प्रदेश दौरे पर आए, तो यहां तमाम प्रमुख नेताओं के साथ मंत्रणा की, और उन्हें अपनी बात रखने के लिए भरपूर समय दिया। रेड्डी भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। वो पहले भी कई बार प्रदेश दौरे पर आ चुके हैं, और यहां पार्टी के प्रमुख नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं।
रेड्डी नवा रायपुर के सबसे महँगे होटल में रात्रिभोज में शरीक हुए। इसमें सीएम विष्णुदेव साय, स्पीकर डॉ. रमन सिंह, डिप्टी सीएम अरुण साव, और सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी थे। साय, और अन्य नेताओं के साथ रेड्डी ने काफी देर पार्टी-सरकार के विषयों पर काफी देर चर्चा की। वो उद्योगपतियों से भी मिले, और उनकी समस्याएं सुनी। इससे परे पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर को भी कोरबा में भरपूर समय दिया, और उनकी भी शिकायतें सुनीं। वो समय निकालकर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के घर भी गए, और वहां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी थे। इस दौरान कोयले से जुड़ी समस्याओं पर भी चर्चा हुई।
छत्तीसगढ़ से कोयले से केंद्र और राज्य को सबसे ज्यादा रायल्टी मिलती है। ऐसे में यहां के नेताओं की शिकायत रही है कि उस अनुपात में केन्द्र सरकार से विकास योजनाओं के लिए अपेक्षाकृत धन राशि नहीं मिलता है। मगर जी किशन रेड्डी के दौरे से शिकायतें दूर होंगी, ऐसी उम्मीद जताई जा रही है। देखना है आगे क्या
होता है।
जीवनदायिनी अरपा सांसें गिन रही

पहली नजऱ में लगता है जैसे यह किसी हरे-भरे खेत की तस्वीर हो। लेकिन यह खेत नहीं, बिलासपुर की जीवनदायिनी कही जाने वाली अरपा नदी है, जिसे देख आज शर्म और पीड़ा दोनों होती है।
नदी में जल की एक बूंद नहीं दिखती, दूर-दूर तक बस जलकुंभी की हरियाली फैली है। नदी कहां है, ये पहचानना भी मुश्किल हो गया है। अब तक की तमाम सरकारें अरपा को बहता देखने के दावे करती रहीं योजनाएं बनीं, घोषणाएं हुईं। मंत्री समीक्षा बैठक लेते हैं, अफसर योजनाएं तैयार करते हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। मानसून में कुछ समय के लिए ज़रूर नदी बहती है, लेकिन बाकी वक्त? बस नाम है नदी का।
यह तस्वीर हमें एक रेल कर्मचारी ने भेजी है, जो हाल ही में तबादले पर बिलासपुर आए हैं। उन्होंने पहली बार अरपा को इस रूप में देखा और अवाक रह गए। हमने उनसे कहा- अगले पांच साल बाद भी आप इसे ऐसा ही पाएंगे।
शिक्षा सत्र शुरू होते ही लूट
छत्तीसगढ़ के प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा एक सेवा न होकर, एक मुनाफाखोरी का माध्यम बनती जा रही है। अनेक निजी स्कूल खुलेआम, मनमर्जी से महंगी और गैर-एनसीईआरटी पुस्तकें थोप रहे हैं, जिनका मूल्य कभी-कभी केंद्रीय विद्यालय में मिलने वाले किताबों से दस गुना तक अधिक होता है।
नर्सरी कक्षा की एनसीईआरटी किताबों का पूरा सेट 150 रुपये में उपलब्ध है, वहीं प्राइवेट स्कूलों में वही कक्षा की किताबों का सेट 2000 रुपये तक बेचा जा रहा है। किताबों के साथ-साथ यूनिफॉर्म और अन्य सामानों पर भी मनमाना कमीशन वसूला जा रहा है, जिससे अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ रहा है। ऊपर के स्कूलों में तो यह खर्च 10 से 12 हजार पहुंच रहा है। फीस अलग से।
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले अभिभावकों को लूटने का धंधा शुरू हो गया है, जबकि शिक्षा विभाग इस पर रोक लगाने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है। ([email protected])


