राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अफसरों की फ्यूचर प्लानिंग
08-Apr-2025 3:38 PM
 राजपथ-जनपथ :  अफसरों की फ्यूचर प्लानिंग

अफसरों की फ्यूचर प्लानिंग

पढ़ लिखने के बाद युवा नौकरी शुदा होते ही अपने भावी जीवन की प्लानिंग में लग जाते हैं। इसलिए बीमा कंपनी का नारा है जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। चाहे वह निजी कंपनी का मुलाजिम हो या फिर सरकारी। सरकारी मुलाजिम अफसर कर्मचारी को फ्यूचर प्लानिंग में उतनी उधेड़बुन नहीं करना पड़ता है, जितना निजी संस्थान के कर्मचारी को। सरकार से पकी-पकाई मासिक तनख्वाह और चालाकी से हर माह निकाला जाने वाला डिविडेंड।

कुछ इसके लिए नौकरी की परीवीक्षावधि खत्म होते ही जुट जाते हैं तो कुछ इसके लिए भी प्लानिंग करते हैं, कि कबसे उपरी कमाई सकेलना है। मंत्रालय के एक कमरे में बैठे दो युवा अफसर ऐसी ही चर्चा कर रहे थे। दोनों एक ही बैच के अफसर। एक ने कहा मैंने शुरू कर दिया है, लेकिन मिल जाए तो ठीक न मिले तो जबरदस्ती नहीं की नीति से। तो दूसरे ने कहा कि इसमें मैं प्लानिंग से चल रहा हूं। अभी से नहीं। नौकरशाहों के संपन्न परिवार से आए इन साहब ने कहा घर में जो है वो ही मैनेज कर लूं अभी। तब तक प्रमुख सचिव बन जाऊंगा तब फ्यूचर प्लानिंग के लिए इनकम एक्सपेंडिचर का जुगाड़ करूंगा। सही है, अभी इमेज बिल्डिंग का काम कर लिया जाए।

दोनों की बातें सुनकर पुराने एक रिटायर्ड एसीएस की अपने वक़्त के मातहत को कही बात याद आ गई। उस मातहत ने भी मना किया था। उनके कर्मचारी ने एसीएस से कहा- साहब वैसे नहीं है। तो एसीएस साहब ने कहा था कि अभी शादी नहीं हुई है न। हो जाएगी तो ये भी शुरू हो जाएगा। इनसे इतर और इसी मंत्रालय में एक ऐसे भी अफसर हैं जिनकी पारिवारिक संपन्नता के चलते सरकार से मात्र एक रुपए वेतन लेने की चर्चाएं खूब रही हैं।

आईपीएस हवा के रुख के जानकार?

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संजय जोशी को उनके जन्मदिन की बधाई देने छत्तीसगढ़ से कई नेता, और कार्यकर्ता दिल्ली गए थे। जोशी का 6 अप्रैल को जन्मदिन था। जोशी से मिलकर बधाई देने वालों में यहां के एक आईपीएस अफसर भी थे, जो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।

संजय जोशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही है। इन दिनों जोशी के दिल्ली के गोल मार्केट स्थित दफ्तर में अलग-अलग राज्यों से कई नेता और कार्यकर्ता उनसे मिलने पहुंच रहे हैं। 

 केन्द्र और भाजपा शासित राज्यों में किसी पद पर न होने के बावजूद संजय जोशी की सिफारिशों को तवज्जो दी जा रही है। जन्मदिन के मौके पर संजय जोशी को बधाई देने केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी पहुंचे थे। अब आईपीएस अफसर का क्या मकसद था, यह तो पता नहीं, लेकिन संजय जोशी से उनकी मुलाकात काफी चर्चा हो रही है।

 

अपेक्स बैंक में कौन?

सरकार के 36 निगम-मंडलों में अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। कुछ संस्थानों में नियुक्ति के लिए दबाव बना है। कई नेता भाजपा संगठन के प्रमुख नेताओं से लगातार मिल रहे हैं। इन सबके बीच राज्य अपेक्स बैंक में नियुक्तियों की अटकलें लगाई जा रही है। बताते हैं कि अपेक्स बैंक अध्यक्ष पद के लिए पूर्व सांसद अभिषेक सिंह का नाम प्रमुखता से उभरा है। अभिषेक राजनांदगांव संसदीय सीट से सबसे अधिक वोटों से चुनाव जीते थे लेकिन बाद में वर्ष 2019 के चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। इसके बाद से वो संगठन का दायित्व निभा रहे हैं। सरकार सहकारिता क्षेत्र में कुछ नया करने जा रही है। ऐसे में अभिषेक क्या कुछ जिम्मेदारी मिलती है, यह देखना है।

चुड़ैल झिरिया से सुंदर झिरिया

शेक्सपियर ने कभी कहा था-नाम में क्या रखा है?, लेकिन जशपुर जिले के पत्थलगांव ब्लॉक के एक छोटे से गांव के लोग इस विचार से इत्तेफाक नहीं रखते। और शायद उनकी बात में दम भी है, क्योंकि जब किसी जगह का नाम उपहास या डर का कारण बनने लगे, तो बदलाव जरूरी हो जाता है। गांव का नाम चुड़ैल झिरिया हो तो सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ सकती है। लेकिन इस नाम ने गांव वालों को काफी कुछ झेलने पर मजबूर कर दिया है। यहां के सरपंच के पति वेदराम लकड़ा के मुताबिक हम जहां जाते हैं, लोग हंसते हैं। भूत पिशाच की बात करते हैं, जबकि यहां कोई चुड़ैल नहीं जैसी चीज नहीं।  

गांव के बुज़ुर्गों की मानें, तो कभी यह जगह घने जंगलों, झाडिय़ों और एक झरने से घिरी थी। पुराने जमाने के लोगों ने यहां किसी रात को रोने वाली आवाजों की बात की, जिसे  लोग चुड़ैल बताने लगे। इसी से गांव का नाम पड़ गया-चुड़ैल झिरिया। आबादी बढ़ी तो दो चार लोगों ने यहां आ झोपडिय़ां बनाना शुरू किया, फिर पूरा गांव ही बस गया।

लेकिन अब समय बदल गया है। गांव में शिक्षा आई है, सोच बदली है, और अब लोग नहीं चाहते कि उनके गांव का नाम डर और तंज का पर्याय बना रहे। अब गांव के लोग चाहते हैं कि उनका नाम ऐसा हो, जो उनके गांव की खूबसूरती और शांति को दर्शाए। इसलिए उन्होंने नया नाम चुना है-सुंदर झिरिया। एसडीएम को शासकीय अभिलेखों में नया नाम दर्ज करने के लिए आवेदन दिया गया है।

गांव की आम बोलचाल में अब यह नाम अपनाया जा चुका है। बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक, अब चुड़ैल नहीं, सुंदर कहकर पुकारते हैं। छत्तीसगढ़ के बहुत से इलाके हैं जहां, भूत-प्रेत, टोनही और चुड़ैल ने नाम पर अप्रिय घटनाएं होती हैं। पूरा गांव, पूरा समुदाय अंधविश्वास से घिरा होता है। ऐसे में जब चुड़ैल नाम से कोई गांव पीछा छुड़ाना चाहता है तो यह बात अच्छी ही है। 

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